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Saturday 22 October 2016

‘God the Wicked, God the sinner

स्वामी विवेकानंद 1
नरेन्द्र के पिता विश्व>नाथ दत्त मुक्त हस्ते से दान करते थे। अपने मुहल्ले में भी वे दाता विश्व नाथ के नाम से मशहूर थे। किसी के अर्थ संकट को देखकर वे अत्यन्त व्यथित होते थे। इस मामले में वे बिल्कुल बेहिसाबी थे। कुछ नशाखोर उनकी दानी प्रवृत्ति का नाजायज फायदा उठाते थे। एक दिन जब नरेन्द्रनाथ ने अपने पिता के समक्ष उनकी दानशीलता के इस अपव्यवहार की बात उठायी तो उन्होंने कहा, ‘‘जीवन कितना दुःखमय है, यह तुम अभी कैसे समझोगे? जब समझने के काबिल बनोगे, तब इन पियक्कड़ों को भी जो अपार दुःख से क्षणिक निस्तार लाभ करने के लिए नशा करते है। तुम दया की दृष्टि से देखोगे’। पिता के उपदेश का पूर्णतर रूप नरेन्द्रनाथ ने श्रीरामकृष्ण के जीवन और वाणी में पाया था। दया की दृष्टि, श्रद्धा की दृष्टि में बदल गयी। इसका कारण यह था कि श्रीरामकृष्णदेव ने उन्हें शिक्षा दी थी : ‘‘दया भी छोटी है। मनुष्य ईश्वणर का जीवन्तरूप है। ईश्व:र को दया दिखाने की बात भी क्या हम सोचते हैं? हम तो ईश्वार की सेवा एवं पूजा करके धन्य हो जाते हैं। इसलिए दया नहीं, शिवज्ञान से जीवसेवा, मनुष्य को भगवान समझकर सेवा करनी चाहिए। कोई भी व्यक्ति घृणा का पात्र नहीं होता। जो पापी है, वह भी असल में भगवान है। चोर रूपी नारायण, लुच्चारूपी नारायण’ इसलिए उत्तरकाल में स्वामी विवेकानन्द ने प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा की दृष्टि से देखा। जो अधःपतित है, उन्हें भी कहतेः ‘ ‘God the Wicked, God the sinner’ - दुर्जन, पापी सभी भगवान हैं।


Tuesday 4 October 2016

आयुष्य हे सुंदर असतं

आयुष्य हे सुंदर असतं हे ज्याच त्याने ठरवायच असतं...!
स्वप्न फरारीच बघायच ...का अपना बजाज मधे सुख शाेधायच
डिग्री घेऊन सुशिक्षित व्हायचे.... का संस्कार जाेपासुन सुसंस्कृत व्हायचे
आई वडिलांच्या कष्टांची जाणीव ठेवायची... का त्यांच्या उतार वयात वृद्धाश्रमाचा चेक फाडायचा.
आयुष्य हे सुंदर असतं  हे ज्याच त्याने ठरवायच असतं....!

स्वबळावर नविन देश पादाक्रांत करायचे ....का मराठी पणाच्या चौकटित स्वतःला जखडून ठेवायच
What's Up वर स्वःताच मनोरंजन करायच .......का आपुल्या सानूल्या सोबत सारीपाठात रमायच.
जोडीदार सोबत शरदाच चांदण शिंपायच...का समाजाच्या जोखडित वेळोवेळी मरांयच
आयुष्य हे सुंदर असतं हे ज्याच त्याने ठरवायच असतं....!

तीनीसांजा देव्हार्यात दिवा लावायचा.....का विजय मल्याचा बिझनेस वाढवायचा.
मनाच्या गाभार्यात रातराणी फूलवायची...का निवडूंगाची कूंपण घालून विचार खुंटवायचे.
जन्माला आलो म्हणून आयुष्य रेटायच..... का एकच जन्म आहे म्हणून आयुष्य जगायचं.
आयुष्य हे सुंदर असतं हे ज्याच त्याने ठरवायच असतं...!!!!

Sunday 2 October 2016

चिंतन

"दुनिया वालो ने बहुत कोशिश की हमे रूलाने की"

"मगर मुरली वाले ने जिम्मेदारी उठा रखी है हमे हसाने की"

 !! मुरली वाले की जय !!

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जंगल में रहो या बस्ती में

लहरों में रहो या कश्ती में

महंगी में रहो या सस्ती में

पर रहो बाबा  की मस्ती में

क्योंकि जो डूबे है रुणिचा की मस्ती में, चार चांद लग जाते हें उनकी हस्ती में ।

!! जय रामसा पीर !!



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आज भादवा की दूज बाबा रामदेव का जन्मउत्सव की घनी घनी बधाई..

जिनके मन मे भाव सच्चा होता है..

उनका हर काम अच्छा होता है..

प्रभु कहते है जो सच्चा है वो अच्छा है..

रुनीचा रा रामसापीर की जय हो..

बाबा सब की भली करे|



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लाज तूने बचाई हर बार सांवरे

बिगड़ी बनायीं तूने हर बार सांवरे

मेरा कुछ नहीं सब तेरा हैं सांवरे

जो कुछ दिया तूने उसका रखवार तू हैं सांवरे

जैसे चलाएगा वैसे चलूँगा सांवरे

बस सिर अपना हाथ रखना सांवरे

तेरी कृपा के चर्चे हर जगह सुने सांवरे

मुझपे भी अपनी कृपा बरसाना सांवरे



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बस इतना दो प्रभू ....

कि जम़ीन पर बैठूँ तो

लोग उसे मेरा बडप्पन कहें,

औकात नही..



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वह जो हमारे चिंतन में रहता है वह करीब है , भले ही वास्तविकता में वह बहुत दूर ही क्यों ना हो; लेकिन जो हमारे ह्रदय में नहीं है वो करीब होते हुए भी बहुत दूर होता है..~



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सुविचार

बुराई की खासियत हैं कि वो कभी हार नहीं मानती...और.

अच्छाई की एक ही खासियत हैं कि वो कभी हारती नहीं


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संसार में सुखी कोई नहीं है……

गरीब शक्कर के लिये कंट्रोल के चक्कर काटता है ।

और. .. अमीर शक्कर कंट्रोल के लिये डाक्टर के चक्कर काटता है ।।


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आँखे कितनी भी छोटी क्यों ना हो ,ताकत तो उसमे सारे आसमान देखने की होती है !!


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कोई भी इंसान अकेला नहीं होता..उसके साथ हंमेशा होती है

...उम्मीदें... ख्वाहिशें..ज़रूरतें..ज़िम्मेदारियाँ..


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खुश रहा करो, क्यों कि परेशान होने से कल की मुश्किल दूर नहीं होती। बल्कि आज का सुकून भी चला जाता है,,,!


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वक्त हर वक्त को बदल देता है सिर्फ वक्त को थोडा वक्त दो..


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अपनी कमजोरियां उन्ही लोगों को बताइये, जो हर हाल में आपके साथ मजबूती से खड़े होना जानते है ।


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रिश्तों में विश्वास, और मोबाईल में नेटवर्क ना हो, तो लोग Game खेलना शुरू कर देते हैं !


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 हमेशा छोटी छोटी गलतियों से..  बचने की कोशिश किया करो..!!!

क्योंकि इंसान पहाड़ों से नहीं...  पत्थरों से ठोकर खाता है...!!!

  
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अगर अपनों के करीब रहना है तो मौन रहो।। और अपनों को करीब रखना है तो बात दिल पर मत लो।


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तन की ख़ूबसूरती एक नेमत है, पर सबसे खूबसूरत आपकी ज़ुबान है।

चाहे तो दिल 'जीत' ले चाहे तो दिल 'चीर' दे।


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प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।।


करता हूं अनुरोध आज मै दिल्ली की सरकार से,


प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।


वर्ना रेल पटरियो पर जो फैला आज तमाशा है,


गुर्जर आन्दोलन से फैली चारो ओर निराशा है।


अगला कदम जाट बैठेंगे महाविकट हडताल पर,


महाराष्ट मे प्रबल मराठा चढ जाएंगे भाल पर।


राजपूत भी मचल उठेंगे भुजबल के हथियार से,


प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।


निर्धन ब्राम्हण वंश एक दिन परशुराम बन जाएगा,


अपने ही घर के दीपक से अपना घर जल जाएगा।


भडक उठा गृह युध्द अगर भूकम्प भयानक आएगा,


आरक्षण वादी नेताओं का सर्वस्व मिटाऐगा।


अभी सॅभल जाओ मित्रो इस स्वार्थ भरे व्यापार से,


प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।


जातिवाद की नही समस्या मात्र गरीबी वाद है,


जो सवर्ण है पर गरीब है उनका क्या अपराध है।


कुचले दबे लोग जिनके घर मे न चूल्हा जलता है,


भूंखा बच्चा जिस कुटिया मे लोरी खाकर पलता है।


समय आ गया है उनका उत्थान कीजिये प्यार से,


प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।


जाति गरीबी की कोई भी नही मित्रवर होती है,


वह अधिकारी है जिसके घर भूखी मुनिया सोती है।


भूखे माता पिता दवाई बिना तडपते रहते है,


जातिवाद के कारण कितने लोग वेदना सहते है।


उन्हे न वंचित करो मित्र संरक्षण के अधिकार से,


प्रतिभाओं को मत काटो आरक्षण की तलवार से।।


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सरकार से अनुराध  है की जातीय आरक्षण हटा कर केवल फ़ौज में काम करने वाले, पुलिस डिपार्टमेंट में काम करने वाले, होमगार्ड तथा खेती और संबधित कार्य करने वालोको आरक्षण दे। आरक्षण भी केवल शिक्षा मिलने तकही सीमीत रहे और शिक्षा पुरी होने के बाद अपने बलबूते और होशियारीके सहरेही नौकरिया मिलनी चाहिए ।


पोस्ट से सहमत हो तो शेयर करिये अन्यथा जैसा चल रहा है चलने दीजिये ।


हम सब भारत भूमि की संतान है और हम सब में प्रतिभा भरी पड़ी है। जात पात के बल पर आरक्षण करके हम अपने आप में एक अनचाही नफरत की रेखा खीच रहे हैं। अगर यही आरक्षण कर्म के बल पर रहेगा तो सबके साथ न्याय होंगा।


अगर किसीको इस पोस्ट में लिखी बातसे तकलीफ हुई होंगी तो कृपया क्षमा करिये। धन्यवाद।


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कैसे बताऊ


कैसे बताऊ मैं तुम्हे मेरे लिए तुम कौन हो, कैसे बताऊ

कैसे बताऊ मैं तुम्हे तुम धड़कन का गीत हो, जीवन का संगीत हो,

तुम जिंदगी, तुम बंदगी, तुम रौशनी, तुम ताज़गी,

तुम हर ख़ुशी, तुम प्यार हो, तुम प्रीत हो, तुम मनमीत हो,

आखों में तुम, यादों में तुम, सासोंमें तुम, आहोंमे तुम,

निंदोमे तुम, ख्वाबोंमे तुम, तुम हो मेरी हर बात में,

तुम सुबहमें, तुम शाम में, तुम हो मेरे दिन रात में

तुम सोच में, तुम काम में,

मेरे लिए पाना भी तुम, मेरे लिए खोना भी तुम,

मेरे लिए हसना भी तुम, मेरे लिए रोना भी तुम,



और जगना सोना भी तुम,

जाउ कहीं भी, देखु कहीं भी, तुम हो वह तुम हो वहीं

कैसे बताऊ मैं तुम्हे तुम बिन मैं कुछ भी नहीं



कैसे बताऊ मैं तुम्हे मेरे लिए तुम कौन हो, कैसे बताऊ

ये जो तुम्हारा रूप है ये जिंदगीकी धुप है

चन्दन से तराशा है बदन बहती है जिसमे अगन

ये शोखियाँ ये मस्तियाँ तुमको हवाओँसे मिली

जुल्फे घटाओंसे मिली हाथो में कलियाँ खिल गयी

आँखोंमें झील मिल गयी चेहरे में सिमटी चांदनी

आवाज में है रागिनी शीशे के जैसा अंग है

फुलोके जैसा रंग है, नदियोंके जैसी चल है

क्या हुस्न है क्या हाल है ये जिस्म की रंगीनियाँ



जैसे हजारों तितलियाँ बाँहों के ये गोलाइयाँ 

आँचल में ये परछाइयाँ ये नगरिया है ख्वाब की

कैसे बताऊ मैं  तुम्हे हालत दिल-ए-बेताब की

कैसे बताऊ मैं तुम्हे मेरे लिए तुम कौन हो, कैसे बताऊ

कैसे बताऊ मैं तुम्हे मेरे लिए तुम धर्म हो

मेरे लिए इमान हो तुम ही इबादत हो मेरी

तुमही हो चाहत हो मेरी तुमही मेरा अरमान हो

ताकता हु मैं हर पल जिसे तुमही तो वोह तस्वीर हो

तुमही मेरी तक़दीर हो तुमही सितारा हो मेरा

तुम नजारा हो मेरा, यु ध्यान में मेरे हो तुम

जैसे मुझे घेरे हो तुम

पूरब में तुम पश्चिम में तुम उत्तर में तुम दक्षिन में तुम

सारे मेरे जीवन में तुम हर पल में तुम हर क्षण

मेरे लिए रास्ता भी तुम मेरे लिए मंजिल भी तुम

मेरे लिए सागर भी तुम मेरे लिए साथी भी तुम

मैं देखता बस तुमको हु मैं सोचता बस तुमको हु

मैं जानता बस तुमको हु मैं मानता बस तुमको हु

तुमही मेरी पहचान हो कैसे बताऊ मैं तुम्हे

देवी हो तुम मेरे लिए मेरे लिए भगवान हो

कैसे बताऊ मैं तुम्हे मेरे लिए कौन हो तुम

Saturday 1 October 2016

संघर्ष और चुनोतियो

एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया| कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये!

एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा, देखिये प्रभु, आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है, एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा!

परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!

किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी तब पानी| तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, कि फ़सल कैसे उगाई जाती हैं|
बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे. 

फ़सल काटने का समय भी आया , किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा , एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर
से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा, प्रभु ये क्या हुआ ?

तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया , उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.
.
सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है, उसे अनमोल बनाती है !”

उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, गर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे.

अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभा शाली बनना है, तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !


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धन म्हणजे काय...?


* वडीलांनी घरी आल्यावर आपल्याला पुर्ण वेळ द्यावा असे जेव्हा मुलांना वाटते तेव्हा वडीलांनी टि.व्ही.बंद करुन आणि स्मार्टफोन बाजुला ठेवुन मुलांना दिलेला 100% वेळ हे मुलांचे - "धन"..

* वैवाहिक आयुष्यातील 20 वर्ष पुर्ण झाल्यावर सुध्दा जो आपल्या पत्नीला तीच्या गुणदोषासकट स्विकारुन सांगतो "माझ तुझ्यावर खुप खुप प्रेम आहे" तो क्षण म्हणजे पत्नीचे - "धन"

* आपल्या मुलाने आपली देखभाल करावी असे वार्धक्यामुळे थकलेल्या आई-वडीलांना जेव्हा वाटते आणि तेव्हा मुलगा ती करतो,तो क्षण म्हणजे आई-वडीलांचे - "धन"


* ह्या तीनही क्षणांचा त्रिवेणि संगम ज्या मुलांच्या आयुष्यात होतो ते खरे "धनवान"




हरतालिका तीज कथा

इस व्रत के महात्म्य की कथा भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण करवाने के मकसद से इस प्रकार से कही थी –
हे गौरी ! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था | इस अवधि में तुमने अन्न ना खा कर केवल हवा का ही सेवन किया था | इतनी अवधि तुमने सूखे पत्ते चबाकर काटी था |
माघ की शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश कर तप किया था | वैशाख की जला देनेवाली गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया | श्रावण की मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न, जल ग्रहण किये व्यतीत किया | तुम्हारी इस कष्ट दायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दु:खी और नाराज होते थे | तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराजगी को देखकर नारद जी तुम्हारे घर पधारे |

 तुम्हारे पिता द्वारा आने का कारण पूछने पर नारद जी बोले –“हे गिरिराज ! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ | आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होत्क्र वह उससे विवाह करना चाहते है | इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ |’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले – “श्रीमान ! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है | वे तो साक्षात् ब्रम्ह है | यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-संपदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने |’

 नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया | परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा | तुम्हे इस प्रकार से दु:खी देखकर तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछने पर तुमने बताया – “मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है | मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ | अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा |”

तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी | उसने कहा – ‘प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है ? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए | भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप से एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यत उसी से निवार्ह करे | सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान भी असहाय हैं | मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे | मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे |’

 तुमने ऐसा ही किया | तुम्हारे पिता तुम्हे घर में ना पाकर बड़े चिंतित और दु:खी हुए | वह सोचने लगे कि मैंने तो विष्णु जी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया हैं | यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत अपमान होगा, ऐसा विचार कर पर्वतराज ने चारों और तुम्हारी खोज शुरू करवा दी | ईधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर के गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगी | भाद्रपद तृतीया शुक्ल को हस्त नक्षत्र था | उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया | रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर माँगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ | यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे है तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये | तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया प्रात: होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया | उसी समय गिरिराज अपने बंधू-बाँधवो के साथ तुम्हे खोजते हुए वहाँ पहुँचे | तुम्हारी दशा देखकर अत्यंत दु:खी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पूछा | तब तुमने कहा – ‘पिताजी मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक्त कठोर तपस्या में बिताया है | मेरी इस तपस्या के केवल उद्देश्य महादेवजी को पति रूप में प्राप्त करना था | आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूँ | क्योंकि आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिए मैं अपने अराध्य की तलाश में घर से चली गई | अब मैं आप के साथ घर इसी शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह महादेव जी के साथ ही करेंगे | पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हे घर वापस ले आए | कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया |

 भगवान शिव ने आगे कहाँ – ‘हे पार्वती ! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरुप हम दोनों का विवाह संभव हो सका | इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करनेवाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूँ |

 इस व्रत को “हरितालिका” इसलिए कहा जाता है क्योंकि पार्वती की सखी उन्हें पिता और प्रदेश से हर कर जंगल में ले गई थी | ‘हस्त’ अर्थात हरण करना और ‘आलिका’ अर्थात सखी |

भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा |



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