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Tuesday, 24 May 2022
कामदा एकादशी
Friday, 1 January 2021
कृष्ण क्यों राधा जी के चरण दबाते थे।
ब्रज लीला में मुख्य वस्तु है प्रेम, ब्रह्म का सर्वसार ही प्रेम है श्री कृष्ण राधा रानी के चरण पकड़ते हैं इसे समझने से पहले एक बात समझना जरुरी है कि राधा रानी कौन हैं ?
बहुत थोड़े में समझ लो कि ‘रा’ धातु के बहुत से अर्थ होते हैं देवी भागवत में इसके बारे में लिखा है कि जिससे समस्त कामनायें, कृष्ण को पाने की कामना तक भी, सिद्ध होती हैं सामरस उपनिषद में वर्णन आया है कि राधा नाम क्यों पड़ा ?
भगवान सत्य संकल्प हैं उनको युद्ध की इच्छा हुई तो उन्होंने जय विजय को श्राप दिला दिया तपस्या की इच्छा हुई तो नर-नारायण बन गये उपदेश देने की इच्छा हुई तो भगवान कपिल बन गये उस सत्य संकल्प के मन में अनेक इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं भगवान के मन में अब इच्छा हुई कि हम भी आराधना करें हम भी भजन करें
अब किसका भजन करें ? उनसे बड़ा कौन है ? तो श्रुतियाँ कहती हैं कि स्वयं ही उन्होंने अपनी आराधना की ऐसा क्यों किया ? क्योंकि वो अकेले ही तो हैं, तो वो किसकी आराधना करेंगे तो श्रुति कहती हैं कि कृष्ण के मन में आराधना की इच्छा प्रगट हुई तो श्री कृष्ण ही राधा रानी के रूप में आराधना से प्रगट हो गये इसीलिए ये मान आदि लीला में जो कृष्ण चरण पकड़ते है, एक विशेष प्रेम लीला है राधा रानी को तो छोड़ दो, वो तो उनका ही रूप हैं, उनकी ही आत्मा हैं
भगवान कहते हैं - कि तुम निरपेक्ष हो जाओ तो मैं तुम्हारे भी चरणों के पीछे घूमुंगा कि जिससे तुम्हारी चरण रज मेरे ऊपर पड़ जाये और मैं पवित्र हो जाऊं भगवान तो रसिक हैं जो भक्तों के चरणों की रज के लिये उनके पीछे दौड़ते हैं जब भगवान भक्तों की चरण रज के लिये भक्तों के पीछे दौड़ते हैं तो राधा रानी के चरण पकडें तो इसमें क्या आश्चर्य ?
जब वो श्री जी के चरण छूने जाते हैं तो वो प्रेम से हुंकार करती हैं तो रसिक श्याम डर जाते हैं कि कहीं ऐसा ना हो लाड़ली जी मान कर लें इसीलिए भयभीत होकर पीछे हट जाते हैं उन चरणों से ही जो सरस रस बिखरा उस रस को पाकर के गोपीजन ही नहीं स्वयं श्री कृष्ण भी धन्य हुए बिहारी जी के प्रकटकर्ता स्वामी हरिदास जी लिखते हैं कि (ता ठाकुर को ठकुराई -----) वो बोले कि ये मत समझना कि बांके बीहारी जी सर्वोच्चपति हैं सब ठाकुरों के ठाकुर ये बांके बिहारी हैं लेकिन इनकी भी ठकुराइन हैं श्री राधा रानी ।।
जय जय श्री राधे
अब तो प्रेम से बोलो -- राधे राधे
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Friday, 17 April 2020
नैतिकता का पाठ

कृष्ण चुप रहे।
भीष्म ने पुनः कहा, " कुछ पूछूँ केशव? बड़े अच्छे समय से आये हो, सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय।"
कृष्ण बोले- कहिये न पितामह!
एक बात बताओ प्रभु! तुम तो ईश्वर हो न..
कृष्ण ने बीच में ही टोका, "नहीं पितामह! मैं ईश्वर नहीं। मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह, ईश्वर नहीं।"
भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े। बोले, " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण, सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा। पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया, अब तो ठगना छोड़ दे रे..."
कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले, " कहिये पितामह!"
भीष्म बोले, "एक बात बताओ कन्हैया! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या?"
कृष्ण - "तो सुनिए पितामह! कुछ बुरा नहीं हुआ, कुछ अनैतिक नहीं हुआ। वही हुआ जो हो होना चाहिए।"
भीष्म - " यह तुम कह रहे हो केशव? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया? "
भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे। उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी। उन्होंने कहा- चलो कृष्ण! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है, कल सम्भवतः चले जाना हो... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण!"
कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था।
Thursday, 1 August 2019
बागडोर
द्रौपदी के स्वयंवर में जाते समय श्री कृष्ण" अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि, हे पार्थ तराजू पर पैर संभलकर रखना,संतुलन बराबर रखना, लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो इस बात का विशेष खयाल रखना... तब अर्जुन ने कहा, "हे प्रभु " सबकुछ अगर मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे, ???
वासुदेव हंसते हुए बोले, हे पार्थ जो आप से नहीं होगा वह मैं करुंगा,पार्थ ने कहा प्रभु ऐसा क्या है,जो मैं नहीं कर सकता ??? तब वासुदेव ने मुस्कुराते हुए कहा - जिस अस्थिर, विचलित, हिलते हुए पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे , उस विचलित "पानी" को स्थिर "मैं" रखुंगा !!*
कहने का तात्पर्य यह है कि आप चाहे कितने ही निपुण क्यूँ ना हो , कितने ही बुद्धिवान क्यूँ ना हो , कितने ही महान एवं विवेकपूर्ण क्यूँ ना हो , लेकिन आप स्वंय हर एक परिस्थिति के ऊपर पूर्ण नियंत्रण नहीं रख सकते .. आप सिर्फ अपना प्रयास कर सकते हो , लेकिन उसकी भी एक सीमा है और जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभलता है उसी का नाम "भगवान है ..
Thursday, 2 February 2017
Bengaluru Karaga
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Tuesday, 13 October 2015
अहंकार छोडो लेकीन स्वाभिमान के लीये लडते रहो
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Q1. Name two national festivals? Ans. Republic day and Independence day. Q2. Name some common festivals? Ans. Diwali, Ganesh chaturthi, Raks...
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मराठी भाषेतील स्वल्पविराम, अनुस्वार आदिंचा वापर करुन लिहिलेली कविता नेटवर सापडली. कुणी लिहिली हे कदाचित विकी'पीडी'या लाच ठाऊक असेल. ...
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Life is amazing even in its most ordinary, familiar aspects. Give your cynicism permission to melt away, and be amazed. See life today as y...