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Friday, 1 January 2021

कृष्ण क्यों राधा जी के चरण दबाते थे।

 

ब्रज लीला में मुख्य वस्तु है प्रेम, ब्रह्म का सर्वसार ही प्रेम है श्री कृष्ण राधा रानी के चरण पकड़ते हैं इसे समझने से पहले एक बात समझना जरुरी है कि राधा रानी कौन हैं ?

बहुत थोड़े में समझ लो कि राधातु के बहुत से अर्थ होते हैं देवी भागवत में इसके बारे में लिखा है कि जिससे समस्त कामनायें, कृष्ण को पाने की कामना तक भी, सिद्ध होती हैं सामरस उपनिषद में वर्णन आया है कि राधा नाम क्यों पड़ा ?

भगवान सत्य संकल्प हैं उनको युद्ध की इच्छा हुई तो उन्होंने जय विजय को श्राप दिला दिया तपस्या की इच्छा हुई तो नर-नारायण बन गये उपदेश देने की इच्छा हुई तो भगवान कपिल बन गये उस सत्य संकल्प के मन में अनेक इच्छाएं उत्पन्न होती रहती हैं भगवान के मन में अब इच्छा हुई कि हम भी आराधना करें हम भी भजन करें

अब किसका भजन करें ? उनसे बड़ा कौन है ? तो श्रुतियाँ कहती हैं कि स्वयं ही उन्होंने अपनी आराधना की ऐसा क्यों किया ? क्योंकि वो अकेले ही तो हैं, तो वो किसकी आराधना करेंगे तो श्रुति कहती हैं कि कृष्ण के मन में आराधना की इच्छा प्रगट हुई तो श्री कृष्ण ही राधा रानी के रूप में आराधना से प्रगट हो गये इसीलिए ये मान आदि लीला में जो कृष्ण चरण पकड़ते है, एक विशेष प्रेम लीला है राधा रानी को तो छोड़ दो, वो तो उनका ही रूप हैं, उनकी ही आत्मा हैं

भगवान कहते हैं - कि तुम निरपेक्ष हो जाओ तो मैं तुम्हारे भी चरणों के पीछे घूमुंगा कि जिससे तुम्हारी चरण रज मेरे ऊपर पड़ जाये और मैं पवित्र हो जाऊं भगवान तो रसिक हैं जो भक्तों के चरणों की रज के लिये उनके पीछे दौड़ते हैं जब भगवान भक्तों की चरण रज के लिये भक्तों के पीछे दौड़ते हैं तो राधा रानी के चरण पकडें तो इसमें क्या आश्चर्य ?

जब वो श्री जी के चरण छूने जाते हैं तो वो प्रेम से हुंकार करती हैं तो रसिक श्याम डर जाते हैं कि कहीं ऐसा ना हो लाड़ली जी मान कर लें इसीलिए भयभीत होकर पीछे हट जाते हैं उन चरणों से ही जो सरस रस बिखरा उस रस को पाकर के गोपीजन ही नहीं स्वयं श्री कृष्ण भी धन्य हुए बिहारी जी के प्रकटकर्ता स्वामी हरिदास जी लिखते हैं कि (ता ठाकुर को ठकुराई -----)  वो बोले कि ये मत समझना कि बांके बीहारी जी सर्वोच्चपति हैं सब ठाकुरों के ठाकुर ये बांके बिहारी हैं लेकिन इनकी भी ठकुराइन हैं श्री राधा रानी ।।

जय जय श्री राधे

अब तो प्रेम से बोलो -- राधे राधे

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Tuesday, 30 June 2020

सुख दुःख

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा की प्रभु मैंने पृथ्वी पर देखा है कि जो व्यक्ति पहले से ही अपने प्रारब्ध से दुःखी है आप उसे और ज्यादा दुःख प्रदान करते हैं और जो सुख में है आप उसे दुःख नहीं देते है। भगवान ने इस बात को समझाने के लिए माता पार्वती को धरती पर चलने के लिए कहा और दोनों ने इंसानी रूप में पति-पत्नी का रूप लिया और एक गावं के पास डेरा जमाया । शाम के समय भगवान ने माता पार्वती से कहा की हम मनुष्य रूप में यहां आए है इसलिए यहां के नियमों का पालन करते हुए हमें यहां भोजन करना होगा। इसलिए मैं भोजन कि सामग्री की व्यवस्था करता हूं, तब तक तुम भोजन बनाओ।

 जब भगवान के जाते ही माता पार्वती रसोई में चूल्हे को बनाने के लिए बाहर से ईंटें लेने गईं और गांव में कुछ जर्जर हो चुके मकानों से ईंटें लाकर चूल्हा तैयार कर दिया। चूल्हा तैयार होते ही भगवान वहां पर बिना कुछ लाए ही प्रकट हो गए। माता पार्वती ने उनसे कहा आप तो कुछ लेकर नहीं आए, भोजन कैसे बनेगा। भगवान बोले - पार्वती अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। पहले ये बताओ कि तुम चूल्हा बनाने के लिए इन ईटों को कहां से लेकर आई तो माता पार्वती ने कहा - प्रभु इस गांव में बहुत से ऐसे घर भी हैं जिनका रख रखाव सही ढंग से नहीं हो रहा है। उनकी जर्जर हो चुकी दीवारों से मैं ईंटें निकाल कर ले आई। भगवान ने फिर कहा - जो घर पहले से ख़राब थे तुमने उन्हें और खराब कर दिया। तुम ईंटें उन सही घरों की दीवार से भी तो ला सकती थीं। माता पार्वती बोली - प्रभु उन घरों में रहने वाले लोगों ने उनका रख रखाव बहुत सही तरीके से किया है और वो घर सुंदर भी लग रहे हैं।

ऐसे में उनकी सुंदरता को बिगाड़ना उचित नहीं होता। भगवान बोले - पार्वती यही तुम्हारे द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर है। जिन लोगो ने अपने घर का रख रखाव अच्छी तरह से किया है यानि सही कर्मों से अपने जीवन को सुंदर बना रखा है उन लोगों को दुःख कैसे हो सकता है। मनुष्य के जीवन में जो भी सुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा सुखी है, और जो दुखी है वो अपने कर्मों के द्वारा दुखी है । इसलिए हर एक मनुष्य को अपने जीवन में ऐसे ही कर्म करने चाहिए जिससे इतनी मजबूत व खूबसूरत इमारत खड़ी हो कि कभी भी कोई उसकी एक ईंट भी निकालने न पाए।

प्रिय मित्रों, यह संकल्प लें कि हमें इस जीवन को सत्कर्मों से इतना खूबसूरत बनाना है कि ईश्वर भी उससे छेड़छाड़ नहीं करे। जीवन में हमेशा सही रास्ते का ही चयन करें और उसी पर चलें ।

राम राम जी


Friday, 21 February 2020

मुरली


एक बार श्रीराधा ने श्री कृष्ण से पूछा आप मुरली को मुझसे अधिक प्रेम करते हो क्या?

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Image Credit: hindi.webdunia.com

श्री कृष्ण मुस्कुराए बोले क्या आप जानती है मैं एक गवाला हूँ, गँवार हूँ, पड़ा लिखा नहीं हूँ पर जब जब राधा नाम बोलने का प्रयास करता हूँ राधा नाम पूरा नहीं ले पाता
जब रा कहता हूँ और धा बोलने तक प्रेम में मूर्च्छित हो जाता हूँ
तो दो शब्द रा और धा पूरा भी नहीं कह पाते  
जब श्री कृष्ण से पूछा नारद जी ने नारद पंचरात्र मे श्री राधा नाम की महिमा के बारे में तब श्री कृष्ण बोले
हे नारद जब मैं अपनी स्वामिनी का पूरा नाम नहीं ले सकता तो महिमा कैसे बता सकता हूँ
रा बोलते ही मूर्च्छित हो जाता हूँ
हाँ तब मैं राधा अपनी इस मुरली का सहारा लेकर
मुरली के द्वारा राधा नाम गाता हूँ  
राधा नाम लेने में मेरी मुरली ही सहायक बनती है इसीलिए मैं मुरली को अपने निकट रखता हूँ राधा नाम लेने के लिए
मुरली मेरी गुरु है राधा नाम लेने के लिये
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Tuesday, 24 January 2017

देव उत्थानी एकादशी

जय जय श्रीमन नारायण
देव उत्थानी एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन देव शयनी एकादशी के बाद सोकर उठे थे। इस पर्व के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें यह ब्लॉग।
देव उत्थानी एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी का दिन बेहद शुभ माना जाता है। प्रबोधिनी एकादशी का वास्तविक अर्थ एकादशी का जागना है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु देव शयनी एकादशी में सोकर आज ही के दिन उठे थे। इस दिन को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- देव उत्थानी एकादशी, देवोठानी एकादशी, देव प्रबोधिनी और देवोत्थान आदि।
देव उत्थानी एकादशी: दिनाँक व समय
देव उत्थानी एकादशी तिथि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है। देव उत्थानी एकादशी का व्रत आदर्श रुप में पारण मुहूर्त में तोड़ना चाहिए और द्वादशी तिथि के दिन समाप्त करना चाहिए।
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार कहते हैं कि भगवान विष्णु के अनियमित सोने से पृश्वी लोक और देव लोक में कई सारी समस्याएँ पैदा हो गई थीं, क्योंकि वे कुछ दिनों के लिए सोते थे और कुछ दिन जागते थे। ऐसे में देवताओं को उनसे मिलने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता था। वहीं पृथ्वी लोक में असुरों को भी इसका पूरा लाभ मिल रहा था। फ़िर माँ लक्ष्मी के बारंबार आग्रह के बाद भगवान विष्णु ने इस समस्या का हल निकाला।
इस बीच देवताओं के द्वारा भगवान विष्णु को यह सूचना मिली कि संख्यायन नामक राक्षस ने वेदों की चोरी कर ली है। इसके बाद विष्णु भगवान ने युद्ध करके उस क्रूर राक्षस को पराजय किया और वेदों को सुरक्षित वापस लाए। इस युद्ध के बाद भगवान विष्णु निद्रासन में चले गए और वे बिना किसी बाधा के चार महीनों तक सोए।
वे आषाढ़ एकादशी को निद्रासन में गए थे, जबिक कार्तिक एकादशी को जागृत हुए, इसलिए कार्तिक एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है और इस दिन को देव उत्थानी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
महोत्सव
देव उत्थानी एकादशी के दिन भक्तजन सुबह जल्दी उठकर पवित्र जल से स्नान करते हैं और तुलसी पौधे का पूर्ण रीति-रिवाज से भगवान विष्णु से विवाह रचाते हैं। इसे तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
दशमी तिथि यानी एकादशी तिथि एक दिन पहले प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है और द्वादशी तक इसे व्रत का पालन किया जाता है। फ़िर द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में व्रत को खोला जाता है।
महत्व
ऐसी मान्यता है कि देव उत्थानी एकादशी स्वर्ग लोक प्राप्त करने का मार्ग है। यदि इसे सच्ची श्रद्धा एवं विधि-विधान से मनाया जाता है तो निश्चित रूप से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है और आत्मा विष्णु लोक में जाती है। इसी के कारण देव उत्थानी एकादशी के दिन को आत्मा को मोक्ष देने का वरदान भी प्राप्त है।
देश में यह पर्व विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। चलिए इस पर डालते हैं एक नज़र:
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में देव उत्थानी एकादशी को भगवान विष्णु के पुनर्रजन्म के अवतार भगवान विठोबा के रूप में पूजा जाता है। इस दिन पंढरपुर में भक्तगण पूजा के लिए पाँच दिन पहले से ही एकत्रित होने लगते हैं। भक्तजन इसे सरकारी पूजा के नाम से भी जानते हैं।
राजस्थान
राजस्थान में भी इस त्यौहार का अपना अलग महत्व है। यहाँ श्रद्धालु इस पर्व को पुश्कर में होने वाले पुश्कर मेला के रूप में मनाते हैं। यह पर्व यहाँ एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। पुश्कर मेला भगवान विष्णु की आराधना में आयोजित किया जाता है और यह एशिया का सबसे बड़ा ऊँटों का पर्व है। कहते हैं कि इस दिन पुश्कर झील में स्नान करने से श्रद्धालुओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुजरात
गुजरात में ऐसी मान्यता है कि देव उत्थानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु गिरनर के पहाड़ों में वास करते हैं, इसलिए यहाँ श्रद्धालु विष्णु जी के सम्मान में दो दिन पहाड़ों की लंबी परिक्रमा करते हैं। हर साल यहाँ इस दिन क़रीब अस्सी हज़ार श्रद्धालु विष्णु भगवान की आराधना के लिए आते हैं।


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