YouTube

Showing posts with label Bhakti Katha. Show all posts
Showing posts with label Bhakti Katha. Show all posts

Tuesday, 5 July 2022

नारायण मिल जाये

 

एक सब्ज़ी वाला था सब्ज़ी की पूरी दुकान साइकल पर लगा कर घूमता रहता था ।"भगवान" उसका तकिया कलाम था । कोई पूछता आलू कैसे दिये, 10 रुपये भगवान, हरी धनीया है  क्या ? बिलकुल ताज़ा है भगवान। वह सबको भगवान कहता था । लोग भी उसको भगवान कहकर पुकारने लगे।
मैने उससे पूछा तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं?
है न ,भगवान भैयालाल पटेल।
मैंने कहा तुम हर किसी को भगवान क्यों बोलते हो।
भगवान में शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ। गॉव में मज़दूरी करता था,  गाँव में एक नामी सन्त की कथा हुईं  कथा मेरे पल्ले नहीं पड़ी लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई , उन्होंने कहा हर इन्सान में भगवान हैं -तलाशने की कोशिश तो करो पता नहीं किस इन्सान में मिल जाय ओर तुम्हारा उद्धार कर जाये, बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को भगवान की नज़र से देखना ओर पुकारना शुरू कर दिया  वाकई चमत्त्कार हो गया दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिये भगवान हो गया  ऐसे दिन फिरें कि मज़दूर से व्यापारी हो गया सुख समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गये मेरे लिये तो सारी दुनिया ही भगवान बन गईं।
लाख टके की बात
जीवन एक प्रतिध्वनि है आप जिस लहजे में आवाज़ देंगे पलटकर आपको उसी लहजे में सुनाईं देंगीं। न जाने किस रूप में नारायण मिल जाये

Tuesday, 28 June 2022

कौन कहता है

 

1)
कौन कहता है कान्हा के दर्शन होते नहीं..?
मीरा के जैसी भक्त
शबरी के जैसी विश्वास
यशोदा के जैसी ममता
राधा के जैसी श्रद्धा हो तो..
कान्हा घर आ जाएँ दर्शन देने के लिए।
2)
कौन कहता है इंसान रंग नही बदलता
किसी के मुंह पर सच बोल कर तो देखिए
एक नया रंग सामने आएगा
3)
कौन कहता है पैसा सब कुछ खरीद सकता है।
दम है तो जरा टुटे हुये विश्वास को खरीद के बताऔ
4)
कौन कहता है  रब नज़र नहीं आता
वही नज़र आता है जब नज़र कुछ नहीं आता
5)
कौन कहता है की दुआ कुबूल नही होती
बस इबादत में दिल मासूम होना चाहिए
6)
कौन कहता है कि दूरियां किलोमीटरों में नापी जाती हैं
खुद से मिलने में भी उम्र गुज़र जाती है 
7)
कौन कहता है सिर्फ़ सँवरने से बढ़ती है खूबसूरती..
दिलों में ख़ुशी हो तो चेहरे यूँ ही निखर आते हैं.
8)
कौन कहता है के तन्हाईयाँ अच्छी नहीं होती
बड़ा हसीन मौका देती है ये ख़ुद से मिलने का

Tuesday, 21 June 2022

अहोई अष्टमी का व्रत-पूजन

 

शास्त्रों के अनुसार अहोई अष्टमी व्रत उदय कालिक एवं प्रदोष व्यापिनी अष्टमी को करने का विधान है। अहोई अष्टमी पर्व और व्रत का संबंध महादेवी पार्वती के अहोई स्वरूप से है। मान्यतानुसार इसी दिन से दीपावली का प्रारंभ माना जाता है। अहोई अष्टमी के उपवास को करने वाली माताएं इस दिन प्रात:काल में उठकरएक कोरे करवे अर्थात मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर माता अहोई का पूजन करती हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए उपवास करती हैं और बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जल व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद संध्या के समय कुछ लोग तारों को अर्घ्य देकर व कुछ लोग चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं।
मूलतः अहोई अष्टमी का व्रत संतान सुख व संतान की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन निसंतान दंपत्ति भी संतान की कामना करते हुए अहोई अष्टमी के व्रत का विधि विधान से पालन करते हैं।
देवी पार्वती के अहोई  स्वरूप के निमित अपनी संतान की सुरक्षालंबी आयुअच्छे स्वास्थ्यसुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
मान्यतानुसार अहोई पूजन के लिए शाम के समय घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू से आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं। कई समृद्ध परिवार इस दिन चांदी की अहोई बनवकार पूजन भी करते हैं। चांदी की अहोई में दो मोती डालकर विशेष पूजा भी की जाती है। इसके लिए एक धागे में अहोई व दोनों चांदी के दानें डाले जाते हैं। हर साल इसमें दाने जोड़े जाने की मान्यता प्रचलित है। घर की उत्तर दिशा अथवा ब्रह्म केंद्र में ज़मीन पर गाय के गोबर और चिकनी मिट्टी से लीपकर कलश स्थापना की जाती है। पूजन के समय कलश स्थापना कर प्रथम पूज्य गणेश की पूजा की जाती है उसके बाद अहोई माता की पूजा करके उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है तथा उन्हें दूधशक्कर और चावल का भोग लगाया जाता है। इसके बाद एक लकड़ी के पाटे पर जल से भरा लोटा स्थापित करके अहोई की कथा सुनी और कही जाती है।
सूर्यास्त के पश्चात तारों के निकलने पर महादेवी व उनके सात पुत्रों का विधान से पूजन किया जाता है। पूजा के बाद बुजुर्गों के पैर छूकर आर्शीवाद लेते हैं। इसके बाद करवा से तारों पर जल का अर्घ्य देकर उनका पूजन किया जाता है।
तारों के निकलने पर महादेवी का षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत में हल्दी मिलाकर दीपक करेंचंदन की धूप करें। देवी पर रोलीहल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान दे दें। जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए महादेवी पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। अपने संतान की तरक्की के लिए देवी अहोई पर हलवा पूड़ी चढ़ाकर गरीब बच्चों में बाटें दें। संतानहीनता के निदान के लिए कुष्मांड पेट से बार वारकर मां पार्वती पर चढ़ाएं।
विशेष पूजन मंत्र: ॐ उमादेव्यै नमः॥

Tuesday, 7 June 2022

शालिग्राम

 

नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकनेअंडाकार पत्थर को कहते हैं। ये भगवान विष्णु का ही एक स्वरुप कहलाते है। तुलसी के श्राप स्वरुप भगवान विष्णु को शालिग्राम बनना पड़ा था।  अधिकतर घरों में पूजा के लिए शालिग्राम रखे जाते है। आइये जानते है शालिग्राम से जुडी कुछ ख़ास बातें-
1. स्वयंभू होने के कारण शालिग्राम की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर या मंदिर में सीधे ही पूज सकते हैं।
2. शालिग्राम अलग-अलग रूपों में पाए जाते हैंकुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है ये पत्थर के अंदर शंखचक्रगदा या पद्म खुदे होते हैं।
3. भगवान शालिग्राम का पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।
4. श्री शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभावकलहपाप ,दुःख और रोग दूर हो जाते हैं।
5. तुलसी शालिग्रामविवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है।
4. पूजन में श्री शालिग्राम जी को स्नान कराकर चंदन लगाकर तुलसी दल अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना चाहिए। यह उपाय मनधन व तन की सारी कमजोरियों व दोषों को दूर करने वाला माना गया है।
5. पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम होवह घर सारे तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। इनके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है।
6. भगवान शिव ने भी स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय में उल्लेख है कि जहां भगवान शालिग्राम की पूजा होती है वहां भगवान विष्णु के साथ भगवती लक्ष्मी भी निवास करती है।
7. पुराणों में यह भी लिखा है कि शालिग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता हैवह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल पा लेता है।
8. जो निरंतर शालिग्राम शिला का जल से अभिषेक करता हैवह संपूर्ण दान के पुण्य व पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है।
9. मृत्युकाल में इनके चरणामृत का जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है।
10. जिस घर में शालिग्राम का रोज पूजन होता है उसमें वास्तु दोष और बाधाएं अपने आप समाप्त हो जाती हैं।

Tuesday, 31 May 2022

विष्णुअर्पण

 

भक्त के भाव... 

एक पुरानी कहानी  है कि एक पण्डित जी ने अपनी पत्नी की आदत बना दी थी कि घर में रोटी खाने से पहले कहना है कि "विष्णु अर्पण" अगर पानी पीना हो तो पहले कहना है कि"विष्णु अर्पण" उस औरत की इतनी आदत पक्की हो गई
की जो भी काम करती पहले मन में यह कहती की 
"विष्णु अर्पण" "विष्णुअर्पण" फिर वह काम करती एक दिन उसने घर का कूड़ा इक्कठा किया और फेंकते हुए कहा की  "विष्णु अर्पण""विष्णु अर्पण" वहीँ पास से  नारद मुनि जा रहे थे ,नारद मुनि ने जब यह सुना तो उस औरत को थप्पड़ मारा की विष्णु जी को कूड़ा अर्पण कर रही है फैक कूड़ा रही है और कह रही है कि "विष्णु अर्पण" वह औरत विष्णु जी के प्रेम में रंगी हुई थी  कहने लगी नारद मुनि तुमने जो थप्पड़ मारा है वो थप्पड़ भी  "विष्णु अर्पण" अब नारद जी ने दुसरे गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा कि बेकूफ़ औरत तू थप्पड़ को भी विष्णु अर्पण कह रही है । लेकिन उस औरत फिर यही कहा आपका मार यह थप्पड़ भी "विष्णु अर्पण"
" जब नारद मुनि  विष्णु पूरी में गए तो क्या देखते है कि विष्णु जी के दोनों गालों पर उँगलियों के निशान बने हुए थे " , नारद  पूछने लगे कि"भगवन यह क्या हो गया" ? आप जी के चेहरे पर यह निशान कैसे पड़े", 
विष्णु जी कहने लगे कि "नारद मुनि थप्पड़ मारे भी तू और पूछे भी तू" , नारद जी कहने लगे की "मैं आप को थप्पड़ कैसे मार सकता हूँ"?, विष्णु जी कहने लगे,
"नारद मुनि जिस औरत ने  कूड़ा फेंकते हुए यह कहा था की विष्णु अर्पण और तुने उस को थप्पड़ मारा था तो वह थप्पड़ सीधे मेरे को ही लगा था , क्योकि वह मुझे अर्पण था"...

कथा सार :-जब आप कर्म करते समय कर्ता का भाव निकाल लेते है। और अपने हर काम में मै मेरी मेरा की भावना हटा कर अपने इष्ट या सतगुरु को आगे रखते है तो करमो का बोझ भी नहीं बढ़ता और वो काम आप से भी अच्छे तरीके से होता है  !!


          राधे राधे 

Tuesday, 24 May 2022

कामदा एकादशी

 

युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! आपको नमस्कार है ! कृपया आप यह बताइये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनोजिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था ।
वशिष्ठजी बोले : राजन् ! चैत्र शुक्लपक्ष में कामदा’ नाम की एकादशी होती है । वह परम पुण्यमयी है । पापरुपी ईँधन के लिए तो वह दावानल ही है ।
प्राचीन काल की बात है: नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर थाजहाँ सोने के महल बने हुए थे । उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे । पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था । गन्धर्वकिन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं । वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थीजिसका नाम ललिता था । उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था । वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे । दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे । ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।
एक दिन की बात है । नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोंरंजन कर रहा था । उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी । गाते गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया । अत: उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी ।
नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गयाअत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं । उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया : दुर्बुद्धे ! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गयाइसलिए राक्षस हो जा ।
महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया । भयंकर मुखविकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा ।
ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई । भारी दु:ख से वह कष्ट पाने लगी । सोचने लगी: क्या करुँकहाँ जाऊँमेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’
वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दियाजहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे । किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दु:खिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले : शुभे ! तुम कौन हो कहाँ से यहाँ आयी होमेरे सामने सच सच बताओ ।
ललिता ने कहा : महामुने ! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य होवह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायेंउसका उपदेश कीजिये ।
ॠषि बोले : भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की कामदा’ नामक एकादशी तिथि हैजो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य होउसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा ।
राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: मैंने जो यह कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया हैउसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।
वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया । राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई ।
नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे । यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए ।
मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।
===============================================

Tuesday, 17 May 2022

जयकृष्णदास बाबा

 

सिद्ध श्री जयकृष्णदास बाबा का जन्म बंगाल राज्य के किसी छोटे से ग्राम में हुआ। बचपन से ही हृदय में गौर चरणों के प्रति सहज प्रीति थी। महाप्रभु जी की असीम कृपा के कारण जगत से वैराग्य हुआ और वृंदावन की ओर पैदल चल पड़े। रात्रि में एक दिन श्री वृंदा देवी ने स्वपन में कहा - तुम काम्यवन के विमलकुण्ड पर जाकर भजन करो। बाबा आज्ञा मानकर विमलकुण्ड पर भजन करने लगे।

बाबा को वहां के गोप बालक परेशान करने लगे। बाबा ने विचार किया कहीं अन्य जगह जाकर एकांत में भजन करेंगे। गांव वासियों ने बाबा के लिए एक पक्की कुटिया बनवा दी जिसमें बाबा निरंतर भजन में डूबे रहते। रात भर श्यामा श्याम के ही याद में अश्रु विसर्जन करते रहते। कभी -कभी विरह में इतने व्यथित हो जाते कि प्रेम वेश में ऐसी हुंकार भरते दिशाएं विकम्पित हो जाती है। एक बार उनकी विरह हूँकार से कुटिया की छत ही फट गई जो आज भी दर्शनीय है।
एक दिन मध्याह् में बाबा मानसिक लीला चितवन कर रहे थे कि विमलकुंड के चारों और असंख्य गाय और गोप बालक आ गए।  गोप बालक कुटिया के बाहर से चिल्लाने लगे - बाबा ओ बाबा!  प्यास लगी है। नेक जल पिवाय दे। बाबा तो पहले से ही गांव की गवारिया बालकों से परेशान थे।  बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया। परंतु बालक भी कौन से कम थे अनेक प्रकार के उत्पात करने लगे ।
कुछ बालक दरवाजे के पास आकर बोले - बाबा ओ बंगाली बाबा! हम सब जाने कि तू कहां भजन करे है। अरे! कुटिया ते निकल के जल पिवाय दें। हम सबकूँ बड़ी प्यास लगी है।  बाबा एक लकड़ी हाथ में लेकर क्रोधित होकर बाहर आ गए।
सामने क्या देखें असंख्य गाय और गोप बालक।  सब एक से एक सुंदर। एक से एक अद्भुत।  उनको देखते ही बाबा का क्रोध शांत हो गया। एक बालक जो सबसे सुंदर था उससे बाबा ने पूछा - लाला तुम कौन से गांव से आए हो?
बालक बोला -नंदगांव ते।
बाबा बोले- आपका नाम क्या है?
कन्हैया ! बालक ने उत्तर दिया।
दूसरे बालक से पूछा- तुम्हारा नाम क्या है?
बालक ने कहा - बलदाऊ! कहै मोते।
सभी बालक एक साथ बोल पड़े। देख बाबा पहले जल पिवाय दै।  बात पीछे करियो। बाबा ने स्नेहवश करुवे से सब को जल पिला दिया।
बालक बोले- देख बाबा ! हम इतेक दूर ते आमें हैप्यासे ही चले जाएं। तू कछू जल और बाल भोग राख्यो कर।
बाबा बोले -नहीं नहीं। रोज -रोज परेशान मत करना। बाबा कुटिया में चले गये। अब बाबा सोचने लगे ऐसा अद्भुत बालक और ऐसी सुंदर गाय तो मैंने कभी नहीं देखी। और ना ही मधुर हृदय को आनंद प्रदान करने वाली वाणी सुनी। ये सभी यहां के थे या दिव्य थे। बाबा ने विचार किया अभी तो बाहर ही हैं एक बार और देख लूँ। जैसे ही बाबा बाहर आए तो देखा न तो वहां गाय थी न गोप बालक। बाबा दुखित: हो उन बालकों के वचन को याद करने लगे। तभी बाबा को तंद्रा आ गई। श्री कृष्ण बोले - बाबा दुखी मत हो! कल तेरे पास में फिर आऊंगो। बाबा की तंद्रा टूटी और धैर्य धारण किया।
दूसरे दिन एक वृद्धा मैया में एक गोपाल जी का वि्ग्रह लेकर बाबा के पास आई। बोली- बाबा!मोते अब जाकी सेवा नॉय होय। लै तू जाकी सेवा कियौ कर।
बाबा बोले -मैं इनकी सेवा कैसे करूंगा सेवा की सामग्री कहां से लाऊंगा? 
वृद्धा मैया बोली -तू चिंता मत कर मैं रोज सेवा की सामग्री दै जायो करूंगी।  ऐसा कह कर वृद्धा मैया चली गई। बाबा प्रेम से गोपाल जी को निहारने लगे। अति सुंदर छवि को देखकर बाबा मुग्ध हो गये। उसी रात्रि वृद्धा मैया ने बाबा को स्वप्न में कहा -बाबा! मैं वृंदा देवी हूं।श्यामसुंदर की आज्ञा से वृद्धा के रूप में गोपाल जी देने मैं ही आई थी। अब तू प्रेम से गोपाल की सेवा कियौ कर। बाबा प्रेम से गोपाल जी की सेवा करने लगे।
इस प्रकार एक दिन बाबा मानसी लीला में डूबे हुए थे। अचानक बाबा पुकारने लगे - मेरे लहंगा कहां हैमेरी फरिया कहां हैं अपने दिव्य मंजरी स्वरुप को प्राप्त कर बाबा चैत्र शुक्ल द्वादशी अर्थात आज ही के दिन भौतिक देह छोड़कर निकुंज लीला में प्रवेश कर गए। 
एक संत बलरामदास जी कहते है-
"जहां मर कै जाना है 'बलि'
तहाँ जिन्दा क्यों नही जाइये।।"
============================================

Tuesday, 10 May 2022

पार्वतीजी की तपस्या

 

पार्वतीजी ने शिव को पति रूप मेँ पाने के लिए तपस्या आरंभ की । लेकिन शिव को सांसारिक बंधनों में कदापि रुचि नहीं थी, इसलिए पार्वतीजी ने अत्यंत कठोर तपस्या की ताकि शिव प्रसन्न होकर उनसे विवाह कर लें। 

वर्षो तपस्या करने के बाद एक दिन पार्वतीजी के पास एक ब्रह्मचारी आया। वह ब्रह्मचारी तपस्विनी पार्वती का अर्घ्य स्वीकार करने से पूर्व बोल उठा, "तुम्हारे जैसी सुकुमारी क्या तपस्या के योग्य है? मैंने दीर्घकाल तक तप किया है। चाहो तो मेरा आधा या पूरा तप ले लो, किंतु तुम इतनी कठिन तपस्या मत करो । तुम चहो तो त्रिभुवन के स्वामी भगवान विष्णु भी... ।"


किंतु पार्वती ने ऐसा उपेक्षा का भाव दिखाया कि ब्रह्मचारी दो क्षण को रुक गया । फिर बोला, "योग्य वर में तीन गुण देखे जाते है सौंदर्य, कुलीनता और संपत्ति। इन तीनों मे से शिव के पास एक भी नहीं है। नीलकंठ, त्रिलोचन, जटाधारी, बिभूति पोते, सांप लपेटे शिव में तुम्हें कहीं सौदर्य दिखता है? उनकी संपत्ति का तो कहना ही क्या, नग्न रहते है। बहुत हुआ तो चर्म (चमडा) लपेट लिया। कोई नहीं जानता कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई ।" 


ब्रह्मचारी पता नहीं क्या क्या कहता रहा, किसु अपने आराध्य क्री निंदा पार्वती को अच्छी नहीं लगी । अत: वे अन्यत्र जाने को उठ खडी हुईं । तब शिब उनकी निष्ठा देख ब्रह्मचारी रूप त्याग प्रकट हुए और उनसे विवाह किया । 


जहां दृढ लगन, कष्ट सहने का साहस और अटूट आत्मविश्वास हो, वहां लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। 


कहानी तो वैसे शिव को पाने के लिये पार्वती ने किए हुए तप की है। परंतु यह ध्यान रखिये तपस्या भी एक कर्म है। कर्म पूरी निष्ठा से करो तो सफलता अवश्य मिलेगी। और हा इस कहानी का दूसरा पहलू है जैसे शिव के लिए पार्वती की तपस्या हमे बताई जाती है वैसे ये भी ध्यान रखे प्रकृति के सती रूप के आत्मदाह के बाद शिव जी भी गहरे ध्यान में थे। अर्थात शिव और पर्वती दोनों तप कर रहें थे। कहनेका का मतलब ये की सबको अपनी जिंदगी में मनचाही होने के लिए कर्म की भट्टी में तपना होता है।


अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रो और सखियों।  कृपया शेयर करें।

Sunday, 8 May 2022

मेंढक


एक बार भगवान राम और लक्ष्मण एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था! उन्होंने भगवान राम से कहा - भ्राता ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई । दोनों ने मिट्टी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा है

 

भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा- तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? कुछ हलचल, छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हें बचा लेते जब सांप पकड़ता है तब तुम खूब आवाज लगाते हो। धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ?

 

मेंढक बोला - प्रभु! जब सांप पकड़ता है तब मैं 'राम- राम' चिल्लाता हूं एक आशा और विश्वास रहता है, प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। पर आज देखा कि साक्षात भगवान श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता? आपके सिवा किसी का नाम याद नहीं आया बस इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा।

 

कहानी का सार- सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं सुख और दुःख प्रभु की ही कृपा और कोप का परिणाम ही तो हैं ।  कमेंट में लिखें जय श्री राम और शेयर करें

 

Friday, 22 April 2022

Shrirama - Upholder of Dharma

 In a famous school, a teacher hold up a ten-rupee coin and said, "I will give this coin to any girl or boy, who will name the greatest person ever lived." Many shouted Michael Angelo. Aristotle, Socrates, and so on. One boy said that it is Lord Rama. He got the ten rupees coin. 

In the afternoon the teacher asked the boy, "How did he know that Lord Rama was the greatest person?" 

The boy replied, "Everyone knows that the Lord Rama was the greatest, not because he was a God but because he was the upholder of Dharma."

Thanks for reading till the end. Please share this story. 

Jay Shree Ram! Vande Matram!

Thursday, 7 April 2022

गौ माता

 पहली कहानी -

वह समय था 19th एवम 20th सेंचुरी का। अर्थात 1800 से लेकर 1999 का समय। भारत में आक्रमणकारी आतताइयों के अलावा कोई और भी था जिसने त्राहिमाम मचा रखा था। वैसे तो यह त्राहिमाम हजारों वर्षों से मचा हुआ था किंतु सिर्फ 20th सेंचुरी में 300 मिलियन अर्थात 30 करोड़ लोग इस त्राहिमाम से परलोक सिधार चुके थे। क्या था यह त्राहिमाम। यह था एक छोटा सा वायरस। नाक और गले के माध्यम से एक अदृश्य वायरस मानव के शरीर में घुस जाता था। फेफड़ों में जाकर फ्लू और बुखार जैसे लक्षण आते थे, फिर पूरा शरीर फफोलो से भर जाता था। गॉव के लोग इस महामारी को बड़ी माता कहते थे और वैज्ञानिक लोग चेचक। चेचक होते ही 10 में से 4 लोगों को मरना ही होता था। समय बीत रहा था विश्व भर में बेहिसाब लोग चेचक से मर रहे थे किन्तु भारत में लोगों का एक समूह था जिनको चेचक होता ही नहीं था और यह था भारत के गौ पालक ग्वालों का समूह।

ये ग्वाले दिन भर गौमाता के सानिध्य में रहते, उनको चराते, नहलाते दुहते। इस समूह से बाहर जब लोग बड़ी माता से मर रहे होते, इन ग्वालों को बस थोड़ा था बुखार होता, दो चार पिम्पल्स और वो ठीक हो जाते।

लंबी कथा को शार्ट करता हूँ, ग्वालों की इस महामारी बड़ी माता से रक्षा और कोई नहीं, गाय माता ही कर रही थी। होता यह था कि बड़ी माता का यह खतरनाक वायरस गाय के शरीर में रहने वाले गाय के वरिओला नामक वायरस के समक्ष घुटने टेक देता था और गाय को तो बड़ी माता से कुछ होता ही नहीं था, वरन गाय के सानिध्य में रहने वाले मनुष्य भी बड़ी माता से सुरक्षित हो जाते थे।

भारत के ग्वालों के इस अनुभव को एडवर्ड जेनर नाम के एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने कैश किया और गाय के शरीर से इसी वैरियोला वायरस के पीप को निकाल कर इसी पीप को मनुष्यों में देना शुरू कर दिया ताकि वो लोग जो गाय के सानिध्य में नहीं रहते उनको भी गाय के इस चमत्कारी श्राव के द्वारा बड़ी माता से बचाया जा सके। हजारों वर्षों से धरती पर त्राहिमाम मचाती चेचक अर्थात बड़ी माता का निदान विश्व को मिल गया था। यही चेचक की वैक्सीन थी और विश्व की प्रथम वैक्सीन भी। इस वैक्सीन को खोजने का श्रेय मिला अंग्रेज एडवर्ड जेनर को, लोग भारत के ग्वालों को भी भूल गए और गाय को भी। यह कथा कभी बताने की जरूरत नहीं समझी गई, किन्तु कथा का सारांश यह है कि हजारो वर्षो की महामारी का इलाज मिला गौं माता से।

अब दूसरी कथा। यह कथा बस कुछ वर्ष पहले की है। मात्र 3 वर्ष पहले की। गूगल कर लीजिए तथ्य और डेट मिल जाएगी।

वैज्ञानिको के एक समूह ने सोचा कि अगर खतरनाक HIV अर्थात एड्स के वायरस को गाय को दिया जाए तो क्या होगा?? वैज्ञानिको ने HIV का वायरस गाय के शरीर में प्रविष्ट कराया और यह क्या! गाय को एड्स होने के बजाय एड्स का वह वायरस गाय माता के शरीर में नष्ट हो गया। नष्ट ही नहीं हुआ वरन उसके खिलाफ गाय के खून में एक विशेष एंटीबाडी भी बन गयी जो HiV वायरस को मार डालने में सक्षम थी। विश्व के सबके बड़े विज्ञान के जर्नल नेचर में दो वर्ष पहले यह खोज छपी कि HIV की वैक्सीन सम्भव है तो सिर्फ गाय के सहारे। ज्ञात हो कि दो तीन दशकों तक हजारो करोड़ खर्च करने के बाद भी आज तक विश्व का कोई भी वैज्ञानिक HiV की वैक्सीन नहीं बना पाया था। अब गाय माता के कारण यह सम्भव होने के कगार पर है।

अब तीसरी कथा। यह कथा है गाय के माध्यम से वर्तमान महामारी कोरोना का इलाज। यह फेसबुक पोस्ट है कोई किताब या विज्ञान का जर्नल नहीं। वैज्ञानिक लोग गूगल कर लेना, पता चल जाएगा।

South Dakota की SAb Biotherapeutics नामक कंपनी ने गाय के माध्यम से कोरोनाकी वैक्सीन बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। बड़ी सफलता भी मिली है। देखना यह है कि दुनिया के ठेकेदार इस अद्भुत खोज को मान्यता देते हैं कि नहीं। इतिहास तो कहता है कि ये ढोंगी मर जायेंगे, किन्तु गौ माता को मान्यता नहीं देंगे।

यूँ ही माता नहीं कहा जाता गाय को। आज धरती के ऊपर संकट आया है तो माता के पास जाकर तो देखो। माता का सानिध्य पाकर तो देखो। माता को सिर से पैर तक छूकर नमन करके तो देखो, माता को प्यार से चूमो तो सही, कौन सा संकट होगा जो तुमको छू सकेगा !!

पहले दिन से जब मैंने हल्दी का निदान आप सभी को बताया था (जो आज भी सार्थक और कारगर है) उसी दिन से सभी को संकेत दे रहा हूँ कि गाय का सानिध्य करो। गाय को रोटी दो। प्यासी हो तो पानी पिला दो । इस बहाने दो पल आपको गाय का सानिध्य तो प्राप्त होगा। इसी पल भर के सानिध्य से तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।

समझदार को इशारा काफी। वर्तमान महामारी से बचना है तो सौ साल पुराने चेचक के इतिहास और निदान से सीख लेनी होगी। गाय को आप लोग भूल गए हैं, यह विस्मृति ही वर्तमान कष्टों का कारण है। कभी इन आवारा घूमती भूखी प्यासी कटती गायों की आंखों को पढ़ना, कहती मिलेंगी कि हे मेरे पुत्रो, तुम व्यथित क्यों हो, मेरे पास आओ, मुझे काट लेना, खा जाना, मुझी को खाकर कर लेना अपनी भूख शांत, किन्तु उससे पहले बस दो पल मेरे साथ बिताओ तो सही व्यथित क्यों हो, मैं हूँ ना ।।

मेरा कार्य पूर्ण हुआ। गाय सबकी है। किंतु पल दो पल का सानिध्य आपको स्वयं  तलाशना होगा। आगे आपका भाग्य।

ॐ श्री हरि। जय गऊ माता। जय माँ गायत्री 

Wednesday, 6 April 2022

भक्ति योग

 संसार के साथ या स्त्री पुत्र मित्र आदि के साथ जो संबंध है, वह माना हुआ संबंध है, जो नाशवान है, अर्थात शरीर के रहते ही यह संबंध रहते हैं, और मरने पर मिट जाते हैं, लेकिन परमात्मा से संबंध जन्म लेने के पहले और मरने के बाद भी रहता है, जीव का परमात्मा से सनातन संबंध है,

विचार कीजिए--- मरने के बाद धन यही रह जाएगा, उसे कमाने के लिए जो पाप किए हैं वे साथ जाएंगे, और उनसे परलोक में दुर्गति होगी,

मरने के बाद धन तिजोरी में रह जाता है, पशु जहां-तहां बंधे रह जाते हैं, स्त्री घर के दरवाजे पर ही साथ छोड़ देती है, लोग श्मशान तक ही जाते हैं, और शरीर भी चिता तक ही साथ रहता है, उसके बाद परलोक के मार्ग में केवल धर्म ही जीव के साथ रह जाता है,

विचार कीजिए---- जिन वस्तुओं को हम अपना मानते हैं, वह सदा साथ नहीं रहेंगी, पर उनका संबंध है वह बंधन रह जाएगा, जो जन्म जन्मांतर तक साथ रहेगा,

इसलिए साधक को चाहिए कि वह शरीर को या तो संसार अर्पण कर दे जो कर्म योग है

चाहे अपने को शरीर एवं संसार से सर्वथा अलग कर ले जो ज्ञान योग है

और चाहे अपको भगवान के अर्पण कर दे जो भक्ति योग है 

Sunday, 3 April 2022

आसाबाडी

 जय श्री कृष्ण सखियों! मारवाड़ी त्यौहार हो और कहानियाँ न हो ऐसा नहीं हो सकता। मारवाड़ी त्यौहार  कथाओं के बाद आसाबाड़ी को बोला जाता है जिससे कथा का पुण्य मिलता है। कृपया इसे हर कथा के बाद पढ़े। 



सब कहानियाँ का आखिर म केवणु।


आसाबाडी आसाबाड़ी ज्याम बैठी कन्या कुमारी।

कन्या कुमारी कई शिवर ?

शीतला माता की कहानी शिवर। (शीतला माता की जगह पर उक्त त्यौहार को नाम लेवनु। )

बिनायकजी की कहानी शिवर।

लपेश्री तपश्री की कहानी शिवर।

बिश्राम देवता की कहानी शिवर।

आ शिवरायुं काई हुव?

अन्न हुवधन हुवलाभ हुव लिछमी हुव।

बिछुड़यान मेळो हुव।

निपुत्र्यान पुत्र हुव।

रोग्या को रोग जाव।

बिंदरा बिन्द म एक सखी केवती सगळी सुनती।

ज्याकी मन इच्छा पूर्ण हुई ब्यान सगलाकी इच्छा पूर्ण करज्यो।


पढ़ने के लिए धन्यवाद अगर आपको इससे मदत हुई हो तो एक बार कमेंट में जय श्री कृष्ण कह दीजिये और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।


Tuesday, 29 March 2022

शीतला माता

 जय माता दी मित्रों और सखियों शीतला माता की कथा आपके लिए लेकर आयी हु। 

यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता हैकौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही हैना मेरी पुजा है।

माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थीतभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांडनिचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छालेफफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गईमेरा शरीर तप रहा हैजल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिलाबेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में (छालेफफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।

तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जामैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवारके आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब उस कुम्हारन ने कहा  माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगीकागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहाहै माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी हैना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।

क्यों मनाया जाता है शीतलाष्टमी का त्यौहार

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इच्छा है अब आप इसी (डुंगरीगाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जलदही  बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिलाका अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपडे धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकरनरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु  है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। शील कि डुंगरी में शीतला माता का मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी पर वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पढ़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।


अंततक पढ़ने के लिए धन्यवाद। यह कहानी ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पंहुचा दीजिये और निचे कमेंट में  एकबार शीतला माता का जयकारा लगा दीजिये। जय माता दी। 

Strategic Alliances

  Strategic Alliances -  For any achievement gone need the right person on your team.  Sugriv was very keen on this. Very first Sugriva was ...