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Tuesday 24 May 2022

कामदा एकादशी

 

युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! आपको नमस्कार है ! कृपया आप यह बताइये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनोजिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था ।
वशिष्ठजी बोले : राजन् ! चैत्र शुक्लपक्ष में कामदा’ नाम की एकादशी होती है । वह परम पुण्यमयी है । पापरुपी ईँधन के लिए तो वह दावानल ही है ।
प्राचीन काल की बात है: नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर थाजहाँ सोने के महल बने हुए थे । उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे । पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था । गन्धर्वकिन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं । वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थीजिसका नाम ललिता था । उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था । वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे । दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे । ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।
एक दिन की बात है । नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोंरंजन कर रहा था । उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी । गाते गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया । अत: उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी ।
नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गयाअत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं । उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया : दुर्बुद्धे ! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गयाइसलिए राक्षस हो जा ।
महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया । भयंकर मुखविकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा ।
ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई । भारी दु:ख से वह कष्ट पाने लगी । सोचने लगी: क्या करुँकहाँ जाऊँमेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’
वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दियाजहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे । किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दु:खिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले : शुभे ! तुम कौन हो कहाँ से यहाँ आयी होमेरे सामने सच सच बताओ ।
ललिता ने कहा : महामुने ! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य होवह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायेंउसका उपदेश कीजिये ।
ॠषि बोले : भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की कामदा’ नामक एकादशी तिथि हैजो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य होउसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा ।
राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: मैंने जो यह कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया हैउसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।
वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया । राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई ।
नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे । यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए ।
मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।
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