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Wednesday, 29 June 2022

सच्चिया माता - रातीजोगा का गीत

 

अगर माता का नाम मालूम न हो तो सच्चिया माता सबकी माता है। ऐसेमें ये गीत आप शुभ प्रसंगो पर दिए जाने वाले रातीजोगे के अवसर पर गा सकते है।

 

माता लीली सी टोपी हारीयासा बसतर ।

ये कांई ये म्हारी सच्चीया माता ऊभा बडतल जी । ।

म्हें तो जोवा छा र ज़वारा छा ।

म्हारा सेवगडारी जात ज ओ म्हारा जातीडारी बाडज़ ओ ।

म्हें तो जाना ओ, *सुरेंद्रजी रा **आशीषकुमारजी जात पधार सी जी। 

जाती आवला मन भावला, ब्यारा बेटा पोतारी जात ओ,

ब्यारा भाई वो भतीजा री जा त औ, थे तो चोढो ओ,

***गिलड़ारी ओ रान्या लचपच लापसी जी।

थे तों ओढावो औ, ***गिलड़ारी ओ रान्या , बोरंग चूंदड जी,

परावो ओ ***गिलड़ारी ओ रान्या दा त्यों चुढलोजी।

थे तो चढावो जो ***गिलड़ारा ओ कंवर लोलडा नारेळा जी।।

 

*सुरेंद्रजी की जगह पिता का नाम लेना।

**आशीषकुमारजी की जगह बेटे का नाम लेना।  इस तरह घरके सभी पुरुषो और लड़को के नाम लेकर ये लाइन बार बार गाना।

***गिलड़ा की जगह जिस घर में विवाह है उनका सरनेम लेना।

 

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Tuesday, 21 June 2022

अहोई अष्टमी का व्रत-पूजन

 

शास्त्रों के अनुसार अहोई अष्टमी व्रत उदय कालिक एवं प्रदोष व्यापिनी अष्टमी को करने का विधान है। अहोई अष्टमी पर्व और व्रत का संबंध महादेवी पार्वती के अहोई स्वरूप से है। मान्यतानुसार इसी दिन से दीपावली का प्रारंभ माना जाता है। अहोई अष्टमी के उपवास को करने वाली माताएं इस दिन प्रात:काल में उठकरएक कोरे करवे अर्थात मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर माता अहोई का पूजन करती हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए उपवास करती हैं और बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जल व्रत रखती हैं। सूर्यास्त के बाद संध्या के समय कुछ लोग तारों को अर्घ्य देकर व कुछ लोग चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं।
मूलतः अहोई अष्टमी का व्रत संतान सुख व संतान की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन निसंतान दंपत्ति भी संतान की कामना करते हुए अहोई अष्टमी के व्रत का विधि विधान से पालन करते हैं।
देवी पार्वती के अहोई  स्वरूप के निमित अपनी संतान की सुरक्षालंबी आयुअच्छे स्वास्थ्यसुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
मान्यतानुसार अहोई पूजन के लिए शाम के समय घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू से आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं। कई समृद्ध परिवार इस दिन चांदी की अहोई बनवकार पूजन भी करते हैं। चांदी की अहोई में दो मोती डालकर विशेष पूजा भी की जाती है। इसके लिए एक धागे में अहोई व दोनों चांदी के दानें डाले जाते हैं। हर साल इसमें दाने जोड़े जाने की मान्यता प्रचलित है। घर की उत्तर दिशा अथवा ब्रह्म केंद्र में ज़मीन पर गाय के गोबर और चिकनी मिट्टी से लीपकर कलश स्थापना की जाती है। पूजन के समय कलश स्थापना कर प्रथम पूज्य गणेश की पूजा की जाती है उसके बाद अहोई माता की पूजा करके उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है तथा उन्हें दूधशक्कर और चावल का भोग लगाया जाता है। इसके बाद एक लकड़ी के पाटे पर जल से भरा लोटा स्थापित करके अहोई की कथा सुनी और कही जाती है।
सूर्यास्त के पश्चात तारों के निकलने पर महादेवी व उनके सात पुत्रों का विधान से पूजन किया जाता है। पूजा के बाद बुजुर्गों के पैर छूकर आर्शीवाद लेते हैं। इसके बाद करवा से तारों पर जल का अर्घ्य देकर उनका पूजन किया जाता है।
तारों के निकलने पर महादेवी का षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत में हल्दी मिलाकर दीपक करेंचंदन की धूप करें। देवी पर रोलीहल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान दे दें। जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए महादेवी पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। अपने संतान की तरक्की के लिए देवी अहोई पर हलवा पूड़ी चढ़ाकर गरीब बच्चों में बाटें दें। संतानहीनता के निदान के लिए कुष्मांड पेट से बार वारकर मां पार्वती पर चढ़ाएं।
विशेष पूजन मंत्र: ॐ उमादेव्यै नमः॥

Tuesday, 14 June 2022

माँ तुम आओ

 

माँ तुम आओ सिंह की सवार बन कर ! 
माँ तुम आओ रंगो की फुहार बनकर !
माँ तुम आओ पुष्पों की बहार बनकर !
माँ तुम आओ सुहागन का श्रृंगार बनकर !
माँ  तुम आओ खुशीयाँ अपार बनकर !
माँ तुम आओ रसोई में प्रसाद बनकर !
माँ तुम आओ रिश्तो में प्यार बनकर !
माँ तुम आओ बच्चो का दुलार बनकर !
माँ तुम आओ व्यापार में लाभ बनकर !
माँ तुम आओ समाज में संस्कार बनकर !
माँ तुम आओ सिर्फ तुम आओ,
क्योंकि तुम्हारे आने से ये सारे सुख खुद ही चले आयेगें ।।तुम्हारे दास बनकर !

Wednesday, 25 May 2022

गजानंदजी की स्तुति

 

।। स्तुति शारदा की ।। 

सिवरूँ  माता शारदा कंठा विराजो आयजी ।
दद अक्षर टालो  भरो अन धन्न का भण्डारजी ।
गुरु नंद का ध्यान विनती करु बारंबारजी। 
कहे माधोसिंह पढीयार आ बेड़ा लगादो पारजी । 

।। गजानंदजी की स्तुति ।। 

महाराज गजानन आयोजी म्हाकी सभा में रंग बरसावोजी ।
म्हाकौ समा में रंग बरसावोजी लारे रिद्ध सिध्द संग मैं ल्यावो।।  टेर

गढ रणत भंवर का राजा थाके बाजे नौबत बाजा । 
थे मूसा पर चढ़ आवोजी भक्तां घर चंवर ढुलवो। महाराज

माता गिरजा के हो लाला थाके चढे मिठाई माला । 
ये रुच रुच भोग लगावोजी म्हाने परसाद खुवावो । महाराज

बाबा  थे तो दुंद दूँदाला थाने कहवे  सूंड सूंडाला। 
म्हारे रमता खेलता आबोजी सव देवां में बड़ा कहावो । महाराज

थे अन धन देवण वाला संकट का काटण वाला । 
दुख दलीदर दूर हटावोजी म्हाने धनवान वणावो । महाराज 

कहे माधोसिंह सुण देवा म्हें करां आप की सेवा ।
म्हारा मनकी आस पुरावोजी गुरूनंदजी का मान बढ़ावो । महाराज  

Tuesday, 10 May 2022

पार्वतीजी की तपस्या

 

पार्वतीजी ने शिव को पति रूप मेँ पाने के लिए तपस्या आरंभ की । लेकिन शिव को सांसारिक बंधनों में कदापि रुचि नहीं थी, इसलिए पार्वतीजी ने अत्यंत कठोर तपस्या की ताकि शिव प्रसन्न होकर उनसे विवाह कर लें। 

वर्षो तपस्या करने के बाद एक दिन पार्वतीजी के पास एक ब्रह्मचारी आया। वह ब्रह्मचारी तपस्विनी पार्वती का अर्घ्य स्वीकार करने से पूर्व बोल उठा, "तुम्हारे जैसी सुकुमारी क्या तपस्या के योग्य है? मैंने दीर्घकाल तक तप किया है। चाहो तो मेरा आधा या पूरा तप ले लो, किंतु तुम इतनी कठिन तपस्या मत करो । तुम चहो तो त्रिभुवन के स्वामी भगवान विष्णु भी... ।"


किंतु पार्वती ने ऐसा उपेक्षा का भाव दिखाया कि ब्रह्मचारी दो क्षण को रुक गया । फिर बोला, "योग्य वर में तीन गुण देखे जाते है सौंदर्य, कुलीनता और संपत्ति। इन तीनों मे से शिव के पास एक भी नहीं है। नीलकंठ, त्रिलोचन, जटाधारी, बिभूति पोते, सांप लपेटे शिव में तुम्हें कहीं सौदर्य दिखता है? उनकी संपत्ति का तो कहना ही क्या, नग्न रहते है। बहुत हुआ तो चर्म (चमडा) लपेट लिया। कोई नहीं जानता कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई ।" 


ब्रह्मचारी पता नहीं क्या क्या कहता रहा, किसु अपने आराध्य क्री निंदा पार्वती को अच्छी नहीं लगी । अत: वे अन्यत्र जाने को उठ खडी हुईं । तब शिब उनकी निष्ठा देख ब्रह्मचारी रूप त्याग प्रकट हुए और उनसे विवाह किया । 


जहां दृढ लगन, कष्ट सहने का साहस और अटूट आत्मविश्वास हो, वहां लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। 


कहानी तो वैसे शिव को पाने के लिये पार्वती ने किए हुए तप की है। परंतु यह ध्यान रखिये तपस्या भी एक कर्म है। कर्म पूरी निष्ठा से करो तो सफलता अवश्य मिलेगी। और हा इस कहानी का दूसरा पहलू है जैसे शिव के लिए पार्वती की तपस्या हमे बताई जाती है वैसे ये भी ध्यान रखे प्रकृति के सती रूप के आत्मदाह के बाद शिव जी भी गहरे ध्यान में थे। अर्थात शिव और पर्वती दोनों तप कर रहें थे। कहनेका का मतलब ये की सबको अपनी जिंदगी में मनचाही होने के लिए कर्म की भट्टी में तपना होता है।


अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रो और सखियों।  कृपया शेयर करें।

Saturday, 16 April 2022

देवी का गीत

  

उच्चा री कोट सुरंग दे मेरी जाल माँतेरी हरियल पीपल बाहर मेरी माँ

उच्चा री पिपल रानी पडी ए पंचालीम्हारै जै कोई झुलन आवे मेरी माँ

देवी री झुलै रानी लोकड़ियां झुलावैम्हारै धन राजा झोटे देव मेरी माँ

पहला री झोटा रानी हार गुमायादूजा कान की बाली मेरी माँ

तीजा री झोटा रानी होई ए तिसाईजै कोई पानीड़ा पिलाव मेरी माँ

कोरा री घड़वा रानी षीतल पानीधन राजा आन पिलावै मेरी माँ

सोवो के जागो म्हारी आज भवानीथारै धोलै गढ़ बुगले छाई मेरी माँ

तिल-तिल सोऊ रानी जोए-जोए जागु,

म्हारै धोलैगढ़ जोत संवाई मेरी माँ

गले रानी थारै सतलैड़ा सोवैथारै ऊपर हार हजारी मेरी माँ

कान रानी थारै कुण्डल सोवैऊपर तोता वाली मेरी माँ

अंग रानी थार साड़ी सोवैऊपर चून्दड भारी मेरी माँ

हाथ रानी थारै चुड़ला सोवैथारै मेहँदा री जोत सुवाई मेरी माँ

पैर रानी थारै पायल सोवैथारै बिछुवा नै रुण झुण लाई मेरी माँ

सवा ए तो मण की रानी करूँ ए कढ़ाई,

थारै सोने का छत्र चढ़ाऊँ मेरी माँ

इबक तो गुनाहे बकस दे भवानीतेरी जय-जय करती आऊँ मेरी माँ

तेरै गोद झडु़ला लाऊँ मेरी माँसदा ए गठ जोड़े से आऊँ मेरी माँ

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Sunday, 3 April 2022

आसाबाडी

 जय श्री कृष्ण सखियों! मारवाड़ी त्यौहार हो और कहानियाँ न हो ऐसा नहीं हो सकता। मारवाड़ी त्यौहार  कथाओं के बाद आसाबाड़ी को बोला जाता है जिससे कथा का पुण्य मिलता है। कृपया इसे हर कथा के बाद पढ़े। 



सब कहानियाँ का आखिर म केवणु।


आसाबाडी आसाबाड़ी ज्याम बैठी कन्या कुमारी।

कन्या कुमारी कई शिवर ?

शीतला माता की कहानी शिवर। (शीतला माता की जगह पर उक्त त्यौहार को नाम लेवनु। )

बिनायकजी की कहानी शिवर।

लपेश्री तपश्री की कहानी शिवर।

बिश्राम देवता की कहानी शिवर।

आ शिवरायुं काई हुव?

अन्न हुवधन हुवलाभ हुव लिछमी हुव।

बिछुड़यान मेळो हुव।

निपुत्र्यान पुत्र हुव।

रोग्या को रोग जाव।

बिंदरा बिन्द म एक सखी केवती सगळी सुनती।

ज्याकी मन इच्छा पूर्ण हुई ब्यान सगलाकी इच्छा पूर्ण करज्यो।


पढ़ने के लिए धन्यवाद अगर आपको इससे मदत हुई हो तो एक बार कमेंट में जय श्री कृष्ण कह दीजिये और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।


Friday, 1 April 2022

अम्बे माँ की आरती

जय माता दी! नवरात्र हो या कोई भी दिन माता की भक्ति मन को शांति ही देती है| इसके लिए अम्बे माँ की आरती खास आपके लिए| खुद पढ़िए, गाइए - मन को आनंद मिलेगा| 


जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत

मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी | जय अम्बे गौरी

 

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को |मैया टीको मृगमद को

उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको|| जय अम्बे गौरी

 

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे| मैया रक्ताम्बर साजे

रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे|| जय अम्बे गौरी

 

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी| मैया खड्ग कृपाण धारी

सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी|| जय अम्बे गौरी

 

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती| मैया नासाग्रे मोती

कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति|| जय अम्बे गौरी

 

शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती| मैया महिषासुर घाती

धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती|| जय अम्बे गौरी

 

चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे| मैया शोणित बीज हरे

मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे|| जय अम्बे गौरी

 

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी| मैया तुम कमला रानी

आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी|| जय अम्बे गौरी

 

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों| मैया नृत्य करत भैरों

बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू|| जय अम्बे गौरी

 

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता| मैया तुम ही हो भर्ता

भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता|| जय अम्बे गौरी

 

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी| मैया वर मुद्रा धारी

मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी|| जय अम्बे गौरी

 

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती| मैया अगर कपूर बाती

माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती|| बोलो जय अम्बे गौरी

 

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे| मैया जो कोई नर गावे

कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे|| जय अम्बे गौरी

 

देवी वन्दना

 

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता|

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||


यहाँ तक पढने के लिए धन्यवाद ! एकबार माता का जयकारा कमेंट करिए और इसे सबके साथ शेयर करिए |

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Tuesday, 29 March 2022

शीतला माता

 जय माता दी मित्रों और सखियों शीतला माता की कथा आपके लिए लेकर आयी हु। 

यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता हैकौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही हैना मेरी पुजा है।

माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थीतभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांडनिचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छालेफफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गईमेरा शरीर तप रहा हैजल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिलाबेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में (छालेफफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।

तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जामैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवारके आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब उस कुम्हारन ने कहा  माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगीकागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहाहै माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी हैना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।

क्यों मनाया जाता है शीतलाष्टमी का त्यौहार

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इच्छा है अब आप इसी (डुंगरीगाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जलदही  बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिलाका अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपडे धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकरनरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु  है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। शील कि डुंगरी में शीतला माता का मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी पर वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पढ़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।


अंततक पढ़ने के लिए धन्यवाद। यह कहानी ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पंहुचा दीजिये और निचे कमेंट में  एकबार शीतला माता का जयकारा लगा दीजिये। जय माता दी। 

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