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Saturday, 27 March 2021

होली का दस्तूर!!

  

देहरी पर आहट हुईफागुन पूछे कौन,

मैं बसंत तेरा सखातू क्यों अब तक मौन!!

निरखत बासंती छटाफागुन हुआ निहाल,

इतराता सा वह चलालेकर रंग गुलाल!!

कलियों के संकोच सेफागुन हुआ अधीर ,

वन-उपवन के भाल परमलता गया अबीर!!

फागुन आता देखकरउपवन हुआ निहाल,

अपने तन पर लेपताकेसर और गुलाल!!

तन हो गया पलाश-सामन महुए का फूल,

फिर फगवा की धूम हैफिर रंगों की धूल!!

ढोल मंजीरे बज रहेउड़े अबीर गुलाल,

रंगों ने ऊधम कियाबहकी सबकी चाल!!

कोयल कूके कान्हड़ाभँवरे भैरव राग,

गली-गली में गूँजताएक ताल में फाग!!

रंगों की बारिश हुईआँधी चली गुलाल,

मन भर होली खेलिएमन न रहे मलाल!!

उजली-उजली रात मेंकिसने गाया फाग,

चाँद छुपाता फिर रहाअपने तन के दाग!!

टेसू पर उसने कियाबंकिम दृष्टि निपात,

लाल लाज से हो गयावसन हीन था गात!!

अमराई की छांव मेंफागुन छेड़े गीत,

बेचारे बौरा गएगात हो गए पीत!!

फागुन और बसंत मिलकरे हास-परिहास,

उनको हंसता देखकरपतझर हुआ उदास!!

पूनम फागुन से मिलीबोली नेह लुटाय,

और माह फीके लगेतेरा रंग सुहाय!!

नेह-आस-विश्वास सेहुए कलुष सब दूर,

भीगे तन-मन-आत्माहोली का दस्तूर!!

आतंकी फागुन हुआमौसम था मुस्तैद,

आनन-फानन दे दियाएक वर्ष की क़ैद!!

शुभकामनाएं!!!


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Saturday, 2 January 2021

राधार्पण

 

खुप सुरेख कोणी लिहिले माहिती नाही फॉरवर्ड करीत आहे

 

ऐन दुपारी कदंबाखाली

कृष्ण अन त्याच्या सहस्त्र पत्नी

रंग उधळूनी रास रचुनी

गोफ गुंफती हरी भोवती

 

इतक्यात सर्रकन अवचित रुतला

कमल चरणी हरीच्या ,काटा !!

राधा राधा सत्वर वदला

घननीळ नेत्री अश्रू दिसला !

 

कोमल रुक्मिणी, सुंदर भामा  

जांबुवंती अन वदली कमला

बसता उठता राधा राधा

नसे अर्थ का आमुच्या प्रेमा ?

 

सोळा शृंगार तुझ्याचसाठी

घास मुखी तव आमुच्या आधी

दारी लाविला पारिजात हा

सहस्त्र शैय्या तुझ्याचसाठी

 

चिडली भामा, रुसली रखमा

बरे नव्हे हे राधेला विसरा

कोण गोपी ती ? कुठल्या घरची ?

आम्हा समोरी का तिची  मुजोरी  ?

 

नकोस फसवू , शपथ तुज सखया,

कलंक न हा भाळी लागो तुझिया

राधेसाठी का व्याकुळ कान्हा

बोल काहीतरी उत्तर द्याया !!

 

उठले हरी  मग दूर जाहले 

टक लावूनी  अभ्र पाहिले 

शांत घटका सरली अन् मग,

मंजुळ वाणी बोलू लागले

 

वृंदावन जेव्हा टाकिलें,

अन् सोडिले राधेला,

पुन्हा न होणे भेट कदापि  

माहित झाले भाबडीला

 

माग म्हणालो आज काहीही,

माझी आठवण प्रतिक प्रीतीचे

बोलली राधिका झुकवून डोळे,

कधी न मागिले आज मागते

 

मूर्ती तव मम  मनी सर्वदा,

परी  विनवणी करते तुजला

सल जरी इवला,  अंगी रुतला

डंख तयाचा व्हावा मजला !

 

कमलदल-सम चरणांना तुझिया

पायघड्या मम ह्रदयीच्या व्हाव्या

चाललास जरी दोन पावले,

क्षेम कुशल तव मज धाडाव्या

 

म्हणून सखये ओठी राधा

दोन  तन,  मन एकच गाभा 

पाऊल जरी मी एक ठेवले

ती भू नाही काळीज स्मरते !!

 

म्हणून सांगतो प्रिय पत्नींनो,

राधा लौकिक अर्थाने मैत्रिण 

अर्धांगिनी जरी हरीच्या तुम्ही,

राधा मात्र माझे 'मी-पण'

 

राधे इतकी प्रीती मजवर

आहे कुणी का केली सांगा ?

म्हणून सांगतो निजभक्तांना

कृष्णा आधी बोला राधा

 

प्रीतीचे ते सुंदर मंदिर

कशी करावी दूर आठवण?

राधा भरली कणा कणातून

कृष्ण राहिला फक्त राधार्पण!!




 

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Monday, 10 August 2020

Yogmaya- girl who sacrificed herself

No one remembers  the girl baby born on the same day who was interchanged with Krishna, a boy baby, to save his life. The boy's life was precious but the girl was born to sacrifice her life. Today is not only the birthday of Krishna but also of Yogamaya.
It is said that Yogmaya flew off to Heavens freeing herself from the clutches of Kansa while announcing to Kansa that your killer has been born. Scriptures do not clearly  mention that she too got killed like other siblings of Krishna. However more knowledgeable are requested to throw light on it.

Yogmaya was the sister of Lord Krishna Devi who was older to him
Image Credit: www.jagran.com

Yogmaya was also an incarnation of Shakti who came to be born along with the incarnation of Lord Vishnu to keep some old promise. When Kansa caught her by her feet and hurled her to the ground, she flew towards the heaven, saying “Kansa, your killer has already taken birth. I could have also killed you but since you caught me by my feet, I take it as your expression of humility and am pardoning you”.
Krishna was born in the darkness of the night, into the locked confines of a jail.
However, at the moment of his birth, all the guards fell asleep, the chains were broken and the barred doors gently opened.
Similarly, as soon as Krishna ( Chetna, Awareness ) takes birth in our hearts, all darkness ( Negativity ) fades.
All chains ( Ego, I, Me, Myself ) are broken.
And all prison doors we keep ourselves in ( Caste, Religion, Profession, Relations etc )  are opened.
And that is the real Message And Essence of Janmashtmi.
Happy Krishna Janmashtami

Friday, 24 July 2020

शिव


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शिव
शिव ही मीत है। शिव ही प्रीत है।
शिव ही जीवन है। शिव ही प्रकाश है।
शिव ही सांस है। शिव ही आस है।
शिव ही प्यास है। शिव ही ज्ञान है।
शिव ही ससांर है। शिव ही प्यार है।
शिव ही गीत है। शिव ही संगीत है।
शिव ही लहर है। शिव ही भीतर है।
शिव ही बाहर है। शिव ही बहार है।
शिव ही प्राण है। शिव ही जान है।
शिव ही संबल है। शिव ही आलंबन है।
शिव ही दर्पण है। शिव ही धर्म है।
शिव ही कर्म है। शिव ही मर्म है।
शिव ही नर्म है। शिव ही प्राण है।
शिव ही जहान है। शिव ही समाधान है।
शिव ही आराधना है। शिव ही उपासना है।
शिव ही सगुन है। शिव ही निर्गुण है।
शिव ही आदि है। शिव ही अन्त हैै।
शिव ही अनन्त है। शिव ही विलय है।
शिव ही प्रलय है। शिव ही आधि है।
शिव ही व्याधि है। शिव ही समाधि है।
शिव ही जप है। शिव ही तप है।
शिव ही ताप है। शिव ही यज्ञः है।
शिव ही हवन है। शिव ही समिध है।
शिव  ही समिधा है। शिव ही आरती है।
शिव ही भजन है। शिव ही भोजन है।
शिव ही साज है। शिव  ही वाद्य है।
शिव  ही वन्दना है। शिव  ही आलाप है।
शिव ही प्यारा है। शिव  ही न्यारा है।
शिव  ही दुलारा है। शिव ही मनन है।
शिव ही चिंतन है। शिव ही वंदन है।
शिव  ही चन्दन है। शिव ही अभिनन्दन है।
शिव  ही नंदन है। शिव ही गरिमा है।
शिव ही महिमा है। शिव ही चेतना है।
शिव ही भावना है। शिव ही गहना है।
शिव ही पाहुना है। शिव ही अमृत है।
शिव ही खुशबू है। शिव ही मंजिल है।
शिव ही सकल जहाँ है। शिव ही समष्टि है।
शिव ही व्यष्टि है। शिव ही सृष्टी है।
शिव ही सपना है। शिव ही अपना है।।
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Wednesday, 25 March 2020

भारतीय नववर्ष


प्रकृति - 1 जनवरी कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी। चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं। चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो।
वस्त्र - दिसम्बर और जनवरी में वही उनी वस्त्र। कंबल रजाई ठिठुरते हाथ पैर चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है , गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है ।
विद्यालयो का नया - दिसंबर जनवरी वही कक्षा कुछ नया नही। जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलो का रिजल्ट आता है नई कक्षा नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल।
नया वित्तीय वर्ष- दिसम्बर जनबरी में कोई खातो की क्लोजिंग नही होती। जबकि 31 मार्च को बैंको की(audit) कलोसिंग होती है नए वही खाते खोले जाते है। सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है।
कलैण्डर-जनवरी में नया कलैण्डर आता है। चैत्र में नया पंचांग आता है उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं । इसके बिना हिन्दू समाज जीवन की कल्पना भी नही कर सकता इतना महत्व पूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग।
किसानो का नया साल -  दिसंबर जनवरी में खेतो में वही फसल होती है , जबकि मार्च अप्रैल में फसल कटती है नया अनाज घर में आता है तो किसानो की वार्षिक योजना बनती है।
पर्व मनाने की विधि -  31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर मदिरा पान करते है, हंगामा करते है ,रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी बारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल,और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश 
जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है पहला नवरात्र होता है घर घर मे माता रानी की पूजा होती है। शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है।
ऐतिहासिक महत्त्व - 1 जनवरी का कोई ऐतेहासिक महत्व नही है,  जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत  भगवान झूलेलाल का जन्म नवरात्रे प्रारंम्भ,  ब्रहम्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना, इत्यादि का संबंध इस दिन से है।
अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला
अपना नव संवत् ही नया साल है।
जब ब्रह्माण्ड से लेकर
सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तिया, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते है। जो विज्ञान आधारित है।
तब अपनी मानसिकता को बदले। विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने।
स्वयं सोचे की क्यों मनाये हम 1 जनवरी को नया वर्ष केवल कैलेंडर बदलें। अपनी संस्कृति नही।
आओ जगे जगाये, भारतीय संस्कृति अपनाये, आधुनिक बने ।

Monday, 9 March 2020

होरी खेली न जाय


नैनन में मोहे गारी दई, पिचकारी दई, होरी खेली न जाय
क्यों रे लंगर लंगराई मोसे कीनी, केसर कीच कपोलन दीनी
लिये गुलाल ठाडो ठाडो मुसकाय, होरी खेली न जाय ॥१॥
नेक न कान करत काहू की, नजर बचावे भैया बलदाऊ की
पनघट से घर लों बतराय, होरी खेली ने जाय ॥२॥
ओचक कुचन कुमकुमा मारे, रंग सुरंग सीस पे डारे
यह ऊधम सुन सास रिसाय होरी खेली न जाय॥३॥
होरी के दिनन मोसे दूनो दूनो अटके, सालीगराम कौन जाय हटके
अंग चुपट हँसी हा हा खाय होरी खेली न जाय ॥४॥
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Image Credit: kanhalyrics.blogspot.com

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