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Wednesday, 1 December 2021

बज बारस की गाय

 

सुनके पुकार। आयो ग्वाल बोले मधुबन में।।

ये गौआ मेरे मुक्तिकी दाता। अंत समय गऊ दान करावे।।१।।

डूंगर पर चिड़िया बोले। चिड़ियाको चुगा चुगाओ।।२।।

डूंगर पर कोयल बोले। पीयू पीयू पीयू पुकारे।।३।।

चन्द्रसखी ब्रजलाल कृष्ण छब। हरी चरणा चीत ल्यावो।।४।।

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बज बारस की गाय

 

श्रीकिसनजीरी सखा गाय, कदली बन चरबान गई वो राम।

जाय पवास्यो माता चाँदनियारो रुख, नरसिंग शाम डढुकिया वो राम।

दम खा रे नार दादा पाची जाबादे , बछड्यान पायर पाछी आवास्यां वो राम।

गली ये गायतड़ी माता असल गिवार, मरबार खातर कुन आवासी वो राम।

एक बाचा दोय बाचा तीसरोजी बाचा, चोथाम पाची आवास्यां वो राम।

घरकी धिराणी धरमकी बेन, बछड्यान सोरो राखज्यो वो राम।

सियाळ म्हारा बछड्यान ओठा ओबरियाम बाँध, ठंडो पानी पावजो वो राम।

चौमास म्हारा बछड्या पड़झाया बाँध, हरियो घासज निरजी वो राम।

आओ रे म्हारा बालक बछड्या पीवो थाको दूध, अब थाको दूध मना हुयो वो राम।

गली ये गायत्री माता असल गिवार, बच नारो बांध्यो दूध ना पिव वो राम।

आग आग बालक बछड्या लार सखी गाय, कदली बन चरबा गयी  वो राम।

जाय पवास्यो चाँदनियारो रुख, नरसिंग शाम डढुकिया वो राम।

आवोजी म्हारा मामा भकल्यो भानेजा, पच ही भखो थाकि बनडी वो राम।

कदका मामाजी कदका भानेज, कदकी मानी बनड़ी वो राम।

आजका मामाजी न आजका भानेज, आजकी मानेडी बनडी वो राम।

आवो रे म्हारा बालक बछड्या कुण दिनी थान सिख, किनार भरमाया माँड्यो मरणो वो राम।

घरकी धिराणी दिनी म्हान सीख, रामजी भरमाया माँड्यो मरणो वो राम।

आवो रे म्हारा बालक बछड्या पीवो थाको दूध, बचनारो बांध्यो दूध छूट गयो वो राम।

बन गायत्रीन चूंदड़ ओढाय, बछड्या भानेजान मोळिया वो राम।

श्रीकिसनजीरी सखा गाय, गाय गावां सु फल पावसी वो राम।।

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Thursday, 27 May 2021

ठाकुरजी के नखरे

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ। आज भक्तिरस से भरी एक घटना आपको बता रही हु। कृपया अंततक पढ़े और भक्तिरस का अनुभव ले। 

संत गोपालाचार्य चंचल शिखामणि कृष्ण को बाल-भाव से भजते थे। जब बाबा पाठ करते तो ये महाशय हारमोनियम उठाकर उसमे सा रे गा मा...... का राग छेड़ देते। जब भोग लगाते तो ये रसोई घर में जाकर खूब खटर पटर करते।  जब जब बाबा कोई भी काम करे ये पहले ही शुरू हो जाते। और बाबा को कहना पडता थोडा हल्ला कम करो 

जैसे कोई छोटा बच्चा होता है, पहले जब वह बोलना सिखता है तो हम उसे सीखते है लल्ला मईया बोल , बाबा बोल, और एक दिन जब वह बोलने लगता है तो हम कितना खुश होते है। और फिर इतना बोलता है कि उसी मईया को लाठी लेकर कहना पडता है घर में मेहमान है थोडी देर चुप रह। हम बच्चे से पूंछते है क्या खाओगे ? फिर हम कितने प्यार से एक एक कौर उसे खिलाते है। बस इसी तरह ठाकुरजी भी है, हम सामने रख तो देते है पर बच्चे की भांति नहीं खिलाते, वरना तो खाने में भी बड़े नखरे है इनके। 

सबका मतलब यह की गोपालाचार्य कृष्ण को अपने घर के बालक की तरह बतियाते थे, उन्हें भोजन करते थे और जो भी कार्य करते तब कृष्णजी को अपने साथ लेकर काम करते थे। और इसीलिए भगवान भी उनके साथ भगवान की तरह न रहते हुए उनके घर के बालक की तरह ही रहते थे - बाबा जो भी करे वे हर काम में हाथ बटाते थे। 

एक दिन गोपालाचार्य ने ठाकुरजी के लिए खीर बनायीं और प्रेम से उनको भोग लगाने लगे, अब ठाकुर जी ठहरे चंचल शिरोमणि, खाते ही बोल पड़े, "बाबा!  इस खीर में शक्कर कम है।" बाबा ने झट थोड़ी सी शक्कर डाल दी।  फिर ठाकुर जी ने खायी अब बोले, "बाबा! बहुत मीठी है।" बाबा ने फिर थोडा सा दूध डाल दिया। 

फिर ठाकुरजी ने खायी फिर बोले, "बाबा! अब फिर शक्कर कम है। " इस तरह जब दो तीन बार किया तो बाबा समझ गए, खीर तो ठीक बनी है ये ही नखरे दिखा रहे है, तुरंत शक्कर और दूध का डिब्बा उठाया, और ठाकुरजी के सामने रखकर बोले, "लाला! लेलो अब अगर मीठी लगे, तो स्वयं दूध डाल लेना और फीकी लगे तो शक्कर डाल लेना। "

कहने का अभिप्राय, हम उनसे बोलते नहीं इसलिए वे हमसे बोलते नहीं, यदि उनसे बात करना शुरू करेंगे तो आप स्वयं देखिये वे बोलने लग जायेगे। और एक दिन ऐसा आएगा कि संत की तरह हमें भी कहना पड़ेगा थोडा हल्ला कम करो। 

भक्ति तो समर्पण की पराकाष्टा है। और सेवा भक्ति का अन्य रूप है। पुरे समर्पित भाव से ठाकुरजी की सेवा आपको निश्चित ही आनंद देगी। 

अगर आपने भी कभी चितचोर ठाकुरजी के संग बाते की हो और आपको उनके होने का एहसास हुआ हो तो एक बार कमेंट में जयकारा लगा दीजिये और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करिये। 


Thursday, 20 May 2021

लड्डूगोपाल की लीला

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ। एक भक्तिरस भरी कहानी आपके लिए फिरसे लेकर उपस्थित हु। कृपया मन में लड्डूगोपालजी का ध्यान करते हुए इसे पढ़िए। 

Image: Bhagavatam-katha


चित्तूर नामक नगर में राजीवलोचन नामका एक स्वर्णकार था। वह लड्डूगोपाल का भक्त था और उनकी कृपा से उसका व्यापार बहोत तरक्की कर गया था। सोने के किसी भी तरह के गहने हो उसकी दुकान पर बनकर मिल जाते थे। कई अन्य स्वर्ण कारीगरों को भी उसने रोजगार दे रखा था। दूर दूर से लोग उस चित्तूर नगर में केवल राजीवलोचन की दुकान से गहने लेने और बनवाने आते थे। इतना बड़ा कारोबार होने के बाद भी राजीवलोचन लड्डूगोपाल  की भक्ति और पूजा अर्चना से कभी चूका नहीं। 

राजीवलोचन एक रामभद्र नामक मित्र था जो एक दिन उसे मिलने उसकी दुकान पर आया था। रामभद्र सपरिवार  तीर्थयात्रा कर लौटा था। वह अपने साथ प्रसाद और लड्डूगोपाल की एक बड़ी मनमोहक मूर्ति लेकर आया था।  उस समय राजीवलोचन एक हिरे जड़ित सोने का हार अच्छेसे देख रहा था। रामभद्र के आते ही राजीवलोचन ने उसकी आओभगत की और उसका ध्यान रामभद्र के साथ आये लड्डूगोपाल पर गया। 

राजीवलोचन ने तुरंत अपने हाथ का हिरेजड़ा हार उन लड्डूगोपाल को पहना दिया और कहा, "देखो तो सही इस हार की शोभा लड्डू गोपाल के गले में पढ़ने से कितनी बढ़ गई है।" राजीवलोचन और रामभद्र बाते करने लगे और बातों बातों में हार समेत रामभद्र उन लड्डूगोपाल को लेकर चल दिया। वह टैक्सी करके अपने घर के लिए निकल गया था। और इधर राजीवलोचन अपने अन्य ग्राहकों को देखने में व्यस्त हो गया था। 

रामभद्र जिस टैक्सी से घर के लिए निकला था उसी टैक्सी में वह उन लड्डूगोपाल को भूल गया। वह टैक्सी ड्राइवर जिसका नाम जनार्दन था वह कोकानड़ा नगर में अपनी पत्नी वैदेही के साथ रहता था। रामभद्र को उसके घर छोड़ वह कोकानड़ा स्थित अपने घर की तरफ निकल पड़ा। 

जनार्दन जब अपने घर पोहोचा तब उसने देखा की टैक्सी की पिछली सीट पर लड्डूगोपालजी विराजमान है। वह थोड़ा हक्का बक्का रह गया और सोचने लगा की ये लड्डूगोपाल किसके है? उसने सारा सामान उतारकर घरमे रखा और पत्नी वैदेही को लड्डूगोपाल को लाने के लिए कहा। 

वैदेही घर के बाहर आयी और उसने टैक्सी खोलकर जब देखा तो निःसंतान वैदेही के मन से ममता का झरना फुट पड़ा और उसने उन लड्डूगोपाल को अपने ह्रदय से लगा लिया मानो वो उसका छोटा सा शिशु हो। और गोद में उठाकर वह अपने घर के अंदर ले गई। और जनार्दन से कहा, "आप नहीं जानते कि आज आपने मेरे लिए कितना अमूल्य रत्न लाया है।" और वह झठ से अंदर गयी और उन लड्डूगोपालजी संग बाते करने लगी। 

बाते करते करते वैदेही ने अपने छोटेसे  घर में लड्डूगोपालजी के लिए अच्छी जगह बनाकर उन्हें विराजमान कर दिया। और फिर उनसे कहा, "लाला मेरे घर इतनी दूर से आये हो तनिक विश्राम करो मैं आपके लिए घी का दूध ले आती हु। पीकर सो जाना। "

इधर चित्तूर नगर में हार और लड्डूगोपालजी गायब हो जाने से राजीवलोचन और रामभद्र दोनों परेशान हो गए थे। आखिर में राजीवलोचन ने मन ही मन कहा, "कोई बात नहीं। यह मेरी भक्ति की परीक्षा है। अगर मेरी श्रद्धा सच्ची है तो लड्डूगोपालजी के अंग लगा वह हार वे हमेशा पहने रखेंगे।"

उधर कोकानड़ा नगर में जनार्दन और वैदेही दिन-रात लड्डूगोपालजी की सेवा करने लगे जैसे मनो वो उनके ही पुत्र हो। लड्डूगोपालजी की कृपा हुई और उनके घर एक बहुत ही सुंदर बेटी ने जन्म लिया जिसका नाम उन्होंने ललिता रखा। ललिता के जन्म का सारा श्रेय वे लड्डूगोपालजी को ही देते रहे। 

एक दिन राजीवलोचन अपने व्यापार के सिलसिले में कोकानड़ा नगर आया। पर मौसम ख़राब होने की वजह से वह एक जगह रुक गया। काफी देर बाद जब थोड़ा मौसम ठीक हुआ तो उसने टैक्सी लेने की सोची। तभी जनार्दन उसके पास अपनी टैक्सी लेकर पहुचा। जैसे ही राजीवलोचन जनार्दन की टैक्सी में बैठा और दोनों कुछ दूर आगे गए फिरसे मौसम ख़राब हुआ और धुआँधार बारिश हो गयी। जनार्दन ने राजीवलोचन से पूछा, "साहब आगे सारे रास्ते बंद है। यहाँ से नजदीक मेरा घर है। आप चाहो तो कुछ देर मेरे घर रुक जाइये फिर मौसम साफ होने के बाद मै आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा दूंगा।"

राजीवलोचन ने हां कहा और दोनों जनार्दन के घर गए क्यों की उसके पास कोई और चारा नहीं था। 

घर पर जनार्दन ने वैदेही को राजीवलोचन के लिए खाना बनाने के लिए कहा। जनार्दन के छोटे से घर में मन को प्रसन्न करने वाली इत्र की खुशबु आ रही थी। और वैदेही के हाथ का भोजन मानो अमृत से भरा हो। राजीवलोचन का ध्यान बार-बार उस दिशा की तरफ जा रहा था, जहां पर लड्डूगोपालजी विराजमान थे। वहां से उसको एक अजीब तरह का प्रकाश नजर आ रहा था। आखिर में जिज्ञासावश राजीवलोचन ने कहा, "जनार्दन तुम्हे ऐतराज न हो तो क्या मैं जान सकता हु उस दिशा में क्या है? मेरा ध्यान बार बार उधर जा रहा है। "

जनार्दन ने कहा, "अरे क्यों नहीं साहब। वह तो हमारे परिवार के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य की जगह है। आइये मैं आपको उनसे मिलवाता हु। "

जनार्दन राजीवलोचन को लड्डूगोपालजी के पास ले गया। उनको देख राजीवलोचन की आखे खुली की खुली रह गयी। क्यों की अभीभी उनके गले में वो हार जैसा की वैसा था जो राजीवलोचन ने पहनाया था। जनार्दन और वैदेही ने सारी बात राजीवलोचन को बताई। 

राजीवलोचन ने पूछा, "क्या तुम जानते हो कि जो हार लड्डूगोपाल जी के गले में पड़ा है उसकी कीमत क्या है?"

वैदेही ने जवाब दिया, "जो चीज हमारे लड्डू गोपाल जी के अंग लग गई हम उसका मूल्य नहीं जानना चाहते और हमारे लाला के सामने किसी चीज किसी हार का कोई मोल नहीं है। "

यह सुन राजीवलोचन के मन में समाधान की भावना जाग उठी और उसने मन ही मन कहा, "अच्छा है मेरा हार लड्डूगोपाल जी ने अपने अंग लगाया हुआ है।"

मौसम काफी ख़राब होने की वजह से राजीवलोचन को पूरी रात जनार्दन के घर रुकना पड़ा। अगले दिन जनार्दन ने उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा दिया। वह गाड़ी से उतारकर किराया देकर जा रहा था तभी जनार्दन ने आवाज लगाई, "साहब आपका सामान मेरी गाड़ी में रह गया है, तनिक रुकिए मैं ला देता हु। "

राजीवलोचन परेशान हो गया क्यों की उसने उसका बैग जिसमे उसके व्यापार से जुड़े कागजात थे  वह तो ले लिया था। फिर क्या रह गया था ? जनार्दन ने एक बैग लाकर दिया और कहा, "साहब ये बैग आपका ही है।"

राजीवलोचन ने बैग खोल कर देखा तो उसमे बहोत सरे पैसे थे। उसने गिने तो वह हक्का बक्का रह गया क्युकी वे उतने ही थे जितने उस हार की कीमत। वह रोने लगा तो जनार्दन ने पूछा, "साहब क्या हुआ?"

राजीवलोचन ने बताया कैसे वो हार लड्डुगोपलाजी के गले में आया और आखिर में कहा, "जब तक मैंने निश्छल भाव से ठाकुर जी को वह हार धारण करवाया हुआ था तब तक उन्होंने पहने रखा। मैंने उनको पैसों का सुनाया तो उन्होंने मेरा अभिमान तोड़ने के लिए पैसे मुझे दे दिए हैं।"

यह सुन जनार्दन भी आश्चर्यचकित हो गया। 

लड्डूगोपाल की लीला वो ही जाने, तीर्थयात्रा से किसके साथ आये, किसके हाथो सजे और किसके यहाँ विराजमान हुए ये सब उनकी लीला है। बस जबतक आपके भाव शुद्ध तबतक आपसे सेवा करवाते रहेंगे। अगर आपके मन में जरा भी भक्ति भाव जगा हो तो कृपया एकबार लड्डूगोपालजी का जयकारा कमेंट कर दीजिये और इस ब्लॉग को शेयर करिये। धन्यवाद। 

मूर्तिपूजा से जुडी भावना

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ। आज मूर्तिपूजा से जुडी एक कहानी आपके लिए लायी हु। इसे अंततक पढ़ना जरूर। 

Image: aajtak 

अनंतपुर नामके नगर में एक कमलनाथ नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह व्यापर और सामजिक दोनों ही क्षेत्रों में बड़ा निपुण था पर हमेशा परेशान रहता था। अपने मित्रो से अपनी परेशानी बतलाता था पर उसके परेशानी की वजह कुछ खास नहीं रहती थी। 

एक दिन ऐसे ही वह अपने मित्र के साथ परेशानी क्यों है इसकी चर्चा कर रहा था तो उसके मित्र ने उसे सलाह दी कि कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो। बस फिर क्या था वह अपने घर एक सुन्दर सी कृष्ण की मूर्ति ले आया। और नियम से हर रोज पूजा करने लगा। 

जैसे उसके परेशानी का कोई कारण नहीं था वैसे ही उसकी पूजा में भी कोई रस नहीं था। इस वजह से वह कभी अपनी अकारण परेशानी से मुक्त न हो पाया। 

फिर ऐसे ही किसी और दोस्त से चर्चा करता और समाधान ढूंढने की कोशिश करता। किसी ने कहा हनुमानजी की पूजा करो तो वह हनुमानजी की मूर्ति घर ले आया और कृष्ण जी की मूर्ति को थोड़ा बाजु में हटा कर हनुमानजी को रख दिया। ऐसे करते करते उसके पूजाघर में सभी देवी देवता आगये पर मन कि परेशानी उसकी जरा दूर नहीं हुई। आखिर में किसी के कहने पर वह माताजी की मूर्ति लेकर आया और उसे भी वही रख कर रोज पूजा करने लगा।

ऐसे करते करते कई दिन बित गए और एक दिन उसके मनमे ख़याल आया, 'अरे मैंने तो धुप बत्ती माताजी के लिए लगायी है। पूजाघरमे रखे बाकि देवता भी उसे सूंघ रहे होंगे। मैं एक काम करता हु सबके मुँह बांध देता हु ताकि सिर्फ माताजी को धूपबत्ती का सुगंध मिले। '

जैसे ही वह श्रीकृष्णजी का मुँह बाँधने लगा कृष्ण भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो हैरान रह गया और भगवान से पूछा, "इतने वर्षों से पूजा कर रहा था तब नहीं आए? आज कैसे प्रकट हो गए ?" तभी सारे देवी देवता प्रकट हो गए। 

भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा, "आज तक तू एक मूर्ति समझकर मेरी पूजा करता था। किन्तु आज तुम्हें एहसास हुआ कि "कृष्ण साँस ले रहा है! तो बस मैं आ गया।" बाकि देवी देवताओ ने भी कृष्ण जी से सहमति जताई। 

तब कमलनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सभी देवी देवताओ से क्षमा मांगी और वचन दिया, "मूर्ति में आप विराजमान है इसी भावना से अब मैं पूजा करुँगा। " 

कमलनाथ की मूर्ति की और देखने कि भावना बदली तो उसकी अकारण परेशानी भी दूर होने लगी और उसे  मन की शांति मिली। इसीतरह जब हम श्रद्धापूर्ण भाव से कोईभी ईश्वर कार्य करते है तो उसके फल बदल जाते है। जो भी कर्म हम जीवन में करते है उनके पीछे का भाव सकरात्मक कर दीजिये और फिर देखिये की आपको कैसे उस कार्य में सफलता प्राप्त होती है। 


यह कहानी आपको पसंद आयी हो तो एक बार आपकी श्रद्धा जिनके भी चरणों में है उनके नाम का जयकारा कमेंट कर दीजिये जिससे मुझे आपके लिए ऐसीही और कहानिया लाने की प्रेरणा मिलती रहे। और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करिये। धन्यवाद। 


Wednesday, 12 May 2021

आरती कृष्ण कन्हैयाकी

जय श्री कृष्णा सखियों और सखाओं। कृष्ण कन्हैया की ये मनभावन आरती आपके लिए लेकर आयी हु। आपको ये पता तो है ही। पर क्या करे चितचोर की स्तुति करने से अपने आप को रोक न सकी। आओ एकबार फिरसे इसे गाते है। 



अधरधर मुरली बजैया की। आरती कृष्ण कन्हैया की।. धृ।.

 

कृष्ण तुम मथुरा जन्म लियो।

नन्द घर मंगलाचार कियो।

यशोदा गॉड खिलैया की। आरती कृष्णा कन्हैया की।. १।.

 

कृष्ण तुम यशोदा के छैया।

शाम बलदाऊ के भैया।

बन बन गाय चरैया की। आरती कृष्ण कन्हैया की।. २।.

 

कृष्ण तुम कंसासुर माँ-यो।

शाम तुम भूमिभार टा-यो।

कालिया नाग नचैया की। आरती कृष्ण कन्हैया की।.३।.

 

कृष्ण तुम अर्जुन के प्यारे।

शाम हो भक्तन रखवारे।

जमुना तट रास रचैया की। आरती कृष्ण कन्हैया की।.४।.

 

आरती गाते कृष्णानंद।

मन में होता अति आनंद।

विनय है लाज रखैया की। आरती कृष्ण कन्हैया की।.५।.


यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर पढ़ते पढ़ते गुनगुनाये हो तो एकबार कृष्ण कन्हैया की जय कमेंट में कर दीजिये। और इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करिये। 


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Tuesday, 11 May 2021

कृपा करो हे काँन्हा

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ ! आज आपके लिए योगेश्वर श्रीकृष्ण से जुडी भक्ति भरी शायरी लेकर आयी हु। अंततक पढ़ना जरूर। 


  

1

भीगने का अगर शौक हो तो

आकर मेरे गोविन्द के  चरणों में बैठ जाना

ये बादल तो कभी कभी बरसते है,

मगर मेरे गोविन्द की  कृपा हर पल बरसती है

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2

चल मेरे श्याम की नगरी मेंतेरे गम के बादल छट जायेगें

जब छांव मिलेगी बाबा कीतेरे दुखड़े सब कट जायेगें।।

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3

ऐ राधा रानी  

नज़रों को कुछ ऐसी खुदाई दे

जिधर देखूँ उधर तू ही दिखाई दे

कर दे ऐसी कृपा आज ,

हे श्यामा  प्यारी इस नाचीज पे कि

जब भी बैठूँ मस्ती में,

मुझे  बस श्री राधा ही दिखाई दे

हे महारानी  कृपा  बरसाये  रखूं

!जय श्री राधें कृष्णा!  

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4

मेरे गुरुजी

तू चाहे तो मेरा हर काम साकार हो जाए

तेरी कृपा से खुशियों की बहार हो जाए,

यूँ तो कर्म मेरे भी कुछ ख़ास अच्छे नहीं

मगर तेरी नजर पड़े तो मेरा उद्धार हो जाए।

 जय गुरु जी

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5

कट जाते हैं कर्मफलमिटते कष्ट अपार।

जिस पर कृपा मेरे गुरुजी कीउसका बेड़ा पार।।

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6

बडे भाग्यशाली है वो तेरे बन्दे,

जिन्होंने आपसे  दिल लगाया है

दया और कृपा की सौगात उन्हें देना,

गुरुजी जिन्होंने आपके चरणों

में ध्यान लगाया है

जय गुरुजी

===============

7

मेरे ईश्वर

किस्मत पर नाज है तो वजह तेरी कृपा

खुशिया जो पास है तो वजह तेरी कृपा

मेरे अपने मेरे साथ है तो वजह तेरी कृपा

मै तुझसे मोहब्बत की तलब कैसे न करू

चलती जो ये साँसे है तो वजह तेरी कृपा

हर सुबह खुलती मेरी ऑख है तो वजह तेरी कृपा

कर दिया बेफिक्र तूने फिक्र मै कैसे करू

फिक्र तो अब यही है कि तेरा शुक्रिया मै कैसे करू

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8

थाम लो ना हाथ मेरा श्री राधे

तेरे दर पर आया हूँ

जीत जाऊँगा ज़िन्दगी की

हर बाज़ी तेरी कृपा से,

मन में ये विश्वास लेके आया हूँ

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9

राधा रानी कर कृपा

इतना दो वरदान

राधे राधे रटता रहूं

जब तक तन में प्राण

अपनी कृपा से भर दे मोहे

इक पल भी ना बिसरू तोहे

हर दम जपु तिहारा नाम

हे बृज स्वामिनी अपना बना लो

लाडली चरणों में अपने बैठा लो

दिन और रैन करू तुम्हारा ध्यान

इक बार बुला लो वृषभानु दुलारी

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10

ऐसी कृपा करो 'हे काँन्हातेरा नाम ही मेरा घन हो जाए

जिस जगह तुझे याद करूँवहीं मेरा 'वृंदावनहो जाए!

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 यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर आपको यह पसंद आया हो तो कमेंट में एकबार योगेश्वर का जयकारा  दीजिये और इस ब्लॉग को अन्य भक्तो के साथ जरूर शेयर करिये। 

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Thursday, 6 May 2021

सांवरे

  


1

प्यारे ना तू रूह ना तू धड़कनना साँसों की डोरी हैं,

फिर भी मेरे सांवरेमेरे जीने के लिए क्यों तेरी मोहब्बत जरुरी है,

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2

इस से पहले की मेरी जान जाए

कोई कह दे सांवरे से की वो मान जाए

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3

घर की बाहरी दीवारों पर नेरोलेक पेंट लगाओ या न लगाओ

घर मैं सांवरे की छवि  जरुर लगाओ

घर की रौनक अपने आप बढ़ जाएगी

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4

वृंदावन की हवाजरा अपना रुख हमारी तरफ भी मोड दे,

इस वीरान दिल मे राधा नाम की मस्ती छोड दे

उड जाये माया की मिट्टी ओर दीदार हो सांवरे का

ऐसी प्रीत हमारी राधा नाम से जोड दे

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5

बहुत तड़प हो रही है तुझसे मिंलने की सांवरे बुला लो वृन्दावन

या छीन लो मोहब्बत अपनी और खत्म कर दों मेरे दिल की ये जलन

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6

कैसे रिझाएं सांवरे को,

हुनर हमें भी सिखा दो ना

तडप रहे हैं ओ राधा प्यारी

सांवरे से हमें मिला दो ना

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7

कौन सी मांग ली थी कायनात जो इतनी मुश्किल हुई

ऐ सांवरेसिसकते हुए शब्दों में बस एक तुम को ही तो मांगा था

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8

किसी ने दौलत की राह चुनी

किसी ने शोहरत की मंजिल॥

मुझे श्याम के भजनों में सुकून मिला,

तो मैंने चुनी सांवरे की महफ़िल॥

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9

हे बांकेबिहारी

मूर्ति मे तुझे क्या देखूं,,तू नूर बनकर नैनो मे समाया है---

अब जिधर देखता हूं प्यारे,,उधर तूने अपना रुप बनाया है--

इस आशिकी को कौन समझे,,जग ने बहुत ठुकराया है---

पर गम नही किसी के रुठ जाने का,,क्योकि मेरे सांवरे ने मुझे अपनाया है--- श्री राधे

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10

मुहब्बत तो बहुत छोटा लफ्ज है सांवरे मेरी तो जान बसी है तुझ में

जब साँस आखिरी हो और दो लफ्ज कहने की मोहलत हो!

कान्हा एक नाम तुम्हारा लूँ,और दूसरा राधे राधे हो!

राधे राधे

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  Strategic Alliances -  For any achievement gone need the right person on your team.  Sugriv was very keen on this. Very first Sugriva was ...