भक्त के भाव...
एक पुरानी कहानी है कि एक पण्डित जी ने अपनी पत्नी की आदत बना दी थी कि घर में रोटी खाने से पहले कहना है कि "विष्णु अर्पण" अगर पानी पीना हो तो पहले कहना है कि"विष्णु अर्पण" उस औरत की इतनी आदत पक्की हो गई
की जो भी काम करती पहले मन में यह कहती की
"विष्णु अर्पण" "विष्णुअर्पण" फिर वह काम करती एक दिन उसने घर का कूड़ा इक्कठा किया और फेंकते हुए कहा की "विष्णु अर्पण""विष्णु अर्पण" वहीँ पास से नारद मुनि जा रहे थे ,नारद मुनि ने जब यह सुना तो उस औरत को थप्पड़ मारा की विष्णु जी को कूड़ा अर्पण कर रही है फैक कूड़ा रही है और कह रही है कि "विष्णु अर्पण" वह औरत विष्णु जी के प्रेम में रंगी हुई थी कहने लगी नारद मुनि तुमने जो थप्पड़ मारा है वो थप्पड़ भी "विष्णु अर्पण" अब नारद जी ने दुसरे गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा कि बेकूफ़ औरत तू थप्पड़ को भी विष्णु अर्पण कह रही है । लेकिन उस औरत फिर यही कहा आपका मार यह थप्पड़ भी "विष्णु अर्पण"
" जब नारद मुनि विष्णु पूरी में गए तो क्या देखते है कि विष्णु जी के दोनों गालों पर उँगलियों के निशान बने हुए थे " , नारद पूछने लगे कि"भगवन यह क्या हो गया" ? आप जी के चेहरे पर यह निशान कैसे पड़े",
विष्णु जी कहने लगे कि "नारद मुनि थप्पड़ मारे भी तू और पूछे भी तू" , नारद जी कहने लगे की "मैं आप को थप्पड़ कैसे मार सकता हूँ"?, विष्णु जी कहने लगे,
"नारद मुनि जिस औरत ने कूड़ा फेंकते हुए यह कहा था की विष्णु अर्पण और तुने उस को थप्पड़ मारा था तो वह थप्पड़ सीधे मेरे को ही लगा था , क्योकि वह मुझे अर्पण था"...
कथा सार :-जब आप कर्म करते समय कर्ता का भाव निकाल लेते है। और अपने हर काम में मै मेरी मेरा की भावना हटा कर अपने इष्ट या सतगुरु को आगे रखते है तो करमो का बोझ भी नहीं बढ़ता और वो काम आप से भी अच्छे तरीके से होता है !!
राधे राधे
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