जय जय श्रीमन नारायण
देव उत्थानी एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन देव शयनी एकादशी के बाद सोकर उठे थे। इस पर्व के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें यह ब्लॉग।
देव उत्थानी एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी का दिन बेहद शुभ माना जाता है। प्रबोधिनी एकादशी का वास्तविक अर्थ एकादशी का जागना है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु देव शयनी एकादशी में सोकर आज ही के दिन उठे थे। इस दिन को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- देव उत्थानी एकादशी, देवोठानी एकादशी, देव प्रबोधिनी और देवोत्थान आदि।
देव उत्थानी एकादशी: दिनाँक व समय
देव उत्थानी एकादशी तिथि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है। देव उत्थानी एकादशी का व्रत आदर्श रुप में पारण मुहूर्त में तोड़ना चाहिए और द्वादशी तिथि के दिन समाप्त करना चाहिए।
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार कहते हैं कि भगवान विष्णु के अनियमित सोने से पृश्वी लोक और देव लोक में कई सारी समस्याएँ पैदा हो गई थीं, क्योंकि वे कुछ दिनों के लिए सोते थे और कुछ दिन जागते थे। ऐसे में देवताओं को उनसे मिलने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता था। वहीं पृथ्वी लोक में असुरों को भी इसका पूरा लाभ मिल रहा था। फ़िर माँ लक्ष्मी के बारंबार आग्रह के बाद भगवान विष्णु ने इस समस्या का हल निकाला।
इस बीच देवताओं के द्वारा भगवान विष्णु को यह सूचना मिली कि संख्यायन नामक राक्षस ने वेदों की चोरी कर ली है। इसके बाद विष्णु भगवान ने युद्ध करके उस क्रूर राक्षस को पराजय किया और वेदों को सुरक्षित वापस लाए। इस युद्ध के बाद भगवान विष्णु निद्रासन में चले गए और वे बिना किसी बाधा के चार महीनों तक सोए।
वे आषाढ़ एकादशी को निद्रासन में गए थे, जबिक कार्तिक एकादशी को जागृत हुए, इसलिए कार्तिक एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है और इस दिन को देव उत्थानी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
महोत्सव
देव उत्थानी एकादशी के दिन भक्तजन सुबह जल्दी उठकर पवित्र जल से स्नान करते हैं और तुलसी पौधे का पूर्ण रीति-रिवाज से भगवान विष्णु से विवाह रचाते हैं। इसे तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है।
दशमी तिथि यानी एकादशी तिथि एक दिन पहले प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है और द्वादशी तक इसे व्रत का पालन किया जाता है। फ़िर द्वादशी के दिन पारण मुहूर्त में व्रत को खोला जाता है।
महत्व
ऐसी मान्यता है कि देव उत्थानी एकादशी स्वर्ग लोक प्राप्त करने का मार्ग है। यदि इसे सच्ची श्रद्धा एवं विधि-विधान से मनाया जाता है तो निश्चित रूप से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है और आत्मा विष्णु लोक में जाती है। इसी के कारण देव उत्थानी एकादशी के दिन को आत्मा को मोक्ष देने का वरदान भी प्राप्त है।
देश में यह पर्व विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। चलिए इस पर डालते हैं एक नज़र:
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में देव उत्थानी एकादशी को भगवान विष्णु के पुनर्रजन्म के अवतार भगवान विठोबा के रूप में पूजा जाता है। इस दिन पंढरपुर में भक्तगण पूजा के लिए पाँच दिन पहले से ही एकत्रित होने लगते हैं। भक्तजन इसे सरकारी पूजा के नाम से भी जानते हैं।
राजस्थान
राजस्थान में भी इस त्यौहार का अपना अलग महत्व है। यहाँ श्रद्धालु इस पर्व को पुश्कर में होने वाले पुश्कर मेला के रूप में मनाते हैं। यह पर्व यहाँ एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। पुश्कर मेला भगवान विष्णु की आराधना में आयोजित किया जाता है और यह एशिया का सबसे बड़ा ऊँटों का पर्व है। कहते हैं कि इस दिन पुश्कर झील में स्नान करने से श्रद्धालुओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुजरात
गुजरात में ऐसी मान्यता है कि देव उत्थानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु गिरनर के पहाड़ों में वास करते हैं, इसलिए यहाँ श्रद्धालु विष्णु जी के सम्मान में दो दिन पहाड़ों की लंबी परिक्रमा करते हैं। हर साल यहाँ इस दिन क़रीब अस्सी हज़ार श्रद्धालु विष्णु भगवान की आराधना के लिए आते हैं।
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