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Monday 31 May 2021

कृष्णदास ने भिखारी को काम दे दिया

जय श्री राम सखियों और सखाओं। आपके लिए एक संत की कहानी लेकर आयी हु। ध्यान से पढ़िए। 

Image: Drik Panchang 

बहुत साल पहले कोण्डाणुळु नगर में कृष्णदास नामक एक व्यक्ति थे। यह उनके जीवन की घटना है। कृष्णदास नगर केप्रसिद्ध व्यापारी के पुत्र थे परन्तु बालपन से ही उनके मनमे सन्यास की चाह थी। यह बात उनके पिताजी को पता था इसीलिए उन्होंने अपने कई व्यापारिक सस्थानो में से एक दूकान कृष्णदास को संभालने दे दी थी। 

सन्यासी वृत्ति के कारण कृष्णदास दान देने में तो सबसे आगे रहते थे। वह तो कोशिश ही करते रहते थे की किसी तरह पिताजी ने दिया हुआ सब दान कर सन्यास लेने के लिए चला जाउ। 

एक दिन कृष्णदास अपनी दुकान पर एक ग्राहक को कुछ सामान दे रहे थे तभी उन्होंने देखा की उस गली में एक भिखारी आया है। उन्होंने जल्दी जल्दी उस ग्राहक को सामान देकर विदा किया और उस भिखारी के निकट आने की राह देख रहे थे। 

जैसे ही वह भिखारी नजदीक आया कृष्णदास ने उसे पूछा, "हे अतिथि आप शरीर से स्वस्थ है तो भी भीख क्यों मांग रहे हो?"

उस भिखारी ने कहा की उसे कोई काम नहीं देता इसीलिए वह भीख मांग रहा है। 

तभी कृष्णदास के पिताजी भी वहा आगये। कृष्णदास ने उस भिखारी से पूछा, "अगर मै तुम्हें कोई काम दू तो पूरी श्रद्धा से करोगे क्या ?"

भिखारी ने कहा, "यजमान भीख मांगना किसी भी व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता आप अगर मुझे काम देंगे तो मेरे लिए बहुत अच्छा रहेगा इससे मेरे परिवार का भरण पोषण होगा। "

फिर कृष्णदास ने अपने पिताजी से कहा, "पिताजी इस दूकान को संभालने के लिए मैंने आपको योग्य व्यक्ति ढूंढ दिया है। मुझे आशीर्वाद दे और मैं अपनी पूरी जमा पूंजी इस भिखारी को दान देता हु। मैं सन्यास लेने अपने गुरुजी की शरण जाना चाहता हु।"

कृष्णदास के पिताजी कुछ बोल न सके और कृष्णदास ने सारी जमा पूंजी उस भिखारी को दान दे दी और वह चल पड़े। 

उस भिखारी ने कृष्णदास के पिताजी के चरणों में गिरकर धन्यवाद किया और वचन दिया की वह पूरी निष्ठा से उस दुकान को संभालेगा। 

इस तरह सन्यास की दीक्षा लेने के पहले कृष्णदास ने अपने पिताजी और उस भिखारी की समस्याओं का समाधान किया और वे संत बन गए। 

कहानी यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और एकबार अपने अपने सद्गुरु का जयकारा कमेंट कर दीजिये। 



Motivational quotes by Swami Vivekananda

 

·      Be obedient and eternally faithful to the cause of truth, humanity, and your country, and you will move the world.

·      Be not afraid of anything. You will do marvellous work. The moment you fear, you are nobody. It is the fear that it is great cause of misery in the world. It is fear that is the cause of all our woes and it is fearlessness that it brings the heaven even in a moment.

·      The more opposition there is, the better. Does a river acquire velocity unless there is resistance? A newer and better thing is, the more opposition it will meet with at the outset. It is the opposition which foretells success.

·      What we want is muscles of iron and nerves of steel. We have wept long enough. No more weeping, but stand on your feet and be men. It is a man making religion that we want. It is man making theories that we want. It is man making education that we want.

·      The remedy for weakness is not brooding over it, but thinking of strength. Teach men of the strength that is already within them.

·      All love is expansion, all selfishness is contraction. Love is only life law. He who loves lives, he who is selfish is dying.



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Sunday 30 May 2021

'What are Lunar Rover and Lyra?' - Random facts part 4

Hello friends in this article you are going to read about Lunar Rover and Lyra.

Lunar Rover - Lunar Rover is also known as moon buggy. It designed to travel on the Moon surface. So far only three countries are only rovers on the Moon- USSR (Union of Soviet Socialist Republics), USA (United States of America) and China. 

Lunokhod was the first vehicle landed on Moon by country USSR. So USSR is the first nation to make a lunar rover which reached moon's surface.

India also sent a Lunar Rover which was made in India only, but the Chandrayaan-2 crashed on the lunar(moon) surface. 

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Lyra - A small constellation which was first recorded by the 2nd century astronomer Ptomely. Its principal Star, Vega is one of the brightest star in the sky. Lyra also includes the star Kelper- 62 a 5 planet system discovered in April 2013. 

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Thanks for reading share this article for more such informative articles.

   


















Friday 28 May 2021

मेरी बेटी का घर

जय श्री राम सखियों  और सखाओ। आज  आपके लिए स्त्रीधन का महत्त्व बताने वाली एक कहानी लेकर आयी हु। स्त्री  के अधिकार का धन जो उसे उसके परिजन देते है उसे स्त्रीधन कहते है। और यह कई सदियों की भारत की परम्परा रही है बस बिच के कुछ १०००-१२०० साल भारत में स्त्री को अतीव पीड़ाये भोगनी पड़ी है। इसीलिए आज भी हिन्दू लॉ में स्त्रीधन का महत्व बताया गया है।  


Image: GharExpert


सारिका बहुत प्रसन्न थी आज। आखिरकार बीस सालों की कड़ी मेहनत के बाद जमा रकम से घर खरीदने का उसका सपना पूरा होने जा रहा था। वो बेचैनी से अपने पति अनंत के आने का इंतज़ार कर रही थी। अनंत के आने पर सारिका ने उसे ये खुशखबरी दी और साथ चलकर घर देखने के लिए कहा।
अनंत ने कहा- एक और घर की क्या जरूरत हैये घर तो है ही।
सारिका ने कहा- जरूरत है अनंतहमारी बेटी के लिए।
तुम्हें क्या लगता है मैं अपनी बेटी की शादी किसी सड़क छाप से करूँगा जो उसे अलग से घर की जरूरत पड़ेगी- अनंत ने कहा।
सारिका बोली- नहीं अनंत। मैं बस ये चाहती हूँ कि इस दुनिया में एक जगह ऐसी हो जिस पर सिर्फ मेरी बेटी का हक हो। जहां से उसे कोई भी किसी भी वजह से निकाल ना सके।
अनंत ने हैरान होते हुए कहा- क्या मतलब?
सारिका बीते दिनों को याद करते हुए बोली- याद है एक बार किसी बात पर झगड़ा होने पर तुमने मुझसे कहा था- निकल जाओ मेरे घर से।
रोते हुए जब मैं मायके पहुँची तो माँ-पापाभैया-भाभी ने साफ शब्दों में कह दिया- अब तुम्हारे पति का घर ही तुम्हारा घर है। यहां तुम बस मेहमान हो।
तुम थोड़ी ही देर में मुझे मनाने आ गए थेलेकिन उसी वक्त मैंने तय कर लिया था कि मैं अपनी बेटी को इन शब्दों का सामना करने नहीं दूँगी। उसके पास मायके और ससुराल के अलावा उसका एक घर भी होगा।
अनंत सारिका की बातें सुनकर खुद पर लज्जित हो रहा था।
उसने कहा- लेकिन अगर भविष्य में हमारे बेटे ने विरोध कियाजायदाद के लिए अपनी बहन को परेशान किया तो?
सारिका ने कहा- मैंने सब पता कर लिया है। चूँकि ये घर पैतृक नहीं है तो मैं इसे किसी को भी दे सकती हूँ। लेकिन फिर भी मैं एनओसी पर हमारे बेटे के दस्तखत करवा के ही अपनी बेटी को ये घर दूँगीताकि भविष्य में उसे किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े।
बेटे के लिए तो तुम्हारा ये घर है ही। मुझे यकीन है इसके बाद उसे कोई आपत्ति नहीं होगी।
सारिका की सारी बातें सुनकर अनंत ने कहा- कितना सोचती हो तुम। मैं इतना सोचूँ तो पागल ही हो जाऊँ।
सारिका ने हँसते हुए कहा- सोचना पड़ता हैक्योंकि तुम्हारे पास घर है, हम औरतों की तरह मायका और ससुराल नहीं।
अनंत ने सारिका का हाथ थामते हुए कहा- मेरी गलती के लिए मुझे क्षमा कर दो सारिका। आओ चलो हम अपनी बेटी के लिए उसका घर पसंद करने चलें।
नए घर में कदम रखते हुए सारिका की आँखों में संतुष्टि के भाव थे और अनंत की आँखों में अपनी पत्नी के लिए गर्व झलक रहा था।


हो सकता है की ये कहानी आपने कही और भी पढ़ी हो। बेटिया अपने ससुराल विवाह के पश्चात चली जाती है। सही मायने में वही उनका अधिकार का घर होता है जो समाज मान्य है। परन्तु कई ऐसे लोग रहते है जो इस बात को समय रहते नहीं समझते है की जो बहु उनके घर आयी है वह उनके घर  अपना सबकुछ छोड़ कर आयी है। और समाज के नियम के अनुसार अब उस महिला का ससुराल ही उसका घर है। वह अपने कोमल हाथो से ससुराल के घर को संभालने आयी है। जो लोग इस बात को नहीं समझते वे अनंत की तरह अपनी पत्नी या बहु को तकलीफ देते है। और जो दहेज़ के लालची है वे तो समाज में रहने के लायक ही नहीं है। 
अगर आपको मेरी बात सही लगी हो तो इस कहानी को  शेयर करिये। धन्यवाद !


Thursday 27 May 2021

अजनबी क्यों हो जाते हैं ?

जय श्री राम सखियों और सखाओ। आज फिरसे एक दिल को छू लेने वाली कहानी लायी हु, पूरी जरूर पढ़ना। 

Image: Pinterest 

कडापा नगर में एक बच्चा जिसका नाम विजय था अपनी माँ और बहन के साथ रहा करता था। वो बहुत गरीब था। हर रोज मंदिर जाता और भगवान से कुछ देर बाते करता। 

एक दिन विजय रोज की तरह मंदिर गया और हमेशा की तरह भगवान से बाते करने लगा। बात करते करते रोने लगा। उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे। मंदिर में आये बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था। पर कोई सामने आकर बात नहीं करता था। 

पर उस दिन एक अजनबी ने उसके साथ बात की, "क्या मांगा भगवान से?"

विजय ने कहा, "मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्गमेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्रमेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे। "

अजनबी ने फिर पूछा तुम स्कूल जाते हो?” 

विजय ने जवाब दिया, हां जाता हूं।"

अजनबी ने पूछा, किस क्लास में पढ़ते हो ?” 

विजय ने कहा, "नहीं अंकल पढ़ने नहीं जातामां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ । बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैंहमारा यही काम धंधा है ।"

तुम्हारा कोई रिश्तेदार” न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा ।

विजय सुबकते हुए बोला, "पता नहींमाँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता। माँ झूठ नहीं बोलती। पर अंकलमुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है। जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है। जब कहता हूँ माँ तुम भी खाओतो कहती है मैने खा लिया थाउस समय लगता है झूठ बोलती है।"

अजनबी ने आगे पूछा, "बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?"

विजय चिल्लाया, "बिल्कुलु नहीं!"

अजनबी ने सवाल किया, "क्यों बेटा आप क्यों नहीं पढ़ना चाहते हो ?"

विजय रोने लगा  बोला, "पढ़ाई करने वालेगरीबों से नफरत करते हैं अंकल। हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा बस पास से गुजर जाते हैं। मैं हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँकभी किसी ने नहीं पूछा। यहाँ सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे, मगर हमें कोई नहीं जानता ।

विजय जोर-जोर से रोने लगा अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?”

यह सवाल का जवाब उस अजनबी के पास तो नहीं था। अगर आपके पास होगा तो कमेंट जरूर करिये। 

आपके इर्दगिर्द न जाने ऐसे कितने ही विजय होंगे जो अपने हालात से लड़ रहे होंगे आप ऐसे लोगो की यथा संभव मदत करिये। कहानी को यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। 



चमत्कार

जय श्री राम सखियों और सखाओ। आपके लिए ह्रदय को पिघलाने वाला प्रसंग लेकर आयी हु। कृपया पूरा पढ़ना और चिंतन जरूर करना। 

Image : Patrika 

गुंटूर शहर में मांडवी नामकी एक छोटी लड़की रहा करती थी अपने परिवार के साथ - जिसमे माता पिता और एक बड़ा भाई था। बड़े भाई का नाम पिनाकी था। 

एक दिन मांडवी ने गुल्लक तोड़ दिया और सब सिक्के निकाले और उनको बटोर कर जेब में रख लिया| सारे रुपये लेकर वो घर से पास की केमिस्ट की दुकान पर गयी और दुकानदार से बात करने के लिए आवाज लगा रही थी। पर वो बहोत छोटी थी तो उसे कोई देख नहीं पा रहा था। दुकानदार अपने दोस्त विरुपाक्ष से बात करने में व्यस्त था। विरुपाक्ष विदेश से आया हुआ था। 

कई बार आवाज लगाने के बावजूद भी कुछ नहीं हुआ तो मांडवी ने जेब से एक सिक्का निकाला और उसे काउंटर पर फेका। सिक्के की आवाज से दुकानदार का ध्यान उसकी और गया और फिर उसने पूछा, "बेटा आपको क्या चाहिए ?"

फिर मांडवी ने जेब से सब सिक्के निकाल कर अपनी छोटी सी हथेली पर रखे और बोली “अंकल मुझे चमत्कार चाहिए!

दुकानदार समझ नहीं पाया उसने फिर से पूछावो फिर से बोली मुझे चमत्कार चाहिए.

दुकानदार हैरान होकर बोला – “बेटा यहाँ चमत्कार नहीं मिलता!

वो फिर बोली अगर दवाई मिलती है तो चमत्कार भी आपके यहाँ ही मिलेगा|”

दुकानदार बोला – “बेटा आप से यह किसने कहा?”

फिर मांडवी ने विस्तार से कहना शुरू किया, "मेरा नाम मांडवी है। मेरे भैया है पिनाकी उनको ट्यूमर हो गया है। उनके इलाज में बहोत पैसे लग रहे है समय पर उनका ऑपरेशन होना जरुरी है तभी वो बच सकते है। पर जो खर्च ऑपरेशन का डॉक्टर बता रहे है उतने पैसे नहीं है मेरे पापा के पास इसीलिए वो मम्मी को बता रहे थे की कोई चमत्कार ही उसे बचा सकता है। मै उसी चमत्कार को खरीदना चाहती हु जो मेरे भी पिनाकी को बचा ले।"

उसकी ये सारी बाते विरुपाक्ष भी बड़े ध्यान से सुन रहा था। फिर विरुपाक्ष ने मांडवी से पूछा, "बेटा बताओ कितने रुपये है तुम्हारे पास ?"

मांडवी ने अपनी मुट्टी से सब रुपये उसके हाथो में रख दिए। वो कुछ ५३ रूपए थे। विरुपाक्ष ने सारे रुपये अपने पास रख लिए और कहा, "मांडवी बेटे आपने चमत्कार खरीद लिया है चलो अब मुझे तुम्हारे भाई पिनाकी के पास ले चलो। "

मांडवी विरुपाक्ष को अपने घर ले गयी और अपने मम्मी पापा को बताया, "ये अंकल चमत्कार से पिनाकी भैया को ठीक करेंगे।"

फिर विरुपाक्ष ने बताया की वो एक न्यूरो सर्जन है और विदेश में काम करता है। अभी भारत छुट्टिया मनाने आया है। उसने पिनाकी की मेडिकल फाइल देखी और उसके ट्यूमर का ऑपरेशन करने के हिसाब से बाकि डॉक्टर्स से बात कर के ऑपरेशन का दिन तय कर दिया। 

निहित दिन ऑपरेशन हुआ जो विरुपाक्ष ने केवल ५३ रुपये में किया। और पिनाकी की जान बच गयी। 

मांडवी सरल भाव से चमत्कार ढूंढने निकली थी जो उसे विरुपाक्ष के रूप में मिला। सरल  भावना आपको किसी न किसी रूप में ईश्वर का साक्षात्कार जरूर कराती है। जैसे विरुपाक्ष ने मांडवी की सहायता की वैसे ही आप भी किसी की न किसी की सहायता हमेशा करे। आपके अनुभव जरूर कमेंट करे। यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। 


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जुर्माना और सज़ा

जय श्री राम सखियों और सखाओ। आज इंडोनेशिया की एक कहानी आपके लिए लेकर आयी हु। पूरी कहानी जरूर पढ़ना। 

 

Image: Fix the Court



इंडोनेशिया के जज मरज़ुकी, एक बूढ़ी महिला के चोरी के मामले की सुनवाई कर रहे थे। 
बूढी महिला से पूछा गया की उसने चोरी क्यों की ?
बूढ़ी महिला ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था कि उसने एक बाग़ से कुछ मांड चुराई थी। फिर उसने गिडगडाते हुए जज से प्रार्थना की, "जज साहब, मैं बहुत गरीब हूँ, मेरा बेटा बीमार है, मेरा पोता बहुत भूखा था, इसलिए मज़बूरन चोरी कर बैठी। " 
बाग़ का मालिक बोला, "जज साहब, इसे कड़ी सज़ा दो ताकि दूसरों को नसीहत मिले।" 
जज ने सारे पेपर जांच करने के बाद, नज़र ऊपर उठाई और बूढ़ी महिला से कहा, "मुझे बहुत दुःख है, परन्तु मैं कानून से नहीं हट सकता। इसलिए, तुम्हे क़ानून के तहद सज़ा ज़रूर मिलेगी। क़ानून में तुम्हारे इस अपराध की सज़ा है एक सौ रुपये जुर्माना और ये जुर्माना ना देने पर ढाई साल की जेल।" 
बूढ़ी महिला रोने लगी क्योंकि वो जुर्माना नहीं भर सकती थी। और वह जेल भी नहीं जा सकती थी क्यों की घरमे उसके बीमार बेटे की सेवा के लिए कोई नहीं था और छोटे पोते का खयाल उसे और दुखी कर रहा था। 
तब जज साहब ने अपने सर से अपनी टोपी उतरी और उसमें 11 रूपये डाल कर बोले, " सच्चे न्याय के लिए, जो लोग इस अदालत में हाज़िर हैं वो हर एक साढ़े पांच रुपये जुर्माने के तौर पर दें। शहर के नागरिक के रूप में सबका जुर्म है कि क्यों एक मासूम बच्चा भूखा रहा और इस बूढ़ी गरीब महिला को चोरी तक करने पर मज़बूर होना पड़ा।" कोर्ट के रजिस्ट्रार को हिदायत है कि वो सब उपस्थित लोगों से ये जुर्माना ले लें। 
सबके दिए गए रुपये मिला कर 350 रुपये की रकम इकठ्ठी हुई जिससे जुर्माने की रकम काटने के बाद, शेष बचे 250 रुपये उस बूढ़ी महिला को दे दिए गए ताकि वो अपने बीमार बेटे का इलाज करा सके और अपने पोते का खयाल रख सके। 
वैसे इस कहानी में जो सार छुपा है उसे अगर हर देश की सरकार ध्यान में रखे तो कोई भी बच्चा भूखा नहीं रहेगा और कोई चोरी नहीं करेगा। उस हिसाब से कानून बनाना हर सरकार का दायित्व है। 
खैर सरकार अपना काम करे या न करे उन जज साहब ने कोर्ट में मौजूद सबसे जुर्माना लिया इसका तात्पर्य यह है की हम जिस समाज में रहते है उस समाज को अच्छा बनाये रखना ये सबकी जिम्मेदारी है और समाज में रहने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे इसके लिए हमने हमारे आसपास के गरीब भूखे लोगो को जरुरत की चीजे और खाना देते रहना चाहिए। 
भलाई करने के लिए सरकार कौनसी है ये थोड़ी न देखा जाता है बस भलाई करते वक्त ये  ध्यान में रखना है की सब तरफ सांवरिया सरकार का राज है। 
अगर आपको भी यही लगता है की हमने एक दूसरे की सहायता करते रहना चाहिए तो फिर एक बार कमेंट में  किसीकी भी सहायता की हो तो जरुर अपना अनुभव लिखिए ताकि पढ़ने वाले सभी सहायता करने के लिए प्रेरित हो और इसी ब्लॉग में आपकी भी कहानी आपको फीचर करते हुए लिखूंगी। पढ़ने के लिए धन्यवाद। 


ठाकुरजी के नखरे

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ। आज भक्तिरस से भरी एक घटना आपको बता रही हु। कृपया अंततक पढ़े और भक्तिरस का अनुभव ले। 

संत गोपालाचार्य चंचल शिखामणि कृष्ण को बाल-भाव से भजते थे। जब बाबा पाठ करते तो ये महाशय हारमोनियम उठाकर उसमे सा रे गा मा...... का राग छेड़ देते। जब भोग लगाते तो ये रसोई घर में जाकर खूब खटर पटर करते।  जब जब बाबा कोई भी काम करे ये पहले ही शुरू हो जाते। और बाबा को कहना पडता थोडा हल्ला कम करो 

जैसे कोई छोटा बच्चा होता है, पहले जब वह बोलना सिखता है तो हम उसे सीखते है लल्ला मईया बोल , बाबा बोल, और एक दिन जब वह बोलने लगता है तो हम कितना खुश होते है। और फिर इतना बोलता है कि उसी मईया को लाठी लेकर कहना पडता है घर में मेहमान है थोडी देर चुप रह। हम बच्चे से पूंछते है क्या खाओगे ? फिर हम कितने प्यार से एक एक कौर उसे खिलाते है। बस इसी तरह ठाकुरजी भी है, हम सामने रख तो देते है पर बच्चे की भांति नहीं खिलाते, वरना तो खाने में भी बड़े नखरे है इनके। 

सबका मतलब यह की गोपालाचार्य कृष्ण को अपने घर के बालक की तरह बतियाते थे, उन्हें भोजन करते थे और जो भी कार्य करते तब कृष्णजी को अपने साथ लेकर काम करते थे। और इसीलिए भगवान भी उनके साथ भगवान की तरह न रहते हुए उनके घर के बालक की तरह ही रहते थे - बाबा जो भी करे वे हर काम में हाथ बटाते थे। 

एक दिन गोपालाचार्य ने ठाकुरजी के लिए खीर बनायीं और प्रेम से उनको भोग लगाने लगे, अब ठाकुर जी ठहरे चंचल शिरोमणि, खाते ही बोल पड़े, "बाबा!  इस खीर में शक्कर कम है।" बाबा ने झट थोड़ी सी शक्कर डाल दी।  फिर ठाकुर जी ने खायी अब बोले, "बाबा! बहुत मीठी है।" बाबा ने फिर थोडा सा दूध डाल दिया। 

फिर ठाकुरजी ने खायी फिर बोले, "बाबा! अब फिर शक्कर कम है। " इस तरह जब दो तीन बार किया तो बाबा समझ गए, खीर तो ठीक बनी है ये ही नखरे दिखा रहे है, तुरंत शक्कर और दूध का डिब्बा उठाया, और ठाकुरजी के सामने रखकर बोले, "लाला! लेलो अब अगर मीठी लगे, तो स्वयं दूध डाल लेना और फीकी लगे तो शक्कर डाल लेना। "

कहने का अभिप्राय, हम उनसे बोलते नहीं इसलिए वे हमसे बोलते नहीं, यदि उनसे बात करना शुरू करेंगे तो आप स्वयं देखिये वे बोलने लग जायेगे। और एक दिन ऐसा आएगा कि संत की तरह हमें भी कहना पड़ेगा थोडा हल्ला कम करो। 

भक्ति तो समर्पण की पराकाष्टा है। और सेवा भक्ति का अन्य रूप है। पुरे समर्पित भाव से ठाकुरजी की सेवा आपको निश्चित ही आनंद देगी। 

अगर आपने भी कभी चितचोर ठाकुरजी के संग बाते की हो और आपको उनके होने का एहसास हुआ हो तो एक बार कमेंट में जयकारा लगा दीजिये और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करिये। 


गुरु महिमा

जय श्री राम सखियों और सखाओ। आज आपके लिए गुरु की महिमा का बखान करते कुछ वाक्य ऐसे ही ले आयी हु। अंततक जरूर पढ़ना। 

Image : piousmantra 

 

🔹गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो  जाते हे।

🔹गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हे। 

🔹गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे।

🔹गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हे।

🔹गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे।

🔹गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे।

🔹गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे।

🔹गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई कभी प्यासा नही।

🔹गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती हे।

🔹गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेष रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समझ नही पाते।

🔹गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।

🔹गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे।

🔹गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही।

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गुरु महिमा को यहां तक पढ़ने के लिए धन्यवाद अगर आपको भी गुरु कृपा मिली हो तो कृपया एक बार कमेंट में गुरु के नाम का जयकारा अवश्य करें। आपका जयकारा मुझे प्रेरणा देगा और ऐसे ही सुविचार आपके लिए लाने का। 


Monday 24 May 2021

Good thoughts collection

Jay Shree Ram friends! How are you?

Here are collection of some good thoughts. Please read each line happily. Share this blog with others and follow it to read more interesting stuff daily.

Thank you for vising!


1.

The only thing you ever have any control of is your current thinking. - Buddha

2.

Your current thought, the one you are thinking now, is totally under you control.

3.

We have to rework the equation of life if we are not careful about what our thoughts turned into words and subsequently actions may do -  make or break our individuality.

4.

The term 'life' is so whole and bountiful that it cannot be woven into words.

5.

There are more things, likely to frighten us than there are to crush us; we suffer more often  in imagination than reality.

6.

Happiness and suffering are state of mind, and so their main cause can not be found outside the mind.

7.

Success is very precious and prestigious to achieve.

8.

Failure actually takes one closure towards success.

9.

Failure teaches a lot many things.

10.

Every failure give one more chance to prove the capability of winning.

11.

Failure and success are interlinked.

12.

Success can not be achieved without crossing the step of failure.

13.

Failure is not referred to as an agony, it always investigates ways which may turn wrong.

14.

Accomplishment regarding any aims is the sweetest when it undergoes a lot many failure paths.

15.

Success when achieved at one go lacks the potential of giving birth to contentment.

16.

Success always produces many ways that can take one to diverse ways.

17.

Whenever you opt for any race or competition, you try to give your 100% to conquer but as getting ready or preparations are important, it is also important to get ready for a failure, otherwise those people who fail are mostly not at all ready for failure and have to go through a lot of consequences such as depression. - Santwani.

18.

Failure is not the opposite of success but it's a part of success.


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Myself Rohini and I am an engineer and pursuing my Law degree. Reading, Blogging, Drawing and crafting are my hobbies. In my channel I am sharing videos about drawing, crafting, art and law as I am studying. Please subscribe to my channel and share this video. Also on my blogs I am sharing general knowledge, law notes, study material, vocabulary, bhajans, lokgits, moral stories, shayary, poems, stories, and much more which everyone should check.

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Thursday 20 May 2021

लड्डूगोपाल की लीला

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ। एक भक्तिरस भरी कहानी आपके लिए फिरसे लेकर उपस्थित हु। कृपया मन में लड्डूगोपालजी का ध्यान करते हुए इसे पढ़िए। 

Image: Bhagavatam-katha


चित्तूर नामक नगर में राजीवलोचन नामका एक स्वर्णकार था। वह लड्डूगोपाल का भक्त था और उनकी कृपा से उसका व्यापार बहोत तरक्की कर गया था। सोने के किसी भी तरह के गहने हो उसकी दुकान पर बनकर मिल जाते थे। कई अन्य स्वर्ण कारीगरों को भी उसने रोजगार दे रखा था। दूर दूर से लोग उस चित्तूर नगर में केवल राजीवलोचन की दुकान से गहने लेने और बनवाने आते थे। इतना बड़ा कारोबार होने के बाद भी राजीवलोचन लड्डूगोपाल  की भक्ति और पूजा अर्चना से कभी चूका नहीं। 

राजीवलोचन एक रामभद्र नामक मित्र था जो एक दिन उसे मिलने उसकी दुकान पर आया था। रामभद्र सपरिवार  तीर्थयात्रा कर लौटा था। वह अपने साथ प्रसाद और लड्डूगोपाल की एक बड़ी मनमोहक मूर्ति लेकर आया था।  उस समय राजीवलोचन एक हिरे जड़ित सोने का हार अच्छेसे देख रहा था। रामभद्र के आते ही राजीवलोचन ने उसकी आओभगत की और उसका ध्यान रामभद्र के साथ आये लड्डूगोपाल पर गया। 

राजीवलोचन ने तुरंत अपने हाथ का हिरेजड़ा हार उन लड्डूगोपाल को पहना दिया और कहा, "देखो तो सही इस हार की शोभा लड्डू गोपाल के गले में पढ़ने से कितनी बढ़ गई है।" राजीवलोचन और रामभद्र बाते करने लगे और बातों बातों में हार समेत रामभद्र उन लड्डूगोपाल को लेकर चल दिया। वह टैक्सी करके अपने घर के लिए निकल गया था। और इधर राजीवलोचन अपने अन्य ग्राहकों को देखने में व्यस्त हो गया था। 

रामभद्र जिस टैक्सी से घर के लिए निकला था उसी टैक्सी में वह उन लड्डूगोपाल को भूल गया। वह टैक्सी ड्राइवर जिसका नाम जनार्दन था वह कोकानड़ा नगर में अपनी पत्नी वैदेही के साथ रहता था। रामभद्र को उसके घर छोड़ वह कोकानड़ा स्थित अपने घर की तरफ निकल पड़ा। 

जनार्दन जब अपने घर पोहोचा तब उसने देखा की टैक्सी की पिछली सीट पर लड्डूगोपालजी विराजमान है। वह थोड़ा हक्का बक्का रह गया और सोचने लगा की ये लड्डूगोपाल किसके है? उसने सारा सामान उतारकर घरमे रखा और पत्नी वैदेही को लड्डूगोपाल को लाने के लिए कहा। 

वैदेही घर के बाहर आयी और उसने टैक्सी खोलकर जब देखा तो निःसंतान वैदेही के मन से ममता का झरना फुट पड़ा और उसने उन लड्डूगोपाल को अपने ह्रदय से लगा लिया मानो वो उसका छोटा सा शिशु हो। और गोद में उठाकर वह अपने घर के अंदर ले गई। और जनार्दन से कहा, "आप नहीं जानते कि आज आपने मेरे लिए कितना अमूल्य रत्न लाया है।" और वह झठ से अंदर गयी और उन लड्डूगोपालजी संग बाते करने लगी। 

बाते करते करते वैदेही ने अपने छोटेसे  घर में लड्डूगोपालजी के लिए अच्छी जगह बनाकर उन्हें विराजमान कर दिया। और फिर उनसे कहा, "लाला मेरे घर इतनी दूर से आये हो तनिक विश्राम करो मैं आपके लिए घी का दूध ले आती हु। पीकर सो जाना। "

इधर चित्तूर नगर में हार और लड्डूगोपालजी गायब हो जाने से राजीवलोचन और रामभद्र दोनों परेशान हो गए थे। आखिर में राजीवलोचन ने मन ही मन कहा, "कोई बात नहीं। यह मेरी भक्ति की परीक्षा है। अगर मेरी श्रद्धा सच्ची है तो लड्डूगोपालजी के अंग लगा वह हार वे हमेशा पहने रखेंगे।"

उधर कोकानड़ा नगर में जनार्दन और वैदेही दिन-रात लड्डूगोपालजी की सेवा करने लगे जैसे मनो वो उनके ही पुत्र हो। लड्डूगोपालजी की कृपा हुई और उनके घर एक बहुत ही सुंदर बेटी ने जन्म लिया जिसका नाम उन्होंने ललिता रखा। ललिता के जन्म का सारा श्रेय वे लड्डूगोपालजी को ही देते रहे। 

एक दिन राजीवलोचन अपने व्यापार के सिलसिले में कोकानड़ा नगर आया। पर मौसम ख़राब होने की वजह से वह एक जगह रुक गया। काफी देर बाद जब थोड़ा मौसम ठीक हुआ तो उसने टैक्सी लेने की सोची। तभी जनार्दन उसके पास अपनी टैक्सी लेकर पहुचा। जैसे ही राजीवलोचन जनार्दन की टैक्सी में बैठा और दोनों कुछ दूर आगे गए फिरसे मौसम ख़राब हुआ और धुआँधार बारिश हो गयी। जनार्दन ने राजीवलोचन से पूछा, "साहब आगे सारे रास्ते बंद है। यहाँ से नजदीक मेरा घर है। आप चाहो तो कुछ देर मेरे घर रुक जाइये फिर मौसम साफ होने के बाद मै आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा दूंगा।"

राजीवलोचन ने हां कहा और दोनों जनार्दन के घर गए क्यों की उसके पास कोई और चारा नहीं था। 

घर पर जनार्दन ने वैदेही को राजीवलोचन के लिए खाना बनाने के लिए कहा। जनार्दन के छोटे से घर में मन को प्रसन्न करने वाली इत्र की खुशबु आ रही थी। और वैदेही के हाथ का भोजन मानो अमृत से भरा हो। राजीवलोचन का ध्यान बार-बार उस दिशा की तरफ जा रहा था, जहां पर लड्डूगोपालजी विराजमान थे। वहां से उसको एक अजीब तरह का प्रकाश नजर आ रहा था। आखिर में जिज्ञासावश राजीवलोचन ने कहा, "जनार्दन तुम्हे ऐतराज न हो तो क्या मैं जान सकता हु उस दिशा में क्या है? मेरा ध्यान बार बार उधर जा रहा है। "

जनार्दन ने कहा, "अरे क्यों नहीं साहब। वह तो हमारे परिवार के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य की जगह है। आइये मैं आपको उनसे मिलवाता हु। "

जनार्दन राजीवलोचन को लड्डूगोपालजी के पास ले गया। उनको देख राजीवलोचन की आखे खुली की खुली रह गयी। क्यों की अभीभी उनके गले में वो हार जैसा की वैसा था जो राजीवलोचन ने पहनाया था। जनार्दन और वैदेही ने सारी बात राजीवलोचन को बताई। 

राजीवलोचन ने पूछा, "क्या तुम जानते हो कि जो हार लड्डूगोपाल जी के गले में पड़ा है उसकी कीमत क्या है?"

वैदेही ने जवाब दिया, "जो चीज हमारे लड्डू गोपाल जी के अंग लग गई हम उसका मूल्य नहीं जानना चाहते और हमारे लाला के सामने किसी चीज किसी हार का कोई मोल नहीं है। "

यह सुन राजीवलोचन के मन में समाधान की भावना जाग उठी और उसने मन ही मन कहा, "अच्छा है मेरा हार लड्डूगोपाल जी ने अपने अंग लगाया हुआ है।"

मौसम काफी ख़राब होने की वजह से राजीवलोचन को पूरी रात जनार्दन के घर रुकना पड़ा। अगले दिन जनार्दन ने उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा दिया। वह गाड़ी से उतारकर किराया देकर जा रहा था तभी जनार्दन ने आवाज लगाई, "साहब आपका सामान मेरी गाड़ी में रह गया है, तनिक रुकिए मैं ला देता हु। "

राजीवलोचन परेशान हो गया क्यों की उसने उसका बैग जिसमे उसके व्यापार से जुड़े कागजात थे  वह तो ले लिया था। फिर क्या रह गया था ? जनार्दन ने एक बैग लाकर दिया और कहा, "साहब ये बैग आपका ही है।"

राजीवलोचन ने बैग खोल कर देखा तो उसमे बहोत सरे पैसे थे। उसने गिने तो वह हक्का बक्का रह गया क्युकी वे उतने ही थे जितने उस हार की कीमत। वह रोने लगा तो जनार्दन ने पूछा, "साहब क्या हुआ?"

राजीवलोचन ने बताया कैसे वो हार लड्डुगोपलाजी के गले में आया और आखिर में कहा, "जब तक मैंने निश्छल भाव से ठाकुर जी को वह हार धारण करवाया हुआ था तब तक उन्होंने पहने रखा। मैंने उनको पैसों का सुनाया तो उन्होंने मेरा अभिमान तोड़ने के लिए पैसे मुझे दे दिए हैं।"

यह सुन जनार्दन भी आश्चर्यचकित हो गया। 

लड्डूगोपाल की लीला वो ही जाने, तीर्थयात्रा से किसके साथ आये, किसके हाथो सजे और किसके यहाँ विराजमान हुए ये सब उनकी लीला है। बस जबतक आपके भाव शुद्ध तबतक आपसे सेवा करवाते रहेंगे। अगर आपके मन में जरा भी भक्ति भाव जगा हो तो कृपया एकबार लड्डूगोपालजी का जयकारा कमेंट कर दीजिये और इस ब्लॉग को शेयर करिये। धन्यवाद। 

मूर्तिपूजा से जुडी भावना

जय श्री कृष्ण सखियों और सखाओ। आज मूर्तिपूजा से जुडी एक कहानी आपके लिए लायी हु। इसे अंततक पढ़ना जरूर। 

Image: aajtak 

अनंतपुर नामके नगर में एक कमलनाथ नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह व्यापर और सामजिक दोनों ही क्षेत्रों में बड़ा निपुण था पर हमेशा परेशान रहता था। अपने मित्रो से अपनी परेशानी बतलाता था पर उसके परेशानी की वजह कुछ खास नहीं रहती थी। 

एक दिन ऐसे ही वह अपने मित्र के साथ परेशानी क्यों है इसकी चर्चा कर रहा था तो उसके मित्र ने उसे सलाह दी कि कृष्ण भगवान की पूजा शुरू कर दो। बस फिर क्या था वह अपने घर एक सुन्दर सी कृष्ण की मूर्ति ले आया। और नियम से हर रोज पूजा करने लगा। 

जैसे उसके परेशानी का कोई कारण नहीं था वैसे ही उसकी पूजा में भी कोई रस नहीं था। इस वजह से वह कभी अपनी अकारण परेशानी से मुक्त न हो पाया। 

फिर ऐसे ही किसी और दोस्त से चर्चा करता और समाधान ढूंढने की कोशिश करता। किसी ने कहा हनुमानजी की पूजा करो तो वह हनुमानजी की मूर्ति घर ले आया और कृष्ण जी की मूर्ति को थोड़ा बाजु में हटा कर हनुमानजी को रख दिया। ऐसे करते करते उसके पूजाघर में सभी देवी देवता आगये पर मन कि परेशानी उसकी जरा दूर नहीं हुई। आखिर में किसी के कहने पर वह माताजी की मूर्ति लेकर आया और उसे भी वही रख कर रोज पूजा करने लगा।

ऐसे करते करते कई दिन बित गए और एक दिन उसके मनमे ख़याल आया, 'अरे मैंने तो धुप बत्ती माताजी के लिए लगायी है। पूजाघरमे रखे बाकि देवता भी उसे सूंघ रहे होंगे। मैं एक काम करता हु सबके मुँह बांध देता हु ताकि सिर्फ माताजी को धूपबत्ती का सुगंध मिले। '

जैसे ही वह श्रीकृष्णजी का मुँह बाँधने लगा कृष्ण भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो हैरान रह गया और भगवान से पूछा, "इतने वर्षों से पूजा कर रहा था तब नहीं आए? आज कैसे प्रकट हो गए ?" तभी सारे देवी देवता प्रकट हो गए। 

भगवान श्रीकृष्ण ने समझाते हुए कहा, "आज तक तू एक मूर्ति समझकर मेरी पूजा करता था। किन्तु आज तुम्हें एहसास हुआ कि "कृष्ण साँस ले रहा है! तो बस मैं आ गया।" बाकि देवी देवताओ ने भी कृष्ण जी से सहमति जताई। 

तब कमलनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सभी देवी देवताओ से क्षमा मांगी और वचन दिया, "मूर्ति में आप विराजमान है इसी भावना से अब मैं पूजा करुँगा। " 

कमलनाथ की मूर्ति की और देखने कि भावना बदली तो उसकी अकारण परेशानी भी दूर होने लगी और उसे  मन की शांति मिली। इसीतरह जब हम श्रद्धापूर्ण भाव से कोईभी ईश्वर कार्य करते है तो उसके फल बदल जाते है। जो भी कर्म हम जीवन में करते है उनके पीछे का भाव सकरात्मक कर दीजिये और फिर देखिये की आपको कैसे उस कार्य में सफलता प्राप्त होती है। 


यह कहानी आपको पसंद आयी हो तो एक बार आपकी श्रद्धा जिनके भी चरणों में है उनके नाम का जयकारा कमेंट कर दीजिये जिससे मुझे आपके लिए ऐसीही और कहानिया लाने की प्रेरणा मिलती रहे। और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करिये। धन्यवाद। 


जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।

 

हर हर महादेव सखियों और सखाओं।  ये  शिव जी की आरती एक बार पढ़ लीजिये। 

Image: ज़िदगी Zedge 


जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।

ब्रम्हा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगी धारा ॥ हर हर महादेव

 

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

हंसासन गरुड़ासन, वृषवाहन सजे ॥ ॥ हर हर महादेव

 

दो भुज चार चतुर्भुज, देशमुख अति सोहै।

तीनहु रूप निरखता, त्रिभुवन जान मोहे ॥ हर हर महादेव

 

अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी।

चन्दन मृग मद सोहे, भोले शशिधारी ॥ हर हर महादेव

 

श्वेताम्बर पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।

ब्रम्हादिक सनकादिक, भूतादिक संगे ॥ हर हर महादेव

 

कर के मध्य कमण्डल, चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी, दुःखहारी जग पालनकारी ॥ हर हर महादेव

 

ब्रम्हा, विष्णु, सदाशिव, जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये, ये तीनों एका ॥ हर हर महादेव

 

त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवांच्छित फल पावे ॥ हर हर महादेव


जरूर गुनगुनाये होंगे आप इसे पढ़ते वक्त। कमेंट में एक बार हर हर महादेव लिख दीजिये। और इसे शेयर करिये। 

रुणिचा रि याद में

जय बाबेरी सखियों और सखाओं। संकट के इस समय में रुणिचे की बड़ी याद मनमे आ रही है। इसी भावना में मैंने यह भजन गुनगुनाया तो मन को शांति मिली सोचा आपके साथ भी शेयर करू। इस भजन को पूरा पढ़े और गाकर मनको प्रफुलित करे। 

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म्हाने रामदेव बहुत मन में आवे म्हारा साथीडा।
आवे म्हारा साथीडा। म्हाने रुणिचा ले चलो जी
साथीडा म्हाने रुणिचा ले चलो जी ।।टेर।।

उज्जैन भी देख्यो म्हेतो।  नाथद्वारा भी देख्यो।
उदयपुर रो किल्लो देख्यो। एकलिंग जी देख्यो।
म्हारे मेड़तारी गाड़ी मन में। आवे म्हारा साथीडा। आवे म्हारा साथीडा ।।1।।

काकरोली देख्यो म्हे तो। चित्तौड़ भी देख्यो।
खामली रो घाट देख्यो। चारभुजा देख्यो।
म्हारे जोधपुर री गाड़ी मन में आवे म्हारा साथीडा। आवे म्हारा साथीडा ।।2।।

फलोदी भी देख्यो म्हे तो। पोकरण भी देख्यो।
काचर, बोर, मतीरा। सांगरिया भी देख्यो।
म्हारे रामकुंडरी गाड़ी मन में आवे म्हारा साथीडा। आवे म्हारा साथीडा ।।3।।

जोधपुर रो लहंगो। आगरा रो घगरो।
बीकानेररी साड़ी ले लो। बिंदिया जैसलमेर की बिन्दिया।
जयपुर रा आटी दोरा। लादे म्हारा साथीडा। आवे म्हारा साथीडा ।।4।।

अंधळाने अख्या देवे। पांगलिया ने पाँव जी।
निर्धनानियाने धन देवे। रोगीयारो हरे रोग जी।
थारे भक्ता रा दुखड़ा। मिटा दे म्हारा साथीडा। आवे म्हारा साथीडा ।।5।।

यहाँ तक इस ब्लॉग को पढ़ने के लिए धन्यवाद। पूरी दुनिया पर जो संकट की घडी आयी है रामापीर उस संकट को हर लेंगे इसी भावना के साथ आपको निवेदन करती हु की एकबार बाबा का जयकारा कमेंट करिये और इस ब्लॉग को शेयर करिये। जय बाबेरी। 

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