जय श्री राम सखियों और सखाओं। आपके लिए एक संत की कहानी लेकर आयी हु। ध्यान से पढ़िए।
बहुत साल पहले कोण्डाणुळु नगर में कृष्णदास नामक एक व्यक्ति थे। यह उनके जीवन की घटना है। कृष्णदास नगर केप्रसिद्ध व्यापारी के पुत्र थे परन्तु बालपन से ही उनके मनमे सन्यास की चाह थी। यह बात उनके पिताजी को पता था इसीलिए उन्होंने अपने कई व्यापारिक सस्थानो में से एक दूकान कृष्णदास को संभालने दे दी थी।
सन्यासी वृत्ति के कारण कृष्णदास दान देने में तो सबसे आगे रहते थे। वह तो कोशिश ही करते रहते थे की किसी तरह पिताजी ने दिया हुआ सब दान कर सन्यास लेने के लिए चला जाउ।
एक दिन कृष्णदास अपनी दुकान पर एक ग्राहक को कुछ सामान दे रहे थे तभी उन्होंने देखा की उस गली में एक भिखारी आया है। उन्होंने जल्दी जल्दी उस ग्राहक को सामान देकर विदा किया और उस भिखारी के निकट आने की राह देख रहे थे।
जैसे ही वह भिखारी नजदीक आया कृष्णदास ने उसे पूछा, "हे अतिथि आप शरीर से स्वस्थ है तो भी भीख क्यों मांग रहे हो?"
उस भिखारी ने कहा की उसे कोई काम नहीं देता इसीलिए वह भीख मांग रहा है।
तभी कृष्णदास के पिताजी भी वहा आगये। कृष्णदास ने उस भिखारी से पूछा, "अगर मै तुम्हें कोई काम दू तो पूरी श्रद्धा से करोगे क्या ?"
भिखारी ने कहा, "यजमान भीख मांगना किसी भी व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता आप अगर मुझे काम देंगे तो मेरे लिए बहुत अच्छा रहेगा इससे मेरे परिवार का भरण पोषण होगा। "
फिर कृष्णदास ने अपने पिताजी से कहा, "पिताजी इस दूकान को संभालने के लिए मैंने आपको योग्य व्यक्ति ढूंढ दिया है। मुझे आशीर्वाद दे और मैं अपनी पूरी जमा पूंजी इस भिखारी को दान देता हु। मैं सन्यास लेने अपने गुरुजी की शरण जाना चाहता हु।"
कृष्णदास के पिताजी कुछ बोल न सके और कृष्णदास ने सारी जमा पूंजी उस भिखारी को दान दे दी और वह चल पड़े।
उस भिखारी ने कृष्णदास के पिताजी के चरणों में गिरकर धन्यवाद किया और वचन दिया की वह पूरी निष्ठा से उस दुकान को संभालेगा।
इस तरह सन्यास की दीक्षा लेने के पहले कृष्णदास ने अपने पिताजी और उस भिखारी की समस्याओं का समाधान किया और वे संत बन गए।
कहानी यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और एकबार अपने अपने सद्गुरु का जयकारा कमेंट कर दीजिये।
Very beautiful story 👌👌👌👍😊
ReplyDelete