जय श्री राम सखियों और सखाओ। आज आपके लिए स्त्रीधन का महत्त्व बताने वाली एक कहानी लेकर आयी हु। स्त्री के अधिकार का धन जो उसे उसके परिजन देते है उसे स्त्रीधन कहते है। और यह कई सदियों की भारत की परम्परा रही है बस बिच के कुछ १०००-१२०० साल भारत में स्त्री को अतीव पीड़ाये भोगनी पड़ी है। इसीलिए आज भी हिन्दू लॉ में स्त्रीधन का महत्व बताया गया है।
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सारिका बहुत प्रसन्न थी आज। आखिरकार बीस सालों की कड़ी मेहनत के बाद जमा रकम से घर खरीदने का उसका सपना पूरा होने जा रहा था। वो बेचैनी से अपने पति अनंत के आने का इंतज़ार कर रही थी। अनंत के आने पर सारिका ने उसे ये खुशखबरी दी और साथ चलकर घर देखने के लिए कहा।
अनंत ने कहा- एक और घर की क्या जरूरत है? ये घर तो है ही।
सारिका ने कहा- जरूरत है अनंत, हमारी बेटी के लिए।
तुम्हें क्या लगता है मैं अपनी बेटी की शादी किसी सड़क छाप से करूँगा जो उसे अलग से घर की जरूरत पड़ेगी- अनंत ने कहा।
सारिका बोली- नहीं अनंत। मैं बस ये चाहती हूँ कि इस दुनिया में एक जगह ऐसी हो जिस पर सिर्फ मेरी बेटी का हक हो। जहां से उसे कोई भी किसी भी वजह से निकाल ना सके।
अनंत ने हैरान होते हुए कहा- क्या मतलब?
सारिका बीते दिनों को याद करते हुए बोली- याद है एक बार किसी बात पर झगड़ा होने पर तुमने मुझसे कहा था- निकल जाओ मेरे घर से।
रोते हुए जब मैं मायके पहुँची तो माँ-पापा, भैया-भाभी ने साफ शब्दों में कह दिया- अब तुम्हारे पति का घर ही तुम्हारा घर है। यहां तुम बस मेहमान हो।
तुम थोड़ी ही देर में मुझे मनाने आ गए थे, लेकिन उसी वक्त मैंने तय कर लिया था कि मैं अपनी बेटी को इन शब्दों का सामना करने नहीं दूँगी। उसके पास मायके और ससुराल के अलावा उसका एक घर भी होगा।
अनंत सारिका की बातें सुनकर खुद पर लज्जित हो रहा था।
उसने कहा- लेकिन अगर भविष्य में हमारे बेटे ने विरोध किया, जायदाद के लिए अपनी बहन को परेशान किया तो?
सारिका ने कहा- मैंने सब पता कर लिया है। चूँकि ये घर पैतृक नहीं है तो मैं इसे किसी को भी दे सकती हूँ। लेकिन फिर भी मैं एनओसी पर हमारे बेटे के दस्तखत करवा के ही अपनी बेटी को ये घर दूँगी, ताकि भविष्य में उसे किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े।
बेटे के लिए तो तुम्हारा ये घर है ही। मुझे यकीन है इसके बाद उसे कोई आपत्ति नहीं होगी।
सारिका की सारी बातें सुनकर अनंत ने कहा- कितना सोचती हो तुम। मैं इतना सोचूँ तो पागल ही हो जाऊँ।
सारिका ने हँसते हुए कहा- सोचना पड़ता है, क्योंकि तुम्हारे पास घर है, हम औरतों की तरह मायका और ससुराल नहीं।
अनंत ने सारिका का हाथ थामते हुए कहा- मेरी गलती के लिए मुझे क्षमा कर दो सारिका। आओ चलो हम अपनी बेटी के लिए उसका घर पसंद करने चलें।
नए घर में कदम रखते हुए सारिका की आँखों में संतुष्टि के भाव थे और अनंत की आँखों में अपनी पत्नी के लिए गर्व झलक रहा था।
हो सकता है की ये कहानी आपने कही और भी पढ़ी हो। बेटिया अपने ससुराल विवाह के पश्चात चली जाती है। सही मायने में वही उनका अधिकार का घर होता है जो समाज मान्य है। परन्तु कई ऐसे लोग रहते है जो इस बात को समय रहते नहीं समझते है की जो बहु उनके घर आयी है वह उनके घर अपना सबकुछ छोड़ कर आयी है। और समाज के नियम के अनुसार अब उस महिला का ससुराल ही उसका घर है। वह अपने कोमल हाथो से ससुराल के घर को संभालने आयी है। जो लोग इस बात को नहीं समझते वे अनंत की तरह अपनी पत्नी या बहु को तकलीफ देते है। और जो दहेज़ के लालची है वे तो समाज में रहने के लायक ही नहीं है।
अगर आपको मेरी बात सही लगी हो तो इस कहानी को शेयर करिये। धन्यवाद !
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