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Sunday, 27 January 2019
Motivation
Motivation
Saturday, 26 January 2019
Motivation
Alfred Nobel
ABOUT a hundred years ago, a man looked at morning newspaper and to his surprise and horror, read his name in the obituary column. The news papers had reported the death of the wrong person by mistake.
His first response was shock. Am I here or there?
When he regained his composure, his second thought was to find out what people had said about him. The obituary reads “Dynamite King dies.” And also "He was the merchant of death.”
This man was the inventor of dynamite and when he read the words “merchant of death,” he asked himself a question, "Is this how l am going to be remembered?"
He got in touch with his feelings and decided that This was not the way he wanted to be remembered.
From that day he started working toward peace. His name was Alfred Nobel and he is remembered today by the great Nobel Prize.
Just as Alfred Nebel get in touch with his feelings and redefined his values; we should step back and do the same.
How would you like to be remembered? Will you be spoken well of? Will you be remembered with love and respect? One should work towards a life worth being mentioned even a thousand years down the future lane.
Thursday, 24 January 2019
देवी
आप समस्त स्नेहिजनो को अंतरंग का स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
आज मनु को देखने और उसके परिवार से मिलने लड़की वाले पटना के मौर्या होटल में आने वाले थे । मनु ने फ़ोन पर भइया और मंझली भाभी को तैयारी के लिए बोला था। इंजीनियरिंग करने के बाद मनु दिल्ली के बड़े कंपनी में एक साल से जॉब कर रहा था ।
इधर मंझली भाभी और भइया बड़े चिंता में थे क्योंकि भाभी के पास एक अच्छी सी साड़ी और भइया के पास अच्छा से कुर्ता तक न था।
सात साल पहले मंझली भाभी छोटे घर से बेरोजगार मंझले भइया से व्याह कर आईं थीं। बड़े भइया को डॉक्टरी पढ़ाने में पिताजी की छोटी से जमा पूंजी भी ख़त्म हो गयी थी और डॉक्टर बनने के बाद बड़े भइया एक डॉक्टरनी से खुद शादी कर लिए। बड़की भाभी ने परिवार से उनका रिश्ता नाता भी तोड़वा दिया था।
फिर मझले भइया किसी तरह परीक्षा पास कर बड़ा बाबू हो गए । माँ बाप को गाँव मे रखकर पटना में एक कमरे का छोटा सा कमरा लेकर छोटे भाई मनु को पढ़ाने लगे। मनु को कंप्यूटर इंजीनियर बनने का बड़ा शौक था।
ऊपरी आमदनी कुछ थी नहीं। पटना जैसे महँगे शहर में रहने छोटे भाई मनु को कॉलेज और ट्यूशन का पैसा वहन करने और माँ बाप को भी कुछ पैसे भेजने के बाद गृहस्थी की गाड़ी बड़ी मुश्किल से चल रही थी। उनका तीन साल का एक छोटा सा बच्चा भी था।
फिर भी मंझले भईया ने कभी भी उफ्फ तक नहीं की। मंझली भाभी ने तो जैसे अपने शौख और खुशियां को बलिदान कर दिया था मनु की पढ़ाई की खातिर घूमना फिरना और जेवर सोना तो दूर की बात, आज तक एक नई साड़ी तक कि जिद न की। पढ़ने के लिए घर मे जो एक ही कमरा था वो भी दे देतीं और बच्चे से पढ़ाई में कोई बाधा न हो बच्चे को लेकर पड़ोस में चली जाती। खुद और भइया तो कम दूध वाली फीकी चाय पीते ही अपने बच्चे को भी थोड़ा दूध कम देतीं लेकिन मनु को खाने पीने में कोई कमी न होने देतीं।
मनु के बहुत अच्छे रिजल्ट के बाद एक सप्ताह के भीतर इंजिनीरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए पचास हजार रुपये की जरूरत थी कोई उपाय न सूझ रहा था। अंत में बड़े भाई को फ़ोन लगाया गया पर पैसे की कोई कमी ना होने के बाद भी बडी भाभी ने पैसे की कमी का रोना शुरू कर दिया।
अब कल ही एडमिशन का आखिरी दिन था । उसी वक़्त मंझली भाभी ने अपना मंगलसूत्र और शरीर के सारे गहने उतारकर भइया के हाथ में रख दिया और कसम दे दी थी। इसके बाद भी पढ़ाई पूरी होने तक मनु की सारी जिम्मेवारियों को मंझले भाई और भाभी ने उठाया।
बर्षों बाद आज मंझली भाभी और भइया मनुआ के रिश्ते के लिए आए लड़की वालों से इतने बड़े होटल में कैसे और किस हाल मिलेंगे ये सोच ही रहे थे कि अचानक से मनु हाथ में कई पैकेट्स लिए आ गया। सबसे पहले भाई के पैर छूते हुए एक सूट और पैंट निकाला और बोला "जरा पहन कर दिखाइये भइया" फिर भतीजे का सुंदर सा ड्रेस दिया और बोला" तुम्हारी पढ़ाई की सारी जिम्मेवारी मेरी अब तुम मेरे साथ रहकर पढ़ाई करोगे और छुट्टीयो में हम सब एक साथ रहकर खूब मस्ती करेंगे" ये सुनकर वो खुशी से नाचने लगा फिर अंत में मंझली भाभी के छुड़ाकर लाये पुराने गहनों के अलावा कई नए गहने और साड़ियां देकर पैरों में गिरकर बोला " ना मत कहना मंझली भाभी मुझे नही पता देवी कैसी होती है पर वो आपके जैसी ही होती होगी मंझली भाभीमाँ
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
पर्दा
आप समस्त स्नेहीजनो को हमारा स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
कल्लू को लकड़ी की जरूरत थी । उसके घर उसकी पत्नी और वह दोनों ही रहते थे। कल्लू ने पत्नी से कहा - सुन मै लकड़ी लाने जंगल जा रहा हूँ मै बाहर से दरवाजा लगा जाता हूँ तुम भी अंदर से दरवाजा लगा देना मै शाम तक ही वापस आऊँगा। अगर कोई बीच में दरवाजा खटखटाये तो दरवाजा मत खोलना । और वह जंगल चला गया । तभी रास्ते में उसे याद आया की वह लकड़ी बांधने के लिए रस्सी लाना तो भूल गया । वह रास्ते से वापस घर आया और दरवाजा खटखटाया । उसकी पत्नी ने सोचा ये कौन आ गया मेरे पति तो शाम को आने वाले है उसने दरवाजा नही खोला । कल्लू ने फिर दरवाजा खटखटाया पर दरवाजा नहीं खुला । उसने आवाज लगाई अब भी दरवाजा नही खुला तो उसने गुस्से से दरवाजा तोड़ दिया । उसकी पत्नी को डर के कारण कुछ समझ नही आ रहा था । तभी उसने चोर को सबक सिखाने के लिए डण्डा उठाया और चोर समझ अपने पति को मारने लगी।
आस- पड़ोस के सभी लोग इकठ्ठा हो गए। कुछ लोगो ने कल्लू को उठाया और उसकी पत्नी से पूछा क्यों तुझे खुद का पति नही दिखाई देता । झुम्मक की पत्नी सकुचाई और डंडा हाथ से गिर गया। वह डरते हुए बोली - भाई साहब मै हमेशा पर्दा में ही रहती हूँ । आज तक पति की सूरत अच्छे से नही देखी और इन्होंने ही तो कहा था की मै जंगल जा रहा हूँ । शाम तक वापस आऊँगा। अगर बीच में कोई आये और दरवाजा खटखटाये तो दरवाजा मत खोलना ।
कल्लू खाट पर सिर पकड़ बैठ गया ।
प्रणाम
शुभ संध्या
माउथ ऑर्गन
आप समस्त स्नेहीजनों को हमारा स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
मित्रों बात उन दिनों की है जब प्यार ऐसा ही होता था, ब्लैक एंड वाइट फिल्मों जैसा. नज़रें उठाना, झुकाना, हौले से मुस्कुरा देना और निकल जाना।
उनका प्यार भी ऐसा ही था, मूक फिल्मों सा मासूम। वह कॉलेज से आती चार किताबें सीने से चिपकाए. आँखों में सुरमे की बाहर तक खिंची लकीर, लम्बी सी चोटी, लहराती जुल्फें, छोटी सी काली बिंदी. बस, इतना ही सिंगार।
और वह दूर से ही दिख जाता साइकिल पर लहराता हुआ, एक हाथ साइकिल का हैंडल संभाले, दूसरा होंठों से सटे माउथ ऑर्गन को साधे, और हवा में लहरा जाती एक प्यारी सी धुन पुकारता चला हूँ मैं, गली गली बहार की ! उसकी आँखें भूरी, गोरा रंग, होंठों पर पान की रंगत, नज़रों में भोली सी शरारत, माथे पर जतन से बिखराई हुयी वो आवारा लट।
जैसे जैसे वह पास आता लड़की अपनी गर्दन झुका लेती. शरीफ लडकियां ऐसे ही करती थीं उन दिनों , बेबाक होकर नज़रें चार करना आवारापन की निशानी थी. वह भी एक उचटती नज़र डालता, एक शरारती मुस्कान फेंकता और माउथ ऑर्गन बजाता हुआ निकल जाता. दिल दोनों के धड़धडाते ज़ोर से, लड़की तो उछलते दिल को सीने पर रक्खी किताबों से संभाल लेती, और लड़का माउथ ऑर्गन में जोर जोर से हवा खीँचने लगा देता ।
फिर दोनों दूर से पीछे मुड़कर देखते. 'शायद वह मुस्कुरा रही थी'. लड़का सुबह शाम किसी ना किसी बहाने लड़की के घर के आगे से निकलता. उसके माउथ ऑर्गन की आवाज़ कान में पड़ते ही वह बेचैन हो, कोई ना कोई रास्ता ढूंढती खिड़की से झाँकने का. किस्मत अच्छी हो तो बाहर निकलने का बहाना भी मिल ही जाता. यह सिलसिला करीब तीन साल तो चला ही होगा.
फिर कुछ दिन वह नज़र नहीं आयी. वह बेचैन हो उठा. बार बार चक्कर लगाता, कभी कॉलेज के, कभी उसकी गली के. पर वह नही दिखी. बहुत दिन बाद उसकी खिड़की खुली दिखी, एक उम्मीद बंधी. उसने वहीं साइकिल टिकाई और एक ख़ासा इंतज़ार के बाद आखिर उसकी एक झलक दिख गयी.. दूर से ही देखा था पर उसके चेहरे के भाव पढ़ लिए उसने . जाने क्यूँ उस लड़की ने अपना बायाँ हाथ उठाया जैसे 'बाय' कह रही हो, कुछ समझ नहीं आया लड़के को।
फिर एक दिन उसके घर में रंग बिरंगी लडियां, झंडियाँ झूल रही थीं. केले के तने से सजे मुख्य द्वार पर "वेलकम" सजा था. वह व्याकुल हो उठा. उसका डर सही निकला, उस लड़की का ब्याह था. दिल टूट गया बेचारे का. उस दिन उसके माउथ ऑर्गन के सुर बहुत दर्द भरे थे,
" जिस दिल मेँ बसा था प्यार तेरा, उस दिल को हाय तोड़ दिया ,
जब याद कभी तुम आओगे
समझेंगे तुम्हें चाहा ही नहीं
राहों में अगर मिल जाओगे
सोचेंगे तुम्हें देखा ही नहीं "
रात भर सो ना सका। दिल को किसी ने मुट्ठी में लेकर भींच दिया हो जैसे। सुबह सुबह फिर अपनी साइकिल उसके गेट के सामने खड़ी कर दी, और वहीं बैठ गया इंतज़ार में. ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा उसे. वह विदा हो रही थी. दोनों की नज़रें आखिरी बार टकरायीं. वह सिसक कर लिपट गयी सहेली से. ये आंसू सिर्फ विदाई के नहीं थे, कहीं वह भी था उन में , जानता था वह. वह विदा हो गयी. नवयुवक ने अपना माउथ ऑर्गन वहीं उसके घर के सामने फ़ेंक दिया. और यूं ही दो जोड़ी नज़रों का प्यार, नज़रों में ही रह गया घुल कर।
लड़के ने माउथ ऑर्गन बजाना छोड़ दिया।
लड़की जब भी यह गाना सुनती, "पुकारता चला हूँ मैं ", उसका मन फिर भटकने लगता है मायके की गलियों में. उसकी आँखें भीग जाती हैं, वह गुमसुम हो जाती है. पति कहते हैं
"क्यूँ माँ की याद आ रही है ?"
और वह मुस्कुरा कर सर झुका लेती है।
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
परवरिश और संगति का अंतर
आप समस्त स्नेहीजनों को अंतरंग का स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ दोपहरी
आपका दिन शुभ हो ।
चिलचिलाती धूप में वो कुते का पिल्ला मुकेश के घर के बाहर एक रोटी की आश में पुंछ हिला रहा था। उसे देख मुकेश घर से बाहर आया। मुकेश की उम्र आठ वर्ष होगी।उसे देख पिल्लै की आँखों में एक आशा की किरण आ गयी। पर मुकेश के मन में तो कुछ और ही चल रहा था।
उसने एक लकड़ी उठाई ही और पिल्लै के धनाधन मारने लगा। पिल्ला मार से बुरी तरह से जख्मी हो गया और वहां से जैसे तैसे रोता हुआ भाग गया।इसे देख मुकेश बहुत ही खुश हुआ।
पिल्लै के रोने की आवाज सुनके राज बाहर आया। राज उसी के मोहल्ले में रहता था और उसका हमउम्र भी था। राज ने पिल्लै की हालत देखते ही झट से डेटॉल और रुई ले आया और उसके घावों पर लगाई। फिर प्यार से पिल्लै को रोटी खिलायी।इससे पिल्ला अपना सारा दर्द भुलके ख़ुशी ख़ुशी पूँछ हिलाने लग गया। ये देख राज को तसल्ली हुई और बहुत खुश हुआ।
पर दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे,फिर भी उनकी खुशी के मायने अलग कैसे?
शायद यही ये उनकी परवरिश और संगति का अंतर जो उनकी ख़ुशी के मायने तक बदल देते हैं।।
॥ जय श्री राम ॥
संयम
आप समस्त स्नेहिजनो को अंतरंग का स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
मित्रों करीब डेढ़ माह पूर्व की घटना है हमारे स्टोर रूम के पास वाले खोपचे में कही दिनों से हरकत हो रही है हमने गौर किया और कार्टून को हटाकर देखा निचे तीन बिल्ली के बच्चे थे। ..बात वारिस के शुरुआती दिनों की है उपरी गलियारे से वर्षा की बूंदे टपक रही थी एक बिल्ली का बच्चा बड़ा ही कमजोर था बिलकुल सिकुड़ा सा! हमारा कार्टूनी टिन हटाना ही था की अचानक से हुई हरकत से दो बिल्ली के बच्चे भाग जाते पर वो कमजोर वाला बच्चा अपनी विवशता को भी छुपा नही सकता भूख से बेहाल क्योकि उसकी पहली लड़ाई अपने भाइयो से ही होती थी खाने के लिए और बाद में जो खाने के बाद बचा खुचा मिलता था उसीसे गुजारे का परिणाम उसकी कमजोरी थी अब कभी -कभी हम उपर छत पर जाते तो उस कमजोर और टूट चुके प्राणी के लिए दूध बगेराह जरुर ले जाते । और जबतक वह दूध पिता उसको सहलाते रहते थे ताकी उसका हमारे प्रति डर खत्म हो ।
कुछ दिन बाद एक और हादसा हो गया मुख्य द्वार खुला था एक कुता आ गया और वो दबे कदमो से ऊपर चढ़ गया और अचानक से एक अपरिचित आग्तुंक की आहट से बिल्ली और बाकि दोनों बच्चे भाग गये लेकिन हताशऔर बेचारा पहले से कमजोर छोटा वाला बच्चा उसकी चपेट में आ गया दो तिन मिनट की टकराहट से और झुझ ने उसे झुलस के रख दिया पर अब और भी वो दया का पात्र पन चूका था बस चलना भी उसके लिए मुस्किल था शायद ये उसकी मुस्किलो का दौर चल रहा था और उस शेतान दानव कुते के प्रहार जिन्दगी का सबसे कटु अनुभव बन गया ।
वक्त बीतता गया
आज अचानक डेढ़ महीने के बाद जैसे ही हम ऊपर जाकर देखते है की उपरी मुंडेर में यह परिवार फिर दीखता है पर अफ़सोस जताते हुए हमने देखा छोटा बच्चा न दिख रहा पर वो सबसे उपर दिवार के कोने पर बेठा था सबसे फुर्तीला और चोटों के निशा उसकी संघर्ष की दास्तान बता रहे थे पर शायद उस जीने की लड़ाई ने ही उसे सबसे अलग और अनोखा बनाया था इसलिए दोस्तों जिन्दगी में संघर्ष शायद आपमें नए हुनर को लाने के लिए हो और कमजोरो का हर जगह शोषण होता अपनों से लेकर गेरो तक पर जब वो उठते है दबे पाँव अपना वजूद दुनिया को देते है और महान हस्तियों में बेसुमार बस उस दौर में टिकना ही संयम है..आज कल और हमेशा ।
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
वृद्धाश्रम
आप समस्त स्नेहिजनो को अंतरंग का स्नेह वंदन ।
॥ जय श्री राम ॥
आज मॉ अस्पताल में भर्ती थी ।
कदाचित अंतिम सॉसें गिन रही थी, अपनी मॉ की हालत से व्यथित सूरज अपने फेसबुक तथा वाट्सएप के दोस्तों से एक विनम्र अपील की -
‘ प्यारे दोस्तों ! मेरी मॉ बहुत बीमार है मॉ जल्दी स्वस्थ हो जाये इसलिये आप सभी की दुआ और प्रार्थना कि मुझे बेहद आवष्यकता है ।‘
परिणामतः दोस्तों कि आत्मिय संवेदनायें लगातार प्राप्त होती रही और वह उन्हे निरंतर धन्यवाद देता रहा।
सूरज के इसी मेसेज को पढ़ उसके वाट्सएप का एक दोस्त अपनी संवेदनायें वाट्सएप में प्रेषित करने के बजाय उसका दुख कम करने हेतू स्वंय ही उसके पास अस्पताल पहुच गया और उसके कानों में मॉ के स्वास्थ सुधार का एक अचूक नुस्खा बताया जिसे सुन सूरज के चेहरे पर छायी चिंता की लकीरें कम होने के बजाय फैल कर दुगुनी हो गयी थी । आगंतुक ने केवल इतना ही कहा था-
‘ तुम अंदर जाकर मॉ के कानों में केवल इतना ही कह दो कि ‘ मॉ तुम जल्दी ठीक हो जाओ! माँ तुम्हारे बिना घर सुना है ।‘
वह आगंतुक और कोई नही वृद्धाश्रम का मैनेजर था ।
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
टोल टैक्स
आप समस्त स्नेहीजनों अंतरंग का स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ दोपहरी
आपका दिन मंगलमयी हो
इंटरव्यू कक्ष में प्रवेश करते ही उसे ऐसा लगा मानो गिद्धों के झुंड के बीच आ गई हो, लगा मानो सब आँखों से ही उसकी भौगोलिक माप ले रहे हों.... किसी तरह उसने अपने आप को सम्हाला और अभिवादन कर सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी।
"हम्म!तो आप का नाम अर्चना है।"....."जी।"...
उसने एक संछिप्त से उत्तर दिया और उसके बाद शुरू हुआ बेहूदे प्रश्नों का दौर, जिसका उसकी नौकरी और योग्यता से कोई लेना देना नही था।...उसे वहां घुटन सी महसूस हो रही थी। तभी उनमे से एक सज्जन ने उससे पूछा,"काबिलियत तो आप में बहुत है,वैसे आप का लक्ष्य क्या है?"
"सर मैं बहुत आगे तक जाना चाहती हूं और खूब नाम कमाना चाहती हूं।" उसने जवाब दिया।...
"कामयाबी का सफर इतना आसान नही है, रास्ता बहुत कठिन होगा और सड़क भी बहुत ऊबड़ खाबड़ होगी,चल पाएंगी।"?
" कोई बात नही सर मैं हाईवे का रास्ता पकड़ लूंगी।".........उसने अपनी वाक्पटुता सिद्ध करने के चक्कर में बिना सोचे समझे उसने बोल दिया।
इंटरव्यू लेने वाले शायद इसी की राह देख रहे थे, उनमे से एक गहरी मुस्कुराहट के साथ उसके सामने थोड़ा आगे की ओर झुका और आंखों में झांक के बोला,......."हाइवे में चलते समय टोल टैक्स भी देना पड़ता है, क्या आप इसके लिए तैयार है?"
उसकी आंखें गुस्से से लाल हो उठीं, वो उनके कहने का आशय समझ चुकी थी,एक पल को उसका विश्वास ज़रूर डगमगाया था पर अब वो सम्हल चुकी थी,पूरे आत्मविश्वास के साथ वो उठी और बोली,"माफ् कीजियेगा सर! मंज़िल तो अपनी मैं हांसिल करके ही रहूंगी और वो भी बगैर टोल टैक्स दिए भले ही मुझे वहां तक पहुंचने के लिए एक नई सड़क ही क्यों न बनानी पड़े।"इतना कह के वो जाने लगी,अचानक कुछ सोच के वो मुड़ी और बोली...........
"वैसे लड़कियां तो आप सब के घरों में भी होंगी न??,यही प्रश्न एक बार उनसे ज़रूर पूछियेगा।"
इतना कह कर वो कक्ष के बाहर निकल गयी और पीछे छोड़ गई एक सन्नाटा,पर वो लोग कहां मानने वाले थे, उन्हें तो हर एक से यही प्रश्न पूछना था,क्या पता कोई तैयार ही हो जाए टोल टैक्स देने के लिये।
सजा तो अब शुरू हुई थी............
आप समस्त स्नेहीजनों को हमारा स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।
शुभ प्रभात
आपका दिन मंगलमयी हो ।
बच्ची के माँ-बाप न्याय के लिए गिड़गिड़ाते रह गए। लेकिन जब अपराधी की न्याय के रक्षक से गहरी दोस्ती थी तो भला मजबूर माँ-बाप न्याय तक कैसी पहुँच पाते।
लिहाजा मासूम, अबोध बच्ची से और फिर न्याय तो था ही अँधा। रक्षक हाथ पकड़कर उसे जिस ओर ले गया, न्याय उस ओर ही चल दिया। बलात्कार करने वाला बाइज़्ज़त बरी हो गया।
अपराधी और न्याय के रक्षक दोस्त ने जश्न मनाया सजा से मुक्ति का। अपराधी फिर घर की ओर चल दिया। घरवाले एक बार भी उससे मिलने नहीं आये थे। लेकिन उसे परवाह नहीं थी। जब उसने कानून की आँखों में धूल झौंक दी तो उन लोगों को भी किसी तरह मना ही लेगा।
घर का हुलिया लेकिन बदला हुआ था। बीवी बच्चे सामान बाँधकर जाने की तैयारी में थे।
"तुम्हे सजा हो जाती तो हमारे पाप कुछ तो कट जाते। लेकिन तुम जैसे घिनोने, गिरे हुए इंसान के साथ रहना नामुमकिन है। हम कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहे। अड़ोस-पडौस सबने रिश्ते तोड़ लिए। मैं अपने बच्चों को लेकर दूर जा रही हूँ।" पत्नी उसकी सूरत तक नहीं देख रही थी। बेटे ने उसे देखते ही नफरत से थूक दिया।
बारह साल की बेटी उसकी शक्ल देखते ही भय से सहम गयी। वह बेटी को पुचकारने आगे बढ़ा तो बीवी ने गरजकर उसे वहीं रोक दिया-
"खबरदार जो मेरी बेटी को हाथ भी लगाया।"
"मैं बाप हूँ उसका" उसने प्रतिकार किया।
"तुम बाप नहीं बलात्कारी हो। अगर बाप होते तो किसी भी बेटी का बलात्कार कर ही नहीं सकते थे। बाप कभी किसी भी बेटी का बलात्कार नहीं कर सकता। और जो बलात्कारी है वो कभी भी किसी का बाप हो ही नहीं सकता।"
उसके हाथ ठिठक गए। जेल से बच जाने की ख़ुशी काफूर हो चुकी थी। कानून की सजा से तो वह बच गया लेकिन बेटे, पत्नी के चेहरे की नफरत और बेटी के चेहरे के डर से कोई न्याय का रक्षक उसे बचा नहीं पायेगा।
सजा तो अब शुरू हुई थी............
असाधारण आदमी साधारण भेष में
आप समस्त स्नेहीजनों को अंतरंग का स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
जवानी में वह ओर भी सुन्दर थी। हर कोई पा लेने को लालायित था। किन्तु विवाह उसने एक बहुत ही साधारण से शख्स से की । सुन्दर भी खास नहीं था और कमाता भी खास नहीं था।
बहुत बड़े, रसूखदार और अच्छी पोजीशन वाले अनगिनत रिश्ते उसके पास आये, अनगिनत प्रेम निवेदन उसके पास आये लेकिन उसने जिसे जीवन साथी चुना वह इन सबमें कमतर था
लोग उस स्त्री के बारे में सुनते, रटे-रटाये वाक्य दोहरा देते, जैसे की "बहुत सुन्दर स्त्री की अक्ल घुटने में होती है", "नखरे निकल जाने के बाद ऐसे ही मिलते हैं", "ज्यादा भाव खाने वालो को कोई भाव नहीं देता" आदि।
उस स्त्री को ऐसे किसी वाक्य से सरोकार नहीं था, वह अपनी पसंद के जीवन साथी के साथ खुश थी, सुखी थी।
उसकी कहानी एक पत्रकार ने सुनी, उसे इस कहानी में कई रंग नजर आये। वह उस स्त्री के पास गया। पत्रकार उसकी सुंदरता देखकर दंग था। आज भी वह बेहद सुन्दर दिखती थी।
पत्रकार ने विनम्रता से उस स्त्री को साक्षात्कार के लिए निवेदन किया। स्त्री जोर से ठहाका लगाकर हंसी, बोली "मेरा इंटरव्यू पूरा करने से पहले या तो तुम बीच में भाग जाओगे, या फिर अपनी पारम्परिक सोच को मिक्स करके अपनी ही कहानी लिख दोगे, इसलिए मैं कोई इंटरव्यू देने की इच्छुक नहीं हूँ। आप चाय पीजिये, रुखसत लीजिये।"
पत्रकार के जीवन का ऐसा पहला वाकया था जब एक ही वाक्य में उसका खुद का इंटरव्यू हो लिया था। वह सम्भला और जैसे-तैसे उसने इंटरव्यू के लिए उस स्त्री को राजी कर लिया ।
पत्रकार ने पूछा, "आप बेहद सुंदर हैं, बहुत स्त्रियों को आपकी सुंदरता पर रश्क होता है। आप इसे कैसे लेती हैं।"
स्त्री ने पत्रकार को देखे बिना बाल झटकते हुए जवाब दिया, "बकवास सवाल, मेरे सुंदर होने में मेरा कोई योगदान नही, कुदरत ने मुझे दिया, इसे मेरी उपलब्धि ना कहें। अगर मैं इतराती हूँ तो मेरा इतराना गैर वाजिब है। दैहिक सुंदरता पूर्ण सुंदर होना नही।"
पत्रकार असहज हुआ, दूसरा सवाल किया,
"आप ने कभी किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग क्यो नही लिया। आप विश्व की कोई भी प्रतियोगिता जीत सकती थी।'
स्त्री ने इस बार पत्रकार की नजरों में नजरें डाल दी। पत्रकार उसके तेज का सामना नही कर पाया, उसने नजरें झुका ली।
स्त्री बोली- "सुंदरता में प्रतियोगिता कैसी। सब अपने अपने हिसाब से सुंदर हैं। गोरी चमड़ी सुंदर क्यो है। बहती नदी को देखिए कभी। जहाँ जहाँ वह गहरी है वहाँ वहाँ सांवली हो जाती है। किसी से सुंदरता की प्रतियोगिता जीत कर आप सुंदरता के मानदण्ड स्थापित करना चाहते हैं? सुंदर लोग आपने देखे नही। मेरी झुर्रियों वाली दादी मेरी नजर में सबसे सुंदर महिला है, आपकी माँ आपकी नजर में सबसे सुंदर हो सकती है। आपकी पत्नी अपने पिता की नजर में सबसे सुंदर होगी। आपकी बहन किसी को दुनिया की सर्वश्रेस्ठ सुन्दरी लग सकती है। गुलाब सुंदर या चमेली ये वाहियात प्रतियोगिता है। आगे पूछिये।"
"जी,आप के संबंध बडे औऱ रसूखदार लोगों से रहे, फ़िल्म के हीरो भी लट्टू थे आप पर, ऐसा सुना है, फिर शादी आपने एक बहुत ही साधारण इंसान से की। साधारण मतलब लो प्रोफाइल, वैसे तो आपने चुना है तो असाधारण भी हो सकते हैं। क्या कहेंगी आप?
"देखिये पत्रकार महोदय, मैं इंटरव्यू इसलिए नही देती क्योंकि आपके तथाकथित सभ्य समाज मे मैं किसी का आदर्श नही हूँ। स्त्रियां मुझे फॉलो नही कर सकती। उनकी सामाजिक स्थिति ऐसी नही है कि वे खुद पर प्रयोग कर सकें। मैंने खुद पर प्रयोग किये और सुंदर, रसूखदार लोगो से मोहभंग होने के बाद मैंने एक असाधारण पुरूष जिसे आप साधारण कहते हैं को अपना जीवन साथी बनाया। मेरी कहानी किसी के काम नही आएगी इसलिए मैं अपनी कहानी जीना चाहती हूं, बांटना नही। "
स्त्री के सहज चेहरे पर वितृष्णा फैलने लगी। वह खामोश हो गई। उसने पत्रकार को चाय दी औऱ ख़ुद भी चाय के घूँट भीतर उतारने लगी।
पत्रकार को लगा यह स्त्री इंटरव्यू के बीच में से उठ जाएगी लेकिन स्त्री ने एक क्षण रहस्यमयी चुप्पी साधे रखी । पत्रकार चुपचाप उस अजीब स्त्री को देखता रहा, चाय के एक-एक घूँट के साथ उसकी वितृष्णा कम होती गयी। जल्द सहज होते हुए वह बोली, "सॉरी", फिर उसने एक अजीब सी स्माइल दी।
"जिन लोगो को आप रसूखदार कह रहे हैं दरअसल वे रसूखदार नही होते। ये रसूखदार आदमी तमाम सृष्टि का उपभोग कर लेने की वृत्ति के साथ ऊपर तक भरे हैं। उन्हे जिंदगी में सब संगमरमर का चाहिए खुद वे बेशक उबड़ खाबड़ खुरदुरा पत्थर हों।
आप हैरान होंगे कि तमाम रसूखदार लोगो की चाह मैं नही थी। मेरा जिस्म थी। मुझे पुरुष की वृत्ती मालूम थी। पुरुष ने जिस्म मांगा, मैंने दिया, मैंने वही तो दिया जो उसने मांगा। लेकिन जिस्म भोगने के बाद मैं चरित्रहीन थी, वह चरित्रवान।
मुझे पुरूष की सोच , नजर समझ आ गयी थी। मुझे याद नही कि कितने पुरूष थे । लेकिन जितने थे सब मेरी देह से प्रेम करने वाले थे, और सब ही मुझे चरित्र का प्रमाण पत्र देकर गए। मुझे हैरानी हुई कि किसी को मैं देह और चरित्र से आगे नजर ही नही आई। मैंने एक अंग्रेजी फ़िल्म देखी जिसका एक संवाद मेरे जेहन में अटका रहा कि प्रेम के वहम में ज्यादा दिन अटके मत रहो। पहले सेक्स करो फिर प्रेम। मुझे हैरानी हुई कि कि प्रेम के लंबे चौड़े दावे करने वाले पुरूष सेक्स के बाद भागते नजर आए। वे मुझे अफ़्फोर्ड नही कर सकते थे शायद, अमीर थे जबकि। अफ़्फोर्ड करना समझते हैं ना आप। स्त्री को अफ़्फोर्ड करना हर पुरूष के वश का नही। तमाम पुरुषो के घर मे जो स्त्री है ना वह स्त्री नहीं है, स्त्री की चलती फिरती लाश हैं। जिंदा स्त्री अफ़्फोर्ड करना इस मुल्क के पुरूषों के लिए लगभग असंभव है।
पति का तो अर्थ ही मालिक है।
मालिक या तो गुलाम रखते है या वस्तुएं। पुरुष क्या ये मुल्क ही जिंदा स्त्री को अफ़्फोर्ड नही कर सकता। पूरे मुल्क की चेतना में ही पितृसत्ता भरी है।"
पत्रकार ने रीढ़ सीधी कर ली।
वह आगे बोली, "एक दिन एक असाधारण पुरूष मेरी जिंदगी में आया। जब एक रसूखदार पुरूष मुझे अचेतन अवस्था में अपनी बड़ी सी गाड़ी से फेंक कर जाता रहा।
वह असाधारण पुरुष मुझे नहीं जानता था, मेरा जिस्म लहूलुहान था, उसने मुझे उठाया और हॉस्पिटल की ओर दौड़ पड़ा। मेरा मेडिकल हुआ जिसमें रेप की पुष्टि हुई, मेरे चेतना में आने तक वह पुलिस यातना झेल चुका था, उसका बचना मेरे बयान पर टिका था। मैं चेतना में जब आयी तो देखा कि मेरा पूरा जिस्म पट्टियों में जकड़ा है। मुझे बताया गया कि पुलिस ने उसे ही उठा लिया है जो मुझे गोद मे उठाकर यहां लाया, अपनी रिंग और गले की चेन डॉक्टर के पास रख गया कि मैं नही लौटूँ तो इसे बेचकर बिल चुका देना। उसी रिंग और चेन से पुलिस का शक और गहरा हुआ कि यह इन्वॉल्व हो सकता है।
मैंने किसी के खिलाफ शिकायत नही लिखवाई। वह असाधारण पुरूष लौट आया, उसने मुझे देखा, मैं तो टूटी-फूटी पट्टियों में बंधी थी। लेकिन उस पुरूष का वह देखना अद्भुत था। हजारो खा जाने वाली नजरो से अलग कोई नजर थी जो भीतर तक उतरती चली गयी। उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखा, उसका स्पर्श अद्भुत था, वह पुलिस थाने से लौटा था लेकिन उसने अपनी व्यथा नही गाई, वह धीरे से बोल पाया, ठीक हो?। मेरी आँखें स्वतः बन्द हो गयी। कोई भी संवाद इतना मर्मान्तक नही था आजतक जितना कि ये। मेरी आंख से आंसू टपक पड़ा। मैं भी होले से कह पाई , ठीक हूँ । शुक्रिया मुझे बचाने के लिए।
उसने अपनी उंगली के पोर से मेरी आँख का आँसू उठाया औऱ आसमान में उड़ा दिया। मेरे होते मन नही भरना, मैं हूं ना। आजतक इतना बड़ा आश्वासन भी कभी नही मिला था कि मैं हूँ। मन छोटा नही करना।
उसने मुझे सहारा देकर लिटाया, पूछा, आपके घर मेसेज कर दूं , आपका कोई पता नही मिला हमे। मैंने कहा मेरे घर कोई नही है, मैं अकेली हूँ। जबकि सब हैं लेकिन मेरी प्रयोग धर्मिता से डरे हुए। मैं उन्हें इत्तलाह नही करना चाहती थी। वह असाधारण पुरुष बोला, मेरे घर मेरी छोटी बहन है। आप मेरे घर चलना स्वास्थ्य लाभ के लिए।
मैंने पूछा उससे,मेरी मेडिकल रिपोर्ट पढ़ी आपने। वह थोड़ा रुंआसा हुआ, बोला हां पढ़ी, आपने उन्हें छोड़ क्यो दिया, रिपोर्ट करते उनके खिलाफ।
मुझे दर्द था तेज, मैंने कहा। मैं निबट लूँगी उनसे ।
उस पुरूष ने अगला सवाल नही किया। बोला आराम कीजिये। ठीक हो जाइए पहले फिर निबट लेना। मुझे लगा यह मध्यम वर्गीय परिवार का साधारण पुरूष चरित्र प्रमाण पत्र दे ना दे लेकिन जेहन मे जरूर तैयार कर लिया होगा। बडी सोसाइटी भी जब वहीँ अटकी है तो यहां तो चरित्र बडा फसाद होगा। हॉस्पिटल का बिल मैं भर सकती थी लेकिन मैंने नही भरा। उसकी रिंग और चेन बिक गईं । वह मुझे अपने घर लिवा लाया। एक साफ सुथरा साधारण घर था वह। करीने से सजे घर मे मेरी नजर एक बड़ी अलमारी पर पड़ी जिसमे अनेकों किताबें थी। पता चला कि वह साधारण पुरूष दरअसल साधरण नही हैं। उसकी अलमारी में एक से एक बेहतरीन किताब रखी थी। मालूम हुआ वह नास्तिक है। आज तक जितने पुरूष मिले वे सब आस्तिक थे। कोई गले में लॉकेट डाले था कोई उंगली में नग पहने कोई माथे पर तिलक लगाए। इस मे जो था सब अपना था, दिखावा नही था रत्ती भर भी। उसने मेरे आराम का प्रबंध किया। मेरे पास बैठा रहा घण्टो। मेरी पसंद की उसके पास बहुत किताबें थी लेकिन अद्भुत यह था कि उसकी अलमारी मे वह किताब भी थी जिस पर बनी फ़िल्म मेरे जेहन में थी। उस किताब में उसने कुछ वाक्य अंडरलाइन किये हुए थे कि स्त्री प्रेम पाने के लिए सेक्स करती है पुरूष सेक्स पाने के लिए प्रेम लुटाता है। मेरी पूरी जिंदगी इसी एक वाक्य में बंधी थी।
एक दूसरा वाक्य जो मेरे जेहन में अटका था कि प्रेम के भरम में अटके मत रहो, पहले सेक्स करो फिर प्रेम करो। पढ़ने वाले ने उस वाक्य के नीचे लिख दिया था कि ऐसी स्त्री इस मुल्क में नही मिलती लेखक महोदय। मुझे हंसी आ गयी। मैं हूं ना, मैंने खुद को आईने में देखा। मैं तो बची ही नही थी, जिस देह को मैं मैं समझती थी वह तो जगह जगह से चोटिल थी लेकिन भीतर जो कोई और आकार ले रहा था वह मैं थी। मेरा पुनर्जन्म हो रहा था। मैं अब सिर्फ उस पुरूष को पढ़ती। एक साल मैं उसके घर रही। एक साल उसने मेरी देह को नही छुआ। हाथ पकड़ कर बहुत बार उसने चूमा, माथा चूमा लेकिन वह एक आत्मीय स्पर्श था।
एक दिन मैंने उसकी रिंग और गले की चैन उसे लौटा दी। वह हैरान हुआ लेकिन मैंने उसे बता दिया कि इसे बिकने नही दे सकती थी। अपने पास रखना चाहती थी सहेज कर। कि जब भी महंगे गहने पहनने होंगे तो इन्हे पहनूँगी। बिल के पैसे देकर जाती लेकिन इस गहने से बड़ा गहना मुझे मिल गया है तो यह गहना लौटा रही हूं । उसे मैंने मेरा इतिहास बताया, मेरे अफेयर बताये। बताया कि मैं देह के तमाम प्रयोग करके आज जहां अटकी हूँ वहाँ देह कहीं है ही नही । वह वो किताब उठाकर लाया। उसने अपने हाथ से लिखी एक और पंक्ति दिखाई कि ऐसी कोई स्त्री मिली तो मैं उसके समक्ष विवाह प्रस्ताव अवश्य रखूँगा। उसने पूछा मुझसे। शादी करोगी? मैं सन्न थी। कितने ही प्रस्ताव आये मुझे लेकिन इसने जैसे मुझे बर्फ के पहाड़ में जड़ दिया हो।
उसके पास लिव इन का ऑप्शन भी था। एक साल में पास पड़ोस कितनी बातें करता था लेकिन उसने कभी कान नही धरा। वह परम्परावादी आधुनिक इन्सान था। जो अब तक मिले वे आधुनिकता के छदम भेष में परंपरा वादी थे, जो लिव इन मे रहना चाहते थे अनगिनत प्रस्तावों के बाद यह प्रस्ताव मुझे भीतर तक भिगो गया। सच मे, एक असाधारण आदमी साधारण भेष में ढका था। वह देह से आगे स्त्री तक पहुंचा। उसने मुझे भी देह से बाहर निकाला। मैं किस्मत वाली रही कि वह मुझे मिल गया।
स्त्री के चेहरे पर गहरा संतोष पसर आया था। कोई अलौकिक तेज उसके चेहरे पर दीप्त होने लगा था।
प्रणाम
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