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Thursday 24 January 2019

माउथ ऑर्गन

आप समस्त स्नेहीजनों को हमारा स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
मित्रों बात उन दिनों की है जब प्यार ऐसा ही होता था, ब्लैक एंड वाइट फिल्मों जैसा. नज़रें उठाना, झुकाना, हौले से मुस्कुरा देना और निकल जाना।

उनका प्यार भी ऐसा ही था, मूक फिल्मों सा मासूम।  वह कॉलेज से आती चार किताबें सीने से चिपकाए. आँखों में सुरमे की बाहर तक खिंची लकीर, लम्बी सी चोटी, लहराती जुल्फें, छोटी सी काली बिंदी. बस, इतना ही सिंगार।

और वह दूर से ही दिख जाता साइकिल पर लहराता हुआ, एक हाथ साइकिल का हैंडल संभाले, दूसरा होंठों से सटे माउथ ऑर्गन को साधे, और हवा में लहरा जाती एक प्यारी सी धुन पुकारता चला हूँ मैं, गली गली बहार की ! उसकी आँखें भूरी, गोरा रंग, होंठों पर पान की रंगत, नज़रों में भोली सी शरारत, माथे पर जतन से बिखराई हुयी वो आवारा लट।

जैसे जैसे वह पास आता लड़की अपनी गर्दन झुका लेती. शरीफ लडकियां ऐसे ही करती थीं उन दिनों , बेबाक होकर नज़रें चार करना आवारापन की निशानी थी. वह भी एक उचटती नज़र डालता, एक शरारती मुस्कान फेंकता और माउथ ऑर्गन बजाता हुआ निकल जाता. दिल दोनों के धड़धडाते ज़ोर से, लड़की तो उछलते दिल को सीने पर रक्खी किताबों से संभाल लेती, और  लड़का माउथ ऑर्गन में जोर जोर से हवा खीँचने लगा देता ।

फिर दोनों दूर से पीछे मुड़कर देखते. 'शायद वह मुस्कुरा रही थी'. लड़का सुबह शाम किसी ना किसी बहाने लड़की के घर के आगे से निकलता. उसके माउथ ऑर्गन की आवाज़ कान में पड़ते ही वह बेचैन हो, कोई ना कोई रास्ता ढूंढती खिड़की से झाँकने का. किस्मत अच्छी हो तो बाहर निकलने का बहाना भी मिल ही जाता. यह सिलसिला करीब तीन साल तो चला ही होगा.

फिर कुछ दिन वह नज़र नहीं आयी. वह बेचैन हो उठा. बार बार चक्कर लगाता, कभी कॉलेज के, कभी उसकी गली के. पर वह नही दिखी. बहुत दिन बाद उसकी खिड़की खुली दिखी, एक उम्मीद बंधी. उसने वहीं साइकिल टिकाई और एक ख़ासा इंतज़ार के बाद आखिर उसकी एक झलक दिख गयी.. दूर से ही देखा था पर उसके चेहरे के भाव पढ़ लिए उसने . जाने क्यूँ उस लड़की ने अपना बायाँ हाथ उठाया जैसे 'बाय' कह रही हो,  कुछ समझ नहीं आया लड़के को।

फिर एक दिन उसके घर में रंग बिरंगी लडियां, झंडियाँ झूल रही थीं. केले के तने से सजे मुख्य द्वार पर "वेलकम" सजा था. वह व्याकुल हो उठा. उसका डर सही निकला, उस लड़की का ब्याह था. दिल टूट गया बेचारे का. उस दिन उसके माउथ ऑर्गन के सुर बहुत दर्द भरे थे,
" जिस दिल मेँ बसा था प्यार तेरा, उस दिल को हाय तोड़ दिया ,  
जब याद कभी तुम आओगे
समझेंगे तुम्हें चाहा ही नहीं
राहों में अगर मिल जाओगे
सोचेंगे तुम्हें देखा ही नहीं "
रात भर सो ना सका। दिल को किसी ने मुट्ठी में लेकर भींच दिया हो जैसे।  सुबह सुबह फिर अपनी साइकिल उसके गेट के सामने खड़ी कर दी, और वहीं बैठ गया इंतज़ार में. ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा उसे. वह विदा हो रही थी. दोनों की नज़रें आखिरी बार टकरायीं. वह सिसक कर लिपट गयी सहेली से. ये आंसू सिर्फ विदाई के नहीं थे, कहीं वह भी था उन में , जानता था वह. वह विदा हो गयी. नवयुवक ने अपना माउथ ऑर्गन वहीं उसके घर के सामने फ़ेंक दिया. और यूं ही दो जोड़ी नज़रों का प्यार, नज़रों में ही रह गया घुल कर।
लड़के ने माउथ ऑर्गन बजाना छोड़ दिया।

लड़की जब भी यह गाना सुनती, "पुकारता चला हूँ मैं ", उसका मन फिर भटकने लगता है मायके की गलियों में. उसकी आँखें भीग जाती हैं, वह गुमसुम हो जाती है. पति कहते हैं
"क्यूँ माँ की याद आ रही है ?"
और वह मुस्कुरा कर सर झुका लेती है।
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या

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