आप समस्त स्नेहीजनों अंतरंग का स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ दोपहरी
आपका दिन मंगलमयी हो
इंटरव्यू कक्ष में प्रवेश करते ही उसे ऐसा लगा मानो गिद्धों के झुंड के बीच आ गई हो, लगा मानो सब आँखों से ही उसकी भौगोलिक माप ले रहे हों.... किसी तरह उसने अपने आप को सम्हाला और अभिवादन कर सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी।
"हम्म!तो आप का नाम अर्चना है।"....."जी।"...
उसने एक संछिप्त से उत्तर दिया और उसके बाद शुरू हुआ बेहूदे प्रश्नों का दौर, जिसका उसकी नौकरी और योग्यता से कोई लेना देना नही था।...उसे वहां घुटन सी महसूस हो रही थी। तभी उनमे से एक सज्जन ने उससे पूछा,"काबिलियत तो आप में बहुत है,वैसे आप का लक्ष्य क्या है?"
"सर मैं बहुत आगे तक जाना चाहती हूं और खूब नाम कमाना चाहती हूं।" उसने जवाब दिया।...
"कामयाबी का सफर इतना आसान नही है, रास्ता बहुत कठिन होगा और सड़क भी बहुत ऊबड़ खाबड़ होगी,चल पाएंगी।"?
" कोई बात नही सर मैं हाईवे का रास्ता पकड़ लूंगी।".........उसने अपनी वाक्पटुता सिद्ध करने के चक्कर में बिना सोचे समझे उसने बोल दिया।
इंटरव्यू लेने वाले शायद इसी की राह देख रहे थे, उनमे से एक गहरी मुस्कुराहट के साथ उसके सामने थोड़ा आगे की ओर झुका और आंखों में झांक के बोला,......."हाइवे में चलते समय टोल टैक्स भी देना पड़ता है, क्या आप इसके लिए तैयार है?"
उसकी आंखें गुस्से से लाल हो उठीं, वो उनके कहने का आशय समझ चुकी थी,एक पल को उसका विश्वास ज़रूर डगमगाया था पर अब वो सम्हल चुकी थी,पूरे आत्मविश्वास के साथ वो उठी और बोली,"माफ् कीजियेगा सर! मंज़िल तो अपनी मैं हांसिल करके ही रहूंगी और वो भी बगैर टोल टैक्स दिए भले ही मुझे वहां तक पहुंचने के लिए एक नई सड़क ही क्यों न बनानी पड़े।"इतना कह के वो जाने लगी,अचानक कुछ सोच के वो मुड़ी और बोली...........
"वैसे लड़कियां तो आप सब के घरों में भी होंगी न??,यही प्रश्न एक बार उनसे ज़रूर पूछियेगा।"
इतना कह कर वो कक्ष के बाहर निकल गयी और पीछे छोड़ गई एक सन्नाटा,पर वो लोग कहां मानने वाले थे, उन्हें तो हर एक से यही प्रश्न पूछना था,क्या पता कोई तैयार ही हो जाए टोल टैक्स देने के लिये।
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