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Friday, 31 August 2018

हम सब गातें हैं तेरी वंदना


तर्ज: जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया।

हम सब गातें हैं तेरी वदंना, शिव के लाल गणेशा।
मेरे अंग संग रहना हमेशामेरे अंग संग रहना हमेशा।

नमामिः गणपत, नमामिः गजानन, नमामि देवो लम्बोदरा।
नमामि: रिद्धी सिद्धी वर दाता, नमामिः गौरी सुत नंदना।

हम सब गातें हैं तेरी वदंना, शिव के लाल गणेशा।
मेरे अंग संग रहनाहमेशामेरे अंग संग रहना हमेशा।

मां गौरां के तुम लाडले, शिव शंकर जी के दुलारे।
हे विध्न विनाशक दया करो, और बख्शो पाप हमारे।
हे शक्तिशाली शिव के प्यारे, हर दो कष्ट कलेशा
मेरे अंग संग रहना हमेशा।

तेरी ज्योत जगाऐं श्रदा से, और पूजे तुमको दाता।
जो ध्यान तेरा धर ले मन में, वो मन चाहा फल पाता।
तेरी पूजा सबसे पहले करते, ब्रह्मा विष्णू महेशा।
मेरे अंग संग रहना हमेशा।

"सूरज" भी लेकर तेज तुम्हारा, करता जग में उजाला।
हे गौरी नंदन दया के सागर, रूप तेरा मतवाला।
तेरे तेज से नभ में चमक रहे हैं, चांद सितारे "दिनेशा"।
मेरे अंग संग रहना हमेशा।

जिस जगह तुम्हारी पूजा हो, प्रभू वो "तीर्थ" कहलाये।
हे कृपालू तेरे श्रदालू, तेरे दर पे चल के आये।
"खुशदिल" तरसे है प्यार को तेरे, दे दो प्रेम संदेशा।
मेरे अंग संग रहना हमेशा।
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Wednesday, 29 August 2018

गणपति गणेश मनायो मोरी देवा


ओह्ह सुन्न फ़रियाद पीरा देया पीरा, होर आख सुन्नावा कीनू 
तेन जहय मैनू होर ना कोई, ते मैं जहे लाख तेनु

प्रथम गुरा जी को वंदना , द्वित्ये आध गणेश 
तृत्य सिमरिए शारदा, मेरे कंठ करो प्रवेश

गणपति गणेश मनायो मोरी देवा
जय जय तेरी जय हो गणेश

किस जननी ने तुझे जनम देयो है,
किस ने देयो उपदेश तुझे देवा ।
माता गोरा ने तुझे जनम देयो है,
शिव ने देयो उपदेश तुझे देवा ॥

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लडुअन का भोग लगे संत करे सेवा ।
एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी,
माथे सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी ।

अंधन को आख देवे कौड़ियां को काया,
बांझन को पुत्र दे निर्धन को माया ।

नमोः नमः नमोः नमः ॥
नमोः विश्वकर्ता नमोः विघ्नहर्ता नमोः शान्ताकारं नमोः निरवकरन ।

ये धरती ये अम्बर ये दरिया समुंदर, ये दिलकश नज़ारे सभी है तुम्हारे ॥
ये चलती हवाएं, महकती दिषयए, ये साँसों की हलचल कहती  है पलपल,
तू नित्यं अनुपम सदा सत्य दिव्यम मनो प्रेमरुपम नमोः विश्व रूपम
तुहि सबसे अफ़ज़ल, तुहि सबसे आला,
अरे तेरे ही दम से जहां में उजाला ।
ज़मीनो फलक चाँद सूरज सितारे, हर एक ज़र्रे में जलवे तुम्हारे.
ओम गन गणपति नमोः नमः ॥

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मंगल मूर्ति हे गणराय-गणपति बाप्पा मोर्य


मंगल मूर्ति हे गणराय-गणपति बाप्पा मोर्या 
माता पार्वती पिता महादेव -गणपति बाप्पा मोर्या
सिद्ध्विनायक मंगल दाता-गणपति बाप्पा मोर्या

प्रथम वंदना हर कोई गाता-गणपति बाप्पा मोर्या
मोदक प्रिय मेरे मंगल दाता-गणपति बाप्पा मोर्या
हर कोई तुझको सीस निवाता-गणपति बाप्पा मोर्या

जाके घर हर बरस बिराजे-गणपति बाप्पा मोर्या
रिद्धि सिद्धि संग पधारे-गणपति बाप्पा मोर्या
शुभ काज जो करन हमारे-गणपति बाप्पा मोर्या
भक्तों के तू दुःख निवारे-गणपति बाप्पा मोर्या

गणपति बाप्पा मोर्य मंगल मूर्ति मोर्या

गणपति बाप्पा मोर्य मंगल मूर्ति मोर्या।।

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Tuesday, 21 August 2018

भक्त और भगवान


हम इंसानों की एक आदत होती है, हमेशा स्वयं को दुखी और दूसरो को हमसे खुशकिस्मत समझते है , जबकि सच तो यह है कि भगवान् ने सभी को अपने -अपने हिस्से कि ख़ुशी और ग़म दोनों दिए है!!

एक बार एक दुखी भक्त इसी प्रकार अपने ईश्वर से शिकायत कर रहा था, "आप मेरा ख्याल नहीं रखते , मै आपका इतना बड़ा भक्त हूँ , आपकी सेवा करता हूँ , रात-दिन आपका स्मरण करता हूँ , फिर भी मेरी जिंदगी में ही सबसे ज्यादा दुःख क्यों , परेशानियों का अम्बार लगा हुआ है , एक खत्म होती नहीं कि दूसरी मुसीबत तैयार रहती है .., दूसरो कि तो आप सुनते हो , उन्हें तो हर ख़ुशी देते हो , देखो आप ने सभी को सारे सुख दिए है ,मगर मेरे हिस्से में केवल दुःख ही दिए"

भगवान् उसे समझाते, "नहीं ऐसा नहीं है बेटा सबके अपने-अपने दुःख -परेशानिया है , अपने कर्मो के अनुसार हर एक को उसका फल प्राप्त होता है , यह मात्र तुम्हारी गलतफहमी है"

लेकिन नहीं भक्त है कि सुनने को राजी ही नहीं .., आखिर रोज -रोज की चिक-चिक सुन कर , अपने इस नादान
भक्त को समझा -समझा कर थक चुके भगवान् ने एक उपाय निकाला वे बोले .. "चलो ठीक है मै तुम्हे एक अवसर और देता हूँ, अपनी किस्मत बदलने का, यह देखो यहाँ पर एक बड़ा सा , पुराना पेड़ है, इस पर सभी ने अपने -अपने दुःख-दर्द और तमाम परेशानिया , तकलीफे, दरिद्रता , बीमारियाँ तनाव , चिंता ...सब एक पोटली में बाँध कर उस पेड़ पर लटका दिए है .., जिसे भी जो कुछ भी दुःख हो , वो वहा जाए और अपनी समस्त परेशानिया .....की पोटली बना कर उस पेड़ पर टांग देता है ....तुम भी ऐसा ही करो , इससे तुम्हारी
समस्या का हल हो जाएगा ..."
भक्त तो खुशी के मारे उछल पडा, "धन्य है प्रभु जी आप तो ...., अभी जाता हूँ मै " 
तभी प्रभु बोले, " लेकिन मेरी एक छोटी सी शर्त है .. " " कैसी शर्त भगवन ?" " तुम जब अपने सारे दुखो की , परेशानियों की पोटली बना कर उस पर टांग चुके होंगे तब उस पेड़ पर पहले से लटकी हुई किसी भी पोटली को तुम्हे अपने साथ लेकर आना होगा , तुम्हारे लिए .." 
भक्त को थोड़ा अजीब लगा लेकिन उसने सोचा चलो ठीक है, फिर उसने अपनी सारी समस्याओं की एक पोटली बना कर पेड़ पर टांग दी, चलो एक काम तो हो गया अब मुझे जीवन में कोई चिंता नहीं , लेकिन प्रभु जी ने कहा था की एक पोटली जाते समय साथ ले जाना .ठीक है ,कौनसी वाली लू ...ये छोटी वाली ठीक रहेगी ..., दुसरे ही क्षण उसे ख्याल आया मगर पता नहीं इसमे क्या है , चलो वो वाली ले लेता हूँ ...., अरे बाप रे मगर इसमे कोई गंभीर बिमारी निकली तो .., नहीं नहीं ..अच्छा ये वाली लेता हूँ ...मगर पता नहीं यह किसकी है और इसमे क्या क्या दुःख है ..." बाप रे !!!....हे भगवान् इतना कन्फ्यूजन ...वो बहुत परेशान हो गया सच भी " बंद मुट्ठी लाख की ..खुल गयी तो ख़ाक की .., जब तक पता नहीं है की दूसरो की पोटलियो में क्या दुःख -परेशानियां ,चिंता मुसीबते है तब तक तो ठीक लग रहा था ...मगर यदि इनमे अपने से भी ज्यादा दुःख निकले तो हे भगवान् कहाँ हो ...

भगवान् तुरंत आ गए " क्यों क्या हुआ जो पसंद आये वो उठा लो ..." 
" नहीं प्रभु क्षमा कर दो .. नादान था जो खुद को सबसे दुखी समझ रहा था ..यहाँ तो मेरे जैसे अनगिनत है , और मुझे यह भी नहीं पता की उनका दुःख -चिंता क्या है ....मुझे खुद की परेशानियों , समस्याए कम से कम मालुम तो है ..., नहीं अब मै निराश नहीं होउंगा ...सभी के अपने -अपने दुःख है , मै भी अपनी चिंताओं -परेशानियों का साहस से मुकाबला करूंगा , उनका सामना करूंगा न की उनसे भागूंगा ..धन्यवाद प्रभु आप जब मेरे साथ है तो हर शक्ति मेरे साथ हैl























Monday, 20 August 2018

संतोष

मेरे सामने ही एक पूरी फैमिली बैठी थी।
मम्मी, पापा, बेटा और बेटी।
हमारी टेबल उनकी टेबल के पास ही थी। हम अपनी बातें कर रहे थे, वो अपनी।
पापा खाने का ऑर्डर करने जा रहे थे। वो सभी से पूछ रहे थे कि कौन क्या खाएगा?
बेटी ने कहा बर्गर। मम्मी ने कहा डोसा। पापा खुद बिरयानी खाने के मूड में थे। पर बेटा तय नहीं कर पा रहा था। वो कभी कहता बर्गर, कभी कहता कि पनीर रोल खाना है।
पापा कह रहे थे कि तुम ठीक से तय करो कि क्या लोगे? अगर तुमने पनीर रोल मंगाया, तो फिर दीदी के बर्गर में हाथ नहीं लगाओगे। बस फाइनल तय करो कि तुम्हारा मन क्या खाने का है ?
हमारे खाने का ऑर्डर आ चुका था। पर मेरे बगल वाली फैमिली अभी उलझन में थी।
बेटे ने कहा कि वो तय नहीं कर पा रहा कि क्या खाए।
मां बोल रही थी कि तुम थोड़ा-थोड़ा सभी में से खा लेना। अपने लिए कोई एक चीज़ मंगा लो। पर बेटा दुविधा में था।
पापा समझा रहे थे कि इतना सोचने वाली क्या बात है ? कोई एक चीज़ मंगा लो। जो मन हो, वही ले लो।
पर लड़का सच में तय नहीं कर पा रहा था। वो बार-बार बोर्ड पर बर्गर की ओर देखता, फिर पनीर रोल की ओर।
मुझे लग रहा था कि उसके पापा ऐसा क्यों नहीं कह देते कि ठीक है, एक बर्गर ले लो और एक पनीर रोल भी।
उनके बीच चर्चा चल रही थी।
पापा बेटे को समझाने में लगे थे कि कोई एक चीज़ ही आएगी। मन को पक्का करो।
आखिर में बेटे ने भी बर्गर ही कह दिया।
जब उनका खाना चल रहा था, हमारा खाना पूरा हो चुका था। कुर्सी से उठते हुए अचानक मेरी नज़र लड़के के पापा से मिली।
उठते-उठते मैं उनके पास चला गया और हैलो करके अपना परिचय दिया।
बात से बात निकली। मैंने उनसे कहा कि मन में एक सवाल है, अगर आप कहें तो पूछूं।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “पूछिए।”
"आपका बेटा तय नहीं कर पा रहा था कि वो क्या खाए। वो बर्गर और पनीर रोल में उलझा था। मैंने बहुत देर तक देखा कि आप न तो उस पर नाराज़ हुए, न आपने कोई जल्दी की। न आपने ये कहा कि आप दोनों चीज़ ले आते हैं। मैं होता तो कह देता कि दोनों चीज़ ले आता हूं, जो मन हो खा लेना। बाकी पैक करा कर ले जाता।"
उन्होंने कहा, “ये बच्चा है। इसे अभी निर्णय लेना सीखना होगा। दो चीज़ लाना बड़ी बात नहीं थी।
बड़ी बात है, इसे समझना होगा कि ज़िंदगी में दुविधा की गुंजाइश नहीं होती।
फैसला लेना पड़ता है मन का क्या है, मन तो पता नहीं क्या-क्या करने को करता है। पर कहीं तो मन को रोकना ही होगा।
अभी नहीं सिखा पाया तो कभी ये कभी नहीं सीख पाएगा।
“इसे ये भी सिखाना है कि जो चाहा, उसे संतोष से स्वीकार करो।
इसीलिए मैं बार-बार कह रहा था कि अपनी इच्छा बताओ।
इच्छा भी सीमित होनी चाहिए।
“और एक बात, इसे समझाता हूं कि जो एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते, वो हर चीज़ के लिए मचलते हैं।
और सच ये है कि हर चीज़...न किसी को मिलती है, न मिलेगी।

Friday, 10 August 2018

साप आणि करवत

एकदा एक साप सुतारकामाच्या वर्कशॉप मध्ये पोहोचला. वळवळत जात असताना तो एका करवतीला घासून गेला आणि त्यामुळे त्याला किंचितशी जखम झाली, झटकन तो वळला आणि त्याने त्या करवतीचा चावा घेतला त्याबरोबर त्याच्या दातानां आणि तोंडाला चांगलीच इजा झाली. मग काय झाले आहे ते न समजावून न घेता त्याने असा समज करून घेतला की, त्या करवतीने माझ्यावर हल्ला केला, मग त्याने असे ठरवले की, त्या करवतीला घट्ट विळखा घालायचा आणि सर्व ताकद लावून तिचा श्वास बंद पडायचा पण असे करताना सापालाच प्रचंड जखमा झाल्या आणि तो विव्हळत मरण पावला.
   काही वेळा रागाच्या भरात आपण प्रतिक्रिया व्यक्त करतो आणि ज्यांनी आपल्याला इजा पोहचवली आहे अशांना दुखावतो, पण शेवटी असे लक्षात येते की, आपण स्वतःलाच आणखी इजा करून घेतली आहे.
   आयुष्यात काही वेळा परिस्थिती, माणसे, त्यांचे वागणे, त्यांचे बोलणे या सगळ्यांकडे दुर्लक्ष करणेच योग्य ठरते. काही वेळा प्रतिक्रिया व्यक्त न करणें हेच अधिक योग्य ठरते कारण त्यामुळे नंतरच्या घातक आणि भयंकर परिणामांचा त्रास सहन करावा लागत नाही. त्यामुळे कधीही द्वेषाने तुमच्या आयुष्याचा ताबा घेऊ नये यांची काळजी घ्या. कारण अन्य कशाही पेक्षा प्रेमातच जास्त ताकद असते.
आणि म्हणूनच स्वभाव समजून एखादे रिलेशन सुधारण्याचा प्रयत्न झाला तर जीवनात दुःख असणार नाही.

Tuesday, 7 August 2018

शायरी के पन्ने

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दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया...
अंगड़ाई उसने नशे में ली जब उठा के हाथ...
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ना दिल से होता है ना दिमाग से होता है
यह प्यार तो इत्तेफाक से होता है
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क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
क्या तिरे आशिक़ हुए थे दर्द-ओ-ग़म खाने को हम
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समझदार होने का ये नुकसान होता है की.
दिल की हजारों ख्वाहिशें, दिल मे ही रह जाती हैं.
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लफ़्ज़ों में दो बूँद इश्क डालिए
लम्हे मुकम्मल से लगने लगेंगे..
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ना जाने वो कौन सी डोर है,
जो तुझ संग जुड़ी है...
दूर जाए तो टूटने का डर है,
पास आए तो उलझने का डर है
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जरा सी बात पर वो नाराज हो गए।
हम उनका कल और वो किसी के आज हो गए।
====
खूबसूरत सा एक पल किस्सा बन जाता है,
जाने कब कौन जिंदगी का हिस्सा बन जाता है,
कुछ लोग ऐसे भी मिलते हैं जिंदगी में,
जिनसे कभी न टूटने वाला रिश्ता बन जाता है।
====
जब हमारी आपकी बातें हों, कोई भी खलल न हो,
गैर तो दूर की बात है, आईने का भी दखल न हो...

Sunday, 5 August 2018

मनापासून आभार

माझ्या एक मैत्रिणीने पाठवलेली कविता "मनापासून आभार" - अती सुंदर रचना आभार व्यक्त करण्यासाठी. नक्की वाचा आणि मनापासून आभार व्यक्त करण्यासाठी शेयर करा.
किती मानू आभार
शुभेच्छांचा संभार
प्रेम सरींचा वर्षाव
पुष्पगुच्छांची बहार
मनापासून स्वीकार
करते सस्नेह नमस्कार
असाच स्नेह बरसावा
भेदतो ह्रदयास आरपार
मखमली मऊशार
संदेश गोड हळूवार
छेडती मनाची तार
आनंदाची झंकार
असेच मिळो प्रेम अपार
लाभो साथ,नको तक्रार
अनमोल हिरे मित्रत्वाचे
आनंदी क्षणांचे साक्षीदार
तुमच्या छान छान शुभेच्छांनी माझ्या वाढदिवसाला एका आगळ्याच विलक्षण आनंदाच्या सणाची झळाळी मिळाली व माझा दिवस लख्ख प्रकाशाने उजळून टाकला...शब्द कमी पडतात खरेतर.खरच मनापासून आभार मानते.अशीच कायम आपुलकी असावी हीच सदिच्छा.धन्यवाद त्रिवार धन्यवाद!!

चूहा और कसाई


एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।

एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।

उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी।

ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर कबूतर को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।

कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?

निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।

मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।

हताश चूहे ने बाड़े में जा कर बकरे को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।

उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,  जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था।

अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।

तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे कबूतर का सूप पिलाने की सलाह दी।

कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।

खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।

कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।

चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ।

अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।

समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।

अपने-अपने दायरे से बाहर निकलिये। स्वयं तक सीमित मत रहिये। सामाजिक बनिये..

आटे के लडडू

विनम्र आग्रह --एक बार पढना जरूर

सुजाता को लड़का हुआ, नॉर्मल डिलीवरी होने के कारण उसी दिन हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई,
घर में सभी बहुत खुश थे क्योंकी पहले एक तीन साल की लड़की थी,
सासू जी बहू के आराम के लिए हाल के पास वाले कमरे में बिस्तर लगा रही थी।
बहू शाम को घर आ गई, बच्चे को देखने और सुजाता की खबर पूछने रिश्तेदार व पड़ोसी आने लगे,
सासु माँ घर का सारा काम भी करती,
सुजाता व बच्चे का ध्यान रखती और आनेवालों का स्वागत भी करती।
कहते हैं सभी एक जैसे नहीं होते ,
पान्चो उगंलिया एक समान नही होती है,

सभी अपनी अपनी सलाह सुजाता की सास को देकर जाते, सुजाता को सब अंदर सुनाई देता था,
उसी समय एक पड़ोसी की पत्नी आई और कहने लगी,
देखो वैसे तो हम डिलीवरी में पूरा मेवा "काजु,बदाम,पिस्ता गोदं,सब डालकर लड्डू बनाते हैं ,
पर अपनी बेटियों के लिए, अब बहु है तो थोड़ा कम ज्यादा भी चल जाता है,
बादाम बहुत मंहंगी है इसलिए 500 ग्राम के बदले 150 ग्राम ले लेना ,
और वैसे ही सभी मेवा थोड़ा थोड़ा कम कर देना ,
और लड्डू कम न बने इसके लिए गेहूं का आटा ज्यादा ले लेना,

सुजाता की सास सब सुनती रही अंदर सुजाता भी सब सुन रही थी,
पड़ोसन चली गई, ससुर जी बोले " देखो में बाजार जा रहा हूँ,
तुम मुझे क्या क्या लाना है लिखवा दो?
कोई चीज बाकी ना रहे,
तभी सुजाता की सास ने सामान लिखवाया, हर चीज बेटी की डिलीवरी के समय से ज्यादा ही थी ,
ससुर जी ने हंसते हुए पूछा इस बार सभी सामान ज्यादा है क्या तूम भी लड्डू खाने वाली हो?
तब सुजाता की सास बोली "सुनों जब बेटी को डिलिवरी आई थी तब हमारी परिस्थिति अच्छी नहीं थी ,और आमदनी भी कम थी ,

तब आप अकेले कमाते थे, अब बेटा भी कमाता है इसलिए मैं चाहती हूँ की बहू के समय, में वो सब चीजें बनाऊँ जो बेटी के समय नहीं कर पाई,
क्या बहू हमारी बेटी नहीं है।
और सबसे बड़ी बात यह की बच्चा होते समय तकलीफ तो दोनों को एक सी ही होती है ,
इसलिए मैंने बादाम ज्यादा लिखे हैं लड्डू में तो डालूंगी ही ,पर बाद में भी हलवा बनाकर खिलाउंगी,
जिससे बहू को कमजोरी नहीं आये और बहू -पोता, हमेंशा स्वस्थ रहें!
सुजाता अंदर सबकुछ सुन रही थी और सोच रही थी में कितनी खुशकिस्मत हूँ।
और थोड़ी देर बाद जब सासुजी रूम में आई तो सुजाता बोली "क्या मैं आपको मम्मीजी की जगह मम्मी कहूँ?
बस फिर क्या? दोनों की आँखों में आँसू थे।

दोस्तो बहुत छोटी छोटी सी बाते होती है ,
जिनसे रिश्ते मजबूत भी हो सकते है,और बिखर भी सकते है ,
कभी गौर करना ,
जिस बात पर आप और हम घर मे क्लेश कर लेते है
वो कुछ महत्व पूर्ण बात नही होती है ,
महत्व पूर्ण होता है ,हमारा अहम ,
जो आहत होता है ,
अरे जब हम एक ही परिवार का हिस्सा है तो मेरा अहम आपके अहम से बडा कैसे हो गया ,
बडो के प्रति सम्मान और छोटो के लिए स्नेह का भाव रखिऐ ,
फिर देखीऐ ,
आपका परिवार समाज के लिए आदर्श बन जाऐगा,
याद रक्खे,आपके लिऐ जो आपका परिवार कर सकता है
ओर कोई नही करेगा,
बाहर वालो का काम लोगो के घर मे आग लगाकर हाथ सेकने का होता है ,,
लोगो के बहकावे मे ना आए ,
अपने विवेक से सही गलत का फैसला करे ,
आप सभी का दिल से धन्यवाद!

SACHIN TENDULKAR & SAD STORY OF ANIL GURAV

There were two extremely talented batsmen from Mumbai. Their coach was Ramakant Achrekar Sir. Both had a brother named Ajit. While one Ajit guided his younger brother in the right direction to give India Sachin Tendulkar, the other Ajit went down and took his brother and his potentially great career down along with him. This is the story of that unfortunate batsman whom Sachin used to address as “Sir”.

He is Anil Gurav and this is his story:

He used to play for the Mumbai U-19 team.Coach Ramakant Achrekar used to ask youngsters Tendulkar and Kambli to watch Gurav's strokeplay and learn from him.He was called the Viv Richards of Mumbai and everyone thought it would be Gurav who would first go on to play for India.He says regarding his association with Sachin :

"I was his captain at Sassanian (cricket club). He wanted to use my bat but was too shy to ask me directly. The request came through Ramesh Parab (now international scorer at Wankhede stadium), and I told Sachin he could use it provided he made a big score. He said,'I will, sir' and went on to score a century with my SG bat."

However he fell a victim to circumstances. His brother Ajit became a sharpshooter of an underworld gang. Police officers used to pick up Gurav and his mother repeatedly and severely beat them up to find out the whereabouts of his brother Ajit, sometimes detaining them for days.

By the time this ordeal ended, Gurav's cricketing career was also over. He took to heavy drinking. Everything was lost, his career, his dreams, all went up in smoke.

He now lives in a shabby 200 sqft room in a slum in Nalasopara, Mumbai.

Gurav says he last met Sachin in the early 1990s at the Islam Gymkhana at Marine Lines, when he saw Sachin getting into his car surrounded by security guys. Sachin saw him and at once recognized him. He called him and spoke for a couple of minutes and asked him to come to his home.

Now while Sachin Tendulkar has become a legend of the Cricket world who went on to achieve everything, Anil Gurav is a 48-year-old incorrigible drunk striving to keep his family together

Both of them were talented but talent is not the only component.

*This story illustrates how a good family background and support is invaluable,Not everyone is lucky enough to have it. So please appreciate the efforts taken by your family to bring you to the stage you are in your life*

What is friendship - Yashika Asnani

Today is friendship day and here is a beautiful poem I came across from a newspaper. This is my friendship day wish to all my readers and followers who have given me such love. Please read till the end and share this poem written by Yashika Asnani with all your friends. Happy Friendship Day.


Image credit : The Holiday Spot

When there are robots who follow you from back, 
And say ‘YES’ to all you ask like spack, 
There comes those FEET to walk along with yours 
That’s friendship like oars. 

When your house is burnt on fire,
Need help! But whole world turns liar, 
There comes a helping HAND as divinity 
That’s friendship till infinity...

When people judge you by your pockets strength 
And become blind to your soul’s depth and length, 
There comes those EYES who seeks your inner side 
That's friendship of pride.

When the world makes you feel like a queen, 
And brags you like a wonderful teen, 
There comes a VOICE bringing you back to earth 
That’s friendship of worth.. 

When peeps change their faces with masks they take, 
And it becomes difficult to tell who’s real or fake, 
There comes a SOUL who enlightens your way 
That’s friendship through gray... 

When you take your last breath and are off on a boat, 
And there are crocodile tears but inside they gloat, 
There comes MOURN from your real soulmate 
That’s friendship till fate. 

Thanks for reading till the end. You can read my collection on friendship here. Share this with all of your friends and comment your wishes in the comment section below. 



Thursday, 2 August 2018

शायरी के पन्नें

छुपी होती है लफ्जों में गहरी राज की बातें....  
लोग शायरी या मज़ाक समझ के बस मुस्कुरा देते हैं....!
=====
वक़्त का  सितम तो देखिए
खुद गुज़र गया हमे वही छोड़ कर
=====
फासले और बना लो एतराज हमने कब किया
तुम भी भुला ना सकोगे वो अंदाज हू मे
=====
नज़र न आये तो सौ वहम दिल में आते हैं..
वो एक शख्स जो अक्सर दिखाई देता है।।
=====
दोस्त ही है जो जवान रखते है साहब वर्ना
बच्चे वसीयत पूछते है,
और रिश्ते हैसियत पूछते है !
=====
हो इजाजत  तो तुम्हे  माँग  लू  रब से ..
सुना  है  सावन  मे मागी  दुवा ,बेकार नही जाती
=====
मेरी एक चाहत है, कि
        एक चाहने वाला ऐसा हो
जो चाहने में..
       बिलकुल मेरे जैसा हो,
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दरमियां हमारे चाहे
इश्क हो
अश्क़ हो
रश्क हो
शर्त बस इतनी है जो भी हो सच हो
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जिंदगी भी आजकल जुदा जुदा सी लगती है,
साँस भी लूँ तो कमबख़्त जख़्मों को हवा लगती है !!

त्याग की कथा

भरतजी तो नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्नलालजी महाराज उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं ।

एक एक दिन रात करते करते, भगवान को वनवास हुए तेरह वर्ष बीत गए ।

एक रात की बात है, कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी । नींद खुल गई । पूछा कौन है ?

मालूम पड़ा श्रुतिकीर्तिजी हैं । नीचे बुलाया गया ।

श्रुति, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।

राममाता ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ?

श्रुति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।

उफ ! कौशल्या जी का कलेजा काँप गया ।

तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्नजी की खोज होगी, माँ चलीं ।

आपको मालूम है शत्रुघ्नजी कहाँ मिले ?

अयोध्या के जिस दरवाजे के बाहर भरतजी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला है, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।

माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्नजी ने आँखें खोलीं, माँ !

उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।
माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?

शत्रुघ्नजी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्षमण भगवान के पीछे चले गए, भैया भरत भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?

कौशल्याजी निरुत्तर रह गईं ।

देखो यह रामकथा है...

यह भोग की नहीं त्याग की कथा है, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही है, और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा ।
चारो भाइयो का प्रेम और त्याग  एक दूसरे के प्रति अलौकिक है ।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती है ।

गुरु चे महत्व


--मी एकाला विचारले, "गुरुची कृपा किती होऊ शकते?" तो माणूस त्या वेळी एक सफरचंद खात होता. त्याने एक सफरचंद माझ्या हाती ठेवले आणि विचारले, "सांगा पाहू यांत किती बिया असतील?"
-- सफरचंद कापून मी त्यांतील बिया मोजल्या आणि म्हणालो, "यात तीन बिया आहेत"
त्याने त्यातील एक बी आपल्या हाती घेतली आणि मला विचारले, "या एका बियेमध्ये किती सफरचंदे असतील असे तुला वाटते?"
मी मनातल्या मनातच हिशोब करू लागलो,एका ह्या बियेपासून एक झाड, त्या झाडावर अनेक सफरचंदे लागणार, त्या प्रत्येक सफरचंदांत पुन्हा तीन बिया, त्या प्रत्येक बियेमधून पुन्हा एक झाड, त्या झाडांना पुन्हा तशीच तीन बिया असणारी फळे लागणार. अबब! ही प्रक्रिया चालूच राहणार! कसा सांगू मी त्या बियेमध्ये असलेल्या भावी फळांची संख्या?. मी चक्रावलोच.
माझी अशी अवस्था पाहून तो माणूस मला म्हणाला, " अशीच गुरुची कृपा आपल्यावर बरसत असते. आपण फक्त भक्तीरूपी एकाच बीजाचा उदय आपल्या मनांत करवून घेण्याची गरज आहे."
*गुरु एक तेज आहे.* गुरूंचे एकदा आगमन झाले की मनातील संशयरूपी अंधःकार कुठल्याकुठे पळून जातो.
*गुरु म्हणजे एक असा मृदंग* आहे की ज्याच्या एका झंकाराने अनाहत नाद ऐकू यायला सुरुवात होते.
*गुरु म्हणजे असे ज्ञान* की ज्याची प्राप्ती झाल्याबरोबर मनातील भयाची सगळी भावनाच लोप पावते.
*गुरु ही एक अशी दीक्षा आहे* की ज्याला गुरुदीक्षा प्राप्त झाली तो हा भवसागर तरून गेलाच म्हणून समजा.
*गुरु ही एक अशी नदी आहे* जी सतत आपल्या प्राणांतून वाहत असते.
*गुरु म्हणजे असा सत् चित् आनंद आहे* जो आम्हाला आमची खरी ओळख करून देतो.
*गुरु म्हणजे एक बासरी* आहे जिच्या नुसत्या मंजुळ आवाजानेच आपले मन आणि शरीर आत्मानंदात मग्न होऊन जाते.
*गुरु म्हणजे केवळ अमृतच*. ह्या अमृताच्या सेवनाने तहान कायमची आणि पूर्णपणे शमते.
*गुरु म्हणजे एक अशी कृपाच* असते जी केवळ कांही भाग्यवान आणि सत्पात्री शिष्यांनाच प्राप्त होते आणि काहींना अशी कृपा मिळूनही ती मिळालेली त्यांना समजत नाही.
*गुरु कुबेराचा अक्षय्य खजिनाच आहे* आणि त्या खजिन्याचे मोल होऊच शकत नाही.
*गुरू म्हणजे एक प्रसाद आहे*. ज्याच्या भाग्यात असेल त्याला कांहीच मागण्याची इच्छाउरत नाही.*"गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णू गुरुर्देवो महेश्वरः*
*गुरुःसाक्षात् परब्रम्ह तस्मैश्रीगुरवे नमः।।"*
माझ्या जीवनात मार्गदर्शन करणाऱ्या
ज्ञात-अज्ञात, लहान-मोठया अशा सर्वांना,

Strategic Alliances

  Strategic Alliances -  For any achievement gone need the right person on your team.  Sugriv was very keen on this. Very first Sugriva was ...