प्रस्तावना
आज इस आर्टिकल में भारत के निसर्ग के बारेमे और भी रोचक जानकारी बताने जा रही हु। इस जगह पर एकबार तो आप जरूर जाना पसंद करेंगे अगर आप जंगल सफारी करनेका शौक रखते है तो। यह उन जगह में से एक है जहाँ निसर्ग देवता ने अपना आशीर्वाद दिल खोल कर बरसाया है। यह जगह ब्रम्हपुत्र की सहयोगी नदियों से सिंचित है।
भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के जलपाईगुड़ी जिले के माल बाजार ब्लॉक में यह गोरुमारा राष्ट्रिय उद्यान है। हिमालय तलहटी के डूअर्स क्षेत्र में यह उद्यान गेंडो का घर बना है। डूअर्स का अर्थ है भूटान का दरवाजा। घास के मैदान और जंगल गोरुमारा राष्ट्रिय उद्यान के मुख्य अंग है। तिलबारी नामक बस्ती में पश्चिम बंगाल पर्यटन मंत्रालय ने आपके रहिवास के लिए रिसोर्ट भी बनवाया है जो की आपके लिए अत्यंत आरामदायक है जिसका बुकिंग आप आपकी पसंद की ट्रैवल एजेंसी से करवा सकते है। यहाँ का भ्रमण ध्वनि क्र. है ०९८७४७ ३२२२३।
छायाचित्र श्रेय : विकिपेडिया
इतिहास तथा वर्तमान
पर्यावरण तथा जंगल मंत्रालय, भारत सरकार के एक एक सर्वेक्षण में सन २००९ में इस उद्यान को सुरक्षा की दृष्टिकोण से सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया था। मूर्ति और रैडक नदियों के बाढ़ मैदान में बसा यह जंगल ८० वर्ग किमी क्षेत्रफल का है। सन १८९५ तक इसका क्षेत्रफल ७ वर्ग किमी से भी कम था। उस समय इसे आरक्षित वन घोषित किया गया। फिर सन १९४९ इसे अभयारण्य घोषित किया गया क्युकी भारतीय गेंडो के प्रजनन प्रकल्प के लिए चुना गया था। फिर ३१ जनवरी १९९४ के दिन इसे राष्ट्रिय उद्यान घोषित किया गया। आसपास के गावो के कमसे कम १०,००० लोगो की रोजीरोटी इस जंगल से आती है जिसमे ये लोग पर्यटन से जुड़ा हुआ काम करते है। यह एक निसर्ग और नैसर्गिक सम्पदा संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय संघ मतलब International Union for Conservation of Nature & Natural Resources (IUCN) पंजीकृत उद्यान है। यहाँ पर रहने वाले सभी प्रकारके जानवारो पर प्राणीशास्त्र संबधित अभ्यास किया जाता है।
गोरुमारा राष्ट्रिय उद्यान हर गुरुवार को साल भर बंद रहता है। तथा १६ जुन से १५ सप्टेंबर तक हर साल मॉनसून की वजह से इसे बंद रखा जाता है।
वन्य जीवन
इस उद्यान में सवाना, शिमूल, साल, टिक, शिरीष, बाम्बू इत्यादि पेडोकी कई प्रजातिया पायी जाती है। ५० तरह के स्तनपायी जानवरो का ये नैसर्गिक निवास पक्षियोकि १९४ प्रजतियोसे चहकता है। सरीसृपोंकी २२ प्रजातियां यहाँ पायी जाती है। २७ प्रजातियोकि मछलिया और ७ तरह के कछवे जंगल के तालाब, जल-प्रवाह और नदियोंका पानी आपसे में बाटते है।
एक सींग वाला भारतीय गेंडा इस जंगल की शान है।
हाथी, जंगली भैसा, शेर, तेंदुआ / चिता, बंगाल फ्लोरिकन, जालीदार केंचुली वाला अजगर, बड़ी गिलहरियाँ, बन्दर, अन्य जंगली बिल्लियाँ भी यहाँ आपको दिखेंगी।
सरीसृप के साथ नेवले की कई प्रजतियाँ प्रायः यहाँ निवास करती है।
यह एक प्रबंधित हाथी क्षेत्र (Managed Elephant range - MER) भी है।
सांबर, चीतल, बार्किंग हिरन, हॉग हिरन जैसी हिरन की की प्रजतियाँ यहा के हरे मैदानों और जंगलोंमें आपको घूमते नजर आएंगे।
बौना सूअर (Pygmy hog) - लुप्त होती हुई सूअर प्रजतियो में से एक यहाँ पायी जाती है। यहाँ इसका सरंक्षण एवं सवर्धन भी किया जा रहा है।
सियार, लोमड़ी, ऊदबिलाव, भालू, छछूंदर, चमगादड़, जंगली चूहे, सल्य (porcupine), खरगोश, छिपकली इत्यादि की अनेक प्रजतियाँ यहाँ पायी जाती है।
मोर, हॉर्न बिल, कठफोड़वा, कबूतर, कोयल, ओरियल, बकवादी (babbler), मिनिवेट, तीतर, मैना, तोता, सारस, उल्लू इत्यादि पक्षियोका यह स्थायी निवास स्थान है।
ब्रह्मिनी बदख, पनकुकरी - यह पक्षी प्रजातियाँ यहाँ प्रवास करते हुए हर साल आती है।
जलकाग, शाग, डार्टर, सफ़ेद बगुला यह भी यहाँ पाए जाते है।
भूगोल
लतागुड़ी, चालसा और नागराकाटा इन गावोके बीचेमे यह जंगल है।
सिलीगुड़ी - गुवाहाटी राष्ट्रिय महामार्ग ३१ सबसे नजदीकी महामार्ग है।
सिलीगुड़ी - ७५ किमी, जलपाईगुड़ी - ५२ किमी और लतागुड़ी - ८ किमी दुरी पर बेस नजदीकी शहर है।
नजदीकी हवाई अड्डा - बागडोरा ८०किमी। यहाँ से चाय के बागों के बिच से जाते हुए रास्तो से आप २ घंटो में टैक्सी या बस से गोरुमारा तक पोहोच सकते है।
नजदीकी रेलवे स्थानक - चालसा - बड़ी लाइन (ब्रॉड गेज)। माल बाजार जंक्शन २० किमी दुरी पर है।
नदिया - जलढाका, मूर्ति, रैडक, गारती, इंडोग।
यहाँ भारतीय रूपया ही इस्तेमाल में लाया जाता है।
हिंदी, इंग्लिश और बंगाली भाषाएँ बोली जाती है।
जंगल के बिच से राज्य महामार्ग ७१७ जाता है। जंगल में महाकाली का मंदिर भी है।
गूगल नक्शा
जंगल का दर्शन
जंगल में जंगली जानवर तथा पंछियो के दर्शन हेतु कई जगह पर दर्शन मीनार (watch tower) बने हुए है। वन विभाग से अनुमती लेकर उनके नियुक्त मार्गदर्शकों के साथ ही आप जंगल में भ्रमण करें - यही सही है। इस समय आप निचे दी गयी जगहों पर जा सकते है।
जतराप्रसाद: यह दर्शन मीनार मूर्ती नदी के किनारे गोरुमारा फारेस्ट बंगले से १०० मि की दुरी पर है। यह नाम जतराप्रसाद नामक हथनी के सम्मान में इस जगह को दिया गया है - इस हथनी अनेक अनाथ हाथी के बच्चो की जिंदगी उनकी सरोगेट माँ बनकर बचायी थी। इस जगह पर दो नमक रिसाव है जिस वजह से सबेरे और देर दोपहर बाद इस जगह पर पर्यटन करने का मज़ा ही कुछ और है।
राइनो पॉइंट: इस से भी आप वन्य जीवन का दर्शन कर सकते है। ये जगह जतराप्रसाद से नजदीक है।
मेथला दर्शन मीनार: यह गोरुमारा के पूर्वी दिशा में है कालीपुर पर्यवरण ग्राम (eco village) में। बैलगाड़ी की जंगल सफारी यहाँ का अत्यंत अनोखा अनुभव है।
चुकचुकी: ये दर्शन मीनार पक्षी दर्शन के लिए प्रसिद्ध है। रामसे और लतागुड़ी के बीचमे ये जगह आती है।
चंद्रचूड़ दर्शन मीनार: जंगल के पूर्व की तरफ घास के मैदान के बीचो बिच ये जगह है। ये वैसे छपरामारी जंगल में आता है। यहाँ एक छोटा तालाब है और नमक का रिसाव भी है। इस जगह पर पहले खुनिया जंगल ग्राम था जिसे जंगल के बाहर पुरवासित किया गया और यह जगह एक घास का मैदान बन गयी।
छपरामारी दर्शन मीनार: यह छपरामारी जंगल में एक और जगह है जहा से जंगली जानवरो को देखा जा सकता है। झालोंग-बिंदु पहाड़ियों के पास छपरामारी फारेस्ट बंगले के पास यह मीनार बनाया गया है।
उम्मीद है यहाँ दी गयी मालूमात आपको पसंद आयी होंगी - आप इस जगह पर जरूर जाये और आपने वहाँ क्या महसूस लिया जरूर निचे कमेंट करीये। आप और किस जगह के बारेमे जानना चाहते है जरूर कमेंट करिये जल्द ही उस जगह की मालूमात आपके लिए दी जाएगी।
धन्यवाद!
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