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Monday, 19 October 2015

झटका ती माती

एके दिवशी एका शेतक-याच गाढव शेतातल्या कोरड्या विहिरीत पडलं. जखमी झाल्यामुळे ते विव्हळत होतं आणि मोठ्याने ओरडत होतं.

लोकं जमा झाले. शेतकरी धावत आला त्याने बराच विचार केला फार प्रयत्न केले. त्या गाढवाला त्या विहीरीतून बाहेर काढण्याचे पण काही करता त्याला बाहेर काढणे जमत नव्हते.

दिवस मावळायला आला होता.  शेतकरीही आता थकला ही होता आणि कंटाळला होता. त्याने विचार केला, 'आता हे गाढव तर असेही म्हातारे झाले आहे असेही निरुपयोगी आहे आणि ती विहिरही कोरडीचं आहे. त्याला बाहेर काढण्या पेक्षा त्याला बुजून द्यावे. विहीरीत माती लोटावी. गाढवाचा प्रश्न ही सुटेल आणि शेतातली ही विहीरही बुजली जाईल.'

मग काय जमलेल्या सार्या लोकांकडून त्याने मदत मागीतली. आणि सगळे कामाला लागले कुदळ फावड्यांनी माती टाकायला सुरुवात झाली.

मध्ये पडलेल्या त्या जखमी गाढवाला काही कळेनासे झाले. विहीरीत पडल्याने शरीराला झालेल्या जखमांची वेदना आणि त्यात भर म्हणजे आयुष्यभर ज्या मालकाची चाकरी केली त्याची ओझी वाहीली आज तोचं मालक जिवावर उठला. ते दुखाने अजून मोठयाने ओरडू लागले. वरुन माती पडतचं होती.

काही वेळाने गाढवाचा ओरडण्याचा आवाज थांबला. सागळ्यांना वाटले गाढव मेलेचं बहुतेक. शेतक-याने सहज विहीरीत डोकावून पाहीले तर तो पहातचं राहीला. अंगावरची माती झटकत गाढव उभे राहीले होते. लोकांनी अजून पटापटा माती टाकणे सुरु केले.
परत पाहीले तर गाढव त्याचा त्याचा मग्न होता तो वरुन माती पडली की झटकायचा आणि त्या पडलेल्या मातीच्या थरावर उभा रहायचा.

असं करता करता कोरडी विहीर बरीचं भरली आणि कठडा जवळ येताचं ते गाढव तो कठडा ओलांडून बाहेर आले.

आयुष्यात वेगळे तरी काय होतं ?
आपण खड्यात पडलो तर आपणास काढायला कोणीतरी एकचं येते पण आपल्यासाठी खड्डे खणणारे आणि खड्यात पडल्यावर माती लोटणारे आपल्याला गाडण्याचा प्रयत्न करणारे बरेचं भेटतात. म्हणून स्वतःवर नेहमी विश्वास ठेवा. आपले डोके नेहमी शांत ठेवा.  समस्या कीतीही मोठी असो, शांत मनाने ती हाताळा. खड्ड्यात पडलो आणि कोणी पाडलं ह्या बद्द्ल दुखः करण्यापेक्षा त्यातून बाहेर कसे पडायचे हा विचार करा. झटका ती माती आणि त्या मातीची एक एक पायरी करत. हळूहळू करत वर या.


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एक फ़क़ीर की कहानी

एक फ़क़ीर था। वह हर रोज ईश्वर की भक्ती  करता था। एक दिन वह किसी कामसे अपने घर से बाहर गया था। उसे रस्ते पर १००० रुपये गिरे हुए मिले। फिर वह सोचने लगा की, "इन रुपयोंका क्या खरीदू?"
सबेरे से लेकर शामतक उसका पूरा समय इसीमे गया और उसका रोजका ईश्वर भक्ती काम उसने किया नहीं। 
शाम के समय जब उसने दिए लगाये तब उसे खयाल आया, "अरे आज तो मैंने उपरवाले सबके मालिक को तो याद ही नहीं किया!"
तब उस फकीरने उन १००० रुपयोंको फेक दिया। और ईश्वरसे कहा, "ऐ मालिक, हे करुणानिधान, मैंने सारा दिन ये सोचनेमे लगा दिया की इन १००० रुपयोंसे क्या खरीदू और तुझको भुला दिया। जिनके पास लाखो करोडो है वो कैसे तुझको याद करते होंगे?"

इसी तरह हम इंसान भी अपना समय संपत्ती का आय और व्यय कैसे करे इसमेही समय बिता देते है और हमें जो भी सुख सुविधाये मिली है उनके लिए कम से कम भगवान का धन्यवाद भी अदा नहीं करते। 

आजसे एक नियम जरूर ले की दिनभरमे जो भी अच्छा हुआ चाहे छोटा हो या बड़ा उसके लिए हम धन्यवाद देंगे उस उपरवालेका। 


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Saturday, 17 October 2015

पूजा से सम्बंधित 30 जरूरी नियम



सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30  ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ प्राप्त हो सकते हैं।

ये नियम इस प्रकार हैं...

1. सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।

2. शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

3. मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास जिसके तीन लव घास की अग्रभागपर होती है।) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है। 

4. सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

5. तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

6. शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

7. प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।

8. स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

9. मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

10. केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।

11. किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।

12. दूर्वा रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।

13. मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ा सकते हैं।

14. शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।

15. तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है। 

16. आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।

17. तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

18. हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

19. बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

20. पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।

21. पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

22. घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

23. पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।

24. रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।

25. भगवान की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए। 

26. पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

27. गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें। 

28. अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार, काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।

29.  मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता --पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।

30. विष्णु की चार, गणेश की तीन, सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।


इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नियम यह है की जो भी भगवान की पूजा - अर्चना सेवा आदि आप कर रहे हो उसे पूरी श्रद्धा के साथ करिये और उस समय केवल ईश्वर का ही ध्यान करे इर्दगिर्द क्या हो रहा है इसमें ध्यान न दे खास कर फ़ोन में। 




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गणेश विसर्जन


गणेश विसर्जन जल में क्यों होता है? और  गणेशोत्सव 10 दिन ही क्यों ?

उत्तर : धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार गणेश चतुर्थी से श्री वेद व्यास ने महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था।

10दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया है। तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर ठंडा किया था। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है. 


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Wednesday, 14 October 2015

मानव सेवा ही माधव सेवा है

एक नई नवेली दुल्हन जब ससुराल में आई तो उसकी सास बोली : बींदणी कल माता के मन्दिर में चलना है।

बहू ने पूछा : सासु माँ एक तो ' माँ ' जिसने मुझे जन्म दिया और एक ' आप ' हो और कोनसी माँ है ?

सास बडी खुश हुई कि मेरी बहू तो बहुत सीधी है । सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है। सब औरतें जायेंगी हम भी चलेंगे ।

सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती है । आगे सास पीछे बहू ।

जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की मूर्ति को देखकर कहा : माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है , मैं बाल्टी लाती हूँ और दूध निकालते है ।

सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो " पागल " है और बोली बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे सकती। चलो आगे।

मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की मूर्ति दिखाई दी। फिर बहू ने कहा - माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा। 

सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया। और बोली - बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा ? चलो अंदर चलो मन्दिर में। 

मंदिर के अंदर जाने के बाद सास बोली - बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी करेंगी ।

बहू ने कहा - माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती है ? जब पत्थर की गाय दूध नही दे सकती ? पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता ? पत्थर का शेर खा नही सकता ? तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है ? अगर कोई दे सकती है तो आप ......... है आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। " 

तभी सास की आँखे खुली ! वो बहू पढ़ी लिखी थी, तार्किक थी, जागरूक थी , तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को जाग्रत कर दिया ! 

अगर ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो पहले असहायों , जरुरतमंदों , गरीबो की सेवा करो। परिवार , समाज में लोगो की मदद करे । मानव सेवा ही माधव सेवा है " ।

"कर्म ही पूजा है " - भगवत गीता। प्रत्येक मनुष्य में आत्म स्वरुप ईश्वर स्वयं विराजित है । इनमे ही प्रभु के दर्शन करे । बाकी मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे तो मानसिक शांति के केंद्र हैं ना कि ईश्वर प्राप्ति के स्थान | 


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परिणाम मेरे बच्चे परिणाम

एक बार एक ब्राहमण मर गया, वो स्वर्ग के वेटिंग लाइन में खडा था। 

उनके आगे एक काला चश्मा जींस, लेदर जैकेट पहन कर लडका खडा था। 

धर्म राज लडके से : कौन हो तुम?

लड़का : मैं एक बस ड्राइवर हूँ। 

धम॔राज : ये लो सोने की शाल और अंदर आ आकर गोल्डन रूम ले लो। 

धम॔राज ब्राहमण से : कौन हो तुम?

ब्राहमन: मैं ब्राहमण हूँ, और 40 सालो से लोगों को भगवान के बारे में बताया करता था। 

धम॔राज : ये लो सूती वस्त्र और अंदर आ जाओ। 

ब्राहमण : भगवान, ये गलत है ये तेज गति से गाड़ी चलाने वाले को सोने की शाल और जिसने पूरा जीवन भगवान का ज्ञान दिया उसे सूती वस्त्र?

धम॔राज : परिणाम मेरे बच्चे परिणाम... जब तुम ज्ञान देते थे सभी भक्त सोते रहते थे। लेकिन जब यह बस तेज गति से चलाता था तब लोग सच्चे मन से भगवान को याद करते थे। 

हमेशा performance देखी जाती है position नही। 


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Tuesday, 13 October 2015

मी तर श्रीमंत आहे.



शाळेने पत्रक काढलं,'; यंदाच्या वर्षापासून शाळेतल्या सर्वात गरीब मुलाला आर्थिक मदत द्यायची आहे, तेव्हा शिक्षकांनी प्रयत्नपूर्वक अचूक मुलगा निवडावा,ज्यायोगे ही मदत योग्य विद्यार्थ्याला/विद्यार्थिनीला मिळेल !

आता सर्वात गरीब मुलगा शोधणे म्हणजे, खरोखर पंचाईतच होती. ही छोटी मुलंसुद्धा इतकी नीटनेटकी राहतात की, अगदी एक विजार, एक सदरा असेल,तरी तो रोज धुऊन-वाळवून त्याची इस्त्री केल्यासारखी घडी करून मगच तो घालतात.

गरीब मुलगा शोधायचा कसा ? आणि प्रत्येकाला विचारायचं तरी कसं, तुमच्यात कोण गरीब; तेही सर्वात गरीब म्हणून? मोठीच अडचण होती. तीन - चार दिवस नुसता अंदाज बांधण्यात गेले. वयाने मोठ्या माणसांमधे गरीब माणूस शोधणं सोप्पं आहे ;पण लहान मुलांमधे अडचणीचं .शेवटी दोन-चार मुलांना हाताशी घेतलं, जी गाडीने शाळेत यायची आणि गाडीनेच घरी जायची.

मधल्या सुट्टीत अचानक वर्गात आलो तर ती सफ़रचंद खातांना मला दिसायची. अशा मुलांना विचारलं ," मला एक मदत कराल का? आपल्या वर्गातला सर्वात गरीब.......?"

क्षणाचाही विलंब न करता सर्वानी एकच नाव उच्चारले," सर आपल्या वर्गातला तो मयूर आहे नं, तो सर्वात गरीब आहे."

मुलांनी एका झटक्यात प्रश्न सोडवला होता. "कशावरून म्हणता?"

" सर. त्याचा सदरा दोन- तीन ठिकाणी तरी फ़ाटलाय. त्याने शिवलाय; पण फ़ाटलेला शर्ट घालतो. त्याची खाकी पॅंट तर नीट बघा , मागून दोन ठिगळं लावलेली आहेत. चपला त्याला नाहीतच. मधल्या सुट्टीत आम्ही डबा उघडतो . तो मात्र प्लॅस्टीकच्या पिशवीतून अर्धी भाकरी आणतो. सर, ती भाकरीही कालचीच असते. भाजी कुठली सर? गुळाचा खडा असतो. आम्ही सांगतो, तो सर्वात गरीब आहे. शाळेने त्याच मुलाला मदत द्यायला हवी."

मुलं एखाद्या खळाळत्या प्रवाहासारखी पुढे बोलतच राहीली . पण मला ते ऐकू येणे शक्य नव्हते. मयूर एवढा गरीब असेल? की सर्वांनी एकमुखाने त्याच्या गरीबीचे दाखले द्यावेत? कारण, मयूर वर्गातील सगळ्यात चपळ मुलगा होता. अक्षर स्वच्छ, मोकळं होतं. त्या अक्षरात त्याच्या नितळ मनाचे दर्शन मला घडे. एकदा तर त्याची वही मी माझ्या घरात पत्नीला दाखवली आणि म्हट्लं, " पाहिलंस ! हे सातवीतल्या मुलाचे अक्षर.असं अक्षर असावं हे माझे स्वप्न होते.उत्तराला सुबक परीच्छेद, समास सोडून योग्य प्रस्तावना आणि अखेर करून लिहिलेली उत्तरे........." 

पेपर चे गठ्ठे आणायला मयूर सर्वात आधी धावत यॆई. माझ्याआधी ते गठ्ठे उचलून वर्गात नेण्याचा उत्साह मला थक्क करून टाकत असे......

असा मयूर परिस्थितीने एवढा खचलेला असेल याची कल्पनासुद्धा मला येऊ नये, या गोष्टीचीच मला खंत वाटली . जी गोष्ट माझ्या इतर विद्यार्थ्यांना उमगते आणि मला त्याचा पत्ताही नसतो......अरेरे!...,

मी खूप कमी पडतोय. मयूर , गेल्या सहलीला आला नव्हता. अवघी पंचवीस रूपये वर्गणी होती; पण त्याचं नाव यादीत नव्हतं. आपण त्याला साधं विचारलंसुद्धा नाही. असलेल्या मुलांच्या किलबिलाटात न आलेल्या मयूरची मला आठवणही झाली नव्हती. केवळ पंचवीस रूपये नसल्याने त्याचे National Park बघण्याचे राहून गेले. एका छान अनुभवाला मुकला होता तो. हा आनंद मी हिरावला होता.यादीत मयूरचे नाव नाही म्हणून मी त्याला जवळ का बोलावलं नाही? मयूर स्वत:हून सांगणं शक्यच नव्हतं आणि माझ्या व्यग्र दिनक्रमात मयूरसाठी जणू वेळच शिल्लक नव्हता!

शिक्षक म्हणून मी एक पायरी खाली आलो होतो. खरंच आहे, मुलांनी सुचवलेलं नाव. आर्थिक मदत, तीही भरघोस मदत मयूरला मिळायलाच हवी. आता शंकाच नव्हती. त्याची गरीबी बघायला त्याच्या घरी जायचेही काहीच कारण नव्हते. मुलांनी एकमुखाने सुचवलेले नाव आणि मयूरने सहलीला न येणं याची सांगड घालून मी मुख्याध्यापकांना नाव देउन टाकले'; मयूर जाधव, सातवीअ, अनुक्रमांक बेचाळीस';

डोळ्यावरचा चष्मा हातात खेळवीत आदरणीय मुख्याध्यापक म्हणाले, " खात्री केलीये ना सर? कारण थोडीथोडकी रक्कम नाही. या विद्यार्थ्याची वर्षाची फ़ी, त्याचे शालेय शिक्षण साहित्य, गणवेश, इत्यादी सर्व या रकमेत सामावणार आहे."

मुख्याध्यापकांना मोठया आत्मविश्वासाने मी म्हटलं, " सर, त्याची काळजीच करू नका. वर्गातला सर्वात गरीब आणि आदर्शही म्हणा हवं तर मयूर जाधवच आहे!"

एका योग्य विद्यार्थ्याची निवड केल्याचे समाधान घेऊन मी निघालो. मयूरला मिळणारी मदत, त्यामुळे त्याचे आर्थिकद्रूष्ट्या सुसह्य होणारे शैक्षणिक वर्ष याची कल्पनाचित्रे रंगवतांना दिवस कसा संपला ते कळालेच नाही.

दुस~या दिवशी शाळेत लवकरच गेलो. देखण्या अक्षराच्या कदम सरांनी मोठ्या दिमाखाने फ़ळा सजवला होता. त्यावर 'गरीब असूनही आदर्श ' असं म्हणून मयूरचं नाव होतं. शाळा भरली. मी अध्यापक खोलीत बसलेलो होतो. इतक्यात खोलीच्या दाराशी मयूर उभा दिसला.

त्याच्या चेह~यावरचा भाव समजत नव्हता. राग आवरावा तसा करारी चेहरा... " सर, रागवू नका; पण आधी त्या फ़ळ्यावरचे माझे नाव पुसुन टाका." अरे, काय बोलतोयस तुला समजतय का?" तो म्हणाला, "चुकतही असेन मी . वाट्टेल ती शिक्षा करा; पण ते नाव...!!"

त्याच्या आवळलेल्या मुठी, घशातला आवंढा, डोळ्यातलं पाणी......मला कशाचाच काही अर्थ लागेना. मी ज्याचं अभिनंदन करायच्या तयारीत, तो असा.....?

" सर, मला मदत कशासाठी? गरीब म्हणून? मी तर श्रीमंत आहे."

त्याची रफ़ू केलेली कालर माझ्या नजरेतून सुटत नव्हती.येतानाच त्याचे अनवाणी पाय पाहिले होते. शाळेच्या चौदा वर्षाच्या माझ्या व्यावसायिक कालखंडात अशी पंचाईत प्रथमच आली होती.

"अरे पण....?"

"सर, विश्वास ठेवा. मी श्रीमंत आहे. कदाचित सर्वात श्रीमंत असेन...सर, मी गरीब आहे हे ठरवले कोणी? मी चुकतोय बोलतांना हे कळतंय मला; पण सर ते नाव तसंच राहिले तर मी आजारी पडेन आज."

अचानक तो जवळ आला आणि त्याने माझे पायच धरले. त्याला उठवत मी म्हणालो, " ठीक आहे. तुला नकोय ना ती मदत, नको घेऊस; पण तू श्रीमंत आहेस ते कसे काय?"

" सर, माझ्या अभ्यासाच्या वह्या बघा, कुठल्याही विषयाच्या.... त्या पूर्ण आहेत. पुस्तकं मी Second Hand वापरतोय ...खरयं ! पण मजकूर तर तोच असतो ना? मनात काय उतरवतो ते महत्वाचे नाही का? सर, माझे पाचवीपासूनचे मार्क बघा, नेहमी पहिल्या तीनात असतो. गेल्या वर्षी स्पोर्टसपासून निबंधापर्यंत सर्व बक्षिसे मलाच आहेत. सर...सर,सांगा ना, मी गरीब कसा?"

मयूर मलाच विचारत होता आता मघाचचं दु:खाचं पाणी विरून त्यात भविष्याचं स्वप्न थरारत होतं.

"खरयं मयूर. पण तुला या पैशाने मदतच......."

" सर, मदत कसली? माझी श्रम करण्याची वॄत्तीच नाहीशी होइल. शाळाच फ़ी देतीये म्हटल्यावर, मी वडीलांबरोबर रंगाच्या कामाला जाणं बंद करेन! "

"म्हणजे?"

" वडील घरांना रंग द्यायचे काम करतात. Contractor बोलावतो तेव्हाच काम मिळते. तेव्हा ते मला त्यांच्याबरोबर नेतात. चार पैसे मला मिळतात, ते मी साठवतो. सर, संचयिका आहे ना शाळेची, त्यातलं माझं पासबुक बघा. पुढच्याही वर्षाची फ़ी देता येइल एवढी रक्कम आहे त्यात... मुलांनी तुम्हाला काहीतरीच सांगितलेले दिसते..... म्हणून तुम्ही मला निवडलेलं दिसतं. पण सर, मीच नाही तर आमचं घरच श्रीमंत आहे. घरातले सगळे काम करतात. काम म्हणजे कष्ट. रंगाचं काम नसतं तेव्हा बाबा स्टेशनवर हमालीही करतात.आई धुणं-भांडी करते. मोठी बहीण दुसरी-तिसरीच्या शिकवण्या घेते. सर, वेळ कसा जातो, दिवस कसा संपतो ते कळतच नाही. शाळेतल्या वाचनलयातली पुस्तकं मीच सर्वात जास्त वाचली आहेत. तुम्हीच सांगितल्याप्रमाणे लेखकांनाही पत्र पाठवतो मी. सर, माझ्या घरी याच तुम्ही, माझ्याकडे पु.ल. देशपांडे यांच्या स्वाक्षरीचं पत्र आहे. ........सर, आहे ना मी श्रीमंत?"

आता तर तो स्मितरेषांनी मोहरला होता. सर, शेजारच्या काकांकडून मी उरलेल्या वेळात पेटीही शिकलो. रात्री देवळात होण्या-या भजनात मीच पेटीची साथ देतो. भजनीबुवा किती छान गातात! ऐकताना भान हरपून जातं."

त्याच्या सावळ्या रंगातही निरोगीपणा चमकत होता. अभावितपणे मी विचारलं," व्यायामशाळेतही जातोस?"

"सर, तेवढी फ़ुरसत कुठली? घरातच रोज चोवीस सूर्यनमस्कार आणि पन्नास बैठका काढतो ."

अंगावर एक थरार उमटला... कौतुकाचा.

" मयूर मित्रा, मला तुझा अभिमान वाटतो.तुझ्यासारखा श्रीमंत मुलगा माझ्या वर्गात आहे त्याचा .."

" म्हणूनच म्हणतो सर......!"

" हे नाव ज्या कारणासाठी आहे, त्यात तू नक्कीच बसणार नाहीस. आमची निवड चुकली; पण याचं रूपांतर वेगळ्या शिष्यवॄत्तीत होईल. शाळेतील सर्वात अष्टपैलू बुद्धिमान मुलगा म्हणून, हे पारितोषीक तरी........."

" सर, एवढ्यात नाही. त्याला वर्ष जाउ द्या. मी लिंकनचं, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांचे चरित्र वाचलं, हेलन केलरचं महात्मा फुले यांचे चरित्र वाचलं. सर, हे वाचलं की कळतं की ही माणसे केवढे कष्ट करून मोठी झाली. माझ्यासारख्या मुलांना प्रोत्साहन द्या, योग्य वयात ते परखड मार्गदर्शन करा; पण सर, नको त्या वयात असा पैसा पुरवत गेलात तर घडायचं राहूनच जाईल. जे काय करतोय ते पैशासाठी असे हॊऊन जाईल... सर.....प्लीज.....!"

वाचनानं, स्पर्धांतल्या सहभागानं , कलेच्या स्पर्शानं, कष्टानं....... त्याच्या वाणीला प्रगल्भतेची खोली होती, संस्कारामुळे नम्रतेची झालर होती. आता मला माझ्या समोरचा मयूर जाधव स्पष्ट दिसतही नव्हता. त्याच्याबद्दलच्या कौतुकाचे अश्रू माझ्या डोळ्यात दाटले होते.

शाळेतला सर्वात श्रीमंत मुलगा माझ्यासमोर उभा होता. परिस्थिती पचवून, परीश्रमाने स्वत:वर पैलू पाडणारा ! श्रीमंत!

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एक अप्रतिम सुन्दर लेख....
प्रत्येकाने जरुर वाचावा असा.......कृपा करून वेळ काढून वाचा.. आवडल्यास शेअर करावा
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लेख एकदम मस्त, छान आहे. प्रत्येक पालकाने घरी आपल्या मुलांना मुद्दाम वाचून दाखवावा..


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सर्वप्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों ??



लक्ष्मी जी ने सर्वप्रथम बालि को बांधी थी।

ये बात हैं जब की जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे। तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया। तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया। 

तब राजा बलिने प्रभु से कहा, "कोई बात नहीँ मैं रहने के लिये तैयार हूँ पर मेरी भी एक शर्त होगी। "

भगवान अपने भक्तो की बात कभी टाल नहीँ सकते। 

फिर राजा बली ने कहा, "ऐसे नहीँ प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें की जो मांगूँगा वो आप दोगे। "

नारायण ने कहा, "दूँगा दूँगा दूँगा। "

जब त्रिबाचा करा लिया तब बली ने कहा, "मैं जब सोने जाऊँ तो और जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं। "

नारायण ने अपना माथा ठोका और बोले इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया हैं ये सबकुछ हार के भी जीत गया है
पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दें चुके थे। ऐसे होते होते काफी समय बीत गया। 

उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी की "नारायण कहा है ?"


नारद जी का बैकुंठ में आना हुआ। लक्ष्मी जी ने कहा, "नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा आपने?"


तब नारद जी बोले, "माता नारायण तो पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदार बने हुये हैं। "

तब लक्ष्मी जी ने कहा, "मुझे आप ही राह दिखाये की कैसे मिलेंगे?"

तब नारद ने कहा, "आप राजा बलि को भाई बना लो और रक्षा का वचन लो। और पहले त्रिबाचा करा लेना दक्षिणा में जो मांगुगी वो देंगे और दक्षिणा में अपने नारायण को माँग लेना। "

लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची। बलि ने कहा, "क्यों रो रहीं हैं आप?"

तब लक्ष्मी जी बोली, "मेरा कोई भाई नहीँ हैं इसलिए मैं दुखी हूँ। "

तब बलि बोले, "तुम मेरी धरम की बहिन बन जाओ। "

तब लक्ष्मी ने त्रिबाचा कराया और बोली, "मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये। "

जब ये माँगा तो बलि पीटने लगे अपना माथा और सोचा, "धन्य हो माता पति आये सब कुछ लें गये और ये महारानी ऐसी आयीं की उन्हे भी लें गयीं। "

तब से ये रक्षाबन्धन शुरू हुआ था। 

और इसी लिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता हैं, "येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल: "

ये मंत्र हैं। रक्षा बन्धन अर्थात बह बन्धन जो हमें सुरक्षा प्रदान करे सुरक्षा किस से हमारे आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से। 





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खुशी बाटो खुशी मिलेगी

एक बार एक व्यक्ति ने एक नया मकान खरीदा. उसमे फलों का बगीचा भी था.

मगर पडोस के मकान पुराने थे. और उनमे कई लोग रहते थे.

कुछ दिन बाद उसने देखा कि पडौस के मकान से किसी ने बाल्टी भर कूडा उसके घर के दरवाजे पर डाल दिया है.

शाम को उस व्यक्ति ने एक बाल्टी ली उसमे ताजे फल रखे और उस घर के दरवाजे पर घंटी बजायी. उस घर के लोग बेचैन हो गये. और वो सोचने लगे कि वह उनसे सुबह की घटना के लिये लडने आया है. अत वे पहले ही तैयार हो गये और बुरा भला बोलने लगे. मगर जैसे ही उन्होने दरवाजा खोला, वे हैरान हो गये. रसीले ताजे फलों की भरी बाल्टी के साथ मुस्कान चेहरे पर लिये नया पडोसी सामने खडा था. सब हैरान थे. 

उसने कहा, "जो मेरे पास था वही मैं आपके लिये ला सका."

सच है जिसके पास जो है वही वह दूसरे को दे सकता है. जरा सोचिये कि 'मेरे पास दूसरो के लिये क्या है?'

दाग तेरे दामन के धुले ना धुले
नेकी तेरी कही पर तुले ना तुले.....
मांग ले अपनी गलतियो की माफी खुद से.
क्या पता आँख कल ये खुले ना खुले.......
प्यार बांटो प्यार मिलेगा,
खुशी बांटो खुशी मिलेगी..


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