लक्ष्मी जी ने सर्वप्रथम बालि को बांधी थी।
ये बात हैं जब की जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे। तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया। तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया।
तब राजा बलिने प्रभु से कहा, "कोई बात नहीँ मैं रहने के लिये तैयार हूँ पर मेरी भी एक शर्त होगी। "
भगवान अपने भक्तो की बात कभी टाल नहीँ सकते।
फिर राजा बली ने कहा, "ऐसे नहीँ प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें की जो मांगूँगा वो आप दोगे। "
नारायण ने कहा, "दूँगा दूँगा दूँगा। "
जब त्रिबाचा करा लिया तब बली ने कहा, "मैं जब सोने जाऊँ तो और जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं। "
नारायण ने अपना माथा ठोका और बोले इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया हैं ये सबकुछ हार के भी जीत गया है
पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दें चुके थे। ऐसे होते होते काफी समय बीत गया।
उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी की "नारायण कहा है ?"
नारद जी का बैकुंठ में आना हुआ। लक्ष्मी जी ने कहा, "नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा आपने?"
तब नारद जी बोले, "माता नारायण तो पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदार बने हुये हैं। "
तब लक्ष्मी जी ने कहा, "मुझे आप ही राह दिखाये की कैसे मिलेंगे?"
तब नारद ने कहा, "आप राजा बलि को भाई बना लो और रक्षा का वचन लो। और पहले त्रिबाचा करा लेना दक्षिणा में जो मांगुगी वो देंगे और दक्षिणा में अपने नारायण को माँग लेना। "
लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची। बलि ने कहा, "क्यों रो रहीं हैं आप?"
तब लक्ष्मी जी बोली, "मेरा कोई भाई नहीँ हैं इसलिए मैं दुखी हूँ। "
तब बलि बोले, "तुम मेरी धरम की बहिन बन जाओ। "
तब लक्ष्मी ने त्रिबाचा कराया और बोली, "मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये। "
जब ये माँगा तो बलि पीटने लगे अपना माथा और सोचा, "धन्य हो माता पति आये सब कुछ लें गये और ये महारानी ऐसी आयीं की उन्हे भी लें गयीं। "
तब से ये रक्षाबन्धन शुरू हुआ था।
और इसी लिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता हैं, "येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल: "
ये मंत्र हैं। रक्षा बन्धन अर्थात बह बन्धन जो हमें सुरक्षा प्रदान करे सुरक्षा किस से हमारे आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से।
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