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Saturday 18 September 2021

स्वावलंबन का पाठ

जय श्री राम! कैसे हो आप? आपके लिए गुरुनानक देव के बचपन की एक कथा लेकर आयी हु। ध्यान से पढ़ना और सबके साथ शेयर करना।



यह बात गुरुनानकजी की है जब वे सिर्फ ६ साल के एक बालक थे। बालक नानक अपने मित्रों के साथ नदी किनारे खेल रहे थे। शाम हो रही थी और ठण्ड भी बढ़ने लगी थी तो उनकी बड़ी बहन बेबे नानकीजी उन्हें लेने नदी किनारे आयी। बेबे नानकीजीने अपने साथ गुरुनानकजी के लिए कम्बल लाया था। बेबे नानकीजी उनके पास आयी और बोली, "नानक शाम हो रही है घर चलो। और अगर अभी नहीं आ रहे हो तो ये कम्बल अपने पास रखलो।" 

कम्बल लेते हुए नानकजी बोले, "बेबे मैं आपके साथ ही चल रहा हु।" और अपने मित्रों से उन्होंने विदा ली और घर की तरफ बेबे नानकीजी का हाथ थाम्बे चल पड़े। 

रास्ते में उन्हें एक भिखारी दिखा जो ठण्ड से काँप रहा था। नानकजी ने उसे ध्यान से देखा। वह भिखारी शारीरिक तौर पर बिलकुल अच्छा था, कहिसेभी अपाहिज नहीं था। नानकजी इनके पास गए और कम्बल देते हुए बोले, "बाबा भगवान ने आपको अच्छे हाथ पैर दिए है, कुछ काम करिये और अपने स्वाभिमान के साथ रहिये। अपने कष्ट से कमाई रोटी मीठी लगती है। दूसरों ने दान दी हुई रोटी में इतनी मिठास कहा?"

ये बात उस भिखारी के मन में घर कर गयी। अगले दिन सुबह उसने स्वावलम्बी होने का ठाना और गांव में काम ढूंढने निकल पड़ा। किसी के खेत में उसे काम भी मिल गया। गुरु के शब्दों ने उसकी जिंदगी बदल दी। उसका परिवार उस दिन के बाद कभी भूखा नहीं सोया। 

कहानी का सार ये की बस काम करने की इच्छा चाहिए ईश्वर अपने आप रास्ते बना देता है। स्वावलम्बन की जिंदगी सुखी जिंदगी। 

जैसे गुरु नानक जी उस भिखारी को मिले और मार्ग दिखाया, वैसे ही सबको मार्ग दिखाते है। हमें बस देखने की जरुरत है। 

कहानी यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद! कृपया इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। 


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