जय श्री कृष्ण। आज बेल वृक्ष के बारे में लेख लायी हु। कृपया पूरा पढ़े। यह लेख वृक्षारोपण के साथ वृक्ष सवंर्धन इस लेख शृखंला का है।
बेल के बारेमे:
बेल महादेवजी का प्रिय वृक्ष है। ऋग्वेद में ऐसा कह गया है की बेल वृक्ष में लक्ष्मीजी का वास रहता है। तिब्बत में ऐसी मान्यता है की सती माता योग अग्नि में भस्म होने के बाद बेल के वृक्ष के रूप में अवतरित हुई थी। इसीलिए इसे सती माता का रूप माना जाता है और इसीलिए इसके पत्ते महादेवजी को चढ़ाये जाते है। बेल के अनेक औषधीय गुण है और ये खास कर पेट के विकारो पर असरदार है। नेपाल में इसे अखंड सुहाग का प्रतिक माना जाता है।
वृक्षरोपण के लिए उपयुक्त जगह:
अच्छी रेतीली दोमट मिट्टी, धूप वाली स्थिति, गर्म आर्द्र जलवायु इसके लिए उपयुक्त होती है। अगर बहोत ज्यादा पानी पकड़कर रखने वाली मिटटी है तो इस पेड़ को न लगाए। यह पौधा आप आपके घर के बगीचे में लगा सकते है।
बेल के वृक्ष का संवर्धन:
बेल का पौधा बरसात में लगाना चाहिए। और लगाने के बाद घास उग आयी हो तो निकालते रहना चाहिए। आसपास की मिटटी को हल्का खोदते रहना चाहिए।
यह औषधीय गुणों से युक्त पेड़ है इसीलिए इसे रासायनिक खाद और किटकनाशन नहीं देना चाहिए। पहले साल भरमें थोड़ा थोड़ा कर के १० किलो जैविक खाद देना चाहिए। और अगर इन्फेक्शन हो जाये तो जैविक किटकनाशक एवम जैविक दवाइया देनी चाहिए जिसमे नीम का तेल मिला हुआ हो। गौमूत्र का छिड़काव भी रोगमुक्त रखने में सहायक है। शुरुवात के एक साल तक हर होर ५-६ लीटर पानी देना है और हफ्ते में एक बार गौमूत्र मिलाकर पानी देना है। फिर धीरे धीरे पानी की मात्रा आप जरुरत के हीसाबसे कम या ज्यादा कर सकते है। दूसरे साल से हर साल खाद की मात्रा १० किलो से बढ़ानी है और और जब पुरे साल भर में ५० किलो का खाद देना हो जाए यानि छठवे साल से हर साल ५० किलो जैविक खाद देना है। ताकि बेल का पौधा हराभरा रहे और ज्यादा से ज्यादा फल देवे।
बेल यह फलो का वृक्ष है इसिलए शुरू के कुछ साल इसकी छटाई करना जरुरी है। आपको । पहले साल भर आपको देखना है की उसे एक से ज्यादा टहनिया कमसे कम जमीन से दो फिट की उचाई तक न रहे। एक प्रमुख टहनी के अलावा आने वाली सारी टहनियाँ आपको काटना है।
अगर आपके पौधे के कुल उचाई दो फिट है तो जमीन से कमसे कम एक फ़ीट उचाई तक यानि आधी उचाई तक आने वाली सभी टहनियों को आपको काटना है। टहनी को काटते समय यह याद रखे की टहनी आपने पेड़ के तने से आधा इंच दुरी पर काटना है ताकि डिंक्या रोग (फायटोप्थोरा) न हो। कटिंग के बाद जहा कटिंग की है उस जगह पर चुना और मोरचुद का पेस्ट लगाने से पेड़ को इन्फेक्शन नहीं होता है। पर एक बार फल आना शुरू होने के बाद ज्यादा टहनिया नहीं कटनी है।यह बेल के बारे में जानकारी आप ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।
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