जय श्री कृष्ण। आज नीम वृक्ष के बारे में लेख लायी हु। कृपया पूरा पढ़े। यह लेख वृक्षारोपण के साथ वृक्ष सवंर्धन इस लेख शृखंला का है।
नीम के बारेमे:
नीम को नीमड़ी माता के यानि दुर्गा माता के रूप में पूजा जाता है। नीम को गांव की फार्मेसी भी कहा गया है और इससे कई रोगो का इलाज आयुर्वेद में लिखा गया है। श्रावण और भाद्रपद महीने में नीम के पूजन के विविध त्यौहार पुरे भारत में मनाये जाते है। खेती में नीम का तेल जैविक किटकनाशक के रूप में इस्तेमाल में आता है।
वृक्षरोपण के लिए उपयुक्त जगह:
पानीका रिसाव होने वाली मिटटी चाहिए। इसकी जड़ें बहोत दूर तक फैलती है इसीलिए इसे खुली जगह में लगाना ठीक होता है ताकि यह अच्छेसे फ़ैल सके।
नीम के वृक्ष का संवर्धन:
पौधा जमीन में लगाने के पहले उस गड्डे में १०० ग्राम बोरोन दाल दीजिये और फिर पौधा लगा दीजिये। एक गिलास गौमूत्र और ५ लीटर पानी दाल दीजिये। यह याद रखना है की जमीन ज्यादा देर गीली नही रहनी चाहिए इसीलिए पानी उस हिसाबसे डाले। ज्यादा देर तक अगर जमीन गीली रही तो जड़ें सड़ना शुरू हो जाती है। पहले एक साल तक १० किलो जैविक खाद और आधा किलो एन-पी-के १२-१२-१२ आपको थोड़ा थोडा करके हर महीने देना है। इससे पौधा अच्छी अपनी जड़ें मजबूत करेंगा। पंद्रह दिनों में एकबार गौमूत्र मिलाया हुआ पानी जरूर देना चाहिए।
आप जो भी पौधा लगाए आपको उसके इर्दगिर्द उगने वाली घास को निकालना है। थोड़ा मिटटी को खोदकर खुला करना है। और खाद देते समय तने से कमसे कम आठ इंच की दूरिसे गोलाकार खाद देकर पानी डालना है।
जैसे जैसे नीम का पेड़ बढ़ता है वैसे वैसे उसकी खाद और पानी की जरुरत कम होती है पर खाद देते रहने से वो हरा भरा रहता है और जरुरत के हिसाब से पानी देते रहना चाहिए।
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