जय श्री कृष्ण। आज आमला वृक्ष के बारे में लेख लायी हु। कृपया पूरा पढ़े। यह लेख वृक्षारोपण के साथ वृक्ष सवंर्धन इस लेख शृखंला का है।
आमला के बारेमे:
आमला नवमी के दिन आमला का पूजन होता है। बौद्ध मान्यताओं के हिसाबसे सम्राट अशोक ने आमला फल बौद्ध भिक्षुक संघ को उपहार स्वरुप दिया था। आमला अपने आप में उत्तम औषधी है और इसके कई सारे उपयोग है।
वृक्षरोपण के लिए उपयुक्त जगह:
आमला आप आपके घर के आँगन में लगा सकते है। यह हर तरह की मिट्टीमे लगा सकते है सिर्फ बहोत ज्यादा रेत वाली मिटटी नहीं चलेगी।
नीम के वृक्ष का संवर्धन:
आमला का पौधा जहा लगाना है वह ३ फिट गहरा और ३ फ़ीट चौड़ा गड्ढा खोदकर १५-२० दिन तक धुप लगने के लिए छोड़ना है। फिर उसके बाद १५ किलो जैविक खाद, १ किलो फॉस्फेट और उसी जगह की मिट्टी मिलाकर पौधा लगाकर उस गड्ढे को भरना है।
पहले साल भर तो भी कमसेकम पौधे के इर्दगिर्द की जगह को खोदकर खुला करते रहना है और घास उखाड़ना है। पौधा लगने के बाद उसे हर रोज पांच लीटर पानी देना है और पंद्रह दिन में एक बार गौमूत्र मिला हुआ पानी देना है। साल भर में १० किलो जैविक खाद देनी है। औषधीय वनस्पति है इसीलिए रासायनिक खाद नहीं देनी है। किसीभी इन्फेक्शन में जैविक दवाई जिसमे नीम का तेल या नीम का अर्क मिला हो वह देनी है। गौमूत्र का छिड़काव भी रोग प्रतिकार के लिए उपयुक्त है। बरसात में ज्यादा पानी देने की जरुरत नहीं है। पर जैसे जैसे पौधा बढ़ेगा वैसे वैसे पानी की मात्रा बढ़ानी है। हर साल १० किलो खाद की मात्रा बढ़ानी है और छठे साल से ५० किलो जैविक खाद एक पौधे को देना है पुरे साल भरमे थोड़ा थोड़ा करके।
इस पौधे को छटाई की जरुरत है। अगर आपके पौधे की उचाई २ फ़ीट है तो जमीन से एक फ़ीट की उचाई तक यानि आधी उचाई तक प्रमुख तने के अलावा कोई भी टहनी नहीं रहने देना है। टहनी काटते वक्त आपको तने से आधा इंच टहनी का हिस्सा छोड़कर टहनी काटनी है ताकि इन्फेक्शन न हो। छटाई के बाद चुना और मोरचूद मिलकर पेस्ट लगाने से भी इन्फेक्शन से राहत मिलती है। एक पूरी तरह से बढे हुए पुरे पेड़ को ६-७ मोटी टहनिया रहने देना है।
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