भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जीवन की एक घटना है| एक बार उपहार में उन्हें हाथी के दात की एक कलम दवात मिली| वह उन्हें इतनी प्रिय थी की वे लिखते वक्त ज्यादा उसी का इस्तमाल करते थे| जिस कमरे में उन्होंने कलम दवात रखी थी उसकी सफाई खुद उसका नौकर तुलसी करता था| एक दिन मेज साफ करते करते कलम निचे गिरकर टूट गई| राजेंद्रजी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने नाराज होते हुए अपने सचिव से कहा इस आदमी को तुरंत बदल दो| सचिव ने तुलसी को हटाकर एक नया काम दे दिया| उस दिन राजेंद्रजी के मन में खलबली मची रही की एक मामूली सी गलती के लिए उन्होंने तुलसी को इतना बड़ा दंड क्यों दे दिया?
लाख सावधानिय बरतने के बाद भी इंसान के साथ ऐसा कैसे हो सकता है?
शाम को उन्होंने तुलसी को बुलाया| उसके आते ही राजेंद्र उठकर खड़े हो गए और बोले, तुलसी मुझे माफ़ कर दो| तुलसी पहले तो सकपका गया फिर राजेंद्रजी के पैरो पे गिरकर क्षमा मांगने लगा| राजेंद्रजी बोले, “तुम अपने पहले वाले काम पे जाओ|” कृतज्ञता भरी आँखों से तुलसी ने अपना काम संभालना शुरू कर दिया| सार यह है की व्यक्ति को पद स्तर जाती सभी से परे एक इंसान के रूप में देखने वाले की दृष्टि सम होती है और और इसलिए वह सभी से क्षमस्व व स्नेहपूर्ण होता है|
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