१. जीतना परमात्मा को चुकेंगे उतना ही दुर्गुणों को प्रवेश का मौका देंगे| स्वामी अवधेशानंद गिरी|
२. श्रद्धा आई तो शिष्यत्व आया, इसी शब्द का अर्थ है सिख होना|
३. धन के मद में मतवाले मनुष्य को गिरे बिना होश नहीं आता|
४. जीवन को सत्य को बचाने के लिए प्राण त्यागने जैसी तेजस्विता चाहिए|
५. जिज्ञासा तेज बुद्धि का एक स्थायी और निश्चित गुण है|
६. ख्याति वह प्यास है, जो अगस्त्य ऋषि की तरह सागर को पीकर भी शांत नहीं होती |
७. अपनापन, इससे हम एक दुसरे को ठीक से जान पाते है और आपसी अच्छाइयों का लाभ उठा सकते है|
८. सयानापन, परिपक्वता से की जा रही महत्वाकांक्षा निजहित, परहित में संतुलन बना सकेंगे|
९. बदलाव को पकडे और अपनी महत्वाकांक्षा में शोषण, निंदा, स्वार्थ से बचें|
१०. धर्म प्रेम का राज्य है, तर्क और बुद्धी का नहीं| - ओशो|
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