एक शहर में किसी व्यापारी का बड़ा सुंदर मकान था । मकान के नीचे उसकी अनाज की दुकान थी । दुकान के सामने अनाज के ढेर लगा था। एक दिन एक बकरा आया और उसने ढेर पर मुंह मारा । दुकान का मालिक वह पहुंचा जिसके हाथ में नुकीली छड़ी थी । उसने जैसे ही बकरे को मुंह मारते देखा, बकरे के सिर पर जोर से छडी मारी । बकरा चिल्लाता हुआ वहां से भाग गया। यह घटना वही से गुजर रहे नारदजी तथा अमिय ऋषि ने देखी। नारदजी हंस पड़े। अंगिरा ने हंसने का कारण पूछा तो नारद बोले यह अनाज की दुकान पहले बहुत छोटो थी इसके मालिक ने इसी दुकान से अपने व्यापार की वृद्धि की । वह करोड़पति हो गया । उसी ने इतनी बडी इमारत बनवाई। करोड़पति होने के बाद उसमें घमंड आ गया । वह किसी से सीधे मुंह बात तक नही करता है। जब वह घमंडी मालिक मर गया तो उसका यह युबा बेटा दुकान पर बैठकर कारोबार संभालने लगेगा । मुझे हसी इस बात पर आईं कि क्या वह मालिक और इस युवा का पिता ही बकरे की योनि पैदा हुआ है, जो एक समय इस दुकान, मकान और संपूर्ण का मालिक था । आज एक मुट्ठी अनाज पर भी उसका अधिकार नहीं है । अनाज की और मुंह करतै ही मार पडती है और जिस पुत्र को उसने बड़े प्यार से पाला पोसा, वही मारता है। सार यह है कि समय बदलते देर नहीं लगती। इसलिए अच्छे समय में विनम्रता से रहो, ताकि आपके बुरे समय पर वो आपकी मदद करे।
क्रैबुरा समय शांति से कट जाए।
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