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Tuesday 9 June 2020

आत्मनिर्भरता

*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳*

*💐*💐

सुबह- सुबह अपने फोन पर एक मेसेज देख कर सुमी मुस्कुरा उठी। दोस्त ने लिखा था, "सुमी क्या आज तुम मुझे अपनी कार में ऑफिस तक लिफ्ट दोगी? मेरे पति किसी काम में उलझे हैं। मै अकेली ऑफिस नहीं जाना चाहती हूँ। " मेसेज का सुमी ने हां में जवाब दे दिया, पर उसे अपनी दोस्त की बातों में अपना बीता हुआ कल नजर आ गया। याद आ गया उसे अपना सफर।सुमी छोटे से शहर में पली बढ़ी एक साधारण लड़की थी। पढ़ाई में अव्वल रही थी। गुणवान भी थी। अपने बल बूते पर कुछ करने की इच्छा भी रखती थी। पर हाँ, बड़े शहरों के तौर तरीकों से ज़रा अंजान थी। नए कपड़े, महंगे जेवर, बड़ी कार की चाहत नहीं थी उसे। चाहिए था तो बस हंसी मज़ाक, लोगों का साथ और ढेर सारा प्यार।शादी कर के जब पहली बार रंजन के साथ आयी थी तो काफी खुश थी। सोचा थी कि उसे एक साथी मिल गया है। आंखों में कई सपने सजाए थे। दुख- सुख में साथ रहने के, एक दूसरे का सहारा बनने के, हंसने-रोने के और कभी कभार यूँ ही हाथों में हाथ ले कर सैर करने के। शादी के बाद कुछ महीने तो उसे नया घर बसाने में ही लग गए। फिर जब थोड़ी व्यवस्थित हुई तो एक स्कूल में नौकरी ढूंढ ली। स्कूल में पढ़ाना उसे पसंद था और अपने मिलनसार स्वभाव के कारण जल्दी ही उसने कुछ लोगों से मित्रता भी कर ली। दिन का समय तो स्कूल में निकल जाता था पर घर आने के बाद उसे रंजन के साथ ही समय बिताना पसंद था।स्कूल के दोस्त उसे कभी- कभी पार्टी, पिकनिक, आदि में बुलाते थे पर वह मना कर देती थी। उसे लगता था कि वह अगर यही समय रंजन को देगी तो उनका रिश्ता और भी मजबूत होगा।  रंजन से भी वह अपेक्षा करती थी कि वह उसका सबसे अच्छा साथी बने और वो दोनों हमेशा एक दूसरे का साथ दें। पर रंजन का स्वभाव कुछ अलग था। उसके पास सुमी के लिए समय ही नहीं था। घर पर भी वो अपने आप में ही व्यस्त रहता था। हँसी-मज़ाक, गप-शप, घूमना-फिरना उसे कम ही सुहाते थे। सुमी ने अगर ज़रा ज़ोर से हँस भी दिया तो उसे फूहड़ करार दे देता था। अगर सुमी ने ज़रा भी उत्सुकतावश तेज़ आवाज़ में बात की तो तुरंत ही उसे आँख दिखा देता था। सुमी का उसके लिए खाने पर इंतजार करना पुरानी मानसिकता को झलकाता था। सुमी अगर कुछ भी कहती या चिंता करती तो रंजन को यह सब बेकार का हस्तक्षेप लगता था।एक दिन तो रंजन ने उखड़े हुए अंदाज़ में कह दिया, " सुमी, तुम हर वक्त मेरे पीछे क्यों पड़ी रहती हो।"
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उस दिन सुमी को बहुत बुरा लगा। सुमी के लाख कोशिशों के बाद भी रंजन का व्यवहार बिल्कुल नहीं बदला। और तो और, धीरे-धीरे रंजन ने सुमी के स्वभाव को निर्भरता की निशानी समझ लिया। रंजन के इस बर्ताव से सुमी का मन रूआंसा तो ज़रूर हो जाता था पर उसने हार नहीं मानी। हर पल उसके मन में यही आशा रहती थी कि एक दिन तो आएगा जब रंजन का भी मन बदल जाएगा और वह दिन उसकी ज़िन्दगी का सबसे अच्छा दिन होगा। पर, सुमी का इंतज़ार कभी समाप्त नहीं हुआ। शादी के कुछ सालों बाद भी सुमी अपने घर पर अकेली और उदास ही थी। एक दिन, जब सुमी ने कहा कि, "रंजन तुम्हारे पास तो मेरे लिए कभी समय ही नहीं होता है", तो रंजन ने साफ-साफ कह दिया, " सुमी तुम्हे हमेशा साथ की ज़रूरत क्यों है? अपना आत्मविश्वास बढ़ाओ और खुद में खुश रहो।"उस दिन सुमी को लगा मानो उसकी आंखें खुल गईं हों। सोचने लगी, "क्या सचमुच मुझमें आत्मविश्वास की कमी है? क्या रंजन के साथ रिश्ता मजबूत करने की चाहत में वह खुद का वजूद भूल रही है? क्या सच में उसकी खुशियां लोगों की मोहताज हैं?" वह ऐसी तो कभी नहीं थी। शादी से पहले तो वह हर काम खुद किया करती थी। इतने सारे शौक थे उसके पास। हर काम को सीखने का हुनर था उस में। उसके मम्मी पापा उस पर नाज़ करते थे। फिर आज क्यों ऐसे हाल में है? उसने ठान लिया कि वह बदल जाएगी। जिस इंसान को उसकी अहमियत नहीं उस पर समय बर्बाद नहीं करेगी।उसने अपने स्कूल वाली साथियों को फोन किया और उनसे मिलने चली गई। उनके साथ कुछ समय बिता कर उसे अच्छा लगा। फिर उसने तय किया कि अब वह हर वो काम करेगी जो अभी तक नहीं कर पाई थी। स्कूल के बाद उसने तरह-तरह की क्लास में दाखिला ले ली। थोड़े ही समय में ड्राइविंग, ड्राइंग, पेंटिंग, फोटोग्राफी, कंप्यूटर, फाइनेंस सब में माहिर हो गई। दोस्तों के साथ कभी कभार घूमने भी जाया करने लगी। अपने मजाकिया स्वभाव से हर किसी की चहेती बन गई। साबित कर दिया कि अपनी खुशियों के लिए वह रंजन के साथ की मोहताज नहीं है।सुमी का यह बदलाव रंजन से छुपा नहीं था। पर वह तो खुश था कि उसकी पत्नी अब आत्मनिर्भर हो चुकी है। अब पहले की तरह किसी भी काम में हस्तक्षेप नहीं करती है।
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एक दिन उसने सुमी से कह भी दिया, "सुमी देखो आज मेरी ही वजह से तुम आत्मनिर्भर बन गई हो। अब तुम्हे खुश रहने के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। "सुमी ने उसे देखकर उदासी से मुस्कुरा दिया। शायद रंजन कभी समझ ही नहीं पाया था सुमी के मन को।और सुमी!वह तो आज भी अपने आप से कभी कभार यह सवाल कर लिया करती थी कि इस 'निर्भरता से आत्मनिर्भरता तक के सफर में वह जीत गई या हार गई।'
लेखक-प्रज्ञा कुमार




आभार एडमिन टीम-
1.Dr. lovleen कौर💐
2.Dr. जय सोनकर💐
3.धीरज जी💐
4.अश्विन चौधरी💐
5.सतीश जी💐
6.मनोज जी💐
7.Er. A.K.seth💐
7.राकेश जी
8.ममता चौधरी💐
9.माया शर्मा💐
10.अमरजीत सिंह कुकरेजा
💐💐
*💐प्रेषक-Tr.नवनीत चौधरी(+918058708000)*💐

*💐एक कहानी सुंदर सी ग्रुप अब टेलीग्राम app पर*💐

*💐💐संकलनकर्ता-गुरु लाइब्रेरी & गुरु ईमित्र नई तहसील के पास झुंझुनू💐💐*


*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
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