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Saturday 7 March 2020

पिता

यह कविता ऐसेही सोशल ऍप पर आयी थी। अच्छी लगी इसलिए शेयर की है। वाकई एक लड़का पुरुष बनता है और फिर वह पिता भी बनता है - उसके इस बदलाव का इतना अच्छा वर्णन कही पढ़ने शायद ही मिले। गौर से पढ़िए।  ये कविता मैंने नहीं लिखी पर जिसने लिखी उसका अनुभव सभी पिता को आया होंगा ही। 


इमेज क्रेडिट - पिक्साबे 

पत्नी जब स्वयं माँ बनने का समाचार सुनाये
और वो खबर सुन,
आँखों में से खुशी के आँशु टप टप गिरने लगे
तब ... आदमी......
पुरुष से पिता बनता है"

शादी होने के बाद जबतक पत्नी की कोख हरी न हो जाये तबतक हर शादीशुदा लड़के को हर रिश्तेदार पूछता है की "कब खुशखबरी मिलेंगी ?" हर पुरुष के लिए इस सवाल का जवाब देना उतनाही मुश्किल होता है जितना की माँ  बनने की चाह करने वाली स्त्री के लिए। जब ये समाचार पत्नी अपने परिवार को पती को देती है तब हर आदमी पिता बनने की ख़ुशी में जी रहा होता है भले ही वो इसे व्यक्त करें या न करें। 

नर्स द्वारा कपडे में लिपटा कुछ पाउण्ड का दिया जीव,
जवाबदारी का प्रचण्ड बोझ का अहसास कराये
तब .....आदमी.....
पुरुष से पिता बनता है"

बच्चे के जनम के समय जब तक अच्छी खबर न आये तबतक दवाखाने में लेबर रूम के बाहर पल पल इंतजार करते पती की हालत एकदम ख़राब होती है। वो नर्वसनेस का समय तब ख़त्म होता है जब एक नन्ही सी जान नर्स पती के हाथमे सौपती है और यहासे शुरू होती है नयी जिम्मेदारी जो प्यारी भी है और नाजुक भी ! 

रात - आधी रात जागकर पत्नी के साथ,
बेबी का डायपर बदलता है,
और बच्चे को कमर में उठा कर घूमता है,
उसे चुप कराता है,
पत्नी को कहता है तू सो जा में इसे सुला दूँगा
तब..........आदमी......
पुरुष से, पिता बनता हैं "

छोटीसी जान सबकुछ तरीके से करना नहीं जानती हर छोटी छोटी सेवा करनी पड़ती है - डायपर बदलना तो शुरू के कुछ सालों तक जरुरी रहता है। रात के समय जगते बच्चे को सुलाना भी एक बड़ी कसरत है। फिर खाना खिलाना, दवाइया देना और बहोत कुछ - जब भी आदमी इसमें मदत करता है तब वो सिर्फ उस बच्चे का पिता नहीं रहता बल्कि अपनी पत्नी का दोस्त भी बनता है। 

मित्रों के साथ घूमना, पार्टी करना जब नीरस लगने लगे
और पैर घर की तरफ बरबस दौड़ लगाये
तब ........आदमी......
पुरुष से पिता बनता हैं"

अब शादीशुदा जिंदगी शुरू होते ही सभीका यही रहता है घर जल्दी लौटू पर फिरभी दोस्तोंके साथ घूमना पार्टी करना चलते रहता है पर एक नन्ही किलकारी घरमे गुंजी नहीं की ये सब नीरस लगने लगता है और नन्हे मुन्ने या मुन्नी की तरफ आपही पैर मुड जाते है इसीको पिता होना कहते है। 

"हमने कभी लाईन में खड़ा होना नहीं सिखा " कह,
हमेशा ब्लैक में टिकट लेने वाला,
बच्चे के स्कूल  एडमिशन का फॉर्म लेने हेतु पूरी ईमानदारी से सुबह 4 बज लाईन में खड़ा होने लगे
तब .....आदमी....
पुरुष से पिता बनता हैं "

स्कूल का एडमिशन हो या बच्चे की पढाई या पैरेंट टीचर मीटिंग - पापा सब करना पसंद करते है। पेरेंट्स डे का बेसब्रीसे इंतजार पापा करते है। 

जिसे सुबह उठाते साक्षात कुम्भकरण की याद आती हो
और वो जब रात को बार बार उठ कर ये देखने लगे की मेरा हाथ या पैर कही बच्चे के ऊपर तो नहीं आ गया एवम् सोने में  पूरी सावधानी रखने लगे
तब .....आदमी...
पुरुष से पिता बनता हैं"

एक नाजुक सी जान जब अपने साथ है तो फिर नींद में भी सजगता आ जाती है। इसेही पिता होना कहते है। 

असलियत में एक ही थप्पड़ से सामने वाले को चारो खाने चित करने वाला,
जब बच्चे के साथ झूठ मूठ की  फाइटिंग में बच्चे की नाजुक थप्पड़ से जमीन पर गिरने लगे
तब...... आदमी......
पुरुष से पिता बनता हैं"

हर पिता अपने संतान की ढाल होता है। बच्चे के लिए जागरूक और सुरक्षा देने के लिए तत्पर पिता की ताकत का क्या कहना। पर वो कभी अपने बच्चे को चोट नहीं पोहोचायेंगा बल्कि खेल खेल में अपने बेटे या बेटी को ताकतवर होने का एहसास दिलाएगा। 

खुद भले ही कम पढ़ा या अनपढ़ हो,
काम से घर आकर बच्चों को "
पढ़ाई बराबर करना, होमवर्क पूरा किया या नहीं"
बड़ी ही गंभीरता से कहे
तब ....आदमी......
पुरुष से पिता बनता हैं  "

पढ़ेंगे तभी बढ़ेंगे - यही आजकी मांग है। स्कूल जाते बच्चे की पढाई पर बराबर ध्यान पापा देते है - भलेही वो पढ़ा लिखा इंसान हो या न हो। 

खुद ही की कल की मेहनत पर ऐश करने वाला,
अचानक बच्चों के आने वाले कल के लिए आज कोम्प्रोमाईज़ करने लगे
तब ....आदमी.....
पुरुष से पिता बनता हैं "

शादी होते ही वैसे तो कोम्प्रोमाईज़ दोनों ही करते है पर पत्नी का योगदान ज्यादा होता है। पर पिता बनने  के बाद हर पुरुष जिसके मनमे अपने परिवार के प्रति प्रेम है पत्नी की प्रसव पीड़ा का एहसास है वो हर चीज को करने से पहले जरूर सोचेगा की ये मेरी जरुरत है या ऐश?

ओफ़ीस का बॉस,
कईयों को आदेश देने वाला,
स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग में क्लास टीचर की,
हर इंस्ट्रक्शन को ध्यान से सुनने लगे
तब ....आदमी......
पुरुष से पिता बनता है"

आदमी अपने ऑफिस या दुकान में चाहे जैसा हो पर जब उसे बच्चे के लिए स्कूल में जाना हो तब वह सजग हो जाता है। वह बच्चे के टीचर ने कही हर बात ध्यानसे सुनने लगता है। 

खुद की पदोन्नति से भी ज्यादा
बच्चे की स्कूल की सादी यूनिट टेस्ट की ज्यादा चिंता करने लगे
तब ....आदमी.......
पुरुष से पिता बनता है "

आजकल के पिता अपने बच्चो की पढाई को लेकर काफी चिंतित  होते है - खुद ध्यान देंगे। 

खुद के जन्मदिन का उत्साह से ज्यादा
बच्चों के बर्थडे पार्टी की तैयारी में मग्न रहे
तब .... आदमी.......
पुरुष से पिता बनाता है "

साल में एकबार आने वाला बच्चे का जन्मदिन पापा के लिए ख़ुशी का मौका होता है और तब बाहर आती है छुपी हुई उनकी प्रतिभा - मेनू डेकोरेशन वेन्यू सबकुछ एकदम अच्छेसे मैनेज करते है पिता। 

हमेशा अच्छी अच्छी गाडियो में घुमाने वाला,
जब बच्चे की सायकल की सीट पकड़ कर उसके पीछे भागने में खुश होने लगे
तब ......आदमी....
पुरुष से पिता बनता है"                

बच्चे को कुछ भी सिखाने  की ख़ुशी का तो कोई मिल ही नहीं है। बच्चो के साथ बिताया कोईभी फिजिकल एक्टिविटी का समय रिलैक्स करता है और बच्चे की हर नयी बात पर हर पिता का मन गौरव का अनुभव करता है। 

खुदने देखी दुनिया, और खुद ने की अगणित भूले
बच्चे ना करे, इसलिये उन्हें टोकने की शुरुआत करे
तब .....आदमी......
पुरुष से पिता बनता है"

इंसान अपनी गलतियों से ही सीखता है। पर किसी और की गलती से भी सीखा जा सकता है की ये गलती हम न दोहराये। ये हमारा समय बचा सकता है। और यही हर डैडी अपने बच्चे को बताने की कोशिश करते है जब वो उसे टोकते है। 

बच्चों को कॉलेज में प्रवेश के लिए,
किसी भी तरह पैसे ला कर
अथवा वर्चस्व वाले व्यक्ति के सामने दोनों हाथ जोड़े
तब .......आदमी.......
पुरुष से पिता बनता है "

वैसे तो बगैर काम का कोई भी हाथ नहीं जोड़ता पर जब बच्चे के भविष्य की बात आती है तब आदमी ये भी करता है। इसीलिए बच्चो अपने माँ बाप को किसके सामने हाथ जोड़ने लगाना और कहा खर्च करने लगाना ये आपके हाथ में है - पढोगे अच्छेसे तो रैंक भी अच्छी और कॉलेज भी अच्छा मिलेगा। आपके पिता को न ज्यादा खर्च करना पड़ेगा न झुकना पड़ेगा। 

"आपका समय अलग था,
अब ज़माना बदल गया है,
आपको कुछ मालूम नहीं"
" धीस इज जनरेशन गैप"
ये शब्द खुद ने कभी बोला ये याद आये
और मन ही मन बाबूजी को याद कर माफी माँगने लगे
तब ....आदमी........
पुरुष से पिता बनता है "

जो हमने अपने बड़ो से कभी कहा हो और वो अगर उन्हें दुखी कर गया हो तो ऐसी बातें जब अपना ही बच्चा अपने से करने लगे तब माफ़ी - भलेही मन ही मन हर कोई मांगने लगता है - अच्छा है।  माफ़ी मांग लेने से कोई छोटा नहीं होता। 

लड़का बाहर चला जाएगा,
लड़की ससुराल,
ये खबर होने के बावजूद,
उनके लिए सतत प्रयत्नशील रहे
तब ...आदमी......
पुरुष से पिता बनता है "

 आजका जमाना तो ऐसा है की  पति पत्नी भी पुरे सात दिन साथ में रह लिए तो बहोत है। फिर बच्चे बड़े होकर दूर होने ही है - लड़की का ससुराल जाना तो तय है पर लड़के भी करियर के पीछे चले जाते है। ये पता रहता है फिरभी बच्चे को जो अच्छा लगे वो उसे मिले इसके लिए हमेशा कोशिशे करने वाला बाप ही होता है। 

बच्चों को बड़ा करते करते कब बुढापा आ गया,
इस पर ध्यान ही नहीं जाता,
और जब ध्यान आता है तब उसका कोइ अर्थ नहीं रहता
तब ......आदमी.......
पुरुष से पिता बनता है"

पूरी जिदंगी पत्नी का हाथ बटाया बच्चो को बड़ा करने में और देखा ही नहीं कब उम्र की शाम हो गयी - यही होता है बापूजी के साथ। 

पूरी पोस्ट पढ़ी इसीलिए धन्यवाद। मेरे अन्य पोस्ट भी आपको अच्छे लगेंगे। यूट्यूब फेसबुक और अन्य ब्लोग्स के लिंक नीचे दिए कृपया उन्हें भी चेक करे। 




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