नेपोलियन अपने कुछ सैनिकों कैं साथ कहीं जा रहे थे कि उन्हीं के एक सेनापति मरचैरां ने करीब छह हजार सैनिकों को लेकर उनका मार्ग रोका । वह नेपोलियन को खत्म कर देना चाहता था ।
नेपोलियन के पास इतनी सेना थी कि वे उस सेनापति का सामना कर सकते थे, किंतु उन्होंने कहा मैँ अपने ही देशवासियों का रक्त नहीं बहाना चाहता और नेपोलियन घोड़े पर चढकर अकेले शत्रु सेना की ओर चल पड़े।
शत्रु सेना से १०० हाथ दूर आकर घोडा भी छोड दिया और पैदल ही आगे बढे । ईस बार वे शत्रु सेना से केवक १० हाथ दूर थे ।
मरचेरा ने नेपोलियन को लक्ष्य कर अपनी सैना को गोली चलाने की आज्ञा दी । एक अंगुली हिलती और फ्रांस का भाग्य बदल जाता किंतु कोई अंगुली नहीं हिली । मरचेरा की आज्ञा पर सैनिकों ने ध्यान नहीं दिया ।
नेपोलियन बोले 'सैनिको तुममें से कोई अपने सम्राट की हत्या करना चाहे तो अपनी इच्छा पूरो कर ले । में यहां अकेला ख़डा हू।'
कोई कुछ नहीं बोला। सैनिकों ने बंदूकें पृथ्वी पर गिरा दीं और सम्राट नेपोलियन की जय जयकार करने लगे ।
नेपोलियन ने एक बूढे सैनिक से कहा "तुमने मुझें मारने के लिए बंदुक उठाई थी?"
सैनिक की आखें भर आई । उसने अपनी बदूक दिखा दी । बदूक में गोली थी ही नहीं । पूरी सेना ने बदूकों में केवल आवाज करने के लिए बारूद भर रखी थी ।
वस्तुत: जहा नेता साहसी ओर किसी भी संकट में सर्वप्रथम स्वयं आगे बढकर उसका सामना करे, तब उसके अनुयायी भी उनके प्रति पूर्ण निष्ठावान हो जाते है।
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