जातक कथाओं में एक कथा आती है, जो कार्य से पूर्व विचार को शिक्षा देती है।
एक पुरानी हवेली में एक वृद्ध महिला रेहती थी । उसके घर में और कोई नहीं था। वह अकेली थी । इसलिए उसने घर के प्रत्येक कार्यं के लिए नोकर-नौकरानी रख रखे थे ।
उस वृद्धा के पास एक तोता था, जो अत्यंत वफादार था । वह वृद्धा का सुबह से लेकर रात तक मनोरंजन करता था। यहां तक कि पिंजरा खुला होने पर भी वह कभी नहीं भागा। वृद्धा भी उससे बहुत स्नेह करती थी ।
चूंकि वृद्धा क्रो समय देखना नहीं आता था हेसलिए वह तोते के जगाने पर ही उठती थी । तोता उसे सुबह होते ही जगाता और फिर वृद्धा अपने नौकर-नौकरानियों को उठाकर घर के कामों में लगाती थी । इसलिए नौकर-नौकरानी उस तोते से बहुत चिढ़ते थे ।
एक दिन उन्होंने विचार किया कि यदि तोते को मार डालें तो समस्या हल हो जाएगी । ऐसा सोचकर उन्होंने अवसर पाकर तोते को मार डाला।
तोते की मृत्यु के बाद वृद्धा को समय का कोई अंदाजा नहीं ही रहता था । इसलिए जब उसकी नींद खुल जाती, वह नौकर -नौकरानियों को उठाकर काम में लगा देती ।
अब तो उन लोगों के पास अपनी करनी पर पछताने कै सिवाय कुछ नहीं बचा था ।
कथा का निहितार्थ यह है कि किसी भी काम को करने के पहले उसके परिणामों पर एक बार अवश्य वीचार कर लेना चाहिए, क्योंकि अविचारित कर्म अधिकांश प्रतिकूल परिणाम ही देते हैं। .
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