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Wednesday 16 October 2019

सस्ता व्यापारी और बेरोजगारी

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Image Credit: India Toady

मान लीजिए कि एक गांव ऐसा है जहां बाहर से कोई भी नहीं आ सकता है और ना बाहर जा सकता है, यानी कि उस गांव के अंदर हर काम को करने वाला इंसान(कामगार) मौजूद है,
चाहे वह नाइ का काम हो,
चाहे मोची का,
चाहे खेती का
पढ़ाने का
या
खाना बनाने का जैसे ढाबा वगैरा
दर्जी का या
बढ़ाई का या
लोहार का ।
आप यूं समझिए कि हर इंसान किसी ना किसी आवश्यकता को पूरा करता है । एक इंसान का खर्च दूसरे इंसान की कमाई है। इस प्रकार सभी खर्च करते हैं और सभी कमाते हैं।
अब इस गांव में एक व्यापारी बाहर से आया और उसने सबसे सस्ता माल, सेवायें और सुविधाएं देने का दावा किया।
अब चाहे वह अनाज हो, इलेक्ट्रॉनिक चीज़े हो, कपड़ें हों, जूते हों, मतलब सब कुछ जो किसी को भी चाहिए। इस प्रकार सब कुछ सस्ता सस्ता उसने सबको उपलब्ध करवाया।
अब आप समझिए असल में हुआ क्या उस गांव में, कभी जो उत्पादक थे या सर्विस प्रोवाइडर थे और ग्राहक भी थे, वह सब केवल ग्राहक बन के रह गए मतलब केवल खर्च करने वाले, अब,
पहली बात सब खर्च तो कर रहे थे किंतु उस खर्च से कमाई उस गांव में किसी को नहीं हो रही थी।
दूसरी बात, सब ने खर्च किया सस्ते के लालच में उस व्यापारी के पास जो बाहर से आया था और वह व्यापारी कमा तो रहा था इस गांव में और खर्च रहा था अपने खुद के शहर में। तो आप समझिए उस गांव के लोगों का हाल क्या होगा।

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