Image credit - Hindu Janjagruti Samiti
एक दिन #छत्रपति #शिवाजी महाराज माताजी से मिलने उनके कक्ष में गए । उन्होंने देखा कि माताजी कक्ष के झरोखे में से बाहरहर बड़े ध्यान से कुछ देख रही हैं। शिवाजी ने पूछा, "माताजी, इतनी गंभीरता से क्या देख रही हैं?
वे बोलीं, "यही कि आसपास के सभी जिलों पर तेरी #विजय #पताका फहरा रही है, फिर केवल इस कोंडणा दुर्ग पर ही क्यों #मुगलों का आधिपत्य है? मैं यहां रहना चाहती हूं।"
वे बोलीं, "यही कि आसपास के सभी जिलों पर तेरी #विजय #पताका फहरा रही है, फिर केवल इस कोंडणा दुर्ग पर ही क्यों #मुगलों का आधिपत्य है? मैं यहां रहना चाहती हूं।"
शिवाजी ने आज्ञा स्वीकार की। उन्होंने तत्काल एक पत्र अपने विश्वसनीय सेनाप्रमुख #तानाजी के नाम लिखा,"माताजी की आज्ञा है कोंडणा दुर्ग अभी फतह किया जाए। यह काम तुम ही कर सकते हो।"
तानाजी अपने पुत्र के #विवाह की तैयारी में लगे थे। स्वामी का पत्र पाते ही उन्होंने बारातियों से कहा, "पहले कोंडणा दुर्ग से ब्याह फिर मेरे बच्चे कां ब्याह।'
तुरंत तानाजी #सेना लेकर निकल पड़े। #किले पर चढने के लिए डाली गोह तीन बार गिरी किंतु तानाजी ने हार नहीं मानी। चौथी बार में गोह चिपक गई । तानाजी दुर्ग पर चढ गए । नीचे डोर डालकर सेना को चढाया । बहा जमकर युद्ध हुआ। मुट्ठीभर सैनिकों ने अपने #अदम्य #साहस से अजेय माना जाने चाला कोंडणा दुर्ग जीत लिया।
लेकिन इस युद्ध में तानाजी #वीरगति को प्राप्त हुए। शिवाजी को समाचार मिलते ही उनके मुंह से निकल पडा 'गढ़ आला, पण सिंह गेला।' तब से उस दुर्ग का नाम #सिंहगढ़ रखा गया।
उक्त प्रसंग #कर्तव्य भावना का महत्व दर्शाता है। निजी कार्यों से ऊपर अपने कर्तव्य को प्रमुखता देने वाला व्यक्ति #इतिहास में #अमर हो जाता है।
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