Image credit - Hyderabad India Online
उन दिनों #गांधीजी #चंपारण में थे। सुबह नियम से वे #चरखा कातते और अपने सहयोगियों से आवश्यक चर्चा करते थे।
एक दिन वे अपनी कुटिया क बाहर बैठे थे। सुबह का समय था। उन्होंने अपने एक सहयोगी से चरखा मांगकर #सूत कातना शुरू किया।
कुटिया के सामने खुला स्थान था, जहां बच्चे खेलते थे। उस समय भी वहां बच्चे खेल रहे थे। अचानक दो बच्चे खेलते खेलते किसी बात पर झगड़ पड़े। धीरे-धीरे दोनों के मध्य विवाद इतना बढा कि आपस में #गालियां देने लगे।
छोटे बच्चों के मुह से #अपशब्द सुनकर गांधीजी को बहुत दुख हुआ। उन्होंने तत्काल दोनों, बच्चों के #माता-#पिता को बुलवाया। उनके आते ही गांधीजी ने उन्हें डांटना शुरू कर दिया। कुछ देर तक वे सुनते रहे, फिर उनमें से एक बच्चे के पिता ने कहा, '#बापू हमारी गलती तो बताइए।'
गांधीजीने कहा, "तुम दोनों के बच्चे यहां खेल रहे थे। उनमें झगड़ा हुआ और वे एक-दूसरे को गालियां देने लगे।"
उस व्यक्ति ने कहा, "इसके लिए आपने हमें क्यों बुलाया? दोनों बच्चों को बुलाकर डांट देते। आपको उन्हें डांटने का पूरा #अधिकार है।'
गांधीजी ने गंभीरता से कहा, मैं उन्हें डांट सकता था, किंतु डांटता तो तब जब वे #दोषी होते। ये गालियां तो उन्होंने तुम लोगों से सीखी होंगी।'
उनकी बात सुनते ही दोनों बच्चों के माता-पिता के सिर लज्जा से झुक गए और उन्होंने गांधीजी से #क्षमा मांगी।
दरअसल, बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैैं। उन्हें #संस्कारों के जिस स्वरूप में ढाला जाता है, वे ढल जाते हैं। अत: उन्हें सदैव #सुसंस्कार देने चाहिए।
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