Image credit - Bharatkosh
#भीम को अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था। एक बार वनवास काल में #द्रौपदी को एक #सहस्रदल #कमल दिखाई दिया । उसने उसे ले लिया और भीम से उसी प्रकार का एक और कमल लाने को कहा। भीम कमल लेने चल पड़े। आगे जाने पर भीम को #गंधमादन पर्वत की चोटी पर एक विशाल #केले का वन मिला जिसमें ये घुस गए।
इसी वन में हनुमानजी रहते थे । उन्हें भीम के आने का पता लगा, तो उन्होंने सोचा कि अब आगे #स्वर्ग के मार्ग में जाना भीम के लिए हानिकारक होगा। वे भीम के रास्ते में लेट गए।
भीमसेन ने वहां पहुंचकर हनुमान से मार्ग देने के लिए कहा तो वे बोलें यहां से आगे यह पर्वत मनुष्यों के लिए अगम्य है । अत: यहीं से लोट जाओं।'
भीम ने कहा 'मैं मरूं या बचूं तुम्हें क्या? तुम जरा उठकर मुझे रास्ता दे दो।'
हनुमान बोले, 'रोग से पीडित होने के कारण उठ नहीं सकता, तुम मुझे लांघकर चले जाओ।'
भीम बोले, 'परमात्मा सभी प्राणियों की देह में है, किसी को लांघकर उसका अपमान नहीं करना चाहिए।'
तब हनुमान बोले, 'तो तुम मेरी पूंछ पकडकर हटा दो और निकल जाओ।'
भीम ने हनुमान की पूंछ पकड़कर जोरों से खींची किंतु वह नहीं हिली। भीम का मुंह लज्जा से झुक गया। उन्होंने क्षमा मांगी और परिचय पूछा। तब हनुमान ने अपना परिचय दिया और वरदान दिया कि #महाभारत #युद्ध के समय में तुम लोगों की सहायता करूंगा।
वस्तुतः विनम्रता ही शक्ति को पूजनीय बनाती है। इसलिए अपनीं शक्ति पर अहंकार न कर उसका सत्कार्यों में उपयोग कर समाज में आदरणीय बनें।
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