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Wednesday 13 August 2014

लिम्बडी की कहानी


लिम्बडी की कहानी 


एक सावकार सावकारणी हा। ब्यान कोई टाबर नहीं हा। जिकाऊ सावकारणी बोलवा  करी। बा लिम्बडी माताने बोली, " हे लिम्बडी माता, मन टाबर कोणी। अगर आपकी कृपासू मन टाबर हुयो तो म्हे थोरी पूजा करिस, उजवणो करू, घी गुळ की पल बांधू और चन्दन चोकमे रोपु, सव्वमनको सत्तू चढ़ाउ। "

काई महीना बाद सावकारणीने बेटो हुयो। पर बा बोलावा भूलगी। यान करता करता बिन सात बेटा हुआ। पर सावकारणीं बिकी बोलवा याद कोणी आई। 

साल बीतता गया. बड़ा बेटा की सगाई हुई। ब्याव हुयो। नयी बहु घरम आई. भादवा का महिनाम बड़ी तीज आई. बहु पहला दिन माथो धोई और मेंदी लगायि. दूजा दिन गावकी सारी लगाया लिम्बडी की पूजा करन जावन लागि तो बहुभि तैयार होयने पूजाका लिए चली थी। तभी सावकारणी बहु न बोली "आपरा घर म कड़ी लिम्बडी रो पेड़ ह। बहूजी थे बिकी पूजा कर ल्यो।" बहु सासुरी बात मान गयी और उभा लिम्बादिरी पूजा करली। 

पूजा हुआ बाद बहु आपरा धनिरा साथै बैढने सेतु पसबा लागी। उत्ताम फा फु करता नागदेवता आया और बिक बिन्दन उठायर ले गया। पर फिर भी सावकरणीं न अपनी बोलवा याद कोणी आई। 

सावकरणीका छे बेटा यानई बड़ी तिजका दिन गायब हुयग्या। पर सावकारणीं न बोलवा याद कोणी आई। 

सबसु छोटा बेटा की उम्र ब्यावकी हुयगी। सावकार एक ज्ञानी  बिरामण ने बुलायने बिका साथै बेटारो ट्ेवो (कुंडली ) दिनों और बोल्यो "ब्राम्हण देव दूर देश जाओ और एक सुलक्षानी कन्या मोरा बेटा रा लिए ढूंढकर लाओ। " बिरामण घुमतो घुमतो मारवाड़ पोहोच गयो. बढे बिन एक कन्या पसंद आई. बेटे री बारात लेवेने सावकार पोहोंच्यो। घनी धूम धाम सु ब्याव हुयो। सावकार बोल्यो, "अभी बहुन काई दिन आठही पिहरं रवां डयो। चोखो मुहूर्त देखने में लेवण आइस। "

सावनको महीनो आया बाद सावकारणी सावकार ने बहू न लेवण भेज दियो। मारवाड़सु सासर जावन एक महीनो लाग. माँ आपरा बेटिन छोटा  बड़ा टीजर बरमे सगलो सिखायो। 

बहु आपरा सुसराजिरा साथै ससर जावन निकली। रस्ता म छोटी तीज को सिंजरो आयो बा बोली, " पिताजी आज आठही वास करा। " बहु माथो धोई, मेंदी  लगायी, शामका चुरमो बनाओ और भोग लगायने जिमली। दूजा दिन लापसी चावल बनाया। रुपयो सुपारी लेवने कलपनो कलप लीणो। 


बिका बाद नारली पूर्णिमा (रक्षाबंधन , श्रावणी पूर्णिमा या पतंगी पूर्णिमा) आई। बिका एक दिन बाद बड़ा तिजरो सिंजरो हो. बहु फिरसे बोली, "पिताजी आज आठही वास करा। " 

बा भादवा बद्य दूजका दिन माथो धोयो, सत्तूरो पिंडो बनाओ, मेहंदी लगायी और दाल चूरमा की रसोई बनाई। दूजा दिन तड़क उठने आधारात्यों करयो। रुपयो, सुपारी और सतुकी गोली लेवने कल्पनो कलाप लियो। दिनभर उपवास कारयो। शामका लिम्बडीकी डाली लेवने मट्टीकी पल बनाएर लिम्बडी माता की पूजा मांडी और बा पूजा करबा  लागी। बा पूजा शुरू करतही लिम्बडी माता आगे आगे जाबा लागी। बा हाथ  प्रार्थना करी, " हे  लिम्बडी माँ महारसु काई गलती हुई की जो थे दूर जावो हो?" जाना लिम्बडी माता बोली, "थारा सासुजी न पुछजे काई बोलावा करी थी। "

काई दिन बाद बहु आपरा घर पूगगी। रास्ताम घटी जिकी पूरी बात ससुजिन सुनाई। सासु बोली, "बहूजी मन याद कोणी कई बोलावा बोली थी ?"

यान करता करता साल बित गयो. बड़ा तीजकी पूजा हुई। बहु आपरा बिन्द का  साथै पिंडो पासबान बैठी तो फा फु करता नागदेवता आया। बहु बिकपर तोपलो ढक दिनों। पिंडो पासनो हुया बाद दोई जाना भोजन कारन बेठ्या तो नागिन आई और बोली, "म्हारा धानिन छोड़ दे। " जना बहु बोली, "म्हे थारा धानिन छोड़िस पर पहले म्हारा छे वापस करो। "

जाना नागिन बोली, "थारा सासून टाबर नहीं थो जना बा लिम्बडी माता न सव्वामन रो सत्तू चढ़ावन की बोलावा करी थी। सात टाबर हुयग्या ब्याका ब्याव हुयग्या तो भी थारी सासु आपरी बोलवा पूरी  कोणी करी। " जना सावकारणी न आपरी बोलवा याद आई।  जना बहु बोली , " म्हारी सासुजी भूल गयी। पर म लिम्बडी माता न सव्वासात मन रो सत्तू चढ़ाउ। अब तो म्हारा छे जेठ वापस कर द्यो। "

पच बहु सव्वसात मन रो सत्तू लिम्बडी माता न चढायो। नागदेवता बिक छे जेठन छोड़ दिया और बोल्या, "उभा लिम्बडीम नागदेवता को वास रेव। जिकाउन उभा लिम्बडी की पूजा कोणी करनी। "

सावकारणिका छे बेटा वापस आयग्या जिकाउन बिन आनंद हुयो। आपापरा धनि देखने सब जिठाण्या खुश हुयगी। जिका वजहसे सगळी जन्या छोटा बहु का पग पडबा लागि और जना बा बोली, "थे पदो लिम्बडी माता का पगा और म लागू थाका पगा। "

हे लिम्बडी माता छोटा बहु न तूटी ज्यान सगळां न टूटज्यो। खोटी की खरी, अधुरिकी पूरी करजो। सवाग भाग अमर राखज्यो।




तीज की द्रोणो खोलर पिबा की कहानी 

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