वासुदेवजी और देवकी
वसुदेवजी यदुवंशके परम प्रतापी वीर शूरसेन के पुत्र थे। इनका विवाह देवक की सात कन्याओंसे हुआ था भगवान बलराम की माता रोहिणी भी इन्हिकी पत्नी थी। देवकी देवक की सबसे छोटी कन्या थी। देवकी और वासुदेव के विवाह के बाद उग्रसेन का पुत्र कंस स्नेहवश अपनी चचेरी बहन देवकीका रथ हाक रहा था।
तभी मार्गमे आकाशवाणी हुई , "मुर्ख कंस! जिस बहनको तू इतने स्नेहके साथ पहुँचाने जा रहा है, उसकी आठवी संतान के हाथोसे तेरी मृत्यु होगी। " ये सुनाने के बाद कंसने तलवार खीच ली और वो देवकीको मारनेके लिए बढ़ा। तब वसुदेवजीने कंस को समझाया, "राजकुमार, आपको देवकीसे कोई भय नहीं है। आपको इसकी सन्तानोसे भय है। मई आपको वचन देता हु की देवकीकी हर संतान जन्म लेते ही आपको दूंगा। " वसुदेवजीकी बात सुनकर कंसने देवकीको मारनेका विचार छोड़ दिया।
समय आनेपर देवकीके पहिले बालक को वासुदेवजीने कंस को दे दिया। कंसने उसकी हत्या कर दी और देवकी वासुदेव को कारागार में डाल दिया। एक एक करके देवकी के छः पुत्रोकी हत्या हो गयी। सातवे गर्भमे बलरामजी आये और योगमायाने उन्हें रोहिनीके गर्भमे डाल दिया। देवकीके आठवे गर्भसे पालनहार श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ। साक्षत चतुर्भुज भगवान के दर्शन के बाद माता देवकी ने उन्हें शिशु बनानेकी प्रार्थना की। भगवान के आदेशसे वसुदेवजीने उस बालक को नन्दभवन पोहचा दिया और उनकी कन्या को ले आये। कंसेने उसे भी मारना चाहा किन्तु वो योगमाया थी जो आकाशमे उड़कर अष्टभुजा देविका रूप लेकर कंस को कृष्णजन्म की सूचन देकर अंतर्धान हो गयी
कंस वधके बाद श्रीकृष्णने वासुदेव और देवकी की करगारसे मुक्ति करदी। सांदीपनि मुनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करनेके बाद गुरुदक्षिणा स्वरुप भगवानने उनका मृत पुत्र जीवित कर दिया। ये बात जब देवकी माता को पता चली तो उन्होंने श्रीकृष्ण को कंस के हाथो मारे गए अपने छ पुत्रोंको मांग लिया। भगवानने उन सभी नवजात शिशुओको जीवित कर दिया।
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