जय श्री राम! आपके लिए एक कहानी लायी हूँ जिसमे एक व्यक्ति कैसे लालची हो जाता है और दूसरों का बुरा करना चाहता है और फिर उसके साथ क्या होता है ये बताया है। कहानी को पूरा जरूर पढ़िए।
बहुत साल पहले की बात है। नारायण और पुष्कर नामके दो व्यापारी थे। वो दूर देश जाकर अपना सामान बेचा करते थे और काफी धन कमाया करते थे। एक बार वो इसीतरह अपना सामान बेचकर अपने देश लौट रहे थे। उनकी लौटने की यात्रा काफी लम्बी थी। पहले के ज़माने में लोग एक निश्चित दुरी हर रोज पार करके अपनी यात्रा पड़ाव दर पड़ाव पूरी किया करते थे। अगर किसी वजह से निश्चित किये हुए पड़ाव तक न पोहोच पाए तो रात को रुकने की बड़ी दिक्कत होती थी।
नारायण और पुष्कर काफी देर से अपने सामान के साथ चले जा रहे थे पर रास्ता भटक गए थे और अबित खिंड नामकी जगह पर पोहोच गए। वह जगह उनके निश्चित पड़ाव से काफी अलग थी। उन्हें इस जगह के बारेमे कुछ भी पता नहीं था। पहले के ज़माने में होटल्स नहीं रहा करते थे, हा पर मंदिरों में धर्मशालाएँ रहा करती थी जहा लोग यात्रा के दौरान रुका करते थे। पर जिस जगह वे दोनों गए थे वह जगह उनके लिए अपरिचित थी और रात भी काफी हो गयी थी।
उन्होंने एक राह चलते आदमी से आसरा मांग लिया। उस आदमी का नाम विरसज था। दोनों व्यापारियों ने अपना परिचय देते हुए कहा, "हम लोग रास्ता भटक गए है कृपया हमें रात्रि में रुकने के लिए किसी धर्मशाला का रास्ता बतावें।"
विरसज ने देखा की दोनों व्यापारियों ने काफी धन कमाया है और वो सारा धन उन्हीके साथ है। उसके मनमे लालच आ गया। वह उन्हें अपने साथ अपने घर ले गया। विरसज ने दोनों के लिए खाने की व्यवस्था की और फिर विश्राम हेतु उन्हें एक कमरे में ले गया जहा नारायण और पुष्कर के लिए पलंग था और वह कमरा घर के बाहरी हिस्से में था।
विरसज को गांव में कोन गुंडा है ये मालूम था।वह नारायण और पुष्कर को विश्राम के लिए छोड़कर गांव के गुंडे कुंडाशी के पास चला गया और उन दोनों को मरने की योजना बनायीं। और घर लौट आया। रात काफी हो गयी थी तो वह भी सो गया।
विरसज के दो बेटे खेत में गए हुए थे इसीलिए उन्हें इस बारेमे कुछ भी पता न था। वे देर रात खेत की निगरानी करके घर लौटे। रात्रि बहुत हो गयी थी इसीलिए उन्होंने घर के बाहरी कमरे में सोना चाहिए ऐसा सोचा। तो वे दोनों पुत्र उसे कमरे में गयी जहा नारायण और पुष्कर रुके हुए थे। पूरी बात पता चलने पर विरसज के दोनों पुत्रों ने कहा, "आप पशुशाला में जाकर सो जाइये।" नारायण और पुष्कर ने वैसा ही किया और वे पशुशाला में जाकर सो गए।
उसी समय कुंडाशी अपने साथियों के साथ आया था। पर घर में कुछ हलचल हो रही है ये देखकर वह थोड़ी देर रुक गया। जब सब लोग सो गए तब कुंडाशी योजना के हिसाबसे उस बाहरी हिस्से वाले कमरे में गया और वह पलंग पर सोये विरसज के दोनों पुत्रों को व्यापारी समझ कर मार दिया। उसने देखा तक नहीं की कौन सोया है।
अगले दिन खून देखकर विरसज की पत्नी ने शोर मचाया तो सब लोग इकठ्ठा हो गए। विरसज ने जब देखा की नारायण और पुष्कर तो सही सलामत है तो वह हड़बड़ी में उस कमरे में कौन सोया था ये देखने गया। अंदर जो शव पड़े थे वो देख विरसज के पैरों तले जमीन खिसक गयी - क्यों की उसके दोनों पुत्र मर चुके थे। पर अब पछतावा करने का समय भी न बचा।
दुःख में अपना माथा पीटते हुए विरसज ने कहा, "मेरी लालच ने मेरे ही पुत्र खा लिए।" और उसने अपना गुनाह कबुल कर लिया।
इस कहानी से हमें ये सिख मिलती है की दूसरों का बुरा करने की चाहत और लालच का फल हमेशा भुगतना पड़ता है।
कहानी यहातक पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर कहानी पसंद आयी हो तो कृपया शेयर करिये।
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