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Saturday 15 May 2021

यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने

जय श्री कृष्ण मित्रो और सखियों ! आज आपके लिए भक्तिरस से भरी समर्पण से भरी एक कहानी लायी हु।  कहानी आपने भी कई बार पढ़ी होंगी पर अपने आराध्य पर अटूट विश्वास आपको सबकुछ देता है यह बताने वाली ये कहानी हमने बार बार पढ़नी चाहिए और सबको बतानी चाहिए। इसीलिए फिरसे एकबार शेयर कर रही हु। 

Image: DNA 

भारत के एक छोटे शहर में एक पुरानी सी इमारत में विष्णुदत्त नामके वैद्यजी का मकान और दवाखाना दोने थे।  वह अपनी पत्नी सौदामिनी और बेटी रिदिमा के साथ वहा  रहते थे। 
सौदामिनी हर दिन नित्य नियम से घर के पुरे काम करती थी और दवाख़ाना खोलने से पहले विष्णुदत्त को उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। विष्णुदत्त अपनी पूजा और नित्य साधना करके दवाखाना खोलते और फिर अपनी जगह पर बैठ कर परमात्मा का स्मरण कर वह चिठ्ठी खोलते। सौदामिनी ने जो सामान लिखा होता, उसका मोल भाव देखते और हिसाब करते थे। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते, "हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ।" यह उनका नित्य नियम था। 
विष्णुदत्त कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता थाकोई नहीं देता था। किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थेउसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो।
ऐसे ही हर दिन की तरह विष्णुदत्त  ने अपना दवाख़ान दवाख़ाना खोला। अपनी जगह पर बैठ कर परमात्मा का स्मरण कर सामान की चिठ्ठी खोली। उनकी बेटी रिदिमा विवाह योग्य हो गई थी और कुछ दिनों में उसका विवाह होना निश्चित था तो सौदामिनी ने आज जो चिठ्ठी  उसे पढ़कर विष्णुदत्त एकटक देखते ही रह गए। क्युकी चिठ्ठी में रोज के सामान के साथ  सौदामिनी ने लिखा था, 'रिदिमा का विवाह अगले हफ्ते हैउसके दहेज का सामान।' यह पढ़ते ही मन भटकने लगा और आखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए। पर विष्णुदत्त ने अपने आप को संभाला और फिर रोज के सामान का हिसाब किया और दहेज के सामने लिखा, 'यह काम परमात्मा का हैपरमात्मा जाने।' और हिसाब लगाकर परमात्मा से प्रार्थना की, "हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ।"
एक-दो रोगी आए थे। उन्हें विष्णुदत्त ने दवा दी। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी और उसमे से पद्मनिधि नामक एक धनवान व्यक्ति उतर कर  दवाखाने में आ बैठा और अपनी बारी की  राह देखने लगा। पहले आये हुए रोगी चले गए और फिर विष्णुदत्त ने पद्मनिधि से कहा, "यहाँ मेरे समीप आइये मै आपकी नाड़ी देखता हु फिर आपको दवा दूंगा।"
पद्मनिधि ने कहा, "वैद्यजी! मैं कई साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ इसीलिए आपने मुझे पहचाना नहीं। मै पद्मनिधि। मै आप को पिछली भेट के बारेमे बताता हु। १५- १६ साल पहले मै कार से अपने पैतृक घर जा रहा था। बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर लगवाने चला गया। धुप बहोत थी तो आपने मुझे आपके दवाखाने में बैठने के के लिए कहा था और मै आकर बैठ गया। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी।"
विष्णुदत्त ने पूछा, "फिर क्या हुआ?"
पद्मनिधि ने आगे बताया, "आपकी बेटी आपको भोजन के लिए बुलाने आयी थी तो आपने उसे कहा की आप थोड़ी देर बाद आएंगे। मैं  इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नहीं जा रहे थे। आपका दवाखाना देख मैंने सोचा की मैंने कोई दवाई लेनी चाहिए। फिर मैंने आपको यह बताया की विदेश में कारोबार है और विवाह को ७-८ साल बीतने के बाद भी बच्चे के सुख से वंचित हु। यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया।"
विष्णुदत्त ने फिर पूछा, "आगे क्या हुआ ?"
पद्मनिधि ने बताया, "आपने कहा थामेरे भाई! भगवान से निराश न होओ। याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। आस-औलादधन-इज्जतसुख-दुःखजीवन-मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ पुड़िया भी बनाते जा रहे थे। सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था।"
पद्मनिधि ने आगे बताया, "मैंने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, 'बस ठीक है।' मैंने जोर डालातो आपने कहा कि 'आज का खाता बंद हो गया है।' मैंने कहा 'मुझे आपकी बात समझ नहीं आई।' इसी दौरान वहां एक और आदमी आया हुआ था उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि 'खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते।'"
पद्मनिधि ने आगे बताया, "यह सुन मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला 'वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी।' आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं। हम दोनों पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है।"
विष्णुदत्त नेकहा, "अच्छा!"
पद्मनिधि ने आगे बताया, "वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है। केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी विवाह अगले हफ्ते हफ्ते है। न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैंदुगना खरीद लेता था। मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है।"
विष्णुदत्त  की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, ''पद्मनिधिजी जीआप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया है। आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये।" औरविष्णुदत्तने चिट्ठी खोलकर पद्मनिधि को पकड़ा दी। वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ''दहेज का सामान'' के सामने लिखा हुआ था ''यह काम परमात्मा का हैपरमात्मा जाने।''
काँपती-सी आवाज़ में विष्णुदत्त बोले, "पद्मनिधि जीविश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने।"
वैद्यजी ने आगे कहा, "जबसे होश सँभाला हैएक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करोशाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करोखाते समय उसका आभार करोसोते समय उसका आभार करो। हर बात के लिए परमात्मा को धन्यवाद दो। आज ईश्वर ने अपनी असीम कृपा मुझपर बरसाई है।"
यह देख वहा मौजूद सारे व्यक्ति परमात्मा की जय जयकार करने लगे। 


यहाँ तक कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर कहानी अच्छी लगी हो तो एकबार आपभी परमात्मा की जय जयकार कमेंट में करिये और कहानी को शेयरकरिये। 


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