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जय श्री परशुराम सखियों और सखाओं! अक्षय तृतीया के अवसर पर परशुरामजी के बारेमे पढ़ रही थी तब मुझे ये कथा मिली जो अब आपके लिए ले आयी हु।
यह कहानी अत्यंत रोचक है। कहा जाता है की युगो पूर्व जब भगवान विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था तब उन्ही के हाथो ब्रम्हपुत्र का उद्भव हुआ था।
बात उस समय की है जब परशुराम भगवान पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका अपने आश्रम में रह रहे थे। पर एक दिन जमदग्नि ऋषि के मनमे अपनी पत्नी रेणुका के चरित्र के विषय में संशय उत्पन्न हुआ। यह बात ऋषि ने अपने परम पराक्रमी पुत्र परशुराम को बताई। पिता की आज्ञा से परशुरामने अपने परसे (कुल्हाड़ी जैसा शस्त्र) माता रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया। इस मातृहत्याके पाप के कारण परसा परशुरामजीके हाथ से चिपक गया।
मातृहत्या के पाप का जो शाप भगवान परशुराम पर लगा था उसे कैसे दूर किया जाये इसका हल ढूढ़ते हुए परशुरामजी अनेक ऋषि मुनियोसे मिले। उनके निर्देशोंके हिसाब से परशुरामजी ने अपनी यात्रा उत्तर पूर्व दिशामे प्रारम्भ की। और वह एक स्थान पर पोहोंचे जिसे परशुराम कुंड से आज जाना जाता है। फिर उन्होंने अपने असीम बाहुबलसे पर्वत को तोड़ दिया जिससे पानी बहकर कुंड के रूप में स्थापित हो गया। कुंड मतलब छोटीसी झील जो पहाडियोसे घिरी हुई है। वहा परशुरामजी ने विधिवत प्रायश्चित स्नान किया और परसा उनके हाथ से अलग हो गया। और इस तरह वो अपने पाप से मुक्त हो गए। उसके बाद उन्होंने दक्षिण दिशा की पहाड़ियों को काट डाला ताकि कुंड का पवित्र जल जनसामान्य तक पहोच सके।
परशुरामजी की वजह से ही आज ब्रह्मपुत्र नदी का पानी हम भारत के उत्तर पूर्व भाग को पवित्र करता हुआ बांग्लादेश जाता है और फिर बंगाल के सागर में विलीन होता है।
अगर आपको यह कथा पढ़ कर परशुरामजी के प्रति कृतज्ञता का भाव उत्पन्न हुआ हो तो कृपया एकबार परशुरामजी का जयकारा कमेंट कर दीजिये और इस कथा को सबके साथ शेयर करियेगा। धन्यवाद!
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