भारत माता की जय मित्रों और सखियों!
आज आपके लिए स्वामी रामतीर्थ की कहानी लेकर आयी हूँ। २२ ओक्टुबर को उनकी जन्मतिथि है तथा १७ ओक्टुबर को पुण्यतिथि। यह कहानी आप भी पढ़िए और आपके घर में जो नयी पीढ़ी है उन्हें भी सुनाइए। इससे दो फायदे होंगे - एक उनका और आपका रिश्ता नया रंग लाएगा और दूसरा उनका चरित्र निर्माण भी होंगा।
एक समय की बात है उस वक्त स्वामी रामतीर्थ अध्यापन का कार्य करते थे। छात्रो को वे किताबी ज्ञान के आलावा व्यावहारिक शिक्षा भी देते थे। जो उनके लिए अत्यंत प्रेरणादायी थे। इसलिए छात्र स्वामी रामतीर्थ के पास बड़े मनोयोग से पढने आते थे। स्वामीजी छोटे व सरल उदाहरणोसे जीवन की महत्वपूर्ण बाते समझा देते थे। एक बार स्वामीजीने कक्षा शुरू होते ही श्यामपट पर एक लकीर खिची और फिर छात्रो से पूछा, "क्या तुममे से कोई भी छात्र इस लकीर को छोटा कर सकता है?"
एक छात्र तेजी से उठाकर श्यामपट के पास आया और उसने लकीर को मिटाकर छोटा करने के लिए हाथ बढाया तभी स्वामी जी ने उसे रोक कर बोले, "मैंने लकीर को मिटाने को नहीं बल्कि इसको छोटा करने को कहा।" यह सुनकर सभी छात्र सोच में पड गए, की आखिर लकीर को बिना मिटाए इसे छोटा कैसे करे? तभी स्वामीजी ने उसी लकीर के पास एक उस लकीर से भी बड़ी लकीर खीच दी।
स्वामी जी ने पूछा, “पता है इस का गहरा अर्थ क्या है? इस का गहरा अर्थ ये है की जिस मनुष्य से आप कमजोर हो उस व्यक्ति को मिटाना जरुरी नहीं है उससे बड़ा बनना जरुरी है।”
कहानी यहाँ तक पढ़ने के लिए धनयवाद! अगर आपको कहानी पसंद आयी हो तो इसे दबाके शेयर करदो और एकबार कमेंट में भारत माता की जय कह दीजिये। अगर आपको स्वामी रामतीर्थ जी के बारेमे और जनन हो तो बिलकुल निचे कमेंट कर दीजिये।
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