हां पिताजी शिष्य बोला। पिता ने कहा जिसे जाने पर कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता वह जाना कि नहीं?
श्वेतकेतु निरुत्तर हो गया। वाह गुरु के पास लौटा गुरु ने उसे जंगल में भेजा और कहा गाय चराओ। ध्यान रखना तुम्हें गाय जैसा जीवन बिताना है, बिना कुछ सोचे सब करते रहना। श्वेतकेतु गाय चराने गया। उसने देखा कि गाय सब काम करती है पर मान रही थी है। गुरु ने कहा था तुम सब करना पर दो काम मत करना सोचना और बोलना। भूख लगे तो भोजन करना प्यास लगे तो पानी पीना मगर भीतर शब्द को निर्मित मत होने देना। जब गुरु के पास लौटा तब गुरु ने दूर से ही कह दिया कि अब तुम्हें यहां पर आने की कोई जरूरत नहीं तुम उसे जान चुके हो जिस को जानने के बाद किसी को भी जानने की जरूरत नहीं पड़ती पूर्णविराम यही अपने भीतर जाना कहलाता है। उसने गुरु के चरण छुए। भारत ने प्रणाम की कला को खोजा है। विदेशों में चरण छूने जैसी कोई बात नहीं है। पश्चिम के लोगसमझ नहीं पाते चरण छूने का राज क्या है वह बिना बोले कुछ कहना है। धन्यवाद देना है। प्रणाम में झकते ही भीतर की यात्रा शुरू हो जाती है।
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