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Friday 12 June 2020

गौतम बुद्ध साक्षी के भाव से सहन किया घोर अपमान

गौतम बुद्ध सत्य अहिंसा व सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति थी पूर्णविराम इन्हीं सद्गुणों का उपदेश में घूम घूम कर देते और लोगों से इन्हें अपनाने का आग्रह करते। एक दिन वह किसी गांव में पहुंचे। वहां कुछ अज्ञानी लोग ऐसे थे कोमा जो बुद्ध के विरोधी थे। बुद्ध को अपशब्द कहने लगे। गौतम बुद्ध के शिष्य को बहुत बुरा लगा विरोध करने का आग्रह किया गौतम बुद्ध ने उन्हें समझाया की लोग तो अपशब्द ही कह रहे हैं। यदि है पत्थर भी मार रहे होते तो भी मैं कहता कि मारने दो। मैं जानता हूं कि यह कुछ कहना चाहते हैं लेकिन क्रोध के कारण कह नहीं पा रहे। पूर्व यदि ये ही लोग मुझे गाली देते तो मैं भी उन्हें गाली देता। किंतु अब तो लेनदेन से मुक्ति मिल गई है। रोज से अब शब्द निकलते हैं। यह तो क्रोध भवन कभी का डर चुका है। गौतम बुद्ध के विचार सुनकर अपशब्द कहने वाले हैरान रह गए। गौतम बुद्ध ने आगे अपने शिष्यों से कहा इन लोगों को बताओ कि पिछले गांव में क्या हुआ था? शिष्यों ने बताया वहां के लोग फल व मिठाइयां लेकर आए थे और आपने यह कह कर वह चीजें लौटा दी कि अब लेने वाला विदा हो चुका है। 10 साल पहले आते तो मैं यह सभी उपहार ले लेता उन लोगों ने मिठाइयां गांव में बांट दी लेकिन आप यह शब्द गांव में ना बातें आप मुझे क्रोध नहीं दिला सकते। खूंटी की तरह जो किसी को नहीं मांगती लोग उस पर वस्त्र अवश्य टांग देते हैं पूर्व राम कथा का सार यह है कि साक्षी भाव सच्चे संत की पहचान है। अच्छे बुरे लाभ हानि अपना पराया के संकीर्ण भाव से मुक्त हो जाता है उसे ही शर्म तत्व की प्राप्ति होती है।

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