नमस्ते दोस्तों आज हम एक कवित पढ़ेंगे, जिसका नाम है मेरे भीतर बैठे है क्षमता के गौतम-गाँधी।
ओ ठोकर!
तू सोच रही मई बैठकर जाउंगी रोकर,
भ्रम है तेरा
चल दूंगी मैं फ़ौरन तत्पर होकर।
ओ पहाड़!
कितना टूटे हंस खेल बिगड़,
मई भी मई हु, नहीं समझ कोई खिलवाड़।
ओ बिजली!
तूने सोचा यु मरजाएगी तितली,
बगिया जल जाएगी
तितली रह जाएगी इकली।
कुच्छ भी कर ले
पंख नए भीतर उग आएंगे,
देखेगी तू नन्ही तितली फिर उड़ान पर निकली।
ओ तूफान!
समझता है हर लेगा मेरे प्राण!
तिनके मेरे बिखरकर कर देगा लहूलुहान!
लेकिन कर्मक्षेत्र में होते जो ऐसी इंसान,
उन्हें डिगना अपने पथ से
नहीं बहुत आसान।
ओ अंधी!
तूने भी दश्चक्रो की खिचड़ी राँधी,
भैरव नृत्यों से तूने मेरी जिजीविषा बाँधी।
पीड़ा सुखिया तू भी सुन ले
मेरे भीतर बैठे है क्षमता के गौतम-गाँधी।
अरी हवा!
तू भी चाहे तो दिखादे अपना जलवा ,
भोले पौधो पर फैला दे मन का मालवा।
कितनी भी प्रतिकूल भरे पर तू भी मुझसे सुन ले
पुनः जमेगा इस मिट्टी में
तुलसी का ये बिरवा।
धन्यवाद इस कविता को पढ़ने के लिए। यह दैनिक भास्कर से ली गयी है।
ओ ठोकर!
तू सोच रही मई बैठकर जाउंगी रोकर,
भ्रम है तेरा
चल दूंगी मैं फ़ौरन तत्पर होकर।
ओ पहाड़!
कितना टूटे हंस खेल बिगड़,
मई भी मई हु, नहीं समझ कोई खिलवाड़।
ओ बिजली!
तूने सोचा यु मरजाएगी तितली,
बगिया जल जाएगी
तितली रह जाएगी इकली।
कुच्छ भी कर ले
पंख नए भीतर उग आएंगे,
देखेगी तू नन्ही तितली फिर उड़ान पर निकली।
ओ तूफान!
समझता है हर लेगा मेरे प्राण!
तिनके मेरे बिखरकर कर देगा लहूलुहान!
लेकिन कर्मक्षेत्र में होते जो ऐसी इंसान,
उन्हें डिगना अपने पथ से
नहीं बहुत आसान।
ओ अंधी!
तूने भी दश्चक्रो की खिचड़ी राँधी,
भैरव नृत्यों से तूने मेरी जिजीविषा बाँधी।
पीड़ा सुखिया तू भी सुन ले
मेरे भीतर बैठे है क्षमता के गौतम-गाँधी।
अरी हवा!
तू भी चाहे तो दिखादे अपना जलवा ,
भोले पौधो पर फैला दे मन का मालवा।
कितनी भी प्रतिकूल भरे पर तू भी मुझसे सुन ले
पुनः जमेगा इस मिट्टी में
तुलसी का ये बिरवा।
धन्यवाद इस कविता को पढ़ने के लिए। यह दैनिक भास्कर से ली गयी है।
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