तभी उसके सामने से एक१३ - १४ साल की लड़की अपनी गोद में एक बच्चा लिए हुए गुजरी। वैसे तो कपड़ों से पता चल ही रहा था कि वह एक भीखारण थी। पर उसके चेहरे की मुस्कान और आंखों की चमक ने शामली को उसकी तरफ आकर्षित कर दिया।
हमारा समाज अमीरी और गरीबी में फर्क करता है, तो वैसा ही कुछ शामली के साथ भी हो रहा था। पर दिल ने दिमाग की एक न सुनी और शामली उस भीकारण की तरफ बढ़ पड़ी। शामली उस लड़की से बात करना चाह रही थी और उसने वैसा ही किया। पर शायद उस भीकारण को समाज का उसूल अच्छे से पता था इसीलिए वह वहां से निकल पड़ी। लेकिन शामली के अच्छे बर्ताव से उसे लगा कि शामली अच्छी है तो वह रुक गई और दोनों में बातचीत शुरू हो गई:
शामली ने पूछा, "बेटा यह बच्चा किसका है?"
उस लड़की ने जवाब दिया, "मेरा अपना है बीवी जी।"
यह बात सुनकर शामली सन्न रह गई। इस छोटी सी उम्र में वहां एक बच्चे की मां थी। एक तरफ हमारा समाज जहां गरीबों के सशक्तिकरण की बात कर रहा है वहीं यह सड़कों पर रहने वाले अधिकारी एक पिछड़ों में है। कई योजनाएं सालों से गरीबों के लिए चलाई जा रही है पर दूसरी और एक ऐसा भी हिस्सा है जिन्हें खाने के लिए भीख मांगने पड़ती है। यह वह लोग हैं जो एक गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। वजह चाहे जो हो पर इस तरह की जिंदगी हर किसी के लिए डरावनी है। न पहनने के लिए ढंग के कपड़े और ना ही सर छुपाने के लिए छत। पढ़ाई तो बहुत दूर की बात है। और दूसरी ओर हमारे जैसे नौकरी पेशा करने वाले लोग है जिनके पास कम से कम जरूरतों का सामान खरीदने के लिए पैसे हैं। जिस जिंदगी को हम लोग जी रहे हैं उस जिंदगी का सिर्फ सपना ही यह भीकारी लोग देख पाते हैं।
लेकिन फिर भी उस भी कारण के चेहरे पर शिकायत न थी। उसकी आंखों में चमक थी। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। और मनुष्य जीवन ही ऐसा जीवन है जहां हम मुस्कुरा सकते हैं। बात कर सकते हैं। उस भीकारी लड़की की मुस्कान ही बता रही है जीवन चाहे जैसा हो उसे अपना ही लेना चाहिए।
फिर शामली ने उसे नजदीक की दुकान से खाने के लिए कुछ बिस्कुट दिलाएं। उस लड़की ने मुस्कुराते हुए बहुत धन्यवाद दिया और दोनों अपने अपने रास्ते चल दिए। शामली ने उस दिन जीवन को अपनाने का नया ही पाठ सीखा और वह संतुष्ट थी।
अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर आपने भी किसी ऐसे ही गरीब के साथ बात की होगी तो आपका अनुभव कृपया कमेंट करिए। इस ब्लॉग को फॉलो और शेयर करिए।
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