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Monday, 27 April 2020

जब पत्नी ने अपने पति को पराजित घोषित किया

एक बार आदिशंकराचार्य और मंडन मिश्रा के मध्य किसी विषय को लेकर बहस छिड़ गई। दोनों अपने-अपने तर्कों पर अडिग थे और कोई हार मानने के लिए तैयार नहीं था। आखिर यह तय हुआ कि दोनों परस्पर शास्त्रार्थ करें और जिसके तर्क अकाश सिद्ध हो, वही विजेता माना जाएगा। दोनों के बीच 16 दिन तक शास्त्रार्थ चला। निर्णायक थी मंडन मिश्र की विदुषी पत्नी देवी भारती। हार-जीत का निर्णय हो नहीं पा रहा था, क्या हो गया क्योंकि दोनों एक से बढ़कर एक तर्क रख रहे थे। इसी बीच देवी भारती को किसी जरूरी काम से कुछ समय के लिए बाहर जाना पड़ा। जाने के पूर्व उन्होंने दोनों विद्वानों के गले में फूलों की 1 1 माला डालते हुए कहा मेरी अनुपस्थिति मैं मेरा काम यह माल आए करेगी। उनके जाने के बाद शास्त्रार्थ यथावत चलता रहा। कुछ समय बाद जब वे लौटे तो उन्होंने दोनों को बारी-बारी से देखा और आदि शंकराचार्य को विजेता घोषित कर दिया। अपने पति को बिना किसी आधार पर पराजित करा देने पर हैरानी जताते हुए लोगों ने उनसे इसका कारण पूछा तो वे सहजता से बोली जब विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है, तो वहां स्वयं को कमजोर समझ के क्रोधित हो उठता है। मेरे पति के गले की माला क्रोध के ताप से सूख गई, जबकि शंकराचार्य की माला के फूल अभी भी ताजे है, इससे प्रकट होता है कि शंकराचार्य की विजय हुई है। वस्तुतः किसी भी कठिन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बुद्धि के साथ धैर्य की भी आवश्यकता होती है, क्योंकि वहां आसानी और शीघ्रता से प्राप्त नहीं होता है।

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