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Monday, 27 April 2020

दृढ़ इच्छाशक्ति से अपंग धाविका ने जीते पदक

चार साल की उम्र में विल्मा रूडोल्फ निमोनिया और काला ज्वर की शिकार हो गई। फलतः पैरों में लकवा मार गया। चिकित्सकों ने कहा कि वे अब कभी चल नहीं सकेगी। विलमा का जन्म टेनेसेस की एक निर्धेन परिवार में हुआ था। आर्थिक तंगी के कारण बेहतर इलाज संभव नहीं था, किंतु विल्मा की मां मजबूत इरादों वाली महिला थी पूर्णविराम उन्होंने ढांढस बंधाया - विल्मा यदि तुम चाहोगी तो अवश्य चल पाओगी। विल्मा की इच्छा शक्ति जागृत हो गई पूर्णविराम उन्होंने मां के यह शब्द सदा याद रखें - यदि मनुष्य में ईश्वर में विरोध में विश्वास के साथ मेहनत और लगन हो तो वह दुनिया में कुछ भी कर सकता है। उनके उत्साह देख चिकित्सकों ने भी जी तोड़ मेहनत की और 9 साल की उम्र में बिल्व आउट बैठी। 13 साल की उम्र में पहली बार एक दौड़ प्रतियोगिता में शामिल हुए लेकिन हार गए। फिर लगातार प्रतियोगिता में शामिल हुए लेकिन हार गई फिर लगातार तीन प्रतियोगिता में सफल रही किंतु हिम्मत नहीं हारी। 15 साल की उम्र में टेनिस स्टेट यूनिवर्सिटी के टेंपल नामक कोच से प्रशिक्षण देने का आग्रह किया। टेंपल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति देख मदद के लिए तैयार हो गए। 1960 ओलिंपिक मैं विल्मा ने हिस्सा लिया पूर्णविराम कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक अपंग लड़की वायु वेग से दौड़ सकती है। वे दौड़े और 100 मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। विल्मा ने प्रमाणित कर दिया कि एक अपंग व्यक्ति भी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर सब कुछ कर सकता है। दरअसल सफलता की राह कठिनाइयों के बीच से गुजरती है। 

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