मैकमोहन लाइन भारत और चीन को जोड़ने वाली आन्तर्राष्ट्रीय सीमा है| आज दोनों देशो की सरकारे इस लाइन को लेकर विवाद कर रही है| पर यह शिमला समझोता १९१४ के तहत तिब्बत और ब्रिटिश राज के दरमियाँ तय की गयी थी और इसे उस समय की तिब्बत सरकार ने मान्यता दी थी| अब तिब्बत चीन गणराज्य का हिस्सा है| इस लेख में इसी मैकमोहन लाइन के बारेमे जानकारी खास आप सभी के लिए लिख रही हु| यह लेख लोक सेवा आयोग तथा अन्य स्पर्धा परीक्षा की तैयारी के लिए लिखा गया है| कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा परीक्षार्थियों के साथ शेयर करे और इस ब्लॉग को फोलो करना न भूले|
१) तवांग १९ वी सदी में व्यापर के हिसाब से अत्यंत उपयुक्त शहर था| पर उस समय यह तिब्बत का हिस्सा था|
२) १८७३ में भारत के ब्रिटिश सरकार ने हिमालय तलहटी से लग कर एक सीमा रेखा तय कर दी थी| यह सीमा आजके अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण सीमा से होकर गुजरती है|
३) फिर ब्रिटिश सरकार ने चीनी सरकार के साथ मिलकर तिब्बत की बर्मा और सिक्किम देशो के साथ सीमाए तय की जो की तिब्बत ने मानने से इंकार कर दी थी|
४) सन १९१० से १२ के बिच चीन के क्विंग वंश की हुकूमत के दौर में तिब्बत को चीन ने जितने की कोशिश की थी| इसी समय ब्रिटिश सरकार ने अपनी फौज को आजके अरुणाचल प्रदेश में भेज दी थी|
५) सन १९१२ में अरुणाचल प्रदेश और उत्तर पूर्व फ्रंटियर ट्रैक्ट्स का निर्माण हुआ| फिर १९१२ - १३ के समय में ब्रिटिश सरकार की एजेंसी ने उस जगह रहने वाली विभिन्न आदिवासी जातियों के मुखियाओ से अग्रीमेंट कर लिए थे| इन अग्रीमेंट्स के हिसाब से यह जगह ब्रिटिश सरकार के आधीन हुई|
६) फिर १९१३ में सिमला एकॉर्ड या शिमला समझोता की सभा हुई जिसमे चीन, तिब्बत और भारतीय ब्रिटिश सरकारों के प्रतिनिधि मौजूद थे| इस सभा में मैकमोहन लाइन हेनरी मैकमोहन द्वारा निकाली गयी| मैकमोहन लाइन को सहमती तिब्बत और ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों ने दी थी पर चीन की सहमती पर अभीभी सवाल है| क्यों की २७ अप्रेल १९१४ के दिन पहले नक़्शे पर तीनो देशोके प्रतिनिधियों की सहमती जताने वाले दस्तखत है पर ३ जुलाई १९१४ के आखरी समझोते पर चीन के दस्तखत नहीं है| मैकमोहन लाइन तिब्बत और भारत की ब्रिटिश सरकारों के बिचमे तय हुई थी और उस समय चीन के प्रतिनिधि मौजूद नहीं थे और इसीलिए ब्रिटिश सरकार चीन की सहमती नहीं ले पाई थी| और यही वजह है मैकमोहन लाइन के विवाद की| तिब्बत सरकार ने भी मैकमोहन लाइन को अमान्य कर दिया था|
७) १९३५ तक मैकमोहन लाइन को भुला दिया गया था| फिर लोक सेवा अधिकारी ओलाफ कारोए ने इस मैकमोहन लाइन को याद किया|
८) सन १९३७ में सर्वे ऑफ़ इंडिया ने मैकमोहन लाइन को आधिकारिक तरीकेसे तिब्बत और भारत के बिच की सीमा कहकर प्रकाशित किया|
९) अप्रेल १९३८ में ब्रिटिश फौज की एक छोटी टुकड़ी कप्तान जी. एस. लाईटफूट के नेतृत्व में तवांग मठ पोहोची और यह बताया गया की तवांग अब भारत का हिस्सा है| पर तिब्बत सरकार ने इसका विरोध किया| तवांग शहर के अलावा मैकमोहन लाइन के किसी भी हिस्से में तिब्बत ने कोई आपत्ति नहीं जताई| १९५१ तक तवांग तिब्बत का हिस्सा था|
१०) सन १९४४ में तवांग क्षेत्र में उत्तर पूर्व फ्रंटियर ट्रैक्ट्स ने प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित किया था पर यह हिस्सा फिरसे तिब्बत के आधीन हो गया|
११) सन १९४७ में तिब्बत सरकार ने मैकमोहन लाइन के दक्षिण में स्थित तिब्बती जिलो के अधिकार के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय को ख़त लिखा था|
१२) चीन में सन १९४९ में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनने के बाद तिब्बत को मुक्त करने की घोषणा की| इस घोषणा के उत्तर में सन १९५०-५१ में पंडित नेहरु के नेतृत्व की भारत सरकार ने मैकमोहन लाइन को अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा घोषित की और तवांग तथा अन्य जिलो को भारत के आधीन किया|
१३) सीमा के विवाद के चलते भारत सरकार ने नारा लगाया - हिंदी चीनी भाई भाई|
१४) १९५४ की परिषद में भारत और चीन की सीमा विवाद स्थिर किया गया|
१५) चौदहवे दलाई लामा के भारत में आगमन की वजह से १९५९ में यह विवाद फिर से उभरा क्यों की तिब्बत के दलाई लामा को भारत में शरण दी गयी और इसका मतलब "मैकमोहन लाइन का सम्मान करने के लिए चीन से प्रतिबद्धता को सुरक्षित नहीं किया गया" ऐसा निकाला गया जिसकी वजह से सीमा का विवाद फिर से शुरू हो गया|
१६) इस समय चीन से जूझने के लिए नेहरुजी ने फ्रंटियर ट्रैक्ट्स पर ज्यादा से ज्यादा भारतीय फौज की चौकिया बनाने का फरमान जारी किया था| दलाई लामा को शरणागति प्रदान करने पर उस समय के समाचार माध्यमो ने नेहरुजी के बारेमे काफी विरोध जताने वाली बाते फैलाई तथा भारतीय समाचार संस्थाओने तिब्बत के स्वतंत्रता की वकिली करना शुरू कर दी थी| इसी वजह से भारत - चीन विवाद और बढ़ गया|
१७) १९५९ में चीनी फौज को लोंग्जू और तसारी चु इन जगहों पर भारतीय सेना की चौकिया मिली थी| यह दोनों जगह मैकमोहन लाइन के उत्तर में है|
१८) इसी विवाद के चलते १९६२ में चीन और भारत के बिच युद्ध शुरू हुआ| यह घटना भारतीय जनता के लिए बेहद शर्मनाक थी| इस युद्ध में सोवियत संघ, यूनाइटेड स्टेट्स और ब्रिटेन ने भारत को मदत की थी|
१९) १९६३ में चीन ने मैकमोहन लाइन भारतीय युद्धकैदियों के बदले वापस ले ली|
२०) भारत में १९७२ में उत्तर पूर्व फ्रंटियर एजेंसी को अरुणाचल प्रदेश घोषित किया गया| पर चीन ने इस जगह को दक्षिण तिब्बत नाम दिया|
२१) १९८१ में चीनी नेता देंग क्सिओपिंग ने इस सीमा विवाद को स्थिरता देने हेतु चर्चा की पर कोईभी निष्कर्ष नहीं निकला और कोई अग्रीमेंट नहीं हुआ
२२) सन १९८८ में राजीव गांधीजी ने चीन को भेट दी और एक सयुक्त कारकरी समूह को सहमती दी गयी जो की सीमा विवाद पर एक अच्छा निर्णय था|
२३) १९९३ की सहमती के हिसाब से एक समिति गठित की गयी जो लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल पर काम करने वाली थी | पर इस समिति ने कोई काम नहीं किया|
२४) १९९६ में चीन - भारत सहमती के तहत विश्वास निर्माण करने वाले उपायों पर काम किया गया| जो इस विवाद को कम करने में काफी फायदेमंद था|
यह मैकमोहन लाइन से जुडी मालूमात है| मैकमोहन लाइन यह थोडा विवादस्पद विषय है| इस लेख को केवल जानकारी एवं पढाई हेतु लिखा गया है| लेखिका किसी भी विवाद का समर्थन नहीं करती है| इस लेख में अगर कोई विवादास्पद घटना का उल्लेख हुआ हो तो कृपया क्षमा करे और उस संदर्भमे कमेंट अवश्य करे ताकि उपयुक्त सुधारना की जा सके| और भी मालूमात जो इसमें नहीं दी गयी है कृपया कमेंट करे| धन्यवाद!
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