आप समस्त स्नेहीजनों को हमारा सादर प्रणाम
कल हमे अहमदाबद से बॉम्बे आना था।
हमारी ट्रेन के चार घंटे बाद बेटे की फ्लाइट थी।
उसे पहली नौकरी पर निकलना था। उसे अपना संसार शुरू करना था। हम भावुक हो रहे थे । बेटा अलग शहर चला जाएगा। धीरे-धीरे उसका अपना संसार बनेगा।
हम याद कर रहे थे कि जब उसका जन्म हुआ था, पत्नी ने सबसे पहले उसे हमारी गोद में दे दिया था। पत्नी को हमारी बांहों पर भरोसा था।.जब पहली बार वो स्कूल गया था और बस में अकेला बैठा था, तो पत्नी ने कहा था,
"आप बाइक से पीछे-पीछे स्कूल तक जाओ। वो पहली बार अकेला निकला है।
उसे पता नहीं चलना चाहिए कि आप पीछे-पीछे साथ चल रहे हो। उसे तैयार होने दो खुद चलने के लिए, पर हर कदम पर उसके साथ रहना।
यही काम वापसी पर भी हुआ था। दोपहर में हम स्कूल के बाहर खडे थे । हमारा काम था, उसे निकलते देखना और फिर बस के पीछे-पीछे लौटना।" बेटे को कभी पता नहीं चला, मां, पिता को भेज कर उसे पुरुष बनने की ट्रेनिंग दे रही थी।
बेटा बड़ा होता गया। स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से कल नौकरी पर निकल गया।
छह महीना पहले आईआईटी में पढ़ाई के दौरान उसे माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में नौकरी मिल गई थी।
जब ऑफर मिला था, हम बहुत ही प्रसन्न हुवे थे । पर हम भावुक भी बहुत हुए थे , कि अब बच्चा हमसे दूर चला जाएगा।
फिर हम कभी-कभी मिलेंगे। हम कई बार कमज़ोर भी पडे ।
यकीनन उसकी मां भी भावुक हुई होगी। पर वो हमारी तरह कभी कमज़ोर नहीं हुई।
उसने कदम-कदम पर हमे पिता होने का पाठ पढ़ाया और बेटे को पुरुष बनने का।
कल हमारी ट्रेन के चार घंटे बाद बेटे की फ्लाइट थी,
तो हमने पत्नी से कहा कि हम भी फ्लाइट से चले जायें उसके साथ ।
हम साथ ही निकलें तो ठीक रहेगा। पर पत्नी ने पूरी मजबूती से कहा कि बेटे को अब उड़ने दो।
उसे अपना संसार बनाने दो। कमज़ोर मत बनो, कमज़ोर मत बनाओ।
आपने उसे उड़ना सिखा दिया है। अब आप अपने काम पर जाओ, मैं उसे एयरपोर्ट तक छोड़ आऊंगी।
जिस पत्नी ने पहले दिन हमे स्कूल तक बस के पीछे-पीछे भेजा था,
आज वो अकेले उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने जा रही थी।
हम ट्रेन मे बैठ कर सोच रहे थे कि पुरुष मन ही मन ये सोच कर कितना खुश होता है कि उनके भीतर पिता बनने का गुण है।
पर अब हमे लग रहा है कि पिता बनना भी पुरुषों का गुण नहीं।
असल में एक महिला ही पुरुष को पिता बनना भी सिखाती है । प्रणाम शुभ रात्री ।
कल हमे अहमदाबद से बॉम्बे आना था।
हमारी ट्रेन के चार घंटे बाद बेटे की फ्लाइट थी।
उसे पहली नौकरी पर निकलना था। उसे अपना संसार शुरू करना था। हम भावुक हो रहे थे । बेटा अलग शहर चला जाएगा। धीरे-धीरे उसका अपना संसार बनेगा।
हम याद कर रहे थे कि जब उसका जन्म हुआ था, पत्नी ने सबसे पहले उसे हमारी गोद में दे दिया था। पत्नी को हमारी बांहों पर भरोसा था।.जब पहली बार वो स्कूल गया था और बस में अकेला बैठा था, तो पत्नी ने कहा था,
"आप बाइक से पीछे-पीछे स्कूल तक जाओ। वो पहली बार अकेला निकला है।
उसे पता नहीं चलना चाहिए कि आप पीछे-पीछे साथ चल रहे हो। उसे तैयार होने दो खुद चलने के लिए, पर हर कदम पर उसके साथ रहना।
यही काम वापसी पर भी हुआ था। दोपहर में हम स्कूल के बाहर खडे थे । हमारा काम था, उसे निकलते देखना और फिर बस के पीछे-पीछे लौटना।" बेटे को कभी पता नहीं चला, मां, पिता को भेज कर उसे पुरुष बनने की ट्रेनिंग दे रही थी।
बेटा बड़ा होता गया। स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से कल नौकरी पर निकल गया।
छह महीना पहले आईआईटी में पढ़ाई के दौरान उसे माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में नौकरी मिल गई थी।
जब ऑफर मिला था, हम बहुत ही प्रसन्न हुवे थे । पर हम भावुक भी बहुत हुए थे , कि अब बच्चा हमसे दूर चला जाएगा।
फिर हम कभी-कभी मिलेंगे। हम कई बार कमज़ोर भी पडे ।
यकीनन उसकी मां भी भावुक हुई होगी। पर वो हमारी तरह कभी कमज़ोर नहीं हुई।
उसने कदम-कदम पर हमे पिता होने का पाठ पढ़ाया और बेटे को पुरुष बनने का।
कल हमारी ट्रेन के चार घंटे बाद बेटे की फ्लाइट थी,
तो हमने पत्नी से कहा कि हम भी फ्लाइट से चले जायें उसके साथ ।
हम साथ ही निकलें तो ठीक रहेगा। पर पत्नी ने पूरी मजबूती से कहा कि बेटे को अब उड़ने दो।
उसे अपना संसार बनाने दो। कमज़ोर मत बनो, कमज़ोर मत बनाओ।
आपने उसे उड़ना सिखा दिया है। अब आप अपने काम पर जाओ, मैं उसे एयरपोर्ट तक छोड़ आऊंगी।
जिस पत्नी ने पहले दिन हमे स्कूल तक बस के पीछे-पीछे भेजा था,
आज वो अकेले उसे एयरपोर्ट तक छोड़ने जा रही थी।
हम ट्रेन मे बैठ कर सोच रहे थे कि पुरुष मन ही मन ये सोच कर कितना खुश होता है कि उनके भीतर पिता बनने का गुण है।
पर अब हमे लग रहा है कि पिता बनना भी पुरुषों का गुण नहीं।
असल में एक महिला ही पुरुष को पिता बनना भी सिखाती है । प्रणाम शुभ रात्री ।
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