आप समस्त स्नेहीजनों को अंतरंग का स्नेह वंदन
॥ जय श्री राम ॥
"विद्या वेड्स आदर्श "
उनकी लव मैरेज हुई थी, पर भागकर नहीं। फंक्शन में बहुत से यार दोस्त, रिश्तेदार आये, सब ख़ुश थे, कम से कम दिख रहे थे, पर लड़के की माँ देखने से ही चिढ़ी हुई लग रही थी।
अपने बेटे के लिए ख़ुद दुल्हन चुनने का सपना तो उन्होंने तब देख लिया था जब बेटे ने, फैन्सी-ड्रेस प्रतियोगिता में दूल्हा बन कर द्वितीय पुरस्कार जीता था।
शादी में आये रिश्तेदारों ने नवजोड़े को दुआ-आशीर्वाद, राम-सीता की उपाधि सब दी, विशेषतया दुल्हन में सबको लक्ष्मी रूप के दर्शन हो रहे थे।
शादी के दस दिन बाद एक दुर्घटना हुई, स्टील फैक्ट्री में इंजीनियर लड़के पर कोई भारी उपकरण गिर गया, लड़के की मौत हो गयी!
घर में फिर वही यार-दोस्त, रिश्तेदार जमा हुए; लड़की ने पतिखोर-मनहूस के ताने सुने...जिसमे दस दिन पहले सबको लक्ष्मी दिख रही थी आज वही डायन लगने लगी थी।
घटना को तीन महीने बीत गए, सास से रोज गाली-ताने सुनकर भी लड़की ससुराल में ही थी, मायके से कई बार लोग आये, सास ने त्याग दिया पर वो नहीं गयी,वहीँ जड़ हो गयी।
पति की जगह नौकरी कर रही थी, पर न जाने का ये कारण नहीं था, शादी के फौरन बाद प्यार वाले लम्हों में लड़के ने उससे वादा लिया था ये कहते हुए की, "माँ ज़रा रूढ़िवादी है पर बुरी नहीं है, मेरे सिवा उसका कोई नहीं है तो ज़रा रक्षात्मक है, पर अब मेरे साथ तुम भी उसकी हो गयी हो...अपनी माँ की तरह ख़याल रखना!"
लड़की वादा तोड़ सकती थी मग़र... नहीं तोड़ा!
पति की जगह अनुकंपा में नौकरी मिली थी। एक दिन, हर दिन की तरह..सफ़ेद साड़ी पहन के वो काम पे जा रही थी, पीछे से सास की आवाज़ सुन कर ठिठक गई,
"अगर इस घर में रहना है तो आज से तुम सफ़ेद साड़ी नहीं पहनोगी!" कह कर सास ने उसके कपड़े बदलवा दिए। लड़की इस अचानक हुए बदलाव से स्तब्ध थी पर ज़हन में जगी एक प्रबल उम्मीद की लौ ने उसके होठ सिल दिए। हरे सलवार सूट में वो घर से निकली, सास ने उसे धुंधली नज़रों से जाते हुए देखा।
सास के पीछे वाले कमरे की बिना सलाखों वाली खिड़की, खुली थी। जिससे सटे टेबल पर एक अधखुली डायरी पड़ी थी, खिड़की से आती मद्धम हवा ने उसे पूरा खोल दिया...डूबते सूरज की रौशनी उस पन्ने पर बिखर गयी, लिखा था-
" मैंने हमेशा अपनी माँ को सफ़ेद साड़ी में देखा है, वो रंग उसकी हँसी को फीका कर देता है। मैं उसे ख़ुश कर के भी ख़ुश नहीं होता, तमाम कोशिश कर के भी मैं उसके कपड़ों तक में रंग नहीं भर पाया हूँ! अब जब मेरी शादी होने वाली है, सोच कर डरता हूँ की कल को अगर कुछ हो जाए तो मैं अपने साथ अनन्या के जीवन के रंग भी ले जाऊँगा।"
कहते हैं उस शाम को जब लड़की लौटी तो सास ने उसे कुछ नहीं कहा, कोई ताना नहीं, कोई कटु शब्द नहीं!
आजकल भी नहीं सुनाती, हाँ लड़की अब उसे "माँजी" की जगह केवल "माँ" कहती है और सास लड़की को बहु की जगह बेटी।
"कुछ शब्द वाकई शक्तिशाली होते हैं, रिश्ता बना जाते हैं!"
प्रणाम
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
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